भारतीय राजव्यवस्था एवं शासन – INDIAN POLITY S GOVERNANCE
- भारत की राजव्यवस्था एवं शासन प्रणाली ब्रिटिश विरासत की देन हैं ।
- भारतीय संविधान के अंतर्गत भारत की राजव्यवस्था संसदात्मक है तथा जिस शासन व्यवस्था का प्रावधान किया गया है वह संसदात्मक है ।
ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि – Historical Background
कम्पनी के मामलों में प्रभावी नियंत्रण स्थापित करने के लिए अधिनियम
- 1600 ई ० का राजलेख ( The charter act 1600 ) – भारतीय संविधान के विकास का काल ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना से शुरु होता है ।
- भारत में ब्रिटिश 1600 ई . में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रूप में व्यापार करने आए ।
- महारानी एलिजावेथ -प्रथम के chartr द्वारा उन्हें भारत में व्यापार करने के विस्तृत अधिकार प्राप्त थे ।
- लगभग 1500 कम्पनी ( 1760 का मुख्य उद्देश्य व्यापार ही था ।
- कम्पनी जो अभी तक सिर्फ व्यापारिक कार्यों तक ही सीमित थे . 1965 में बंगाल , बिहार और उड़ीसा के दीवानी ( राजस्व एवं दीवानी न्याय के अधिकार ) अधिकार प्राप्त कर लिए .
- 1858 में सिपाही विद्रोह के परिणामस्वरूप british taaj ne भारत के शासन का उत्तरदायित्व प्रत्यक्षः अपने हाथों में ले लिया या शासन 15 agust 1947 मैं भारत की स्वतंतता प्रापि tak अनवरत रूप से जारी भारत में अंग्रेजो के शासन को हम दो भागों में बाट सकते हैं
( i ) ईस्ट इण्डिया कम्पनीका शासन -1757 – 1858
(ii) विरिश लाजका गासन – 1859 – 1947
1726 ( The Charter Act of 1726 ) – es rajlekh dwarra kakutta बम्बई , मद्रास प्रेसेंटेन्सियों के राज्यपाल स्वं उसकी परिषद को विधि बनाने सरी शक्ति प्रदान की गयी । उससे पहले यह शसि कम्पनी के इंग्लैंड स्थित निदेशव बोर्ड में निहित थी ।
कम्पनी का शासन ( 1973-1858 ) The Regulating Act -1973 : – ईस्ट इंडिया कम्पनी के कर्मचारियों में व्यापत अनुशासनहीनता के कारण कम्पनी को हुई सति पर रिपोर्ट देने के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री लाई नार्थ द्वारा 1772 में गठित उप्ट संसदीय समिति के प्रतिवेदन पर 1773 में ब्रिटिका संसद द्वारा रेग्युलेटिंग स्पट पारित किया गया ।
- भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के कार्यों को नियमित और नियलित करने की दिशा में विटिश सरकार द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था
- इसके द्वारा पहली बार कम्पनी के प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यों को मान्यता मिली । इसके द्वारा भारत में केन्द्रीय प्रशासन की नींव रखी गयी ।
- es अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार थी
- इस अधिनियम द्वारा कंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल पी दिया गया । एवं उसकी सहायता के लिए एक भार सेक्स्यीय कार्यकारी परिषदका गठन किया गया ।
- सबसे पहले गवर्नरलार्ड वारेन हेस्टिंग्स थे ।
- गवर्नर जनरल को युद्ध सन्धि एवं राजस्वसंबंधी अधिकार प्रदान , गये
- परिषद में वारेन हैरिसको गवर्नर जनरल के रूप में जरि वृपैवरिश मानसन बाबैल एवं फिलिप फ्रांसिस सदस्य नियुक्त रिये गये ।
- उन सबका कार्यकालऽवर्ष भिधारित था ।उसके द्वारा मडास स्व बाबई के गवर्नर बंगाल के गवर्नर जनरल के अफिन अधीन हो गये , अवरि पाले सभी प्रेसिडेंसियों के गवर्नर स्व – दूसरे से अलग थे ।
- इस अधिनियम के तहत कलकत्ता में 1774 मेंएक उच्चतम न्यापासपी स्थापना की गई ।
जिसमें मुख्य न्यायचीया और तीन अन्य न्यायधीगये ।
यह अभिलेम यायालय नाथा डाप यमालप को पीये की शक्ति प्राप्त नहीं थी ।
उच्पुरमान्यायालय के निर्णय के विरुध लैण्ड स्थित मिमिकाउसिंल में अपील की जा सकती थी ।
– मायालस को दीवानी फोनवारी जल समातिया समर्मिर मामलों में व्यापक –
उसके तhat कम्पनी के कर्मचारियों को निम प्यापार करने और भारतीय लोगों से
उस संधिनियम के बाराविटिया सरकार का कोई जोफ डायरेक्टर्स के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशकत हो गया ।
मह आचार संहिता के बारे में किया गया पहला व्यवस्थित वदम था ।
जापार संहिग : -०
रिश्वत नहीं ले सकते उपहार नही ले सकते मैतिक रुपसे ।
निसी स्करें लाभ के उद्देश्य से काम नहीं कर सकते •
भारत में उसके राजस्व नागरिक और सैन्य मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना । आवश्यक कर दिया ।
यापानधान भारत में मिटिश शासन की कानून बनाने की गति की प्रापिऔर आधुनिक पश्चिमी प्रशासनकापारम्भ था । •
कम्पनी के संचालन भवन के सदस्यों का 24yea कार्यकाल 4 वर्ष कर दिया गया । ।
→ सर स्लीजाह इम्पे उच्चतम न्यायालय के अपमन्यामधीशक्याम्पसलेमीस्टर और एड अबर – यत्यपी.शनियुक्त किये गये । ।
→ इस चार्टर के द्वारा भारत में बम्सले निर्णयको मान्यता भी मिली ।
उस प्रकार 1773 के रेग्युलेरिंग एक्ट में भारत में कम्पनी के शासन के लिए पहली बार स्ट लिथित संविधान प्रस्तुत रिया गया ।
→ यह अधिनियम 11 वर्ष, अमल में रहा । इसके स्थान पर 1784 मैं पिट इण्डियास्कट पारित वियागया ।
tivy Act of settlemart.1781 OR fAnandrent Act 🙁 संशोधात्मक अधिनियम ) । 1781 का संसोधन अधिनियम
रेगुलेटिंगस्वट ऑफ 1773 की आभिमों को ठीक करने के लिए ब्रिटिश संसद मै अमेटिंग स्वर आफ 1781 पारित किया , जिसे दोस्त कानून के नाम से भी जाना जारा है ।
इस कानून की निम्नलिखित विशेषताएंधी
इस रकट के मारा कलकत्ता की सरकार को कंगास , विधर और उड़ीसा के लिए विधि बनाने के
उस कानून ने गवर्नर जनरल तथा काउंसिल की सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से मुस । कर दिया । ,
उनने , एसे कृत्यों के लिए जो उन्होनें पदधारण के अधिकार से दिये थे । • उसी प्रकार कम्पनी के सेवकों को भी जकी कार्य करने के दौरान की गई कार्यवाहियों के लिए 1 सर्वोच्च न्यायालय के होलाधिकार से मुक्त कर दिया गया ।
• इस कानून में राजस्व सम्बन्धी मामलों तथा राजस्व वसूली से जुड़े मामलों को भी सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से वार कर दिया गया । ।
- उस अधिनियम के अनुसार सर्वोच्च न्यायालको अपनी आसार तथा आदेशलाय करते समय भारतीयों के धार्मिक तथा सामाजिक रीति – रिपालों को ध्यान में रखना अभिपार्य 1 कर दिया
गवर्नर जनरल स्वं । उसकी परिषद् द्वारा लाये गये नियमों एवं विनियों को सर्वोच्च न्यायालय के पास पंजीकृत कराने की अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी ।
• उस कानुन द्वारा कलकत्ल के सभी निपासियों को सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार सैल के अन्तर्गत कर दिया
• इस कानून दारा यह प्यवथा भी की गई रिप्रांतीय मामालय की अपील गवर्नर जनरल – स .
• उस कानून में शापर्नर – जनरल – जून काउंसिल की पारीय मामालयों एवं काउंसिल ( पौतिक यत्वकोटस एवं काउंसिल्स के लिए नियम – विनिमम बनाने के लिए अधिकृत किया ।
VPPs india Act , 1784 – : – रेगुलेटिंगुएर में व्याप्त दाँचों को इर करने के उद्देश्य से सर्वप्रथम 183 में ।
उगन मधिनियम और NSD83 में फेरस का भारतीय विशेयक लाया गया । परन्तु ये दोनो ही विधेयक पारित नहीं हो सके ।
1 • यह अधिनियम कम्पनी द्वारा अधिग्रहीत भारतीय राज्यसेलों पर तिटिश ताण ( con ) के स्वामित्व के दाने का पहला वैधानिक , दस्ताव टिश अधिकाराचीन सैल । • अधिनियम का शीर्वच था – भारत में
उस अधिनियम की विशेषताएं प्रावधान निम्नलिमित धी
• उसने कम्पनी के राजनीतिक और वाणिज्यिक कामे की पृथक – पृथर कर दिया ।
- इसने निदेशक मण्डलको कम्पनी के व्यापारिक मामलों के जी अपीलण की अनुमति तो दै . दी लेकिन राजनीतिक मामलों के प्रबन्ध के लिए नियंत्रण बोर्ड आफ कन्ट्रोल ) नाम से एक नए निकायका गठन कर दिया . इस प्रकार प्रशासन की मवस्था का आरनारियागणा
• नियंलन बोर्ड को यह शनिधी रि वह ब्रिटिश नियंतित भारत में सभी नागरिक सैन्य सरकार बरामस्व गतिविधियों का अग्रीक्षण एवं नियंतभकरे ।
- इस प्रकार यह अधिनियम दीकारणों से महत्वपूर्ण था
भारत में कम्पनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार विटिश अधिपत्या तेल ‘ कहा गया ।
कब्रिस्थ सरकार को भारत में कम्पनी के कार्यो और इसके प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान दिया गया
कम्पनी के आसनको पुनर्गदित करके उसके राजनीतिक दापिलों का भार 6 सदस्यीय नियंलन मण्डपको सौंप दिया गया तथा स्थ मतीको इस नियम मण्डलका अध्यक्ष नियुक्ट रियागया ।
निर्मलक मासको कम्पनी के भारत सरकार के नाम आदेशों एवं निर्देशों को स्वीतल्या अस्वीकृत करने का अधिकार प्रदानादिपा गया ।
–गवर्नर जनरल की परिषदरी संख्या चार सेवमकरदे तीनकर दी गई ।
प्रान्तीय परिषद के सदस्यों की संख्या 4 से कर दीगयी । उनसदस्यों में स्व सदस्यको प्रान्तका सेनापी होना अनिवार्य था ।
→ प्रान्तीय जासन को कैलीय मादेशों का अनुपालन आवश्यक कर दिया गया रेन्द्रीय प्रशासन अनुपाल्न परमवर्नर जनरल की मानीय सरकारों को बर्खास्त करने का अधिकार दिया गया ।
-भारत में नियुक्त अजो अधिकारियों के ऊपर मुकदमा चलाने के लिए ग्लैट में स्व कोर्ट की स्थापनाची गई ।
-गवर्नर जनरल को देशी राजाओं से युद्ध तथा संधि से पूर्य कम्पनी के डायरेबरों से स्वीकृति लेना आवश्यक कर दिया गया ।
1786 का अधिनियम : –
इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल को पचाभ से 3/5 .
यह अधिनियम मूल रूप से लाई कानवालिसको भारत के गवर्नर जनरल का पद । के लिए मनाने के उदेश्य से लाया गया था ।
लाई कार्नवालिस को बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त रिया गया ।
– सें- विशेष मामलों में अपनी काउंसिल के निर्णयों को अधिभावी करने अथवा न मानने का अधिकार हो ।
• उसे सेनापति अथवा कमांडर – इन – चीफ का पद भी लिया जाए –
इसने गवर्नर जनरल को अधीनस्थ वाम्बे और मदास प्रेसीडेसी सरकारों के ऊपर अधिक
-इसने भारत पर व्यापार के स्वाधिकार को अगले वीस वर्षों की अवधि लिए हादिया ।
-उसने कमांडर – इन – चीफ के गवर्नर जनरल काउंसिल के सदस्य होने की अनिवार्यता समाप्त कर दी . वर से ऽसी रूप में नियुक्त दिया गया हो ।
→ इसने व्यवस्था दी रिवोर्ड आफ कन्हौल के सदस्यों तथा उभवे नर्मचारियों को भारतीय राजस्व में से ही भुगतान किया जाए ।
The ChaoteiAct +1813 : –
इस अधिनियम की विशेषगरी उस पवार यी
इस कानुन नै भारत में कम्पनी के व्यापार स्माधिकारको समाप्त कर दिया यानि भारीय व्यापार । को सभी जिल्लिा व्यापारियों के लिए खोल दिया गया तव भी इसका पायरेट्यापर तथापीन के साथ व्यापार मेषम्पनी के एकाधिकार को बहाल रहा ।
इस कानून ने भारत में कम्पनी शासिल तो पर मिटेन के राजावी प्रभुग की प्रकट व स्थापित किया ।
इस कानून नेईसाई मिशनरियों को भास आलोगो को पकुछ करने की अनुमति प्रदान की ।
इसकावून ने भारत में ब्रिटिशालाकों में वाशिंदो के बीचपश्चिमी शिक्षा प्रभार – प्रसार की व्यवस्था दी । N
उस कानून ने भारत की स्थानीय सरकारों को व्यक्तियों पर कर लगाने के लिए अधिकृत निया और कर भुगतान नहीं करने पर घर की श्रीव्यवस्था की ।
• कम्पनी को और गले .३० वर्षे के लिए भारतीय प्रदेशों धाराणस्व पर नियंत्रण का अधिकार प्रदान रिया गया ।
• भारतीयों की शिक्षा पर एक लाख रुपये की वार्षिक धनराशि के ष्यण का प्रावधान दिया गया ।
• कम्पनी के व्यय पर अधिकतम 26,000 अमेज से निक रखने की व्यवस्था की गई । → 1813 के राजलेय के दारा भारत में अमेजी साम्राज्य की संवैधानिक स्थिती पहली बार स्पष्ट दी गयी ।
( X21833 . The chasrterfAct : -1813
चार अधिनियम के बाद भारत में कम्पनी के सानाध्य में वृद्धि हुई तथा महाराष्ट्र मध्य भारत पंभाव , सिन्ध ग्वालियर इन्दौर आदि पर अंग्रेजो का प्रमुख स्थापित हो गया ।
इसप्रभुत्व को स्थायित्व । प्रदान करने के लिए विटिश संसद ने 18741823 तथा 1829 में अधिनियम पारित कर कम्पनी को कर लगाने राणाको पेन्शन देने तथा न्यायालयों की स्थापना करने का अधिकार । प्रदान किया । लेकिन में अधिनियम वाहित सफलता न दे सके । इसलिए 1833 में chaster अधिनियम पारित दिया गया । विरिश भारत के केन्द्रीकरणकी दिगा मैं
यह अधिनियम निर्णायक कदम थ जिसमें निम्नलिवित प्रावधान किये गये थे • उसने बगायुके गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया , जिसमें सभी भागरिक और सैन्य शक्मियां निहित थी ।
– उस प्रकार इस अधिनियम में पहली बार स्वरेसी सरकार का निर्माण किया जिसका ब्रिटीशकरने वाले सम्पूर्ण भारतीय क्षेलपर पूर्ण नियतम था । लार्ड विलियम बैटिन ,
- उसने मदास और ई के गवर्नर को विधायिका संबंधी शक्ति से वंचित करकर दिया ।
भारत के गवर्नर जनरलको परे ब्रिटिश भारत में विधायिका के अप्तीमित अधिकार प्रदान कर दिये गये ।
• उसके अन्तर्गत पहले बनाए गए कानूनों की नियामक काचन कहा गया और नए कानून के तहत बने कानूनों को एकर या अधिनियम कहा गया ।
. ईस्ट इंडिया कम्पनी की व व्यापारिक निझाम के रूप में की आने वाली गतिविधियों को समाप्त कर दिया गया ।
अब यह विशुद्ध रूप से प्रशासनिक निकाय बन गया ।
• इस्ते , तप्त कम्पनी के अधिकार वाले नेत विटिया राजशाही और उसके उत्तराधिकारियों
. चार्टर स्कट 1933 में सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिग का आयोजन गुरु करने का प्रयास रिया ।
इसमें कहा गया कि कम्पनी में भारतीयों को किसी पर कार्यालय और रोजगार को हासिल करने से वंचित नहीं किया जायेगा ।
• कम्पनी के नियंतक मण्डल के अधिकार को सीमित किया गया तथा लाई प्रेसीडेण्टलाईजीपी काउंसील , कोषागार मंती , वित्त मंत्री तथा राज्य के प्रमुख मंतियों को नियन्त्रक मण्डल का पदेन सदस्य बनाया गया ।
• भारत के प्रदेशों पर कम्पनी के सैनिक तथा असैनिक आसन के निरीमा और नियन्त्रण का अधिकार भारत के गवर्नर जनरल को दिया गया ।
• गवर्नर जनरेलकी परिषद को सम्पूर्ण भारत के लिए कानून बनाने का अधिकार प्रदान दिया । गया लेरिन इस कानून को नियंलक मण्डल अस्वीकृत कर सकता था ।
• विधि बनाने के लिए गवर्नर जनरल की परिषद में कानूनी सदस्य एक चौथे सदस्य । के रूप में शामिल दिया गया ।
गवर्नर अनुल की पूरिषद को राजस्व के सम्बन्ध में पूर्ण अधिकार प्रदान किया गया तथा सम्पूर्ण देश के लिए एक ही बजट की व्यवस्था की गयी , जो गवर्नर द्वारा तैयार . भारत में दास प्रथा को गैर कानुनी घोषित रिया गया ।
फलस्वरुप 1843 में दास कियाआता था ।
. अध्यना के प्रदेगों में निवास करने वाले भारतीय या विष्टिशू को धर्म जन्मस्थान सप्ता योग के आधार पर कम्पनी के अचान पद धारण करने के लिए अयोग्य ठहराय इस अधिनियम के दारा कम्पनी को अगले वर्षों के लिए भारत को दस्ट के रुप में नियंत्रण मेंरखने तथा प्रशासन करने की अनुमति प्रदान की गई ।
• भारत में प्रचलित सभी सदियों तथा प्रथाओं को संहिताबद्ध करने के लिए एक आयोग का गठन किया गया । इस आयोग के प्रथम अत्यंत लार्ड मैकाले को नियुक्त विया गया
। भारत में संविधान निर्माण का पहली बार आशिक संकेत 1833 के चार्टर स्वर में मिलते
( x ) The charterAct of 1853 – 1853 का चार्टर ( राजले अधिनियम
1833 के चार्टर अधिनियम के अधीनकुह हद तक भेदभाव समाप्त रिसे आने के कारण भारतीयों की और से कम्पनी के प्रति लियावादी आसन की समाप्ति की मांग तथा तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी की रिपोर्ट पर जो कम्पनी के प्रशासन में सुधार के लिए पैरा की गई थी . 1853 का चार्टर अधिनियम पारित किया गया । 4
• 1793 से 185 के दौरान विलिया संसद द्वारा पारित किए गए चार्टर अधिनियमों की श्रृंखला में यह अन्तिम अधिनियम था ।
• संवैधानिक विकासपी हएि से यह अधिनियम स्थ महत्वपूर्ण अधिनियम था । 720 इस अधिनियम में निम्नलिखित प्रावधान किये गयेथे
• उसने पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यो को अलग कर दिया ।
• इसके तहत परिषद में छह नए पार्षद और जोडे गए बन्हें विधान पार्षद कहा गया । दूसरे शहदों में उसने गवर्नर जनरल के लिए नई विधान परिषद का गठन रिया जिसे भारतीय कन्द्रीय विधान परिषद् कस गया ।
• परिषद की उस शाखा में छोटी संसद की तरह कार्य किया । इसमें वही प्रक्रियाएं अपनाई गई जो विष्श संसद में अपनाई जाती थी ।
• उस प्रकार विधायिका को पहली बार सरकार के विशेष कार्य के रूप में आना गया जिसके लिए विशेष मशीनरी और प्रक्रिया की जरूरत थी ।
-इसने सिविल सेवकों की भरी स्पं चयन हेतु खुली प्रतियोगिता व्यवस्था का आरम्भ किया ।
इस प्रकार विशिष्ट सिधिससेषा भारतीय नागरिकों के लिए खोल डीगई ।
इसरे लिए 1854 में ( भारतीय सिविल सेवा के सम्बन्ध में मेकाले समिति की नियुक्ती की गई ।
• इसने कम्पनी के शासन को विस्तारित कर दिया और भारतीय क्षेत्रको सैषु शनशाही । के विश्वास के तहत कस्ले में रखने का अधिकार दिया । सैरिनपूर्व अधिनियमों के विपरीत इसमें किसी निश्चित समय का निधीरण नही दिया गया था ।
* उससे स्पष्ट था दि संसद द्वारा कम्पनी का शासन किसी भी समय समाप्त रिया सकता था ।
• इसने पहली बार भारतीय केन्द्रीय विधान परिषद में स्थानीय प्रतिनिधिलभारभ्भरिया ।
• गवर्नर – जनरल की परिषद में हजए सदस्यों में से पार का चुनाव बंगाल , मदास वई और आगरा की स्थानीय प्रांतीय सरकारों द्वारा रिया जाना था ।
+ निदेशक मण्डल में सदस्यों की संख्या 4 से कम कर 18 कर दी गयी ।
इनमें से 6 सदस्य को नित करने का अधिकार ब्रिटिश राजा की प्रदान किया गया भारतीय विधि आयोग की रिपोर्ट पर विचार करने के लिए इंग्लैए में विधि आयोग गठन का प्रावधान किया गया ।
→ बंगाल पान्त में पृथक गवर्नर की नियुक्ति दी ट्यवस्था की गयी । को अपनी परिषद के उपाध्यक्ष की नियुक्ति का अधिकार प्रदान दिया गया । विधि सदस्य को गार्नर जनरल की कार्यकारी परिषद का पूर्ण सदस्य बना ट्रिपा गया । यभारत का सर्वधानिक प्रगति ई जसे –
उच्चरम न्यायालयानी स्थापना , भारत में संवैधानिक विकास के लिए प्रथम चरण थे ।
इन सभी अधिनियमों प्रशासनिक कार्यपालिका तथा विधायी कार्य का प्रथक्करण विधि आयोग की स्थापना , शासन संचालित करने कासमुचित तम्लन्याय प्रशासन की स्थापना विभेदका परिषेध आदि ।
इन सबके बावजूद इस अधिनियम की सबसे बड़ीवुर या भी नि भारतीयों के अपने विषय में भी कानून बनाने की अनुमति नहीं दी गयी थी ।
→ 1853 के चार्टर भारतीय शासन ब्रिटिश कालीन ) के इतिहास में अन्तिम चार्टर एक्ट था ।