Paradigms

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चिंतनफलक (Paradigms)- थामस कुहन

ज्ञान विज्ञान की कोई भी शाखा सामान्यतया एक संकल्पनात्मक सांचे के ढांचे के अंदर कार्य करती है तथा अग्रसर रहती है वह संकल्पनात्मक सांचे का ढांचा ही चिंतनफलक है। बौद्धिक चिंतन, सिद्धांत रचना और प्रविधि चिंतनफलक के महत्वपूर्ण आयाम है जो अंततः दर्शन अथवा वाद के रूप में किसी विषय का प्रतिनिधित्व करती है। 

सरल शब्दों में चिंतनफलक का सामान्य अर्थ है कोई मान, दृष्टांक, मॉडल अथवा निदर्शन।

विशिष्ट अर्थों में चिंतनफलक एक सैद्धांतिक विचार है अतः इसे अध्ययन का एक उपागम भी कह सकते हैं जिस पर विशेष संबंध अधिकांश विद्वानों की उस वाद को समर्थन प्राप्त होता है।

दूसरे शब्दों में चिंतनफलक एक संकलपनात्मक सांचे का ढांचा है इसके तीनों आयाम (बौद्धिक चिंतन, सिद्धांत रचना, विधि एवं प्रविधि) मिलकर एक दर्शन अथवा वाद की स्थापना करते हैं जो उस विषय विशेष का प्रतिनिधित्व करता है। बाद में इस वाद के प्रभाव से ही अनेक मॉडलों, सिद्धांतों तथा उपागमो की रचना होती है।

थामस कुहन को इस संकल्पना को विस्तृत करने का श्रेय दिया जाता है। इन्होंने अपनी प्रतिष्ठित पुस्तक ‘The structure of scientific revolutions’ (1962) में चिंतनफलक की परिभाषा इस प्रकार दी-

इनके अनुसार चिंतनफलक विश्वासों, मूल्यों, तकनीकों का पूर्ण पुंज है जिसमें किसी प्रदत्त समुदायों के सदस्यों की पूर्ण भागीदारी होती है।

दर्शन चिंतनफलक का उत्पाद है।

कुहन ने चिंतनफलक के विकल्प के तौर पर अनुशासनिक सांचे शब्द का उपयोग किया। हैगेट और शोर्ले के पुस्तक ‘Models in Geography’ (1967) में पहली बार चिंतनफलक शब्द का उपयोग किया। हार्वे ने अपने लेख ‘ Revolution and Counter Revolution’ में चिंतनफलक को संकल्पनात्मक उपकरण की संज्ञा दी। सिद्धांत चिंतनफलक का अंग होता है इसलिए कभी कभार चिंतनफलक को महा सिद्धांत (Super theory) की संज्ञा दी जाती है।

रिटजर के अनुसार चिंतनफलक के तीन लक्षण होते है-

  • दृष्टांत या आदर्श ( Exemplar)
  • विषयवस्तु का भाव या प्रतिबिंब (Image of the subject matter)
  • सिद्धांत और विधितंत्र (Theory and methodology)

चिंतनफलक स्थानांतरण ( Paradigm Shift)

मानव जीवन चक्र की भांति वादों, दर्शनों अथवा चिंतनफलकों का भी एक जीवन चक्र होता है। एक समय के बाद चिंतनफलकों पर घटते सीमांत प्रतिफल का नियम लागू होने से अनेक सीमितताऐं उत्पन्न होती हैं जो एक संकट को जन्म देती हैं संकट से उबरने के क्रम में क्रांति के फलस्वरूप नए चिंतनफलकों का जन्म होता है चिंतनफलको का यही विकास क्रम Paradigm shift है।

सरल शब्दों में पुराने चिंतनफलकों की सीमितताओं से उत्पन्न संकट से निपटने के प्रयास में नए चिंतनफलकों के विकसित होने की प्रक्रिया Paradigm shift  है। 

जब कोई चिंतनफलक विषय अथवा समाज की आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं कर पाता है तब ऐसी परिस्थिति में सर्वसम्मति से नए चिंतनफलक का जन्म होता है। नए चिंतनफलकों के विकसित होने की प्रक्रिया चिंतनफलक स्थानांतरण है।

कुहन ने चिंतनफलक स्थानांतरण शब्द का उपयोग 21  प्रकार से किया है जिसे मास्टरमैन ने तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया है।

भूगोल के प्रमुख चिंतनफलक

1- परंपरागत चिंतनफलक (Traditional Paradigm)

(I) सोद्देश्यवादी वर्णनात्मक चिंतनफलक (Teleological Descriptive Paradigm)

(ii) छायावादी विश्लेषणात्मक चिंतनफलक (Romantic Analytical Paradigm)

(iii) पर्यावरणवादी चिंतनफलक (Environmentalistic Paradigm)

(iv) संभववादी चिंतनफलक (Possiblistic Paradigm)

(v) भूविस्तारीय चिंतनफलक (Chorological Paradigm)

2- समकालीन चिंतनफलक (Contemporary Paradigm)

(i) प्रत्यक्षवादी चिंतनफलक (Positivistic Paradigm)

(ii) आचारपरक/व्यवहारपरक चिंतनफलक (Behavioural Paradigm)

(iii) मानवतावादी चिंतनफलक (Humanistic Paradigm)

(iv) क्रांतिपरक/ मार्क्सवादी चिंतनफलक (Radical/Marxist Paradigm)

(v) कल्याणपरक चिंतनफलक (Welfare Paradigm)

सोद्देश्यवादी चिंतनफलक- पृथ्वी सहित संपूर्ण सौरमंडल यहां तक कि ब्रह्मांड की रचना भी सोद्देश्य हुई है। पृथ्वी पर निर्मित कोई भौगोलिक तथ्य बेकार नहीं है। प्लेटो, अरस्तु, इरेटोस्थनीज इसके समर्थक विचारक हैं। प्लेटो के अनुसार संपूर्ण विश्व ईश्वरीकृत है तथा इसका निर्माण मानव के उपयोग के उद्देश्य से हुआ है।

छायावादी विश्लेषणात्मक चिंतनफलक

भौगोलिक चिंतन के इतिहास में (1800-1859) की अवधि को छायावादी विश्लेषणात्मक के नाम से जाना जाता है । हंबोल्ट तथा रिटर इस काल के प्रमुख भूगोलवेत्ता थे। इन्होंने भूगोल को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया।

इस काल के भूगोलवेत्ता विविधता में एकता तथा प्रकृति की समृद्धता में आस्था रखते थे। यही कारण था कि वह रहस्योउद्घाटन द्वारा प्रकृति का मनोरम स्वरूप प्रस्तुत करना जानते थे। इसलिए इस काल को प्रकृतवादी या छायावादी युग कहते हैं। 

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