15 & 16 OCTOBER 2021 CURRENT AFFAIR

15 & 16 OCTOBER 2021 CURRENT AFFAIR

राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (NFRA)

कुछ समय पहले ‘राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण’ (National Financial Reporting Authority – NFRA) द्वारा की गयी सिफारिशों पर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की शीर्ष संस्था ‘इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया’ (The Institute of Chartered Accountants of India – ICAI) ने कड़ा विरोध जताते हुए कहा है कि, इस ‘प्रहरी’ (watchdog) को ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम कंपनियों’ पर निगरानी का अधिकार नहीं है।

पृष्ठभूमि:
आईसीएआई ने यह टिप्पणी, ‘राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण’ द्वारा सूक्ष्म, लघु और मध्यम कंपनियों (MSMCs) के लिए वैधानिक ऑडिट और ऑडिटिंग मानकों पर एक परामर्श पत्र प्रस्तुत किए जाने के दो सप्ताह के बाद की है।

राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण’ के बारे में:

‘राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण’ का गठन भारत सरकार द्वारा कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 132 (1) के तहत 01 अक्तूबर, 2018 को किया गया था।

आवश्यकता:
इसका उद्देश्‍य स्‍वतंत्र विनियामकों को स्‍थापित करना और लेखापरीक्षा मानकों को लागू करना, लेखापरीक्षा की गुणवत्ता व लेखापरीक्षा फर्मों की स्‍वतंत्रता को सुदृढ़ बनाना है। अतएव, कंपनियों की वित्‍तीय स्‍थिति के खुलासे में निवेशक और सार्वजनिक तंत्र का विश्‍वास बढ़ाना है।

NFRA की संरचना:
प्रकार्य और कर्त्तव्य:

1.केंद्रीय सरकार द्वारा अऩुमोदन के लिए लेखाकर्म और लेखापरीक्षा नीतियां तथा कंपनियों द्वारा अपनाए जाने वाले मानकों की अनुशंसा करना;
2.लेखाकर्म मानकों और लेखापरीक्षा मानकों सहित अनुपालन वाले की निगरानी और लागू करना;
3.ऐसे मानकों सहित अनुपालन सुनिश्चित करने वाले व्यवसायों की सेवा की गुणवत्ता का पर्यवेक्षण करना;
4.उक्त प्रकार्यों और कर्त्तव्यों के लिए आवश्यक अथवा अनुषंगी ऐसे अऩ्य प्रकार्य और कर्त्तव्यों का निष्पादन करना।
शक्तियां:

NFRA यह सूचीबद्ध कंपनियों तथा गैर-सूचीबद्ध सार्वजनिक कंपनियों की जांच कर सकता है जिनकी जिनकी प्रदत्त पूंजी पांच सौ करोड़ रुपये से कम न हो अथवा वार्षिक कारोबार एक हजार करोड़ रुपये से कम न हो।
यह किसी नियत वर्ग के वाणिज्यिक संस्थान अथवा किसी व्यक्ति के संबंध में इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट ऑफ इंडिया (ICAI) के सदस्यों द्वारा किए गए पेशेवर कदाचार की जांच कर सकता है।

भ्रष्‍टाचार-रोधी कार्यसमूह:-

●हाल ही में, ‘भ्रष्टाचार रोधी कार्य समूह’ ने अपने अधिदेश में ‘खेलों’ को पहली बार एक विशिष्टता के रूप में शामिल किया गया था।

भ्रष्‍टाचार-रोधी कार्यसमूह’ के बारे में:

●भ्रष्‍टाचार-रोधी कार्यसमूह (ACWG) का गठन वर्ष 2010 में टोरंटो सम्मेलन के दौरान G20 समूह के नेताओं द्वारा किया गया था।
◆यह कार्यसमूह G20 नेताओं के प्रति उत्तरदायी है।
◆ACWG, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल सहित प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के कार्यो के साथ समन्वय एवं सहयोग करता है।

G20 समूह के बारे में:

●G20, विश्व की सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है।
●इस समूह इस समूह का विश्व की 85 प्रतिशत जीडीपी पर नियंत्रण है, तथा यह विश्व की दो-तिहाई जनसख्या का प्रतिनिधित्व करता है।
●G20 शिखर सम्मेलन को औपचारिक रूप से ‘वित्तीय बाजार तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था शिखर सम्मेलन’ के रूप में जाना जाता है।

G20 की उत्पत्ति:

●वर्ष 1997-98 के एशियाई वित्तीय संकट के बाद, यह स्वीकार किया गया था कि उभरती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली पर चर्चा के लिए भागीदारी को आवश्यकता है।
●वर्ष 1999 में, G7 के वित्त मंत्रियों द्वारा G20 वित्त मंत्रियों तथा केंद्रीय बैंक गवर्नरों की एक बैठक के लिए सहमत व्यक्त की गयी।

G20 +’ क्या है?

●G20 विकासशील राष्ट्र, जिन्हें G21 / G23 / G20 + भी कहा जाता है, 20 अगस्त, 2003 को स्थापित किया गया विकासशील देशों का एक समूह है। यह G20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से भिन्न है।
●G20 + की उत्पत्ति, सितंबर 2003 में मैक्सिको के कैनकुन शहर में आयोजित विश्व व्यापार संगठन के पांचवे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में हुई थी।
●इसकी स्थापना का आधार 6 जून 2003 को भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्रियों द्वारा हस्ताक्षरित ब्रासीलिया घोषणा है।
●‘G20 +’ विश्व की 60% आबादी, 26% कृषि निर्यात और 70% किसानों का प्रतिनिधित्व करता है।

क्वाड राष्ट्रों का मालाबार युद्धाभ्यास

भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के मध्य इस साल के मालाबार नौसैनिक अभ्यास का दूसरा चरण को बंगाल की खाड़ी में शुरू किया जा रहा है।

संगठन का महत्व:-

  • क्वाड (Quad) समान विचारधारा वाले देशों के लिए परस्पर सूचनाएं साझा करने तथा पारस्परिक हितों संबंधी परियोजनाओं पर सहयोग करने हेतु एक अवसर है।
  • इसके सदस्य राष्ट्र एक खुले और मुक्त इंडो-पैसिफिक दृष्टिकोण को साझा करते हैं।
  • यह भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के मध्य वार्ता के कई मंचों में से एक है तथा इसे किसी एक विशेष संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए।
    ‘क्वाड समूह’ के प्रति चीन की

आशंकाएं:-

  • बीजिंग, काफी समय से भारत-प्रशांत क्षेत्र में इन लोकतांत्रिक देशों के गठबंधन का विरोध करता रहा है।
  • चीन, इसे एशियाई-नाटो (Asian-NATO) चतुष्पक्षीय गठबंधन के रूप में देखता है, जिसका उद्देश्य चीन के उत्थान को रोकना है।
  • इसके अतिरिक्त, चीन के साथ भारत के तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों को देखते हुए, मालाबार ड्रिल में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने की भारत की मंशा को केवल बीजिंग के खिलाफ एक कदम के रूप में माना जा सकता है।

नदीय जीवपालन कार्यक्रम
(River Ranching Programme)

  • हाल ही में, केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय द्वारा उत्तर प्रदेश में एक राष्ट्रव्यापी ‘नदीय जीवपालन कार्यक्रम’ (River Ranching Programme) की शुरुआत की गयी।
  • इस कार्यकम के शुभारंभ में ‘उत्तर प्रदेश’ के साथ ही उत्तराखंड, उड़ीसा, त्रिपुरा और छत्तीसगढ़ जैसे अन्य 4 राज्यों ने भी भाग लिया।
  • कार्यकम के अंतर्गत, उत्तर प्रदेश में बृजघाट, गढ़मुक्तेश्वर, तिगरी, मेरठ और बिजनौर जैसे तीन स्थानों पर 3 लाख मछली के बच्चों का पालन किया जाएगा।

• ‘नदीय जीवपालन’ या ‘रिवर रैंचिंग’ क्या होती है?

  • नदीय जीवपालन (River Ranching) जलीय कृषि / मत्स्यपालन (aquaculture) का एक रूप होता है, जिसमें मछली प्रजातियों, जैसे ‘सामन’ (salmon), को उनके जीवन के पहले चरण में किसी कृत्रिम या प्राकृतिक जलीय स्थल पर सुरक्षित अर्थात, कैद में रखा जाता है।
  • इसके बाद, इन मछली के बच्चों को थोड़ा बड़ा हो जाने पर समुद्र या नदी के स्वतन्त्र जल में छोड़ दिया जाता है। जब ये मछलियाँ वयस्क होने पर, समुद्र से मीठे पानी के अपने मूल स्थान पर अंडे देने के लिए वापस आती है, तो इन्हें पकड़ लिया जाता है।

• ‘नदीय जीवपालन कार्यक्रम’ के बारे में:-

  • इस कार्यक्रम को ‘प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना’ (PMMSY) योजना के तहत, स्थलीय एवं जलीय क्षेत्रों की उत्पादिता में विस्तार, गहन, विविधीकरण के माध्यम से मत्स्य-उत्पादन और उत्पादकता को बढाने के उद्देश्य से एक विशेष गतिविधि के रूप में शुरू किया गया था।

कार्यक्रम की आवश्यकता:-
* यह कार्यक्रम, संवहनीय मत्स्य पालन, आवास क्षरण में कमी, जैव विविधता का संरक्षण, सामाजिक-आर्थिक लाभों को अधिकतम और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का आकलन करने में सहायक होगा।

  • इसके अलावा नदीय जीवपालन कार्यक्रम’ पारंपरिक मत्स्यपालन, पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता और अंतर्देशीय समुदायों का व्यापार और सामाजिक सुरक्षा के उन्नयन को भी सुनिश्चित करेगा।

• प्रधान मंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY) के बारे में:-
* इस योजना को आत्मनिर्भर भारत पैकेज के अंतर्गत वित्त वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक पांच साल की अवधि के दौरान सभी राज्यों/ संघ शासित प्रदेशों में कार्यान्वित किया जायेगा एवं इस पर अनुमानित रूप से 20,050 करोड़ रुपये का निवेश किया जायेगा।

  • यह योजना समुद्री, अंतर्देशीय मत्स्य पालन और जलीय कृषि में लाभार्थी उन्मुख गतिविधियों पर केंद्रित है।
  • इस योजना में ‘क्लस्टर अथवा क्षेत्र आधारित दृष्टिकोण’ अपनाते हुए मत्स्य समूहों और क्षेत्रों का निमार्ण किया जायेगा।

योजना के उद्देश्य और लक्ष्य:
* वर्ष 2024-25 तक अतिरिक्त 70 लाख टन मछली उत्पादन वृद्धि।
वर्ष 2024-25 तक मत्स्य निर्यात आय को बढ़ाकर 1,00,000 करोड़ रुपये करना।

  • मछुआरों और मछली किसानों की दोगुनी आय करना।
  • पैदावार के बाद नुकसान 20-25 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत करना।
  • मत्स्य पालन क्षेत्र और सहायक गतिविधियों में 55 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा करना ।

नासा का लूसी मिशन

  • यह, बृहस्पति ग्रह के ‘ट्रोजन क्षुद्रग्रहों’ (Trojan asteroids) का अन्वेषण करने हेतु नासा द्वारा भेजा जाने वाला पहला मिशन है।
  • यह मिशन, सौर ऊर्जा से संचालित है।
  • इस मिशन के पूरा होने में 12 साल से अधिक लंबा समय लगने का अनुमान है। इस दौरान, अंतरिक्ष यान “युवा सौर मंडल” के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए लगभग 3 बिलियन किमी की यात्रा करते हुए ‘आठ क्षुद्रग्रहों’ का दौरा करेगा।

मिशन का उद्देश्य:-

  • ‘लूसी मिशन’ को ‘ट्रोजन क्षुद्रग्रहों’ के समूह में शामिल विविध क्षुद्रग्रहों की संरचना को समझने, क्षुद्रग्रहों के द्रव्यमान और घनत्व को निर्धारित करने तथा ट्रोजन क्षुद्रग्रहों की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों और रिंगों को देखने और उनका अध्ययन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

• ‘ट्रोजन क्षुद्रग्रह’ क्या हैं?

  • ‘ट्रोजन क्षुद्रग्रहों’ (Trojan asteroids) को प्रारंभिक सौर मंडल का अवशेष माना जाता है, और इनका अध्ययन करने से वैज्ञानिकों को इनकी उत्पत्ति, विकास और इनके वर्त्तमान स्वरूप को समझने में मदद मिलेगी।
  • माना जाता है, कि इन ‘क्षुद्रग्रहों’ की उत्पत्ति, लगभग 4 अरब साल पहले सौर मंडल का निर्माण होने के साथ ही हुई थी, और ट्रोजन क्षुद्रग्रहों का निर्माण, उन्ही पदार्थों से हुआ है, जिनसे सौर मंडल के अन्य ग्रह बने थे।

Leave a Reply