विश्व ऊर्जा निवेश रिपोर्ट 2021:IEA
● हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने विश्व ऊर्जा निवेश रिपोर्ट,2021 प्रकाशित की।
वैश्विक ऊर्जा निवेश, 2017-21
ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ा निवेश:-
- वैश्विक ऊर्जा निवेश को वर्ष 2021 में फिर से बढ़ाने और इसके सालाना 10% बढ़कर लगभग 1.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है।
- इस निवेश का अधिकांश हिस्सा पारंपरिक जीवाश्म ईंधन उत्पादन से हटकर बिजली और अंतिम उपयोग क्षेत्रों की ओर प्रवाहित होगा।
- परिदृश्य पूरी तरह से इस अनुमान के अनुरूप है कि वैश्विक ऊर्जा मांग वर्ष 2021 में सालाना आधार पर 4.6% बढ़ेगी, जिससे वर्ष 2020 में इसके संकुचन की भरपाई होगी।
नवीकरणीय ऊर्जा:
- नई बिजली उत्पादन क्षमता पर होने वाले कुल खर्च का लगभग 70% नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Power) पर किया जाएगा।
- नवीकरणीय ऊर्जा का पर्याप्त लाभ होगा क्योंकि यह तकनीकी विकास, अच्छी तरह से स्थापित आपूर्ति शृंखला और कार्बन-तटस्थ बिजली के लिये उपभोक्ताओं की मांग पर निर्भर है।
जीवाश्म ईंधन:
● तेल के उत्पादन और अन्वेषण में 10% निवेश बढ़ने की उम्मीद है। जीवाश्म ईंधन में इस विस्तार की योजना कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS) तथा बायोएनर्जी (Bioenergy CCS) सीसीएस जैसी नई प्रौद्योगिकियों के साथ बनाई गई थी, जिन्हें अभी तक व्यावसायिक सफलता नहीं मिली है।
● वर्ष 2020 में कोयले से उत्पादित बिजली की वृद्धि, जो ज़्यादातर चीन द्वारा संचालित है, यह संकेत दे रही है कि कोयले से बिजली उत्पादन महँगा होने के बाद भी इसका महत्त्व बना हुआ है।
बढ़ा हुआ उत्सर्जन:
- उपरोक्त सकारात्मक परिदृश्य अभी भी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि को रोक नहीं पाएगा, मुख्य रूप से वर्ष 2020 के बाद कोरोना वायरस महामारी से प्रेरित आर्थिक मंदी के कारण।
- वर्ष 2021 में वैश्विक उत्सर्जन 1.5 बिलियन टन बढ़ने का अनुमान है।
- कई विकासशील देशों की सहायक नीति और नियामक ढाँचे अभी तक लंबी अवधि के नेट ज़ीरो एमिशन के लक्ष्यों के अनुरूप नहीं हैं।
- नेट ज़ीरो एमिशन का तात्पर्य उत्पादित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और वातावरण से निकाले गए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बीच एक समग्र संतुलन प्राप्त करना है।
- ● कई उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (Emerging Market and Developing Economies- EMDE) में नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश विकसित देशों की तुलना में कोविड-19 के कारण कम हुआ जिससे कई ईएमडीई ने कोयले और तेल को प्राथमिकता दी है।
बढ़े हुए उत्सर्जन का कारण:-
- मांग में वृद्धि के लिये उभरता बाज़ार लगभग 70% ज़िम्मेदार है और भारत इस ब्लॉक में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- चीन कोयला आधारित बिजली उत्पादन में अत्यधिक विस्तार कर रहा है, (इसकी दिसंबर 2020 में कोयले की खपत उच्चतम स्तर पर थी) हालाँकि यह अपने अक्षय ऊर्जा विकास में भी सराहनीय काम कर रहा है।
- विकसित देशों की ज़िम्मेदारी और हिस्सेदारी को कम नहीं आँका जाना चाहिये। इनके उत्सर्जन की वृद्धि मध्यम है लेकिन इनका निर्यात उत्सर्जन चिंता का विषय है।
- कोयले के माध्यम से ऑस्ट्रेलिया का निर्यात उत्सर्जन उसके घरेलू उत्सर्जन से दोगुना है।
- हालाँकि अमेरिका ने पेरिस समझौते में फिर से शामिल होकर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये बहुपक्षीय संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के प्रति नई प्रतिबद्धता दिखाई है। सस्ते शेल गैस के प्रति इसका आकर्षण निवेश में विकृति पैदा कर रहा है और भारत जैसे देशों के विकास पथ की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के विषय में:-
- यह वर्ष 1974 में पेरिस, फ्राँस में स्थापित एक स्वायत्त अंतर-सरकारी संगठन है।
- यह मुख्य रूप से ऊर्जा नीतियों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें आर्थिक विकास, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण आदि शामिल हैं। इन नीतियों को 3 ई (3 E) के रूप में भी जाना जाता है।
- भारत मार्च 2017 में आईईए का एसोसिएट सदस्य बना था, हालाँकि भारत इससे पूर्व से ही संगठन के साथ कार्य कर रहा था।
- हाल ही में भारत ने वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा और स्थिरता के क्षेत्र में सहयोग को मज़बूत करने के लिये आईईए के साथ एक रणनीतिक समझौता किया है।
- ● हाल ही में इसने भारत ऊर्जा आउटलुक, 2021 रिपोर्ट और वर्ष 2050 तक नेट ज़ीरो और विश्व का पहला व्यापक ऊर्जा रोडमैप जारी किया है।
ब्लैक कार्बन का ग्लेशियरों पर प्रभाव
हिमालय के ग्लेशियर: जलवायु परिवर्तन, ब्लैक कार्बन और क्षेत्रीय लचीलापन” शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ये ग्लेशियर ‘वैश्विक औसत बर्फ द्रव्यमान’ की तुलना में तेज़ी से पिघल रहे हैं। हालाँकि ब्लैक कार्बन से संबंधित मज़बूत नीति ग्लेशियरों के पिघलने की प्रक्रिया को तेज़ी से रोक सकती है।
यह अनुसंधान रिपोर्ट विश्व बैंक द्वारा जारी की गई है और इसमें हिमालय, काराकोरम और हिंदूकुश (HKHK) पर्वत शृंखलाएँ शामिल हैं।
ब्लैक कार्बन (BC):
- ब्लैक कार्बन एक तरह का एयरोसोल है।
- एक एयरोसोल हवा में सूक्ष्म ठोस कणों या तरल बूँदों का निलंबन होता है।
- एयरोसोल (जैसे ब्राउन कार्बन, सल्फेट्स) में ब्लैक कार्बन को जलवायु परिवर्तन के लिये दूसरे सबसे महत्त्वपूर्ण मानवजनित एजेंट और वायु प्रदूषण के कारण होने वाले प्रतिकूल प्रभावों को समझने हेतु प्राथमिक एजेंट के रूप में मान्यता दी गई है।
- यह गैस और डीज़ल इंजन, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों तथा जीवाश्म ईंधन को जलाने वाले अन्य स्रोतों से उत्सर्जित होता है। इसमें पार्टिकुलेट मैटर या PM का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है, जो एक वायु प्रदूषक है।
HKHK पर्वत क्षेत्र:
- HKHK क्षेत्र आठ देशों में फैला है; अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, चीन, भूटान, बांग्लादेश और म्याँमार और सहित इस क्षेत्र में एवरेस्ट और K2 जैसे दुनिया के कुछ सबसे ऊँची पर्वत श्रेणियाँ भी शमिल हैं।
- HKHK पर्वतीय क्षेत्र के ग्लेशियर गंगा, यांग्त्ज़ी, इरावदी और मेकांग सहित नदी प्रणालियों से संबंधित हैं।
- ग्लेशियरों से निकलने वाला पानी कृषि का पोषण करता है, जिस पर लगभग 2 अरब लोग निर्भर हैं।
- HKHK क्षेत्र को चीन के तिआनशान पर्वत के साथ तीसरे ध्रुव के रूप में भी जाना जाता है, यहाँ उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के बाद सबसे अधिक बर्फ है।
प्रमुख बिंदु:
- BC एक अल्पकालिक प्रदूषक है जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बाद ग्रह को गर्म करने में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है।
- अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के विपरीत BC जल्दी से धुल जाता है और अगर इसका उत्सर्जन बंद हो जाता है तो इसे वातावरण से समाप्त किया जा सकता है।
- ऐतिहासिक कार्बन उत्सर्जन के विपरीत यह अधिक स्थानीय प्रभाव वाला एक स्थानीय स्रोत भी है।
- BC एक अल्पकालिक प्रदूषक है जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बाद ग्रह को गर्म करने में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है।
- अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के विपरीत BC जल्दी से धुल जाता है और अगर इसका उत्सर्जन बंद हो जाता है तो इसे वातावरण से समाप्त किया जा सकता है।
- ऐतिहासिक कार्बन उत्सर्जन के विपरीत यह अधिक स्थानीय प्रभाव वाला एक स्थानीय स्रोत भी है।
- हिमालयी क्षेत्र में ब्लैक कार्बन का स्रोत:
- कुल ब्लैक कार्बन में उद्योग (मुख्य रूप से ईंट भट्टे) और ठोस ईंधन जलने से क्षेत्रीय मानवजनित BC के उत्सर्जन का 45-66% हिस्सा शामिल होता है, इसके बाद ऑन-रोड डीज़ल ईंधन (7-18%) और खुले में ईंधन जलाने से (3% से कम) ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन होता है।
BC भंडारण का प्रभाव:
- यह ग्लेशियर के पिघलने की गति को दो तरह से तेज़ करने का कार्य करता है:
- सूर्य के प्रकाश की सतह परावर्तन को कम करके।
- हवा का तापमान बढ़ाकर।
ग्लेशियर पिघलने के कारण:
- ग्लेशियर के पिघलने से अचानक बाढ़, भूस्खलन, मिट्टी का कटाव और हिमनद झील से उत्पन्न बाढ़ (GLOF) संबंधी समस्याएँ सामने आती हैं।
- अल्पावधि में पिघले हुए पानी की अधिक मात्रा नीचे की ओर घटते भूजल की जगह ले सकती है। लेकिन लंबे समय में पानी की उपलब्धता कम होने से पानी की किल्लत बढ़ जाएगी।
उठाए गए कदम:
- हिमालय पर रसोई चूल्हे, डीज़ल इंजन और खुले में जलने से ब्लैक कार्बन उत्सर्जन को कम करने का सबसे बड़ा प्रभाव होगा और यह विकिरण बल को काफी कम कर सकता है तथा हिमालयी ग्लेशियर तंत्र के एक बड़े हिस्से को बनाए रखने में मदद कर सकता है।
- विकिरण बल वैश्विक ऊर्जा संतुलन को प्रभावित करने और जलवायु परिवर्तन में योगदान करने के लिये एक मज़बूर एजेंट (जैसे- ग्रीनहाउस गैसों, एयरोसोल, क्लाउड और सतही एल्बीदडो) में परिवर्तन के परिणामस्वरूप ऊर्जा संतुलन में परिवर्तन का एक उपाय है।
पंचायतों के लिए एक आदर्श नागरिक घोषणापत्र
- पंचायते, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243G में बुनियादी सेवाओं विशेषकर स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, शिक्षा, पोषण, पेयजल की सुपुर्दगी के लिए उत्तरदाई है।
- नागरिक घोषणापत्र ( citizen charter) पहल, सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने वाले संस्थाओं के साथ लेनदेन करने के दौरान, नागरिकों को दिन-व-दिन होने वाली समस्याओं का हल खोजने का एक जवाब है।
- नागरिक घोषणापत्र की अवधारणा सेवा प्रदान और उसके उपयोगकर्ताओं के बीच विश्वास सुनिश्चित करते हैं।
- यह अवधारणा पहली बार 1991 में यूनाइटेड किंगडम में प्रस्तुत और कार्यान्वित किया गया था।
मूल रूप से तैयार सिटीजन चार्टर आंदोलन में छह सिद्धांत शामिल किए गए थे।
• गुणवत्ता – सेवाओं की व्यवस्था में सुधार।
• विकल्प – जहां भी संभव हो।
• मानक – निर्दिष्ट करें कि क्या अपेक्षा की जाए और मानकों को पूरा न करने पर क्या प्रक्रिया की जाए।
• मूल्य – करदाताओं के पैसों का मूल्य समझा जाए।
• जवाबदेही – व्यक्ति और संगठन
• पारदर्शिता
• सिटीजन चार्टर की अवधारणा को पहली बार, मई 1997 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आयोजित विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में अपनाया गया था।
विश्व महासागर दिवस
• 8 जून को हर साल विश्व महासागर दिवस मनाया जाता है ।
• यह पारिस्थितिकी में महासागर के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है । • 2008 में , संयुक्त राष्ट्र ( यूएन ) ने 8 जून को विश्व महासागर दिवस के रूप में घोषित किया ।
• विश्व महासागर दिवस का विचार पहली बार 1992 में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में प्रस्तावित किया गया था ।
• यह लोगों और सरकार को महासागर पर आर्थिक गतिविधियों और मानवीय कार्यों के प्रभाव के बारे में सूचित करता है ।
• विश्व महासागर दिवस 2021 की थीम ‘ द ओसियन : लाइफ एंड लाइवलीहुड ‘ है ।
• जहाजों से प्रदूषण , समुद्र में कचरा और जहाजों से वायु प्रदूषण से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए 1973 में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन का गठन किया गया था ।
• पृथ्वी का लगभग दो – तिहाई हिस्सा महासागर से ढका हुआ है लेकिन कानूनी रूप से समुद्र का केवल एक प्रतिशत ही संरक्षित है ।
परफारमेंस ग्रेडिंग इंडेक्स ( P.G.I.)
जारीकर्ता – शिक्षा मंत्रालय
उद्देश्य – स्कूली शिक्षा के आधार पर राज्यों केंद्र – शासित प्रदेशों को ग्रेड प्रदान करना।
• राज्यों का प्रदर्शन 70 संकेतों के आधार पर मापा जाता है। इन संकेतों को दो श्रेणियों में बांटा गया है।
1- परिणाम और प्रशासन
2- प्रबंधन
नवीनतम निष्कर्ष
• पंजाब, तमिल नाडु , केरल, तथा अंडमान और निकोबार को उच्च स्थान प्राप्त हुआ है।
• पंजाब – प्रशासन और प्रबंधन में सार्वजनिक अंक।
• अवसंरचना और सुविधाओं में बिहार और मेघालय को सबसे कम अंक मिले हैं।
टीम रूद्रा
मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs )
अभिनव आनंद (डायट प्रवक्ता)
डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या
अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर)
योगराज पटेल (VDO)-
अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )
प्रशांत यादव – प्रतियोगी –
कृष्ण कुमार (kvs -t )
अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)
मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)
अश्वनी सिंह – प्रतियोगी
प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।