कप्पा और लैम्डा – Sars-CoV-2 के नए वेरिएंट
चर्चा में क्यों
हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा कोविड- 19 के ‘कप्पा’ (Kappa) और लैम्डा (Lambda) वेरिएंट को ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ (Variant of Interest – VoI) के रूप में नामित किया गया है
भारत के लिए चिंता के विषय:
- ‘कप्पा’ वैरिएंट के बारे में सबसे पहले भारत में पता चला था और देश में GISAID पहल के लिए जमा किए गए 30,000 संचयी नमूनों में 3,500 से अधिक नमूने इसी वैरिएंट के हैं।
- पिछले 60 दिनों में, भारत द्वारा जमा किए गए सभी नमूनों में 3 प्रतिशत कप्पा वैरिएंट के नमूने है। वास्तव में, GISAID तालिका में कप्पा वैरिएंट के नमूने जमा करने में भारत शीर्ष स्थान पर है, और इसके पश्चात् ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, आदि का स्थान है।
लैम्डा वैरिएंट’ क्या है? (Lambda Variant)
- लैम्डा, संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी द्वारा चिह्नित किया गया नवीनतम ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ (VoI) है।
- इस वैरिएंट की पहचान पहली बार पिछले साल दिसंबर में ‘पेरू’ में की गई थी और GISAID के साथ, लगभग 26 देशों द्वारा अब तक साझा किए गए नमूनों में इस वैरिएंट का पता चला है।
- इस वैरिएंट के सर्वाधिक नमूने ‘चिली’ में पाए गए है, इसके बाद सूची में क्रमशः अमेरिका और पेरू का स्थान है।
वैरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट’ (VoI) क्या होता है?
- ‘वैरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट’ का तात्पर्य, किसी वायरस में होने वाले उन आनुवंशिक उत्परिवर्तनों से होता है, जो ‘संचारण क्षमता और बीमारी की गंभीरता को प्रभावित करने, या प्रतिरक्षा से बचाव करने के लिए जाने जाते है, या इसके लिए भविष्यवाणी की जाती है।
- किसी वैरिएंट को ‘वैरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट’ के रूप में नामित करना इस तथ्य की स्वीकृति भी होती है, कि यह वैरिएंट कई देशों और जनसंख्या समूहों में महत्वपूर्ण सामुदायिक प्रसारण का कारण बन चुका है।
वेरिएंट ऑफ कंसर्न ( VOC): (Variant of Concern)
- जब किसी वेरिएंट की वजह से, वायरस संक्रामकता में वृद्धि, बीमारी का अधिक गंभीर होना (जैसे- अस्पताल में भर्ती या मृत्यु हो जाना), पिछले संक्रमण या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न एंटीबॉडी में महत्त्वपूर्ण कमी, उपचार या टीके की प्रभावशीलता में कमी या नैदानिक उपचार की विफलता देखने को मिलती है, तो उसे ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ (VOC) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC)(Central Information Commission)
चर्चा में क्यों?
● हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को केंद्रीय सूचना आयोग’ (Central Information Commission) में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, रिक्तियों और लंबित मामलों की नवीनतम जानकारी को आधिकारिक तौर पर प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
संबंधित प्रकरण:~
- उच्चतम न्यायालय में दायर एक याचिका में, वर्ष 2019 के एक फैसले में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए निर्देशों को लागू करने के लिए सरकारी अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई है।
सुप्रीमकोर्ट के फैसले में~
- केंद्र और राज्य सरकारों को पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों में रिक्त पदों को भरने के लिए कई निर्देश जारी किए थे।
- अदालत ने केंद्रीय सूचना आयोग’ में मौजूद रिक्तियों को भरने के लिए केंद्र को तीन महीने का समय दिया था।
‘केंद्रीय सूचना आयोग’
(Central Information Commission)
- केंद्रीय सूचना आयोग का गठन, सूचना अधिकार अधिनयम, 2005 के अंतर्गत, वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा किया गया था।
सदस्य:
- आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त तथा अधिकतम दस सूचना आयुक्त होते हैं।
नियुक्ति:
- आयोग के सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश पर नियुक्त किया जाता है। इस चयन समिति में अध्यक्ष के रूप में प्रधान मंत्री, तथा सदस्य के रूप में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता और प्रधान मंत्री द्वारा नामित केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
कार्यकाल:
- मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त, केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि तक या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, पद पर कार्यरत रहते हैं।
‘केंद्रीय सूचना आयोग के कार्य एवं शक्तियां:
आयोग के सदस्य पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं होते हैं।
- आयोग का प्रमुख कार्य, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत मांगी गई जानकारी के संबंध में किसी भी व्यक्ति की शिकायत प्राप्त करना और उसकी जांच करना है।
- आयोग, उचित आधार होने पर (स्वतः संज्ञान लेते हुए) किसी भी मामले में जांच का आदेश दे सकता है।
- जांच के दौरान, आयोग के पास किसी भी संबंधित व्यक्ति को बुलाने, दस्तावेजों की मांग करने आदि के संबंध में एक सिविल कोर्ट के समान शक्तियां होती हैं।
भारत में राज्यों का राज्यपाल
- अनुच्छेद – 152-162
- 7 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1956 के द्वारा एक ही व्यक्ति दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल हो सकता है।
नियुक्ति
- राज्यपाल तथा उप राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
कार्यकाल
- 5 वर्ष का होता है लेकिन राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है।
विवेकाधीन शक्तियां
- अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के पश्चात, मुख्यमंत्री के सलाहकार विधानसभा भंग कर सकता है।
- राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित कर सकता है।
- विधानसभा में किसी भी राजनीतिक दल के रूप में स्पष्ट बहुमत नहीं होने पर राज्यपाल द्वारा किसी को भी मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
- असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम सरकारों द्वारा स्वायत्त जनजातीय जिला परिषदों को खनिज उत्खनन के लिए लाइसेंस से प्राप्त रॉयल्टी, की देय राशि का निर्धारण करता है।
नए सहकारिता मंत्रालय का गठन
चर्चा में क्यों
देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए एक अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढांचा प्रदान करेगा।
प्रमुख बिंदु
- यह जमीनी स्तर पर जन आधारित आंदोलन को मजबूत करने में मदद करेगा।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ( international Labour organisation – ILO) के अनुसार , सहकारिता सहकारी व्यक्तियों का एक स्वायत्त संघ है जो संयुक्त स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उन के माध्यम से अपनी सामान्य आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सुरक्षा से एकजुट होता है।
- राज्य के नीति निर्देशक तत्व में सहकारी समितियों के संबंध में एक नया अनुच्छेद 43B जोड़ा गया था।
- वर्ष 1919 में सहकारिता एक प्रांतीय विषय बन गया और भारत शासन अधिनियम 1935 के तहत प्रांतों का वर्गीकरण किया गया जो मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों के तहत अपने स्वयं के सहकारी कानून बनाने हेतु अधिकृत हैं।
टीम रूद्रा
मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs )
अभिनव आनंद (डायट प्रवक्ता)
डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या
अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर)
योगराज पटेल (VDO)-
अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )
प्रशांत यादव – प्रतियोगी –
कृष्ण कुमार (kvs -t )
अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)
मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)
अश्वनी सिंह – प्रतियोगी
प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।