19 June 2021 Current affairs

सोने की हॉलमार्किंग को लेकर नए मानदंड

चर्चा में क्यों?

● हाल ही में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने सोने के गहनों की हॉलमार्किंग को अनिवार्य कर दिया है, जिसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।

हॉलमार्किंग के बारे में

  • भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standard- BIS) भारत में सोने और चाँदी की हॉलमार्किंग योजना को संचालित करता है, हॉलमार्किंग को “कीमती धातु की वस्तुओं में कीमती धातु की आनुपातिक सामग्री का सटीक निर्धारण और आधिकारिक रिकॉर्डिंग” के रूप में परिभाषित करता है।
  • यह कीमती धातु की वस्तुओं की “शुद्धता या सुंदरता की गारंटी” है, जो वर्ष 2000 में शुरू हुई थी। भारत में वर्तमान में दो कीमती धातुओं सोना और चाँदी को हॉलमार्किंग के दायरे में लाया गया है।
  • BIS प्रमाणित ज्वैलर्स किसी भी BIS मान्यता प्राप्त एसेइंग एंड हॉलमार्किंग सेंटर (Assaying and Hallmarking Centres- A&HC) से अपने आभूषण हॉलमार्क करवा सकते हैं।
  • पहले यह ज्वैलर्स के लिये वैकल्पिक था और इस प्रकार केवल 40% सोने के आभूषणों की हॉलमार्किंग हो रही थी।

चरणबद्ध तरीके से कार्यान्वयन

  • पहले चरण में केवल 256 ज़िलों में गोल्ड हॉलमार्किंग सुविधा उपलब्ध होगी और 40 लाख रुपए से अधिक वार्षिक टर्नओवर वाले ज्वैलर्स इसके दायरे में आएंगे।
  • आभूषण और वस्तुओं की एक निश्चित श्रेणी को भी हॉलमार्किंग की अनिवार्य आवश्यकता से छूट दी जाएगी। अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों हेतु आभूषण, सरकार द्वारा अनुमोदित B2B (बिजनेस-टू-बिजनेस) घरेलू प्रदर्शनियों के लिये आभूषणों को अनिवार्य हॉलमार्किंग से छूट दी जाएगी। .

गोल्ड हॉलमार्किंग की आवश्यकता

  • भारत सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। हालाँकि देश में हॉलमार्क वाली ज्वैलरी का स्तर बहुत कम है। अनिवार्य हॉलमार्किंग जनता को कम कैरेट (शुद्ध सोने का अंश) से बचाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि सोने के गहने खरीदते समय उपभोक्ताओं को धोखा न हो साथ ही भ्रष्टाचार भी कम हो।

भारतीय मानक ब्यूरो

  • BIS वस्तुओं के मानकीकरण, अंकन और गुणवत्ता प्रमाणन जैसी गतिविधियों के सामंजस्यपूर्ण विकास का कार्य करता है।

मानक तैयार करना

  • BIS विभिन्न क्षेत्रों के लिये राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप भारतीय मानक तैयार करता है जिन्हें 14 विभागों जैसे- रसायन, खाद्य और कृषि, नागरिक, इलेक्ट्रो-तकनीकी, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी आदि के तहत समूहीकृत किया गया है।

BIS की अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियाँ

  • BIS, अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (International Organization for Standardization- ISO ) का संस्थापक सदस्य है और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के विकास में सक्रिय रूप से शामिल है।

अन्य पहलें:

BIS SDO मान्यता योजना

  • भारत सरकार के एक राष्ट्र एक मानक विज़न के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये BIS ने एक मानक विकास संगठन (Standard Developing Organization-SDO) नामक योजना शुरू की है।

उत्पाद प्रमाणन योजना

  • किसी उत्पाद पर BIS मानक चिह्न (जिसे ISI चिह्न के रूप में जाना जाता है) की उपस्थिति प्रासंगिक भारतीय मानक के अनुरूप होने का संकेत देती है।

डीप ओशन मिशन

चर्चा में क्यों

हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने ‘डीप ओशन मिशन’ (DOM) पर ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ (MoES) के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु

  • समुद्र की गहराई का पता लगाने के लिये वर्ष 2018 में ‘डीप ओशन मिशन’ के ब्लूप्रिंट का अनावरण किया गया था। इससे पूर्व ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ ने ब्लू इकॉनमी पॉलिसी का मसौदा भी प्रस्तुत किया था।
  • पाँच वर्ष की अवधि वाले इस मिशन की अनुमानित लागत 4,077 करोड़ रुपए है और इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा। ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ इस बहु-संस्थागत महत्त्वाकांक्षी मिशन को लागू करने वाला नोडल मंत्रालय होगा।
  • यह भारत सरकार की ‘ब्लू इकॉनमी’ पहल का समर्थन करने हेतु एक मिशन मोड परियोजना होगी।
  • ‘ब्लू इकॉनमी’ का आशय आर्थिक विकास, बेहतर आजीविका, रोज़गार सृजन और महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र के बेहतर स्वास्थ्य हेतु समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग से है।
  • ऐसे मिशनों के लिये आवश्यक तकनीक और विशेषज्ञता वर्तमान में केवल पाँच देशों- अमेरिका, रूस, फ्रांँस, जापान और चीन के पास उपलब्ध है।
  • भारत ऐसी तकनीक वाला छठा देश होगा।

चिल्ड्रन एंड डिजिटल डंपसाइट’ : WHO की रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने अपनी हालिया रिपोर्ट “चिल्ड्रन एंड डिजिटल डंपसाइट्स” (Children and Digital Dumpsites) में उस जोखिम को रेखांकित किया है जिसका सामना अनौपचारिक प्रसंस्करण में काम करने वाले बच्चे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों या ई-कचरे के कारण कर रहे हैं।

  • इन ई-कचरे के डंपिंग स्थलों पर कम-से-कम 18 मिलियन बच्चे (पाँच साल से कम उम्र के) और लगभग 12.9 मिलियन महिलाएँ कार्य करती हैं।
  • उच्च आय वाले देशों के ई-कचरे को प्रत्येक वर्ष प्रसंस्करण के लिये मध्यम या निम्न आय वाले देशों में डंप कर दिया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

ई-कचरे के संदर्भ में:

  • ई-वेस्ट (E-Waste) का संदर्भित रूप इलेक्ट्रॉनिक-वेस्ट (Electronic-Waste) है। इस शब्द का प्रयोग पुराने या जो प्रयोग में नहीं हैं ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
  • इसमें मुख्य रूप से ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण शामिल हैं, जो पूरी तरह से या आंशिक रूप से उपभोक्ता या थोक उपभोक्ता द्वारा कचरे के रूप में त्याग दिये जाते हैं और साथ ही निर्माण, नवीनीकरण तथा मरम्मत प्रक्रियाओं से खारिज कर दिये जाते हैं।
  • इसमें 1,000 से अधिक कीमती धातुएँ और अन्य पदार्थ जैसे सोना, तांबा, सीसा, पारा, कैडमियम, क्रोमियम, पॉलीब्रोमिनेटेड बाइफिनाइल और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन शामिल हैं।

ई-कचरे की मात्रा:

  • वैश्विक परिदृश्य: ग्लोबल ई-वेस्ट स्टैटिस्टिक्स पार्टनरशिप (Global E-waste Statistics Partnership) के अनुसार उत्पन्न ई-कचरे की मात्रा में विश्व भर में तेज़ी से वृद्धि हो रही है।
  • वर्ष 2019 में लगभग 53.6 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ था।
  • इस ई-कचरे का केवल 17.4% औपचारिक रूप से पुनर्नवीनीकरण किया गया था। जबकि इसके बाकी हिस्से को अनौपचारिक श्रमिकों द्वारा अवैध प्रसंस्करण के लिये निम्न या मध्यम आय वाले देशों में डंप कर दिया गया था।
  • इसका प्रमुख कारण स्मार्टफोन और कंप्यूटर की बढ़ती संख्या है।

भारतीय परिदृश्य

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार भारत ने 2019-20 में 10 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न किया, जो 2017-18 में उत्पादित ई-कचरे (7 लाख टन) की तुलना में बहुत अधिक है। इसके विपरीत, 2017-18 से ई-कचरा निराकरण क्षमता (7.82 लाख टन) में वृद्धि नहीं की गई है।
  • वर्ष 2018 में, पर्यावरण मंत्रालय ने ट्रिब्यूनल को बताया था कि भारत में 95% ई-कचरे का पुनर्नवीनीकरण अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है और स्क्रैप डीलर इसका निपटान से अवैज्ञानिक रूप से (एसिड में जलाकर या घोलकर) करते हैं।

डिजिटल डंपसाइट्स पर कार्य करने का प्रभाव:

  • बच्चों पर: ई-कचरे के संपर्क में आने वाले बच्चे छोटे आकार, अपने कम विकसित अंगों और विकास की तीव्र दर के कारण उनमें मौजूद जहरीले केमिकल्स के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं।
  • वे अपने आकार की तुलना में अधिक प्रदूषकों को अवशोषित करते हैं। उनका शरीर विषाक्त पदार्थों को झेलने और शरीर से बाहर निकालने में वयस्कों की तुलना में कम सक्षम होता है।
  • साथ ही यह बच्चों की सांस लेने की क्षमता और फेफड़ों के कार्यप्रणाली पर भी असर डालता है। यह बच्चों के डीएनए को नुकसान पहुँचा सकता है। इससे थायरॉयड संबंधी विकार और बाद में कैंसर तथा हृदय रोग के खतरे में वृद्धि हो सकती है।
  • महिलाओं पर: इस कचरे के संपर्क में आने से न केवल एक गर्भवती महिला बल्कि उसके अजन्मे बच्चे के स्वास्थ्य और विकास पर भी खतरा होता है। इसके कारण बच्चे का समय से पहले जन्म, मृत्यु तथा उसके विकास पर असर पड़ सकता है। साथ ही यह उसके मानसिक विकास, बौद्धिक क्षमता एवं बोलने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है।
  • अन्य पर: ऐसे स्थलों पर काम करने का खतरनाक प्रभाव उन परिवारों और समुदायों पर भी पड़ता है जो इन ई-कचरा डंपसाइट के आस-पास रहते हैं।

भारत में ई-कचरे का प्रबंधन:

निर्माता:
सरकार ने ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 लागू किया है जो विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) को लागू करता है।
विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व एक ऐसी रणनीति है जो किसी उत्पाद के संपूर्ण जीवनकाल के दौरान आई पर्यावरणीय लागत और उसके बाज़ार मूल्य को एकीकृत करने को प्रोत्साहित करती है।

राज्य सरकार:

  • राज्यों को ई-कचरे के निराकरण और पुनर्चक्रण सुविधाओं के लिये औद्योगिक स्थान निर्धारित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
  • उनसे यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे ई-कचरे के निराकरण और पुनर्चक्रण सुविधाओं में लगे श्रमिकों के स्वास्थ्य तथा सुरक्षा के लिये उपाय करें।

ई-कचरे का पुनर्चक्रण:
घरेलू और व्यावसायिक इकाइयों से कचरे को अलग करने, प्रसंस्करण और निपटान के लिये भारत का पहला ई-कचरा क्लिनिक भोपाल, मध्य प्रदेश में स्थापित किया गया है।

आयुध निर्माणी बोर्ड का निगमीकरण:-

चर्चा में क्यों

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) के निगमीकरण की योजना को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंद

  • देश भर में 41 कारखानों को रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के सात नए उपक्रमों (DPSU) में बदल दिया जाएगा। नवनिर्मित संस्थाएँ सरकार के 100% स्वामित्व में होंगी।
  • ये संस्थाएँ उत्पादों के विभिन्न कार्यक्षेत्रों के लिये ज़िम्मेदार होंगी जैसे कि गोला-बारूद और विस्फोटक समूह गोला-बारूद का उत्पादन करेंगे, जबकि एक वाहन समूह रक्षा गतिशीलता और लड़ाकू वाहनों के उत्पादन में संलग्न होगा।
  • उत्पादन इकाइयों में सभी OFB कर्मचारियों को केंद्र सरकार के कर्मचारियों के रूप में उनकी सेवा शर्तों में बदलाव किये बिना शुरू में दो वर्ष की अवधि के लिये एक डीम्ड प्रतिनियुक्ति पर नई कॉर्पोरेट संस्थाओं में स्थानांतरित किया जाएगा।
  • सेवानिवृत्त और मौजूदा कर्मचारियों की पेंशन देनदारियाँ सरकार द्वारा वहन की जाती रहेंगी।

OFB

  • यह आयुध कारखानों और संबंधित संस्थानों के लिये एक पूर्ण निकाय है तथा वर्तमान में रक्षा मंत्रालय (MoD) का एक अधीनस्थ कार्यालय है।
  • पहला भारतीय आयुध कारखाना वर्ष 1712 में डच कंपनी द्वारा गन पाउडर फैक्ट्री, पश्चिम बंगाल के रूप में स्थापित किया गया था।
  • यह 41 कारखानों, 9 प्रशिक्षण संस्थानों, 3 क्षेत्रीय विपणन केंद्रों और 5 क्षेत्रीय सुरक्षा नियंत्रकों का समूह है।
  • मुख्यालय: कोलकाता
  • महत्त्व: न केवल सशस्त्र बलों के लिये बल्कि अर्द्धसैनिक और पुलिस बलों हेतु हथियार, गोला-बारूद और आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा OFB द्वारा संचालित कारखानों से आता है।
  • उत्पादन में शामिल हैं: नागरिक और सैन्य-ग्रेड हथियार और गोला-बारूद, विस्फोटक, मिसाइल सिस्टम के लिये प्रणोदक और रसायन, सैन्य वाहन, बख्तरबंद वाहन, ऑप्टिकल उपकरण, पैराशूट, रक्षा उपकरण, सेना के कपड़े और सामान्य भंडार।

निगमीकरण का कारण:

  • OFB पर वर्ष 2019 के लिये अपनी रिपोर्ट में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा प्रदर्शन मूल्यांकन में कुछ कमियों पर प्रकाश डाला गया है, जो इस संगठन के सामने कठिनाइयाँ पैदा करती हैं।
  • ओवरहेड्स (उत्पाद बनाने या सेवा के लिये सीधे तौर पर ज़िम्मेदार नहीं) वर्ष के लिये कुल आवंटित बजट का 33% बाकी रह गया।
  • इसमें प्रमुख योगदानकर्त्ता पर्यवेक्षण लागत और अप्रत्यक्ष श्रम लागत हैं।
  • विलंबित उत्पादन: आयुध कारखानों ने केवल 49% वस्तुओं के उत्पादन का लक्ष्य हासिल किया।
  • आधे से अधिक सामान (52%) निर्माण हेतु खरीदा गया था लेकिन कारखानों द्वारा एक वर्ष के भीतर उपयोग नहीं किया गया था।
  • आत्मनिर्भर भारत पहल में भी OFB के निगमीकरण का प्रावधान किया गया है- ‘आयुध आपूर्तिकर्ताओं की स्वायत्तता, जवाबदेही और दक्षता में सुधार’।

 टीम रूद्रा

मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs ) 

अभिनव आनंद (डायट प्रवक्ता) 

डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या 

अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर) 

योगराज पटेल (VDO)- 

अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )

प्रशांत यादव – प्रतियोगी – 

कृष्ण कुमार (kvs -t ) 

अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)

 मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)

अश्वनी सिंह – प्रतियोगी

प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।

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