DIGESTIVE SYSTEM ( पाचन तंत्र)

DIGESTIVE SYSTEM ( पाचन तंत्र)

पाचन तंत्र क्या है ?

जो हम भोजन करते हैं उसके पचने की प्रक्रिया को पाचन कहते हैं अर्थात बड़े अणुओं का छोटे अणुओं में टूटना ही पाचन होता है। हमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन होता है, इन्हीं का monosaccharide ( मोनोसैकराइड), fatty acid और amino acid मे टूटना पाचन कहलाता है।

  • पाचन एक कैटाबोलिक प्रोसेस ( catabolic process) उपापचयी प्रक्रिया है।
  • पाचन की प्रक्रिया में हमारे भोजन को 7 चरणों से गुजरना पड़ता है।
  • पहला चरण भोजन को मुंह में रखना। जिसे हम injestion ( इंजेक्शन) अंतः ग्रहण कहते हैं यानि भोजन को मुंह में रख लेना।
  • दूसरे चरण में हम भोजन को चबाते हैं जिससे भोजन में लार मिलता है जिसे हम solivation ( साल्वेशन) यानि लार निकलना कहते हैं। लार हमारे भोजन को मुलायम बनाता है ताकि हम उसे आसानी से निगल सके। जिससे यह हमारे आहार नली से होते हुए आमाशय (Stomach) तक पहुंच जाए।
  • लार में दो प्रकार के एग्जाम भी होते हैं

(i) टाइलीन – यह कार्बोहाइड्रेट का पाचन करता है।

(ii) लाइसोजाइम – यह हमारे भोजन में मौजूद हानिकारक ( harmful) जीवाणुओं को नष्ट कर देता है।

  • तीसरे चरण में भोजन आहार नली के द्वारा अमाशय तक पहुंचता है इसको propulsion (प्रोपल्शन) – आगे भेजना कहते हैं।
  • जैसे ही भोजन अमाशय में पहुंचता है बड़े अणु छोटे अणु टुटना शुरू हो जाते हैं। अर्थात कार्बोहाइड्रेट-मोनोसैकेराइड, फैट- फैटी एसिड और प्रोटीन- एमिनो एसिड में पचना शुरू हो जाता है। यह चौथा चरण होता है जिसे हम पाचन कहते हैं।
  • Stomach से हमारा पचा हुआ भोजन छोटी आंत में जाता है। छोटी आंत के 3 हिस्से होते हैं 1- डुडेनम 2- जुजेनम 3- इलियम । पहले भोजन डुडेनम में फिर जुजेनम में और भी इलियम में जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में भोजन पूरी तरह से पच चुका होता है अर्थात मोनोसैकेराइड , फैटी एसिड व अमीनो एसिड में टूट चुके होते हैं।
  • छोटी आंत का अंतिम हिस्सा इलियम होता है और वहीं पर एक विलाई (willia) – रसांकुर होता है। वह बचे हुए भोजन से सभी पदार्थों को अवशोषित करता है और अपने पास एकत्रित करता है। यहां पांचवा चरण होता है। जिसे अवशोषण (observation) कहते हैं।

विलाई इन पदार्थों का क्या करता है?

तो क्या पोषण तत्व केवल विलाई को ही चाहिए , पोषक तत्व तो शरीर के सभी अंगों को चाहिए, शरीर के सभी अंगों तक रक्त जाता है। तो विलाई पोषक तत्व को रक्त को दे देता है और यह सभी अंगों तक पहुंचा देता है। रक्त के द्वारा पोषक तत्वों को शरीर के सभी अंगों तक पहुंचाना हमारे पाचन का छठा चरण होता है। जिसे स्वांगीकरण (Assimulation) कहा जाता है।

  • अब हमारे भोजन में कुछ नहीं बचता है ।अब यह बड़ी आंत में जाता है और बड़ी आंत का अंतिम हिस्सा मलाशय (rectum) में जाकर एकत्रित हो जाएगा और समय-समय पर हमारे गुदा द्वार ( Anes) के द्वारा बाहर निकल जाएगा। यह अंतिम चरण अर्थात सातवां चरण होता है जिसे हम परित्याग ( injection defensin) कहते हैं।

1- Injestion – अंत: ग्रहण – भोजन को मुंह में रखना।

2- Salvation – लार निकलना – भोजन में लार का मिलना

3- Propulsiunआगे भेजना – भोजन का आहार नली के द्वारा अमाशय तक पहुंचना।

4- Digestion – पाचन – बड़े अणुओं का छोटे अणुओं में टूट जाना।

5- Observation – अवशोषण – भोजन से रसांकुर के द्वारा पोषक तत्वों का अवशोषण।

6- Assimulation – स्वांगीकरण – रक्त के द्वारा पोषक तत्वों का शरीर के अलग-अलग हिस्सों / अंगों तक पहुंचना।

7- Injction / defection- परित्याग – अपशिष्ट या बचे हुए पदार्थ को शरीर से बाहर निकालना।

  • हमारे शरीर में भोजन और कार्बोहाइड्रेट मुंह से पचना शुरू हो जाता है।
  • प्रोटीन का पाचन हमारे शरीर में अमाशय से शुरू होता है।
  • हमारे शरीर में सबसे ज्यादा समय के लिए पाचन छोटी आंत में होता है।यहां हमारा भोजन 3 से 4 घंटे तक यात्रा करता है। आमाशय में 2 से 3 घंटे तक रहता है।
  • भोजन का पूर्ण पाचन छोटी आंत में होता है।
  • वसा भी अमाशय से पचना शुरू होता है।

Human Digestive System ( मानव पाचन तंत्र)

मानव का पाचन तंत्र दो हिस्सों से मिलकर बनता है।

(i) पाचन गुहा / पाचन नली ( alimentary canal)- इसे ही पाचन नली भी कहा जाता है।

( ii) सहायक अंग ( accessory organ ) – इसे ही पाचन ग्रंथियां ( digestive gland) भी कहते हैं।

alimentary canal – जैसे ही हम भोजन को मुंह में रखा वह alimentary canal में पहुंच गया। जब तक यह बाहर नहीं निकल जाता यह इसी alimentary canal में रहता है। यह 33 फीट लंबी नली होती है। इसमें सबसे लंबी छोटी आंत होती है। जिसकी लंबाई 6 से 7 मीटर या 22 फिट होती है।

  • हमारे भोजन का पाचन इसी नली में होता है।
  • यह मुंह ( mouth) से मलाशय ( rectum) तक होता है।

accessory organ – इनका काम पाचन में मदद करना है।

अंग – teeth, tongue, slavery gland, liver, pancreas (अग्न्याशय) , gall blender (पित्ताशय)

part of alimentary canal

  • Mouth ( माउथ) – मुख
  • Fhrynax ( फ्राइनैक्स) – ग्रासिका
  • Oesophagus ( आइसोफेगश) – आहार नली
  • Stomach (स्टोमच) अमाशय
  • Small intestine ( छोटी आंत) इसके 3 भाग है।

i- Dudenum ( ग्रहणी)

ii- Jujenum ( मध्यांतर) सबसे बड़ा 3 से 4 मीटर

iii – Illeum – शेषान्त्र/क्षुद्रांत (सबसे छोटा)

  • large intestine – बृहदांत्र ( इसके भी तीन भाग होते हैं)

(i) cecum ( सीकम)

( ii) Colon ( कोलोन) बृहदांत्र

(iii) Rectum ( मलाशय)

दांत ( Teeth) – हमारे मुंह में दांत दो प्रकार के होते हैं।

(i) milk teeth (दूध के दांत) – जो दूध से बना होता है। पहला दूध का दांत 6 महीने में आता है।

दूध के दांत की संख्या 20 होती है। यह 5 से 6 साल के बाद टूटना चालू हो जाता है।

permanent teeth ( स्थाई दांत)– इसका पहला दांत 6 वर्ष में आता है। इसकी संख्या 32 होती है।

हमारे मुंह में चार प्रकार के दांत होते हैं-

(i) Incisar – कृंतक – भोजन को काटने का काम करता है।

(ii) Canine – रदनक – भोजन को चीरने- फाड़ने का काम करता है।

(iii) premolar -अग्रचर्वणक – भोजन को चबाना या पीसना

(iv) molar – चर्वणक/दाढ़ – भोजन को चबाना है या पीसना

एक दॉत और होता है – wisdom teeth – अक्ल दॉत – यह लगभग 25 वर्ष के उम्र तक आता है। यह सबसे अंतिम molar teeth होता है।

  • इसका कोई काम नहीं है हमारे शरीर में। यह जब आता है तो बहुत दर्द होता है।
  • चूहा कुतरने के लिए किस दांत का प्रयोग करते हैं- कृंतक दांत ( incisor)
  • हाथी का कौन सा दांत बाहर निकला होता है – कृंतक दांत ( incisor)
  • हमारे दांतो के ऊपर जो सफेद परत बनी होती है वह किसकी बनी होती है- इनेमल ( enamel)
  • इनेमल हमारे शरीर का सबसे कठोर तत्व होता है।

जिह्वा / जीभ ( tongue) – इसका काम स्वाद की पहचान करना होता है। हमारे जीभ के 4 हिस्से होते हैं।

  • पहला भाग मीठे ( sweet) का पहचान कराना होता है।
  • दूसरा भाग नमकीन ( salt) स्वाद की पहचान करना होता है।
  • तीसरा भाग खट्टे ( sour) स्वाद की पहचान कराता है।
  • चौथा भाग कड़वे (bitter) स्वाद की पहचान कराता है।

वैज्ञानिक इस तथ्य को नहीं मानते हैं।

लार ग्रंथि ( salivary gland) हमारे शरीर में 3 जोड़ी अर्थात संख्या में 6 लार ग्रंथि होती।

(i) submandibular gland – अधोहनु ग्रंथि

(ii) sublingual gland – अधोजिह्वा ग्रंथि

(iii) parotid gland – कर्णपूर्व ग्रंथि ( सबसे बड़ी लार ग्रंथि होती है)

एक बीमारी होती है tonsil, जिस का वास्तविक नाम mumps ( गलसुआ) होता है यह mumps virus के कारण होता है। यह विषाणु कर्णपूर्व ग्रंथि में सूजन ला देता है जिससे भोजन निगलने में परेशानी होती है।

लार ग्रंथियों के कार्य ( work of salivary gland)

  • यह ग्रंथि लार का स्राव करता है।
  • लार का ph मान 6.8 होता है। लाल का अम्लीय होता है।

नोट – जिसका Ph मान 0-7 होता है उसे अम्ल ( acid) और जिसका 7 – 14 होता है उसे क्षार ( bass) कहते हैं। सबसे strong acid HCL होता है। जिस का Ph मान 0 है। सबसे strong base सोडियम हाइड्रोक्साइड ( NaOH- कास्टिक सोडा ) होता है। जिस का पीएच मान 14 है।

  • लार स्नेहक ( lubricant) की तरह कार्य करता है यानी भोजन को मुलायम बनाता है।
  • हमारे लार ग्रंथियों के द्वारा एक दिन ( 24 घंटे) में 1.5 लार स्रावित होता है।
  • लार में दो एंजाइम होते हैं – i- टाइलिन ii – लाइसोजाइम
  • टाइलिन starch ( मंड) का पाचन करता है। राईलीन भोजन को मीठा बनाता है।
  • पेड़ पौधे अपना भोजन starch के रूप में Store करते है।
  • लाइसोजाइम भोजन में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है। इसे जीवाणु नाशक भी कहा जाता है।

ग्रासिका ( phrynax)

ग्रसिका से दो नली निकले होते हैं। एक फेफड़े में और दूसरा अमाशय में जाता है।

Epiglottis -( कंठच्छद ) भोजन निकलते समय श्वास नली ( wind pipe) के मुख को बंद कर देता है। खाना निगलते समय यह खुलता-बंद होता रहता है।

Food pipe / Oesophagus -आहार नली – यह भोजन को मुख से अमाशय तक पहुंचाता है। यह 23.27 सेंटीमीटर लंबा होता है।

नोट – खाना निगलते समय सांस ले लिए तो epiglottis कंफ्यूज हो जाताा है। की किसे खोलना है और किसे बंद करना है। आहार नली ज्यादा समय बंद रहती है इसलिए उसेे बंद कर देता है और भोजन श्वसन नली में चला जाता है जिससेे छींक आती हैं और भोजन बाहर आ जाता है।

जब सांप कुछ खाता है तो फैलता और सिकुड़ता है,वैसे ही जब हम कुछ खाते हैं और भोजन आहार नली में जाता है तो हमारा आहार नली भी गुर्दा और फैलता है। इस प्रक्रिया को क्रामांकुचन (Paristylisis) कहते हैं।

अमाशय ( stomach)

यह 25 सेंटीमीटर लंबी होती है। भोजन जैसे ही अमाशय में पहुंचता है तो अमाशय है एक रस स्रावित करती है जिसका नाम जठर रस ( gastric juice) होता है।

gastric juice हमारे भोजन में मिलकर क्या करेगा? Gastric juice में 4 एंजाइम होते हैं।

(i) Pepsin – या भोजन में उपस्थित प्रोटीन का पाचन करता है। यह protein को peptide में तोड़ता है।

(ii) renin – यह दूध में उपस्थित कैसीन प्रोटीन का पाचन करता है।

(iii) HCL (hydrochloric acid) – यह pepsin और Renin को कार्य करने के लिए अम्लीय माध्यम ( acidtic medium)तैयार करता है।

(iv) water- HCL ज्यादा strong ना हो इसलिए water होता है।

  • stomach में एक लेयर होता है। जिसका नाम mucas layar (म्यूकस लेयर) होता है। यह mucas layar HCL को stomach wall तक आने से रोकता है।
  • यदि हमारे शरीर में HCL ज्यादा बनने लगेगा तो वह mucas laya को क्षतिग्रस्त कर देगा और HCL stomach wall तक पहुंचकर उसे भी क्षतिग्रस्त कर देगा जिससे एक बीमारी होती है। अल्सर ( ulcer) नासूर / घाव।

अम्लता / अम्लता (acidity) – जब अमाशय ज्यादा HCL स्रावित करनेे लगेेगा तो acidity हो जाता है। Acidity को दूर करने के लिए ENO का प्रयोग करते हैं। जब acid को खत्म करना है तो उसमें bass मिलाना पड़ेगा।

  • HCL + mg(OH)2 (मैग्निशियम हाइड्रोक्साइड) —->

mg C/2 ( salt) + water (H2O) ( मैग्नीशियम क्लोराइड)

  • Acid + bass —–> salt + water बनता है।
  • हमारे अमाशय में मुख्य रूप से प्रोटीन का पाचन हुआ।

छोटी आत ( small intestine)

जैसे ही भोजन Dudenum नाम में आता है यह तीनों ही gland active हो जाते हैं। Liver एक रस bile juice – पित्त रस स्रावित करता है। पित्त रस का Ph मान 7.7 होता है। यह मुख्यता वसा का पाचन करता है। पिता से पित्त रस को Store करता है। अग्न्याशय से भी एक रस स्रावित होता है pancreatic juice -अग्न्याशयी रस।

  • अग्न्याशय रस का pH मान 7.5 से 8.3 तक होता है।
  • यह carbohydrate, fat और protein यानी तीनों का पाचन करता है। कार्बोहाइड्रेट को पचाने के लिए इसमें एक एंजाइम अमाइलेज होता है जो हमारे शरीर में ग्लाइकोजन नामक कार्बोहाइड्रेट का पाचन करता है। वसा को बचाने के लिए लाइपेज नामक एंजाइम होता है। प्रोटीन को पचाने के लिए ट्रिप्सिन एंजाइम व काइमोट्रिप्सिन एंजाइम पाए जाते हैं। इसलिए इसे complete digestive juice ( पूर्ण पाचक रस) भी कहा जाता है।
  • हमारे छोटी आंत में सबसे पहले अग्नाशयी रस आकर मिलता है। इसके बाद पित्त रस आकर मिलता है। पित्त रस में कोई भी एंजाइम नहीं पाया जाता।
  • Dudenum भी एक प्रकार का रस स्रावित करता है। जिसे intestine juice – आंत्र रस कहते हैं। यह कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का पाचन करता है। आंत्र रस में 3 एंजाइम होते हैं माल्टेज, सुक्रेज, लैक्टेज। जो माल्टोज, सुक्रोज और लैक्टोज का पाचन करते हैं। जो कार्बोहाइड्रेट का पाचन करते हैं।
  • प्रोटीन को पचाने के लिए ट्रिप्सिन एंजाइम होता है।
  • जुजेनम मैं भोजन 3 से 4 घंटे तक छोटी आंत के इस हिस्से में सबसे ज्यादा समय तक रहता है।
  • जुजेनम के बाद भोजन इलियम (elleum) में पहुंचेगा यानी छोटी आंत के अंतिम हिस्से में / यहां पर finger type structure होते हैं। जिसे विलाई (रसांकुर ) कहा जाता है।
  • इलियम तब खाना पूरी तरह ( मोनोसैकेराइड, fatty acid, amino acid) से टूट या पच चुका होता है। विलाई भोजन से सारे पोषक तत्वों को चूस कर अपने आसपास Store कर लेता है। और ये पोषक तत्व blood के द्वारा शरीर के सभी अंगों / हिस्सों तक पहुंचा दिया जाता है।
  • छोटी आंत में ही हमारा भोजन पुरी तरह पच जाता है। और भोजन ज्यादा समय के लिए इसी छोटी आत में रहता है।
  • छोटी आत के द्वारा 1 दिन में 6-7 लीटर आंत्र रस का स्राव होता है।

पित्त रस ( Bili juice) इसका स्राव liver के द्वारा होता है।

  • यह greenish yellow sticky fluid हरे पीले रंग का चिपचिपा द्रव होता है।
  • इसका हरा रंग Biliberdine के कारण, पीला रंग Bilirubin के कारण और चिपचिपा cholesterol के कारण होता है।
  • Bili juice ज्यादा स्रावित होने लगेगी तो रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ जाएगी और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाएगा।

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