मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे पर वार्ता
चर्चा मेंबर
हाल ही में प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र (UN) “मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे पर उच्च स्तरीय वार्ता” को संबोधित किया।
तथ्य
- वे संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन( UNCCD) के पार्टियों के सम्मेलन (COP) के 14वें सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे।
- यह वार्ता सभी सदस्य राज्यों को भूमि क्षरण तटस्थता( LDN) लक्ष्यों और राष्ट्रीय सूखा योजनाओं को अपनाने तथा लागू करने के लिये प्रोत्साहित करेगी।
भारत द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम:-
- भारत, LDN (सतत विकास लक्ष्य 15.3) पर अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को प्राप्त करने की राह पर है।
- LDN एक ऐसी स्थिति है जहाँ पारिस्थितिक तंत्र कार्यों और सेवाओं का समर्थन करने तथा खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिये आवश्यक भूमि संसाधनों की मात्रा एवं गुणवत्ता स्थिर रहती है या निर्दिष्ट अस्थायी व स्थानिक पैमाने और पारिस्थितिक तंत्र के भीतर बढ़ जाती है।
- भारत वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि की बहाली के लिये कार्य कर रहा है।
- यह 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर [वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) लक्ष्य का एक हिस्सा] अतिरिक्त कार्बन सिंक को प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता में योगदान देगा।
- पिछले 10 वर्षों में इसमें लगभग 3 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र जोड़ा गया है।
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन (UNCCD):-
- इसे वर्ष 1994 में स्थापित किया गया था।
- यह पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय समझौता है।
- UNCCD के 14वें CoP द्वारा हस्ताक्षरित वर्ष 2019 के दिल्ली घोषणापत्र में भूमि पर बेहतर पहुँच और प्रबंधन का आह्वान किया गया तथा लैंगिक-संवेदनशील परिवर्तनकारी परियोजनाओं पर ज़ोर दिया गया।
भूमि क्षरण की जाँच के लिये भारत के प्रयास:-
- एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP) (प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना)
- राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP)
- हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन (GIM)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा)
- नदी घाटी परियोजना के जलग्रहण क्षेत्र में मृदा संरक्षण
- बारानी क्षेत्रों के लिये राष्ट्रीय वाटरशेड विकास परियोजना (NWDPRA)
- चारा और चारा विकास योजना-घास भंडार सहित चरागाह विकास का घटक
- कमान क्षेत्र विकास और जल प्रबंधन (CADWM) कार्यक्रम।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना।
पासिफए प्रोजेक्ट और इसका महत्व
(PASIPHAE Project and its importance)
- ‘पोलर-एरियाज़ स्टेलर-इमेजिंग इन पोलेराइज़ेशन हाई-एक्यूरेसी एक्सपेरीमेंट’ (Polar-Areas Stellar-Imaging in Polarisation High-Accuracy Experiment – PASIPHAE) अर्थात ‘पासिफए’ एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी आकाश सर्वेक्षण परियोजना है।
- इस प्रोजेक्ट के तहत, वैज्ञानिकों का लक्ष्य लाखों तारों से निकलने वाले प्रकाश में होने वाले ध्रुवीकरण या ध्रुवण (Polarisation) का अध्ययन करना है।
पृष्ठभूमि
ध्रुवीकरण, प्रकाश का एक गुण होता है, जो प्रकाश तरंग के दोलन करने की दिशा को दर्शाता है।
सर्वेक्षण की क्रिया-विधि:
- सर्वेक्षण में में उत्तरी और दक्षिणी आसमान को एक साथ देखने के लिए दो हाई-टेक ऑप्टिकल पोलरिमीटर्स (Polarimeters) का उपयोग किया जाएगा।
- सर्वेक्षण में, काफी धुंधले तारों से निकलने वाले प्रकाश के ध्रुवीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। ये तारे बहुत अधिक दूरी पर स्थित है और अभी तक इनके ध्रुवीकरण संकेतों का व्यवस्थित रूप से अध्ययन नहीं किया गया है।
- इन तारों की दूरी GAIA उपग्रह द्वारा की गई माप से ज्ञात की जाएगी।
- इन आंकड़ों का संयोजन करके, खगोलविद WALOP (वाइड एरिया लीनियर ऑप्टिकल पोलारिमीटर) नामक एक अत्याधुनिक पोलरिमीटर उपकरण के द्वारा विस्तृत आकाश क्षेत्रों के अंतर-तारकीय माध्यम की पहली चुंबकीय क्षेत्र टोमोग्राफी मैपिंग (magnetic field tomography mapping) करेंगे।
परियोजना का महत्व:
- सिद्धांत के अनुसार, ब्रह्मांड के तीव्र स्फीतिकारी चरण के दौरान उत्सर्जित CMB विकिरण के एक अल्पांश के चिह्न एक विशिष्ट प्रकार के ध्रुवीकरण पर मिलने चाहिए, इस ध्रुवीकरण को तकनीकी रूप से बी-मोड सिग्नल के रूप में जाना जाता है।
- इन बी-मोड सिग्नलों की उत्पत्ति, ब्रह्मांड-स्फीति के दौरान देखी जाने वाली शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण तरंगों के परिणामस्वरूप मानी जाती है।
- हमारी अपनी आकाशगंगा में पाए जाने वाले धूल के विस्तृत बादलों के कारण, इसमें मौजूद भारी मात्रा में ध्रुवीकृत विकिरण और इन संकेतों को अलग करना मुश्किल हो जाता है।
- संक्षेप में, PASIPHAE प्रोजेक्ट के तहत इन बाधाओं के प्रभाव का पता लगाने का प्रयास किया जाएगा, ताकि अंततः हम ब्रह्मांड की शुरुआत में घटित घटनाओं के बारे में जान सकें।
तुलु भाषा
चर्चा में क्यों
तुलु भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने तथा कर्नाटक और केरल में इसे आधिकारिक भाषा का दर्जा दिए जाने की मांग।
तुलु भाषा के बारे में
- कर्नाटक की दो तटीय जिलों दक्षिण कन्नड़ तथा उडुपी और केरल के कासरगोल जिले में बोली जाने वाली द्रविड़ भाषा है।
- तुलु भाषा में एक समृद्ध मौखिक साहित्य परंपरा पाई जाती है। जिसमें पद्दाना ( Paddana) जैसे लोकगीत और यक्षगान जैसे पारंपरिक लोक रंगमंच रूप शामिल है।
- रॉबर्ट काल्डवेल ने अपनी पुस्तक ‘साउथ इंडियन फैमिली ऑफ लैंग्वेज’में तुलु भाषा को द्रविड़ परिवार की सबसे विकसित भाषाओं में से एक बताया है।
संविधान की आठवीं अनुसूची
- भारतीय संविधान के भाग – XVII में अनुसूची 343 से 351 तक आधिकारिक भाषाओं से संबंधित प्रावधान है।
- वर्तमान में संविधान की आठवीं अनुसूची में कुल 22 भाषाएं शामिल हैं।
रेयर अर्थ धातु और चीन का एकाधिकार
- वर्तमान में चीन 60% रेयर अर्थ धातुओं का उत्पादन करता है। बाकी अन्य देशों द्वारा उत्पादित किया जाता है जिसमें क्वाड, ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान, यूएसए शामिल है।
- भारत में रेयर अर्थ तत्वों का दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा भंडार है, जो आस्ट्रेलिया से लगभग 2 गुना है, लेकिन भारत चीन से अधिकांश रेयर अर्थ धातुओं की जरूरतों को तैयार रूप में आयात करता है।
- वर्ष 2019 में यूएसए ने अपने रेयर अर्थ खनिजों का 80% चीन से आयात किया जबकि यूरोपीय संघ का 98% हिस्सा चीन से मिलता है।
भारत की रेयर अर्थ क्षमता बढ़ाने के लिए 3 संभावित दृष्टिकोण है
- रेयल अर्थ के लिए नया विभाग तथा भारतीय रेयर अर्थ ऑक्साइड को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना चाहिए।
- डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाएं और अनुप्रयोग जैसे रेयर अर्थ चुंबक और बैटरी का निर्माण इत्यादि तथा बुनियादी ढांचे का निर्माण जैसे-बंदरगाह, सड़क इत्यादि।
- अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय
- IREL रेयर अर्थ ऑक्साइड का उत्पादन करता है और इन्हें विदेशी फर्मों को बेचता है, जो धातुओं को निकलती है और अंतिम उत्पादों का निर्माण करती है।
रेयर अर्थ तत्व ( REE )
- यह 17 दुर्लभ धातु तत्वों का समूह है। इसमें आवर्त सारणी में मौजूद 15 लैंथेनाइड और इसके स्कैडियम तथा अटिरयम शामिल है।
- यह तत्व उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स कंप्यूटर और नेटवर्क, संचार, स्वास्थ्य देखभाल राष्ट्रीय रक्षा आदि विभिन्न क्षेत्रों में काफी महत्वपूर्ण है।
- यह तत्व भविष्य की प्रौद्योगिकीयो के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। ( उदाहरण के लिए उच्च तापमान, सुपरकंडक्टिविटी, पर्यावरण, ग्लोबल वार्मिंग और ऊर्जा दक्षता इत्यादि।)
- इन्हें दुर्लभ तत्व कहा जाता है, क्योंकि पूर्व में इन्हें तकनीकी रूप से इनके ऑक्साइड स्वरूप को निकालना काफी मुश्किल था।
- वर्तमान में दुर्लभ तत्वों का अन्वेषण भारतीय खान ब्यूरो और परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा किया जाता है।
नाटो शिखर सम्मेलन
चर्चा में क्यों
हाल ही में, बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में नाटो शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसमें सभी 30 मित्र राष्ट्रों ने भाग लिया।
- नाटो देशों के प्रमुखों ने कहा कि वे नाटो की संस्थापक ‘वाशिंगटन संधि’ तथा इसमें शामिल सामूहिक रक्षा संबंधी अनुच्छेद- 5 के प्रति दृढ़ता से प्रतिबंध है।
नोट – अनुच्छेद -5 में कहा गया है कि नाटो संगठन के किसी एक सहयोगी के खिलाफ हमले को, सभी के खिलाफ हमला माना जाएगा।
• अनुच्छेद- 5 की भाषा में प्रमुख साइबर हमलों को शामिल करने पर सहमति व्यक्त की गई है।
NATO ( उत्तर अटलांटिक संधि संगठन)
- मुख्यालय – ब्रुसेल्स ( बेल्जियम)
- वाशिंगटन संधि द्वारा स्थापित एक अंतर – सरकारी सैन्य गठबंधन है।
- शुरुआत में 12 राष्ट्र शामिल थे, अब इनके सदस्यों की संख्या बढ़कर 30 हो गई है। इसमें शामिल होने वाला सबसे अंतिम देश उत्तरी मकदूनिया है जो 27 मार्च 2020 को शामिल हुआ।
- नाटो की सदस्यता उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र की सुरक्षा में योगदान करने में सक्षम किसी भी यूरोपीय राष्ट्र के लिए खुली है।
दक्षिणी महासागर
चर्चा में क्यों
हाल ही में नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका द्वारा दक्षिणी महासागर ( Southern ocean) को विश्व के पांच महासागर के रूप में मान्यता दी है।
दक्षिणी महासागर के बारे में
• यह एकमात्र ऐसा महासागर है जो तीन अन्य महासागरों को स्पर्श तथा 1 महाद्वीप को पूरी तरह से घेरता है।
• इसकी उत्तरी सीमा 60 डिग्री दक्षिणी अक्षांश को स्पर्श करती है।
इतिहास
• इंटरनेशनल हाइड्रोग्राफिक ऑर्गनाइजेशन द्वारा भी वर्ष 1937 में इसके लिए मान्यता दी गई थी, किंतु वर्ष 1953 में इसे निरस्त कर दिया गया।
वर्ल्ड गिविंग इंडेक्स 2021 ( world giving index -2020)
• विश्व दाता सूचकांक, दुनिया भर से धर्मार्थ प्रयासों से संबंधित दुनिया का सबसे बड़ा सर्वेक्षण रिपोर्ट है, जो वार्षिक रूप से ‘ चैरिटीज एंड फाउंडेशन ( CAF) द्वारा प्रकाशित होता है।
- पहला संस्करण 2010 में।
- यह रिपोर्ट, दान करने की प्रवृत्ति के तीन पहलुओं का अवलोकन करती हैं।
- किसी अजनबी की मदद करना।
- धर्मार्थ हेतु दान किया गया धन।
- किसी संगठन के लिए दिया गया स्वैच्छिक समय
नवीनतम रिपोर्ट के निष्कर्ष
- इंडोनेशिया, विश्व का सर्वाधिक उदार देश है।
- भारत 14 वां सबसे धर्मार्थ देश है।
- शीर्ष 10 देशों में उच्च आय वाले देश केवल दो ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड है।
विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम 1967
( Unlawful activities and prevention act)
• 1967 की एक अन्य रूप से अस्पष्ट धारा 15 की रूपरेखा को परिभाषित करते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने निर्णय देते हुए अधिनियम की धारा 18, 15, 17 को लागू करने पर कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत निर्धारित किए हैं।
UAPA की धारा 15, 17 और 18
- धारा 15 आतंकवादी कृतियों से संबंधित आरोपों को आरोपित करती हैं।
- धारा 17 के तहत आतंकवादी कृत्यों के लिए धन जुटाने पर दंड का प्रावधान है।
- धारा 18 में आतंकवादी कृत्य करने हेतु साजिश आदि रचने या आतंकवादी कृत्य करने हेतु तैयारी के लिए आरोपित किया जाता है।
फैसले के निहितार्थ
- अदालत ने राज्य के लिए UAPA के तहत आतंकवाद के आरोपों में व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए मानदंड ऊंचे कर दिए हैं।
- फैसले में व्यक्तियों के खिलाफ, अनिवार्य रूप से आतंकवाद मामले की श्रेणी में नहीं आने वाले मामलों में भी UAPA के कथित दुरुपयोग की ओर संकेत किया गया है।
- छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के खिलाफ जम्मू और कश्मीर में प्रॉक्सी सर्वर के माध्यम से सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले मणिपुर में पत्रकारों तथा अन्य लोगों के खिलाफ विस्तृत श्रेणी के कथित अपराधों के लिए राज्य द्वारा इस प्रावधान का उपयोग करने में तीव्र वृद्धि को देखते हुए अदालत द्वारा व्यक्त की गई यह सतर्कता अति महत्वपूर्ण है।
नोट – वर्ष 2019 UAPA के तहत कुल 1126 मामले दर्ज किए गए, जबकि वर्ष 2015 में इन मामलों की संख्या 897 थी।
टीम रूद्रा
मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs )
अभिनव आनंद (डायट प्रवक्ता)
डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या
अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर)
योगराज पटेल (VDO)-
अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )
प्रशांत यादव – प्रतियोगी –
कृष्ण कुमार (kvs -t )
अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)
मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)
अश्वनी सिंह – प्रतियोगी
प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।