प्रधानमंत्री पोषण योजना
यह योजना स्कूलों में मिड-डे मील योजना के मौजूदा राष्ट्रीय कार्यक्रम का स्थान लेगी।
- इसे पाँच वर्ष (2021-22 से 2025-26) की शुरुआती अवधि के लिये लॉन्च किया गया है।
मिड-डे मील योजना:-
‘मिड-डे मील योजना’ शिक्षा मंत्रालय के तहत एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे वर्ष 1995 में शुरू किया गया था।
प्रमुख बिंदु:-
° प्रधानमंत्री पोषण योजना
कवरेज़:-
- यह योजना देश भर के 11.2 लाख से अधिक स्कूलों में कक्षा I से VIII तक नामांकित 11.8 करोड़ छात्रों को कवर करेगी।
- प्राथमिक (1-5) और उच्च प्राथमिक (6-8) स्कूली बच्चे वर्तमान में प्रत्येक कार्य दिवस में 100 ग्राम और 150 ग्राम खाद्यान्न प्राप्त करते हैं, ताकि न्यूनतम 700 कैलोरी सुनिश्चित की जा सके।
- इसके तहत सरकार, स्कूलों में ‘पोषाहार उद्यानों’ को बढ़ावा देगी। छात्रों को अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करने हेतु उद्यान स्थापित किये जायेंगे।
पूरक पोषण:-
- नई योजना में आकांक्षी ज़िलों और एनीमिया के उच्च प्रसार वाले बच्चों के लिये पूरक पोषण का भी प्रावधान है।
- यह गेहूँ, चावल, दाल और सब्जियों के लिये धन उपलब्ध कराने हेतु केंद्र सरकार के स्तर पर मौजूद सभी प्रतिबंध और चुनौतियों को समाप्त करता है।
- वर्तमान में यदि कोई राज्य मेनू में दूध या अंडे जैसे किसी भी घटक को जोड़ने का निर्णय लेता है, तो केंद्र सरकार अतिरिक्त लागत वहन नहीं करने संबंधी प्रतिबंध को हटा लिया गया है।
तिथि भोजन की अवधारणा:–
- तिथिभोजन की अवधारणा को व्यापक रूप से प्रोत्साहित किया जाएगा।
- तिथि भोजन एक सामुदायिक भागीदारी कार्यक्रम है जिसमें लोग विशेष अवसरों/त्योहारों पर बच्चों को विशेष भोजन प्रदान करते हैं।
प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT):-
- केंद्र सरकार राज्यों से स्कूलों में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) सुनिश्चित करेगी, जो इसका उपयोग भोजन पकाने की लागत को कवर करने के लिये करेगी।
- पहले राज्यों को धन आवंटित किया जाता था, जिसमें ज़िला और तहसील स्तर पर एक नोडल मध्याह्न भोजन योजना प्राधिकरण को भेजने से पहले धन का अपना हिस्सा शामिल होता था।
- इसके माध्ययम से यह सुनिश्चित करना है कि ज़िला प्रशासन और अन्य अधिकारियों के स्तर पर कोई चूक न हो।
पोषण विशेषज्ञ:-
- प्रत्येक स्कूल में एक पोषण विशेषज्ञ नियुक्त किया जाना है, जिसकी ज़िम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि बॉडी मास इंडेक्स (BMI), वज़न और हीमोग्लोबिन के स्तर जैसे स्वास्थ्य पहलुओं पर ध्यान दिया जाए।
योजना का सामाजिक लेखा परीक्षा:-
- योजना के कार्यान्वयन का अध्ययन करने के लिये प्रत्येक राज्य में प्रत्येक स्कूल हेतु योजना का सामाजिक लेखा परीक्षा भी अनिवार्य किया गया है, जो अब तक सभी राज्यों द्वारा नहीं किया जा रहा था।
- शिक्षा मंत्रालय स्थानीय स्तर पर योजना की निगरानी के लिये कॉलेज और विश्वविद्यालय के छात्रों को भी शामिल करेगा।
फंड शेयरिंग:-
- 1.3 लाख करोड़ रुपए की कुल अनुमानित लागत में से केंद्र 54,061 करोड़ रुपए वहन करेगा, जिसमें राज्य 31,733 करोड़ रुपए (45,000 करोड़ रुपए खाद्यान्न के लिये सब्सिडी के रूप में केंद्र द्वारा जारी किए जायेंगे) का भुगतान करेंगे। • आत्मनिर्भर भारत हेतु वोकल फॉर लोकल:-
- योजना के कार्यान्वयन में किसान उत्पादक संगठनों (FPO) और महिला स्वयं सहायता समूहों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाएगा।
- स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये स्थानीय रूप से निर्मित जाने वाले पारंपरिक खाद्य पदार्थों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा।
चुनौतियाँ:-
- पोषण लक्ष्यों को पूरा करना:
वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत विश्व के उन 88 देशों में शामिल है, जो संभवतः वर्ष 2025 तक ‘वैश्विक पोषण लक्ष्यों’ (Global Nutrition Targets) को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकेंगे।
गंभीर ‘भुखमरी’ स्तर:-
- वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर रहा है। भारत में भुखमरी का स्तर ‘गंभीर’ (Serious) है। •कुपोषण का खतरा:-
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 के अनुसार, देश भर के कई राज्यों ने कुपोषण की स्थिति में सुधार के बावजूद एक बार पुनः कुपोषण के मामलों में वृद्धि दर्ज की है।
- भारत में विश्व के लगभग 30% अल्पविकसित बच्चे और पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 50% गंभीर रूप से कमज़ोर बच्चे हैं।
निर्यात ऋण गारंटी निगम (ECGC) की सूची
उद्देश्य:-
ECGC की स्थापना वाणिज्यिक और राजनीतिक कारणों से विदेशी खरीदारों द्वारा गैर-भुगतान जोखिमों के खिलाफ निर्यातकों को ऋण बीमा सेवाएंँ प्रदान करके निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
- निर्यात ऋण बीमा बाजार में लगभग 85% बाजार हिस्सेदारी के साथ ECGC भारत में एक मार्केट लीडर है जो वित्त वर्ष 2021 में 6.02 लाख रुपए या 28% व्यापार निर्यात में सहायता प्रदान करता है।
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम Micro, Small and Medium Enterprises (MSMEs) ECGC के ग्राहक बाज़ार में 97% हिस्सेदारी साझा करते हैं।
- ECGC को शेयर बाजार में सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया भी शुरू की जा रही है ताकि वह और फंड जुटाया जा सके।
राष्ट्रीय निर्यात बीमा खाता (NEIA) योजना:-
* NEIA ट्रस्ट की स्थापना वर्ष 2006 में रणनीतिक और राष्ट्रीय महत्त्व के दृष्टिकोण से भारत से परियोजना निर्यात को बढ़ावा देने के लिये की गई थी।
- राष्ट्रीय निर्यात बीमा खाता (NEIA), ECGC द्वारा मध्यम और दीर्घकालिक (एमएलटी)/परियोजना को (आंशिक/पूर्ण) सहायता देकर निर्यात को बढ़ावा देता है।
- एक्ज़िम बैंक ने अप्रैल 2011 में ECGC लिमिटेड के साथ मिलकर NEIA योजना के तहत एक नई पहल की शुरुआत की अर्थात् बायर्स क्रेडिट, जिसके तहत बैंक भारत से परियोजना निर्यात हेतु वित्त और अन्य सुविधाएँ प्रदान करता है।
• हाल ही में निर्यात संबंधी पहल
विदेश व्यापार नीति (2015-20):-
- इसका उद्देश्य वर्ष 2019-20 तक विदेशी बिक्री को दोगुना कर 900 बिलियन डॉलर करना और “मेक इन इंडिया” एवं “डिजिटल इंडिया कार्यक्रम” के साथ विदेशी व्यापार को एकीकृत करते हुए भारत को वैश्विक बनाना था।
- निर्यात उत्पादों पर शुल्क और करों की छूट (RoDTEP): यह करों/शुल्कों/लेवी की प्रतिपूर्ति के लिये एक विश्व व्यापार संगठन संगत तंत्र है, जो वर्तमान में केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर पर किसी अन्य तंत्र के तहत रिफंड नहीं किया जा रहा है।
ROSCTL योजना:
- ROSCTL योजना के माध्यम से केंद्रीय/राज्य करों की छूट से कपड़ा क्षेत्र को समर्थन दिया जाता है इसे अब मार्च 2024 तक बढ़ा दिया गया है।
सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिज़िन:-
- निर्यातकों द्वारा व्यापार को सुविधाजनक बनाने और FTA (मुक्त व्यापार समझौता) के उपयोग को बढ़ाने के लिये सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिज़िन हेतु सामान्य डिजिटल प्लेटफॉर्म शुरू किया गया है।
कृषि निर्यात नीति:-
- कृषि, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रों से संबंधित कृषि निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिये एक व्यापक नीति लागू की जा रही है।
निर्विक योजना:-
- भारतीय निर्यात ऋण गारंटी निगम (Export Credit Guarantee Corporation of India- ECGC) ने ऋण की उपलब्धता बढ़ाने और ऋण देने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिये निर्यात ऋण बीमा योजना (Export Credit Insurance Scheme- ECIS) की शुरुआत की है जिसे निर्विक (निर्यात ऋण विकास योजना) कहा जाता है।
- व्यापार बुनियादी ढाँचे और विपणन को बढ़ावा देने हेतु योजनाएँ हैं- निर्यात योजना के लिये व्यापार अवसंरचना (TIES), बाजार पहुँच पहल (MAI) और परिवहन और विपणन सहायता (TMA) योजना।
CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार
चीन ने अफगानिस्तान में CPEC के रूप में पेशावर-काबुल मोटरवे के निर्माण का प्रस्ताव रखा है।
चाबहार बंदरगाह का मुद्दा:-
- अफगानिस्तान के CPEC में शामिल होने से भारत, ईरान में चाबहार बंदरगाह में किये गये अपने निवेश को लेकर आशंकित है।
भारत की चिंता:-
- भारत-ईरान-अफगानिस्तान के त्रिपक्ष के कमज़ोर होने को लेकर है, जो चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान को समुद्र तक पहुंँच प्रदान करता है।
भारत के आर्थिक प्रभाव का कमज़ोर होना:-
CPEC के विस्तार का प्रयास अफगानिस्तान के आर्थिक, सुरक्षा और रणनीतिक साझेदार के रूप में भारत की स्थिति को कमज़ोर कर सकता है।
- भारत, अफगानिस्तान में सबसे बड़ा क्षेत्रीय अनुदान सहायता देने वाला देश है, जिसने सड़कों, बिजली संयंत्रों, बाँधों, संसद भवन, ग्रामीण विकास, शिक्षा, बुनियादी अवसंराचना सहित विकास कार्यों के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की प्रतिबद्धता अफगानिस्तान के प्रति ज़ाहिर की है।
- CPEC के विस्तार के साथ चीन अफगानिस्तान में भारत के आर्थिक प्रभाव को नियंत्रित करने में अग्रणी भूमिका निभाएगा।
आतंकवाद और सामरिक चिंताएंँ:-
- अफगानिस्तान में भारत की सीमित रणनीतिक पहुँच को देखते हुए, चीन अफगानिस्तान में अपने रणनीतिक स्थिति का लाभ उठा सकता है।
- इसके अलावा, CPEC में अफगानिस्तान के शामिल होने से निश्चित रूप से उसे आर्थिक विकास में मदद मिलेगी, लेकिन साथ ही इससे पाकिस्तान को भारत के संदर्भ में एक बेहतर स्थिति हासिल करने में भी मदद मिलेगी।
- ऐसे स्थिति में पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है। •सामरिक हवाई अड्डे का नियंत्रण:-
- CPEC के साथ अपने मुद्दों के अलावा भारत इस संभावना से भी आशंकित रहेगा कि चीन, अफगानिस्तान में वायु सेना के बगराम हवाई अड्डे पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर सकता है।
- बगराम हवाई अड्डा सबसे बड़ा हवाई अड्डा है और तकनीकी रूप से अच्छी तरह से सुसज्जित है, क्योंकि इसे अमेरिकी सेना द्वारा उपयोग किया गया था।
दुर्लभ पृथ्वी खनिजों का दोहन:-
- CPEC के विस्तार के साथ चीन, अफगानिस्तान के समृद्ध खनिजों और अत्यधिक आकर्षक दुर्लभ-पृथ्वी खानों का भी दोहन करना चाहता है।
- दुर्लभ-पृथ्वी धातुएँ, जो उन्नत इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकियों और उच्च तकनीक मिसाइल मार्गदर्शन प्रणालियों के लिये प्रमुख घटक हैं।
विशेष श्रेणी राज्य’ का दर्जा
- विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा उन राज्यों के विकास में सहायता के लिये केंद्र द्वारा दिया गया वर्गीकरण है, जो भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन का सामना कर रहे हैं।
- यह वर्गीकरण वर्ष 1969 में पांँचवें वित्त आयोग की सिफारिशों पर किया गया था।
- यह गाडगिल फाॅर्मूले पर आधारित था जिसमें विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे के लिये निम्नलिखित पैरामीटर निर्धारित किये गए थे:-
1.पहाड़ी क्षेत्र।
2.कम जनसंख्या घनत्व और/या 3.जनजातीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा।
- पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं की सामरिक स्थिति।
- आर्थिक और बुनियादी अवसंरचना का पिछड़ापन।
- राज्य वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति।
- विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा पहली बार वर्ष 1969 में जम्मू-कश्मीर, असम और नगालैंड को दिया गया था। तब से लेकर अब तक आठ अन्य राज्यों (अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखंड) को यह दर्जा दिया गया है।
*संविधान में किसी राज्य को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा (SCS) देने का कोई प्रावधान नहीं है। - राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा पूर्व में योजना सहायता के लिये विशेष श्रेणी का दर्जा उन राज्यों को प्रदान किया गया था, जिन्हें विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
- अब ऐसे राज्यों को केंद्र द्वारा विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया जाता है।
14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के लिये ‘विशेष श्रेणी का दर्जा’ समाप्त कर दिया है। - इसके बजाय, इसने सुझाव दिया कि प्रत्येक राज्य के संसाधन अंतर को ‘कर हस्तांतरण’ के माध्यम से भरा जाए, केंद्र से कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी को 32% से बढ़ाकर 42% करने का आग्रह किया, जिसे वर्ष 2015 से लागू किया गया है। • SCS वाले राज्यों को लाभ:-
- केंद्र सरकार द्वारा विशेष श्रेणी के राज्यों के लिये केंद्र प्रायोजित योजना में आवश्यक धनराशि के 90% हिस्से का भुगतान किया जाता है, जबकि अन्य राज्यों के मामले में केंद्र सरकार केवल 60% या 75% ही भुगतान करती है।
- खर्च न किया गया धन व्यपगत नहीं होता और उसे भविष्य में उपयोग किया जा सकता है।
- इन राज्यों को उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क, आयकर और कॉर्पोरेट कर में महत्त्वपूर्ण रियायतें प्रदान की जाती हैं
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A
दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र से ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A’ जिसे पहले ही असंवैधानिक घोषित किया जा चुका है, जैसे क़ानूनी प्रावधानों को हटाने की मांग वाली याचिका पर विचार करने के लिए कहा है।
धारा 66A क्या है?
- आईटी अधिनियम की धारा 66A, कंप्यूटर या किसी अन्य संचार उपकरण जैसे मोबाइल फोन या टैबलेट के माध्यम से “आपत्तिजनक” संदेश भेजने पर सजा को परिभाषित करती है।
- इसके तहत दोषी को अधिकतम तीन साल की जेल और जुर्माना हो सकता है।
- इस धारा के अंतर्गत पुलिस को इस संदर्भ में गिरफ्तारी करने का अधिकार दिया गया है, कि पुलिसकर्मी किसी ‘संदेश’ को अपने विवेक से ‘आक्रामक’ या ‘खतरनाक’ या बाधाकारक, असुविधाजनक बनाने वाला आदि को परिभाषित कर सकते हैं।
श्रेया सिंघाल मामला:
श्रेया सिंघाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आईटी अधिनियम की धारा 66A को रद्द कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 66A को हटाए जाने के कारण:-
- सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, धारा 66A संविधान के अनुच्छेद 19(1) (a) के तहत, मनमाने ढंग से, अतिशय पूर्वक और असमान रूप से ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार’ पर हमला करती है, और इन अधिकारों और इन पर लगाए जाने वाले उचित प्रतिबंधों के बीच संतुलन को बिगाड़ती है। इसके अलावा, प्रावधान के तहत अपराधों की परिभाषा, व्याख्या के लिए ‘खुली हुई’ (open-ended) और अपरिभाषित है।
न्यायालय द्वारा की गई हालिया टिप्पणियां:
- 5 जुलाई को, सुप्रीम कोर्ट ने छह साल पहले रद्द की जा चुकी ‘आईटी आधिनियम की धारा 66A’ का पुलिस द्वारा इस्तेमाल करने और मामले दर्ज करना जारी रखने पर हैरानी और निराशा व्यक्त की थी।
- ‘आईटी आधिनियम की धारा 66A’ को समाप्त किए जाने के 7 साल बाद भी, मार्च 2021 तक, 11 राज्यों की जिला अदालतों के समक्ष कुल 745 मामले अभी भी लंबित और सक्रिय हैं, जिनमें आरोपी व्यक्तियों पर आईटी अधिनियम की धारा 66A के तहत अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा रहा है।
आयुध निर्माणी बोर्ड
संदर्भ:-
1 अक्टूबर को, 220 साल पुराने ‘आयुध निर्माणी बोर्ड’ (OFB) भंग कर दिया जाएगा और इसकी इकाइयों को सात सार्वजनिक उपक्रमों के तहत निगमित किया जाएगा।
आवश्यकता:-
- निगमीकरण करने के पश्चात् ये संस्थाएं ‘कंपनी अधिनियम’ के दायरे में आ जायेंगी, जिससे इनकी दक्षता में सुधार लाएगा, उत्पादों को लागत-प्रतिस्पर्धी बनाएगा, और उनकी गुणवत्ता में वृद्धि होगी।
- यह तर्क दिया गया है, कि ‘आयुध निर्माणी बोर्ड’ (OFB) के एकाधिकार की वजह से उत्पादकता में कमी हुई है, उत्पादन की अधिक लागत और उच्च प्रबंधकीय स्तरों पर लचीलेपन की कमी के अलावा. नवाचार समाप्त हो चुका है।
- सीधे रक्षा मंत्रालय के अधीन कार्य करते हुए, ‘आयुध निर्माणी बोर्ड’ और उसके कारखाने मुनाफे को बरकरार नहीं रख सके, और इस प्रकार उन्हें आगे बढ़ाने की दिशा में कार्य करने हेतु कोई प्रोत्साहन नहीं मिला।
इस संबंध में विभिन्न समितियों की सिफारिशें:-
- रक्षा सुधारों पर, पिछले दो दशकों में गठित कम से कम तीन विशेषज्ञ समितियों – टीकेएस नायर समिति (2000), विजय केलकर समिति (2005) और वाइस एडमिरल रमन पुरी समिति (2015) द्वारा कोलकाता में मुख्यालय वाले ‘आयुध निर्माणी बोर्ड’ को कॉर्पोरेट संस्थाओं में पुनर्गठित करने की सिफारिश की गई थी।
- शेकटकर समिति ने ‘आयुध निर्माणी बोर्ड’ के निगमीकरण का सुझाव नहीं दिया, लेकिन समिति ने इसके पिछले प्रदर्शन को देखते हुए सभी आयुध इकाइयों के नियमित ऑडिट किए जाने की सिफारिश की थी।
लैंडसैट 9
हाल ही में नासा द्वारा ‘लैंडसैट 9’ सैटेलाइट को लॉन्च किया गया है।
‘लैंडसैट 9’ के बारे में:-
- ‘लैंडसैट 9’ एक ‘भू-निगरानी’ / ‘भू-प्रेक्षण’ उपग्रह है।
- यह, नासा और अमेरिकन जियोलॉजिकल सर्वे का एक संयुक्त मिशन है।
- लैंडसैट 8 के साथ मिलकर, यह उपग्रह पृथ्वी की सतह की तस्वीरें एकत्र करेगा। इन उपग्रहों को संपूर्ण पृथ्वी का छायांकन करने में 8 दिन का समय लगेगा।
- यह अपनी पीढ़ी का तकनीकी रूप से सबसे उन्नत उपग्रह है।
- यह अपनी पीढ़ी का सबसे तकनीकी रूप से उन्नत उपग्रह है। यह, पिछले उपग्रहों की तुलना में अधिक गहराई के साथ अधिक रंगीन छायाओं को देख सकता है, जिससे वैज्ञानिकों को हमारे बदलते हुए ग्रह के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
- लैंडसैट 9 पर ‘ऑपरेशनल लैंड इमेजर- 2’ (OLI-2) और ‘थर्मल इन्फ्रारेड सेंसर- 2’ (TIRS-2) जैसे उपकरण लगाए गए हैं। इनकी सहायता से पृथ्वी की सतह से परावर्तित होने वाले प्रकाश की विभिन्न तरंगदैर्ध्यों को मापा जाएगा।
टीम रूद्रा
मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs )
डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या
अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर)
योगराज पटेल (VDO)-
अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )
प्रशांत यादव – प्रतियोगी –
कृष्ण कुमार (kvs -t )
अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)
मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)
अश्वनी सिंह – प्रतियोगी
सुरजीत गुप्ता – प्रतियोगी
प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।