UAPA की सख्त प्रकृति
हाल ही में जेसुइट पुजारी और आदिवासी अधिकार कार्यकर्त्ता फादर स्टेन स्वामी (Father Stan Swamy) की न्यायिक हिरासत में मृत्यु ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम [Unlawful Activities (Prevention) Act- UAPA] के कड़े प्रावधानों की तरफ सबका ध्यान खींचा है।
- UAPA भारत का प्रमुख आतंकवाद विरोधी कानून है, जिसके कारण जमानत प्राप्त करना अधिक कठिन हो जाता है।
- इस कठिनाई को फादर स्वामी की अस्पताल में कैदी के रूप में मौत के प्रमुख कारणों में से एक के तौर पर देखा जा रहा है और इस तरह संवैधानिक स्वतंत्रता से समझौता किया जा रहा है।
UAPA की पृष्ठभूमि:
- भारत सरकार ने वर्ष 1960 के दशक के मध्य में विभिन्न अलगाव आंदोलनों को रोकने के लिये एक सख्त कानून बनाने पर विचार किया।
- इसे बनाने की तत्कालीन प्रेरणा मार्च 1967 में नक्सलबाड़ी में एक किसान विद्रोह ने प्रदान की।
- राष्ट्रपति ने 17 जून, 1966 को गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अध्यादेश जारी किया था।
- इस अध्यादेश का उद्देश्य “व्यक्तियों और संघों की गैरकानूनी गतिविधियों की अधिक प्रभावी रोकथाम करना” था।
- संसद के प्रारंभिक प्रतिरोध (इसकी कठोर प्रकृति के कारण) के बाद वर्ष 1967 में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम पारित किया गया।
- इस अधिनियम में किसी संघ या व्यक्तियों के निकाय, जो किसी ऐसी गतिविधि में लिप्त है तथा अलगाव की परिकल्पना करती है या देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को अस्वीकार करती है, को “गैरकानूनी” घोषित करने का प्रावधान है।
- UAPA के अधिनियमन से पहले संघों को आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम [Criminal Law (Amendment) Act], 1952 के अंतर्गत गैरकानूनी घोषित किया जाता था।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि प्रतिबंधों का प्रावधान गैरकानूनी था क्योंकि किसी भी प्रतिबंध की वैधता की जाँच करने के लिये कोई न्यायिक तंत्र नहीं था।
- इसलिये UAPA में एक अधिकरण (Tribunal) का प्रावधान शामिल किया गया था, जिसे छः महीने के भीतर संगठनों को गैरकानूनी घोषित करने वाली अधिसूचना की पुष्टि करनी होती है।
- आतंकवाद रोकथाम अधिनियम (Prevention of Terrorism Act- POTA) , 2002 के निरस्त होने के बाद UAPA का विस्तार किया गया ताकि पहले के कानूनों में आतंकवादी कृत्यों को शामिल किया जा सकेl
अधिनियम की वर्तमान स्थिति:
UAPA के दायरे का विस्तार करने के लिये इसे वर्ष 2004 और वर्ष 2013 में संशोधित किया गया।
कानून का विस्तारित दायरा:
- आतंकवादी कृत्यों और गतिविधियों के लिये सज़ा।
- देश की सुरक्षा के लिये खतरा पैदा करने वाले कार्य, उसकी आर्थिक सुरक्षा (वित्तीय और मौद्रिक सुरक्षा, भोजन, आजीविका, ऊर्जा पारिस्थितिक तथा पर्यावरण सुरक्षा) शामिल है।
- आतंकवादी उद्देश्यों के लिये धन के उपयोग को रोकने के प्रावधान।
- संगठनों पर प्रतिबंध शुरू में दो वर्ष के लिये था लेकिन वर्ष 2013 से अभियोजन की अवधि को बढ़ाकर पाँच वर्ष कर दिया गया है।
- इसके अलावा इन संशोधनों का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विभिन्न आतंकवाद विरोधी प्रस्तावों और वित्तीय कार्रवाई कार्यबल की आवश्यकताओं को प्रभावी बनाना है।
- वर्ष 2019 में व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में नामित करने के लिये सरकार को सशक्त बनाने हेतु अधिनियम में संशोधन किया गया था।
UAPA का काम करने का ढंग:
- नशीले पदार्थों से निपटने वाले अन्य विशेष कानूनों और आतंकवाद पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित समाप्त हो चुके कानूनों की तरह UAPA भी इसे और अधिक मज़बूत करने के लिये आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को संशोधित करता है। उदाहरण के लिये-
- रिमांड आदेश सामान्यतः 15 के बजाय 30 दिनों के लिये हो सकता है।
- चार्जशीट दाखिल करने से पहले न्यायिक हिरासत की अधिकतम अवधि सामान्यतः 90 दिनों से 180 दिनों तक बढ़ाई जा सकती है।
UAPA को लेकर विवाद:
- आतंकवादी अधिनियम की अस्पष्ट परिभाषा: UAPA के तहत एक “आतंकवादी अधिनियम” की परिभाषा ‘आतंकवाद का मुकाबला करते हुए मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता के संरक्षण पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक’ द्वारा प्रचारित परिभाषा से काफी भिन्न है।
- दूसरी ओर UAPA “आतंकवादी अधिनियम” की एक व्यापक और अस्पष्ट परिभाषा प्रदान करता है जिसमें किसी व्यक्ति की मृत्यु या व्यक्ति को चोट लगना, किसी भी संपत्ति को नुकसान आदि शामिल है।
- ट्रायल में देरी: भारत में न्याय वितरण प्रणाली की स्थिति को देखते हुए मुकदमों के स्तर पर लंबित मामलों की दर औसतन 95.5% है।
- राज्य को अधिक शक्ति मिलना: इसमें कोई भी ऐसा कार्य शामिल हो सकता है जो “धमकी देने की संभावना” या “लोगों में आतंक फैलाने की संभावना” से संबंधित हो तथा जो इन कृत्यों की वास्तविक जाँच के बिना सरकार को किसी भी सामान्य नागरिक या कार्यकर्त्ता को आतंकवादी घोषित करने के लिये बेलगाम शक्ति प्रदान करता है।
- यह राज्य प्राधिकरण को उन व्यक्तियों को हिरासत में लेने और गिरफ्तार करने की अस्पष्ट शक्ति देता है, जिनके बारे में राज्य यह मानता है कि वे आतंकवादी गतिविधियों में शामिल थे।
- संघवाद को कम आँकना: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह संघीय ढाँचे के खिलाफ है क्योंकि यह आतंकवाद के मामलों में राज्य पुलिस के अधिकार की उपेक्षा करता है, यह देखते हुए कि ‘पुलिस’ भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत राज्य का विषय है।
वर्ष 2020 के बाद वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क
- जैविक विविधता पर सयुक्त राष्ट्र अभिसमय’ ने वर्ष 2030 तक प्रकृति प्रबंधन हेतु विकासशील देशों को वित्त उपलब्ध कराने के लिये विभिन्न स्रोतों से अतिरिक्त 200 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के वित्तपोषण की मांग की है।
- यह उन मांगों और लक्ष्यों में से एक है जिसे वर्ष 2030 तक एक नए वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क के आधिकारिक मसौदे में निर्धारित किया गया है।
- जैव विविधता और इससे प्राप्त होने वाले लाभ, मानव कल्याण के साथ-साथ पृथ्वी की मौलिक ज़रूरतें हैं। चल रहे प्रयासों के बावजूद वैश्विक स्तर पर जैव विविधता की स्थिति बिगड़ रही है तथा व्यापार-उद्देश्यों के तहत इसमें गिरावट जारी रहने या इसके और खराब होने का अनुमान है।
- वर्ष 2020 के बाद का वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क जैव विविधता 2011-2020 हेतु एक रणनीतिक योजना पर आधारित है।
- जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र दशक 2011-2020 के समाप्त होने के साथ ही IUCN द्वारा सक्रिय रूप से एक ममहत्त्वाकांक्षी नए वैश्विक जैव विविधता ढांँचे के विकास को अपनाए जाने का आह्वान किया जा रहा है।
लक्ष्य और उद्देश्य:
● वर्ष 2050 तक नए फ्रेमवर्क के निम्नलिखित चार लक्ष्यों को प्राप्त किया जाना है:
- जैव विविधता के विलुप्त होने तथा उसमें गिरावट को रोकना।
- संरक्षण द्वारा मनुष्यों के लिये प्रकृति की सेवाओं को बढ़ाने और उन्हें बनाए रखना।
- आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से सभी के लिये उचित और समान लाभ सुनिश्चित करना।
- वर्ष 2050 के विज़न को प्राप्त करने हेतु उपलब्ध वित्तीय और कार्यान्वयन के अन्य आवश्यक साधनों के मध्य अंतर को कम करना।
2030 कार्य-उन्मुख लक्ष्य :
- 2030 के दशक में तत्काल कार्रवाई के लिये इस फ्रेमवर्क में 21 कार्य-उन्मुख लक्ष्य हैं।
- उनमें से एक है संरक्षित क्षेत्रों के तहत विश्व के कम- से-कम 30% भूमि और समुद्र क्षेत्र को लाना।
- एक अन्य लक्ष्य जैव विविधता के लिये हानिकारक प्रोत्साहनों को पुनर्निर्देशित करना, उनका पुन: उपयोग करना, सुधार करना और उचित एवं न्यायसंगत तरीके से उन्हें प्रतिवर्ष कम-से-कम 500 बिलियन डॉलर से कम करना” है।
असम मिजोरम सीमा विवाद
चर्चा में क्यों
हाल ही में असम में कुछ मिजोरम वासियों द्वारा सीमा पर कई I.E.D विस्फोट किए गए हैं, जो अनसुलझे सीमा विवाद की ओर संकेत कर रहा है।
प्रमुख बिंदु
- दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद औपनिवेशिक काल से ही प्रारंभ माना जाता है।
- असम मिजोरम विवाद ब्रिटिश काल में पारित दो कानून/आधिसूचनाओं के कारण उत्पन्न हुआ।
- 1- 1875 में पहली अधिसूचना – लुशाई हिल्स की कछार के मैदानी इलाके से अलग कर दिया।
- 2- दूसरी अधिसूचना 1933 लुशाई हिल्स तथा मणिपुर के बीच सीमा का सीमांकन किया गया।
- मिजोरम का मानना है कि सीमांकन वर्ष 1875 की अधिसूचना के आधार पर करना चाहिए, जोकि बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन अधिनियम 1873 के तहत जारी की गई थी।
- मिजो नेता 1933 अधिसूचित सीमांकन के विरुद्ध है जबकि असम उसे मानता है।
आगे की राह
- सीमा विवाद निर्धारण में उपग्रह मानचित्र का प्रयोग करना चाहिए।
- अंतर – राज्यीय परिषद की पुनर्जीवित करना।
- अनुच्छेद -263 की अनुशंसाओं या सहमति देना।
- केंद्र राज्यों की भूमिका में स्पष्टता लाना।
उपकक्षीय उड़ान
- जब कोई वस्तु लगभग 28000 किलोमीटर प्रति घंटा या अधिक गति से यात्रा करती है, तो वह वायुमंडल से ऊपर होते हुए कक्षा में चली जाती है।
- पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए उपग्रहों को उस गति में पहुंचने की आवश्यकता होती है।
- हाल ही में ‘ वर्जिन गैलेक्टिक ‘ के वीएसएस यूनिटी स्पेशशिप पर छह व्यक्तियों के एक चालक दल ने ‘ एज आफ स्पेस ‘ की संक्षिप्त यात्रा की जिसे उपकक्षीय उड़ान के रूप में जाना जाता है।
- इसमें सिरीश बदंला भी शामिल थी जो भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री हैं।
उपकक्षीय उड़ानों का महत्व
- स्थापित पहुंच
- अनुसंधान
- प्रभावी लागत
टीम रूद्रा
मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs )
अभिनव आनंद (डायट प्रवक्ता)
डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या
अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर)
योगराज पटेल (VDO)-
अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )
प्रशांत यादव – प्रतियोगी –
कृष्ण कुमार (kvs -t )
अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)
मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)
अश्वनी सिंह – प्रतियोगी
प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।