अनाच्छादन

अपक्षय, अपरदन, बृहद क्षरण के सम्मिलित रूप को अनाच्छादन कहते हैं। अपने स्थान पर जब चट्टाने टूटती – फूटती है तो उसे अपक्षय कहते हैं।

भौतिक अपक्षय में विघटन द्वारा, रासायनिक अपक्षय में वियोजन के द्वारा तथा प्राणी वर्गीय अपक्षय में जीवों एवं वनस्पतियों के द्वारा चट्टाने टूटती हैं।

अपक्षय के कारक

  1. भौतिक कारक – जल, सूर्यातप , वायु, दाब।
  2. रासायनिक कारक – ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन।
  3. प्राणी वर्गीय अपक्षय – वनस्पतियां, जीव जंतु एवं मानव।

जब वायु द्वारा चट्टाने परत दर परत पड़ती है तो उसे अपदलन ओनियन अपक्षय कहते हैं।

स्थलाकृतियां – जालीदार, पत्थर, हागवैक , अपदलन, गुंबद, मेसा।

अपक्षय एक स्थैतिक प्रक्रिया है।

अपरदन एक गतिशील प्रक्रिया है जिसका सामान्य अर्थ अपरदन के अभीकर्ताओं द्वारा चट्टानों कटाव।

  1. भौतिक अपरदन – अपघर्षण , सन्निघर्षण , जलगति , वायु अपवाहन ।
  2. रासायनिक अपक्षय – जलयोजन

अपक्षय अपरदन के लिए आधार का कार्य करता है।

जब चट्टानें गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से अपने स्थान पर टूट – फूट कर स्थानांतरित होती है तो उसे बृहदक्षरण कहते हैं।

अपरदन चक्र नवोन्मेष एवं बहुचक्रिय स्थलाकृति

जेम्स हटन 1785 में भू आकृति विज्ञान में चक्रीय पद्धति का प्रतिपादन किया। उन्होंने एकरूपता वाद का नियम, वर्तमान भूत की कुंजी है आदि संकल्पनाओं का प्रतिपादन किया।

पावेल ने आधार तल का प्रतिपादन किया उनके अनुसार अपरदन का कार्य आधार तल के नीचे नहीं हो सकता।

डेविस ने अट्ठारह सौ निन्यानवे में अपरदन चक्र की संकल्पना का व्यवस्थित प्रतिपादन किया। उनके अनुसार स्थलाकृतिया विकास की तीन अवस्थाओं से गुजरती हैं।

  1. युवावस्था
  2. प्रौढ़ावस्था
  3. जीर्णा अथवा वृद्धावस्था

वृद्धावस्था के अथवा अपरदन चक्र के अंत में बने समप्राय मैदान के लिए डेविस ने पेनिप्लेन शब्द का तथा बची खुची कवशिष्ठ पहाड़ियों के लिए मोनाडनाक शब्द का प्रयोग किया।

पेंक ने भी अपरदन चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन किया। हालांकि उन्होंने अवस्था के स्थान पर इंताविक लुंकड शब्द का उपयोग किया।
[07:14, 29/03/2022] Surjit: पारिस्थितिक तंत्र का सर्वप्रथम प्रयोग 1935 ई . में ए . जी . टान्सले ने किया था । > पारिस्थितिक तंत्र एक गतिक तंत्र है , जिसकी संरचना बायोम तथा निवास क्षेत्र या भौतिक पर्यावरण से मिलकर होती है । पारिस्थितिक तंत्र के जीवों के विशेष समूह को इकोनिक ( Econic ) कहते हैं । पारिस्थितिक तंत्र में सौर ऊर्जा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय होता है । > इकोक्लाइन प्रवणता का सूचक है , जिसके सहारे जैविक समुदाय , खासकर पादप समुदाय तथा भौतिक दशाओं में परिवर्तन होता है । समस्त स्वपोषित पौधे प्राथमिक उत्पादक होते हैं । अपघटन की क्रिया मृतोपाजीवी कवक ( Fungi ) और जीवाणुओं ( Bacteria ) द्वारा होती है । > पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह एक देशी मार्ग का अनुसरण करता है जबकि पदार्थों का गमन तथा संरक्षण चक्रीय मार्गों से होता है । > पारिस्थितिक तंत्र में उत्पादक क्लोरोफिलयुक्त पौधे होते हैं , जैसे — काई ( शैवाल ) , घास और पेड़ । प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन ( Reduction ) तथा जल का उपचयन pmaje ( Oxidation ) होता है । प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के दौरान पौधे सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते हैं । > पौधों का प्रमुख कार्य सम्पूर्ण पारिस्थितिक तंत्र के लिए भोजन उत्पादन तथा ऊर्जा संचयन करना है । इसी कारण हरे पौधों को प्राथमिक उत्पादक ( Primary Producers ) कहते हैं ।

वियोजक या अपघटक को प्रकृति का सफाईकर्ता ( Scavengers ) कहते हैं । अधिक तापमान तथा आर्द्र जलवायु वाली स्थितियों ( नमः उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र ) में अपघटन बहुत तेजी से होता है । अपरद में लिग्नीन काइटीन की प्रचुरता अपघटन की दर में कमी लाती है । अपरद जिसमें नाइट्रोजन की प्रचुरता तथा लिग्नीन की कमी होती है , वह अपेक्षाकृत बहुत तेजी से विघटित होता है । ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन , दलदलीय क्षेत्र तथा ज्वारनदमुख ( Estuaries ) की शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता ( शुष्क भार ) सबसे अधिक होती है । विश्व का विशालतम तथा सबसे अधिक स्थिर पारिस्थितिकी तंत्र समुद्र या महासागर है । > जैवमंडल एक भौगोलिक क्षेत्र में सभी पारिस्थितिकी कंणों को एक साथ लेकर एक अधिक बड़ी यूनिट बनाते हैं । प्रकाश – संश्लेषण के दौरान प्रकाश – सुग्राहीकारक के रूप में क्लोरोफिल या पर्णहरित काम करता है । > मैग्नीशियम पत्तों के हरे वर्णक में स्थित रहता है । प्रकाश – संश्लेषण की क्रिया पौधों की हरी पत्तियों द्वारा होती है , और इस क्रिया के दौरान ऑक्सीजन गैस उत्सर्जित होती है । प्रकाश – संश्लेषण की क्रिया नीले एवं लाल रोशनी के क्षेत्र में अधिक होती है । > वर्षावन या विषुवतरेखीय वन में पारिस्थितिक तंत्र का एकल प्राथमिक उत्पादकता सर्वाधिक होती है । > ऊर्जा प्रवाह और खनिज चक्र पारितंत्र का गतिक हृदय कहलाता है ।

प्रकाश संश्लेषण की क्रिया केवल दृश्य प्रकाश वर्ण बनी आइपीनाला ( VIBGYOR ) में होता है । बैंगनी रंग के प्रकाश में सबसे कम तथा लाल रंग के प्रकाश में सबसे अधिक प्रकाश संश्लेषण होता है । प्रकाश संश्लेषण का केन्द्र पर्णहरित ( Chloroplast ) होता है । > पौधों में क्लोरोफिल प्रायः पत्तियों में ही पाया जाता है । इसलिए पत्ते को प्रकाश – संश्लेषी अंग कहते हैं । – शैवाल और हाइडिला जो कि प्रायः पानी में मिलती है , में पूर्ण काया ही प्रकाश संश्लेषी होती है । प्रकाशिक अभिक्रिया कोशिका के क्लोरोप्लास्ट के ग्रेना में होती है । अप्रकाशि अभिक्रिया क्लोरोप्लास्ट के स्ट्रोमा में होती है । प्रकाश संश्लेषण की दर प्रकाश की निम्न तीव्रता पर बढ़ती है और जैसे – जैसे तीव्रता उच्च होती है , वह घटती है । लगभग 30 ° C – 35 ° C तापक्रम पर प्रकाश – संश्लेषण की दर अधिकतम होती है । > किसी भी क्षेत्र में बायोमास की वृद्धि दर को उत्पादकता कहते हैं , जबकि किसी भी क्षेत्र इकाई के समय – विशेष में सकल बायोमास की मात्रा को उत्पादन कहते हैं । बायोमास को सूखे भार के रूप में मापा जाता है । > उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों तथा दलदली क्षेत्रों और नदियों के मुहाने वाले भागों में विश्व की सर्वाधिक नेट प्राथमिक उत्पादकता पायी जाती है । > पूर्ण रेगिस्तानों , नग्न शैलों वाले भागों तथा हिमाच्छादित भागों में न्यूनतम नेट प्राथमिक उत्पादकता होती है । ग्रीष्मकाल में शीतकाल को अपेक्षा सकल प्राथमिक उत्पादकता अधिक होती है । > उष्ण शुष्क मरूस्थलीय भागों में जल सीमाकारी कारक होता है , जबकि ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्य का प्रकाश तथा तापमान सीमाकारी कारक होते हैं । पोषण स्तरों में ऊर्जा प्र…
[07:49, 29/03/2022] Surjit: हलधरपुर से
Fino
Book
BSNL
[11:15, 29/03/2022] Surjit: अपवाह तंत्र एवं अपवाह प्रतिरूप

अपवाह तंत्र से तात्पर्य सरिताओं की उत्पत्ति व समय के साथ उनके विकास से होता है। ढाल का अनुसरण करने वाली सरिता ओं को क्रम वर्ती सरिता तथा प्रादेशिक ढाल वह भूमि की संरचना का अनुसरण करने वाली सरिताए अक्रमवर्ती कहलाती है।

  1. क्रमवर्ती सरिता
    I. अनुवर्ती सरिता
    II. परवर्ती सरिता
    III. प्रति अनुवर्ती सरिता
    IV. नुवानुवर्ती सरिता

ढाल का अनुसरण करने वाली प्रधान सरिता अनुवर्ती, अनुवर्ती से समकोण पर मिलने वाली सरिता परवर्ती, परवर्ती से समकोण पर किंतु अनुवर्ती सरिता के विपरीत प्रवाहित होने वाली प्रति अनुवर्ती तथा अनुरूप सरिता नुवानुवर्ती कहलाती हैं।

अक्रमवर्ती अपवाह तंत्र

I. परवर्ती अपवाह तंत्र
II. अध्यारोपित अपवाह तंत्र / पूर्वारोपित अपवाह तंत्र ।

पूर्वर्ती सरिता मार्ग में होने वाले उत्थान के बावजूद भी अपना मार्ग बनाए रखती हैं। जैसे – गंगा, ब्रह्मपुत्र तथा सिंधु आदि। अध्यारोपित सरिता भी वही करती है लेकिन उसके मार्ग में उत्थान नहीं होता है।

अपवाह प्रतिरूप

इसका संबंध सरिताओं के स्थानिक व्यवस्था से है। अर्थात विभिन्न नदियां आपस में मिलकर एक डिजाइन बनाती हैं।

I. जालीनुमा
II. पादपकार
III. आयताकार
IV. अपकेंद्रीय
V. अभिकेंद्रीय
VI. वालयाकार
VII. कंटकीय
VIII. परनुमा
IX. हेरिंग अस्थि
X. समानांतर
XI. अविस्थिति अपवाह प्रतिरूप
[11:27, 29/03/2022] Surjit: नदी द्वारा उत्पन्न स्थलाकृतिया

नदियां अपरदन, परिवहन तथा निक्षेप के द्वारा तृतीयक स्थल आकृतियों का निर्माण करती है।

नदी अपरदन के रूप

  • घोलिकरण या संक्षारण
  • अपघर्षण
  • सन्निघर्षण
  • जलगति क्रिया
    [12:27, 29/03/2022] Surjit: नदी अपरदन तंत्र ( कंकड़, पत्थर) के द्वारा चट्टानों को अपरदन करती है तो अपघर्षण जब कंकड़ पत्थर आपस में टकरा कर टूटते टूटते हैं तो उसे सन्नी घर्षण तथा जब जल गति के द्वारा अपरदन करता है तो जल गति क्रिया तथा जल भूलकर चट्टानों को अलग करता है तो घोली करण कहते हैं।

गिलबर्ट का नदी अपरदन सिद्धांत

नदी के वेग के दोगुना होने पर अपरदन शक्ति 4 गुना हो जाएगी।

नदी के अपरदन द्वारा उत्पन्न स्थलरूप

I. V आकार की घाटी ( गार्ज या कैनियन )
II. जलप्रपात या क्षिप्रिका
III. जल गर्तिका
IV. संरचनात्मक सोपान
V. नदी वेदिका
VI. नदी विसर्प व गोखुर झील
VII. क्वेस्टा व शुकर कटक
VIII. सम्प्रदाय मैदान

नदी परिवहन के समय स्थलाकृति नहीं बनाती है।

गिलबर्ट का परिवहन शक्ति सिद्धांत

  • इसे छठी शक्ति का सिद्धांत भी कहते हैं ।

निक्षेप जनित स्थलाकृति

I. जलोढ़ पंक
II. जलोढ़ शंकु
III. बालुका तट
IV. प्राकृतिक तटबंध
V. बाढ़ का मैदान
VI. डेल्टा

डेल्टा शब्द का उपयोग सर्वप्रथम हेरोडोटस ने किया था जो कि एक त्रिभुजाकार आकृति वाला होता है।

डेल्टा के प्रकार

I. चांपाकार डेल्टा – नील नदी
[10:12, 30/03/2022] Surjit: II. पंजाकार डेल्टा
III. ज्वारनद मुख डेल्टा
IV. रुण्डित डेल्टा
V. पालियुक्त डेल्टा
VI. वर्धमान डेल्टा
VII. अवरोधित

नोट्स नदियों के एश्चुअरी भर जाने से निर्मित डेल्टा को ज्वार नद मुख डेल्टा कहते हैं।

कार्स्ट स्थलाकृति
[12:46, 30/03/2022] Surjit: चूना पत्थर वाले क्षेत्रों में भूमिगत जल द्वारा निर्मित स्थलाकृति कार्स्ट स्थलाकृति कहलाती है।

भूमिगत जल के स्रोत

  • वर्षा का जल
    सहजता जल – चट्टानों के क्षेत्रों में स्थित जल।
    मैग्मा जल

जल का संचयन

असंपृक्त मंडल
संपृक्त मंडल
चट्टान प्रवाह मंडल

आर्टीजियन या पातालटोड कुओं स्वत: जल निकलता रहता है। ऑस्ट्रेलिया में इस तरह के कुएं बहुतायत हैं।

भूमिगत जल के अपरदनात्मक कार्य

  • घुलन कार्य , जल गति क्रिया
  • अपघर्षण , सन्निघर्षण

अपरदनात्मक स्थलरूप

  1. लैपिज
  2. घोलरंध्र – घोलापटल
  3. युवाला
  4. पोलिए
  5. कार्स्ट खिड़की
  6. घंसती निवेशिका
  7. अंधी घाटी
  8. कार्स्ट घाटी या घोल घाटी
  9. कन्डरा
  10. प्राकृतिक पूल

निक्षेपात्मक स्थलरूप

  • स्टैलेक्टाइट
    स्टैलेग्माइट
    कन्डरा स्तम्भ

कार्स्ट प्रदेश की विशिष्ट स्थलाकृतियां

काकपिट कार्स्ट
कोनकार्स्ट
पालिगोनल कार्स्ट
टावर कार्स्ट

सागर के तटीय क्षेत्र में निर्मित स्थलाकृतिया

अपरदनात्मक स्थलाकृति

तटीय क्लिफ
तटीय कंडरा व उससे संबंधित रूप
अंडाकार कटान या लघुनिवेशिका
तरंगघर्षित वेदी
[14:15, 30/03/2022] Surjit: निक्षेप जनित स्थलाकृति

  • पुलिन
  • कास्ट पुलिन
    रोधिका व रोध
    अपतट रोधिका
    हुक
    लूप या छल्ला
    संयोजक रोधिका
    स्पिट या जिह्वा
    तटीय तटभाग

पवन द्वारा उत्पन्न स्थलाकृति

अपरदनात्मक स्थलरूप

  • ईसेलवर्ग या वोनहर्ट
  • टनकशिला , पिट्जफेल्सन या पेडस्टेन
  • भूस्तम्भ
  • ज्यूजेन
  • यारडंग
  • ड्राईकंटर या वेन्टीफेक्ट
  • जाला या जालीदार टीला
  • पुल तथा खिड़की

पवन द्वारा निक्षेपात्मक स्थलाकृति

बालुका स्तूप
बरखान
लोयस

मरुस्थलीय क्षेत्र में जल द्वारा निर्मित स्थलाकृति

उत्खाट स्थलाकृति
पेडीयेन्ट
बजादा
प्लावा
सेलिनास

हिमनद के द्वारा निर्मित स्थलाकृति

अपरदनात्मक स्थलाकृति

यू-आकार की घाटी
लटकती घाटी
सर्क या हिमगहटर
सर्क झील या टार्न
अरेट या तीछ्ड कटक
हार्न या मिरिश्रम
नुनाटक
श्रमपुच्छ
भेड़ पीठ शील या राक्षमुहाने
हिमसोपान एवं पेटरनास्टर झील
फियोर्ड

निक्षेपात्माक स्थलाकृति

हिमोड़
ड्रमलिन
हिमानी जलोढ़ निक्षेप जनित स्थलाकृति
एस्कर
केटल एवं हमक हिमनद अवक्षेप
[14:18, 30/03/2022] Surjit: पृथ्वी की आंतरिक संरचना

स्वेश ने पृथ्वी के आंतरिक भाग को तीन परतों में वर्गीकृत किया ।

  1. सियाल
  2. सीमा
  3. निफे

भूकंप शास्त्र के आधार पर पृथ्वी को मुख्यतः तीन परतों में वर्गीकृत किया गया है।

महाद्वीपों एवं महासागरों की उत्पत्ति
[14:27, 30/03/2022] Surjit: उच्चावच तीन प्रकार के होते हैं

  1. प्राथमिक श्रेणी के उच्चावच – महाद्वीप एवं महासागर
  2. द्वितीय श्रेणी के उच्चावच – पर्वत , पठार , मैदान
  3. तृतीय श्रेणी के उच्चावच – वी आकार की घाटी, जल प्रपात , जलगर्तिका आदि।

महाद्वीप एवं महासागर की उत्पत्ति से संबंधित परिकल्पना

  1. लपवर्थ वह लव की परिकल्पना
  2. लोथियन ग्रीन की चतुष्फलक परिकल्पना
  3. वेगनर का महाद्वीपीय सिद्धांत
  4. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत
    [15:46, 30/03/2022] Surjit: वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत

वेगनर के अनुसार महाद्वीपों के विस्थापन के द्वारा जलवायु कटिबंध में परिवर्तन हुआ है। उनके अनुसार प्रारंभ में एक बड़ा महाद्वीप पेंजिया तथा महासागर पंथालासा था। कार्बोनिफरस युग में पैंजिया दो भागो अंगारा लैंड एवं गोंडवाना में टूट गया है। दोनों के बीच में स्थित सागर के लिए टेथिससागर शब्द का उपयोग किया गया। क्रीटैशियस काल तक आने तक सारे महासागर वह महाद्वीप निर्मित हो गए। इनके निर्माण में निम्न बलो ने भूमिका अदाकी ।

I. गुरुत्व बल
II. ज्वारीय बल
III. प्लवनशीलता

उल्लेखनीय है की इनके पूर्व में टेलर ने महाद्वीपीय परिकल्पना के द्वारा टर्शियरी युग में निर्मित मोडदार पर्वत की व्याख्या करने का प्रयास किया गया।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत

क्रस्ट तथा ऊपरी मेंटल के ऊपरी परत से निर्मित स्थल खंड को प्लेट कहते हैं। इनके संचलन को प्लेट विवर्तनिकी कहते हैं। प्लेट विवर्तनिकी तीन संकल्पनाओं का समुच्चय है।

  1. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत
  2. पूरा चुंबकत्व
  3. हैरी भैंस का सागर नितल प्रसरण (1960)

टुंजो विल्सन ने सर्वप्रथम प्लेट शब्द का उपयोग किया।

प्लेटो का संचालन वृहद एवं लघु प्लेटों के साथ में होता है।

बृहद प्लेट

  1. प्रशांत प्लेट
  2. उत्तरी अमेरिकन प्लेट
  3. दक्षिणी अमेरिकन प्लेट
  4. indo-australian प्लेट
  5. अफ्रीकन प्लेट
  6. अंटार्कटिक प्लेट
  7. यूरेशियन प्लेट
    [16:06, 30/03/2022] Surjit: लघु प्लेट

1.नज्का

  1. स्कोशिया
  2. अरेबियन
  3. जान डी फ्यूका
  4. फिलीपींस
  5. कोकोस

प्लेटो के संचालन में संवहन तरंग, कटक दबाव व स्लैब खींचाव प्रमुख भूमिका अदा करते हैं।

प्लेट सीमांत तीन प्रकार के होते हैं।

  1. अभी सारी प्लेट सीमांत जिसे विनाश आत्मक प्लेट सीमांत भी कहते हैं।
  2. अपसारी प्लेट सीमांत जिसे रचनात्मक प्लेट सीमांत भी कहते हैं।
  3. संरक्षी वह समानांतर प्लेट सीमांत जिसके सहारे ही प्लेटो का विनाश होता है और ना ही प्लेट बनती हैं।

भू संतुलन की संकल्पना

भू संतुलन शब्द का उपयोग सर्वप्रथम डटन ने 1889 में किया था। विभिन्न ऊंचाई एवं गहराई वाली स्थलकृतियां जिस नियम के द्वारा संतुलन की दशा को प्राप्त करते हैं उसे ही भू संतुलन कहते हैं।

प्राट एवं एयरी ने हिमालय पर्वत का अध्ययन करते समय इस संकल्पना का व्यवस्थित प्रतिपादन किया। जोली ,आर्थर, होम्स तथा कोबर ने एअरी के मत का समर्थन किया वही हैफोर्ड वह वोवी ने प्राट के मत का समर्थन किया। हिस्कैनन द्वारा भू संतुलन के संदर्भ में दिया गया विचार वर्तमान में सर्वाधिक मान्य है।

प्राट का विचार
और सामान घनत्व व समान गहराई के आधार पर उन्होंने ऊंचा स्तंभ अधिक घनत्व नीचा स्तंभ कम घनत्व की संकल्पना का प्रतिपादन किया। क्षतिपूर्ति तल के नियम के आधार पर उन्होंने यह कहा कि समदबाव तल के नीचे सभी अस्थल आकृतियां समान गहराई में पाकर संतुलन की दशा को प्राप्त करते हैं।

एयरी ने तैराव के नियम के आधार पर असमान गहराई, सामान घनत्व की संकल्पना का प्रतिपादन किया है। उनके अनुसार सभी स्तंभों ( स्थलाकृतियों तथा पर्वत, पठार, मैदान) का घनत्व समान होती है। ऊंची स्थलाकृति या अधिक गहराई में तथा नीचे अस्थल आकृतियां कम गहराई में जाकर संतुलन की दशा को प्राप्त करती हैं।

हिस्कैनन ने प्राट एवं एयरी कि कुछ बातों को मानते हुए भूकंप शास्त्र की संकल्पना के आधार पर अपने सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार 6:30 स्तर पर सभी स्थल आकृतियों के घनत्व में अंतर होता है तथा एक ही स्थलाकृति में ऊपर से नीचे जाने पर घनत्व में वृद्धि होती है।

जाली ने क्षतिपूर्ति रेखा के स्थान पर क्षतिपूर्ति मंडल शब्द का उपयोग किया है।

Leave a Reply