जैव मंडल

जैव मंडल

जैव मंडल पारितंत्र का सबसे बड़ा उदाहरण है पारितंत्र की भांति जैव मंडल के भी 3 घटक होते हैं।
1- जैव घटक – उत्पादक ,उपभोक्ता , अपघटक
2 – अजैव घटक – स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल
3 – ऊर्जा घटक – ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्य है।
जीवो की उपस्थिति स्थलमंडल, जलमंडल तथा वायुमंडल में जहां तक होती है उसी को जैवमंडल कहते हैं।
जैव मंडल को समझने के लिए पारितंत्र व पारिस्थितिकी तथा उससे संबंधित संकल्पनाओं को समझना होगा।

पारितंत्र अथवा पारिस्थितिकी तंत्र शब्द का उपयोग सर्वप्रथम ए.जी. टांसली ने 1935 मे किया था । पारितंत्र भौतिकी उपस्थिति वाला होता है । इसका निर्माण उपरोक्त तीन घटको से मिलकर हुआ है। यह विवृत तंत्र होता है। यह विभिन्न अकारो व प्रकार का होता है पारिस्थितिकी एक संकल्पना है जिसके अंतर्गत विभिन्न जीवो के मध्य तथा जैव एवं अजैव घटक के मध्य विद्यमान संबंधों का अध्ययन किया जाता है परिस्थितिकी शब्द का उपयोग अर्नेस्ट हैकेल ने सर्वप्रथम किया।

पारितंत्र व पारास्थितिकी की विशेषताएं
1- तीन घटक – जैव,अजैव, ऊर्जा
2- ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्य है।
3- ऊर्जा का प्रवाह एक दिशीय तथा ऊष्मागतिकी नियम के आधार पर होता है।
4 – तीनों घटकों में अंतः क्रिया होती है।
5 – भूजैवरसायन चक्रों के माध्यम से पोषक तत्वों का जैवमंडल में संचरण होता रहता है।
6- पारितंत्र के विकास वह संवर्द्धन के कई अनुक्रम होते हैं विकास की संक्रमण कालीन अवस्थाओं को सेरे कहते हैं।
इस तरह सेरे श्रृंखला बद्ध विकास को प्रदर्शित करता है जो प्राथमिक अनुक्रम से प्रारंभ होकर अंतिम अनुक्रम पर समाप्त होता है जिसे जलवायु चरम अवस्था कहते हैं।

प्राकृतिक पारितंत्र में अंत:निर्मित स्वत: नियंत्रण की व्यवस्था होती है जिसे होमियोस्टैटिक मैकेनिज्म कहते हैं। यदि पारितंत्र के किसी घटक में अवांछित परिवर्तन होता है तो प्राकृतिक होमियोस्टैटिक मैकेनिज्म व्यवस्था के द्वारा पुन: पारितंत्र को संतुलित करती है जब अवांछित परिवर्तन प्रकृति की सहनशीलता से अधिक हो जाता है तो पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।
आहार श्रृंखला में बढ़ते पोषण स्तर के साथ ऊर्जा हास्य की दर बढ़ती जाती है जिसे लिंडेमान का नियम या 10% का नियम भी कहते हैं।

जैविक अनुक्रम

किसी पारितंत्र में वनस्पति के एक समुदाय के दूसरे समुदाय में प्रतिस्थापन को जैविक अनुक्रम कहते हैं। क्रमक या सेरे श्रृंखलाबद्ध विकास का संक्रमण कालीन अवस्था का धोतक होता है। जबकि पारितंत्र की प्राथमिक समुदाय विकास के सोपान को पार करते हुए स्थिर दशा को प्राप्त कर लेता है तो उसे जलवायु चरम समुदाय कहते हैं क्लीमेंटस ने जैविक अनुक्रम की पांच अवस्थाओ का वर्णन किया है।

1 – विवृस्तीकरण
2- प्रवास
3- आस्थापन
4- प्रतिक्रिया ( स्पर्धा )
5 – स्थिकरण

उन्होंने जैविक अनुक्रम के दो प्रकार बताए हैं

1- प्राथमिक जैविक अनुक्रम – जब किसी क्षेत्र में पहली बार वनस्पति का विकास होता है तो उन्हें उसके लिए प्राथमिक जैविक अनुक्रम शब्द का उपयोग किया।

  1. द्वितीयक जैविक अनुक्रम – जब प्राकृतिक व मानवीय कारणों से जैविक समुदाय के विकास में विघ्न पड़ जाता है तो विकास की दूसरी प्रक्रिया आरंभ होती है जिसे द्वितीयक जैविक अनुक्रम कहते हैं।
    [16:02, 04/04/2022] Surjit: प्राणी अथवा जंतु प्रदेश

ए० आर० वैलास ने सर्वप्रथम विश्व का 1876 में जंतु प्रदेशों में वर्गीकृत करने का प्रयास किया। बाद में जे0 डालिंगटन, इलिस, नील आदि ने विश्व को प्राणी प्रदेशों में वर्गीकृत करने का प्रयास किया।

विश्व के प्रमुख प्राणी प्रदेश

1- पूरा आकृतिक प्रदेश –
(पैलियोआर्कटिक ) – यूरोप एवं मध्य व उत्तरी एशिया

2 – नूतन आर्कटिक- उत्तरी अमेरिका, ग्रीनलैंड

3 – प्राच्य प्रदेश ( ओरिएंटल प्रदेश) –
उत्तर व दक्षिण पूर्वी एशिया

4- इयोनियन- अफ्रीका
5 – ऑस्ट्रेलियन
6 – नवायनवृत्तीय ( नियोट्रपिकल) – उत्तरी अमेरिका आएगा

वायोम या जीवोम

जैव मंडल को वनस्पति के आधार पर जैविक कटिबंधो में वर्गीकृत करते हैं वनस्पति प्रधान पारितंत्र फार्मेशन कहते हैं । वनस्पतियों एवं प्राणियों के समुच्चय को वायोम कहते हैं।

वायोम के प्रकार –

  • वन वायोम
  • घास वायोम
  • मरुस्थलीय वायोम

मोटे तौर पर अग्रलिख़ित वायोम पृथ्वी पर पाए जाते हैं –

स्थलीय वायोम

1 – विषुवत रेखीय वायोम
2- मानसूनी वायोम
3 – सवाना वायोम
4 – भूमध्य सागरीय वायोम
5 – शीतोष्ण कटिबंधीय घास वायोम
6- उष्णकटिबंधीय घास वयोम
7 – टेंगा वायोम
8 – टून्र्डा वायोम
9 – मरुस्थलीय वायोम

2 – सागरिया वायोम :- इसमें लंबवंत स्तर पर प्लेंकटन नेक्टन एवं वेयस में वर्मिकृत करते हैं।
1 – प्लेंकटन – पादप प्लेंकटन एवं प्राणी प्लेंकटन ( शैवाल और डायटम )
2 – नेक्टन – तैरने वाले जंतु
3 – वेन्थस – नितल के आस पास रहने वाले
1- एपी प्लोरा , एपी फना नितल पर पाए जाने वाले
2- इन प्लोरा , इन फना ( नितल नीचे पाए जाने वाले)

सागरिया वायोम को पैलेजीक और नितलीय ( Benthic) में बांट सकते हैं।

विषुवत रेखीय वायोम

  • अक्षांशीय विस्तार – भूमध्य रेखा के आसपास
  • वर्षा- 200 सेंटीमीटर से अधिक
  • प्रतिदिन दोपहर के बाद वर्षा
  • रात मे शीत ऋतु होती है।।
  • सदाबहार वनस्पति –
    गद्दा पर्ची रबर , अवोनी, ताड़, बांस ,वेत, महोगनी

वनस्पतियों का लंबवत स्तरी क्रम है – 5 स्तर

2 – मानसूनी वायोम – उत्तरी एवं दक्षिण पूर्व एशिया प्रमुख रूप से

  • पतझड़ वनस्पति
  • मानसूनी हवाओं ( उत्तरी पूर्वी मानसूनी ) द्वारा

3 – भूमध्यसागरीय एवं सागरीय वायोम

1- 30-45° अक्षांशों के मध्य महाद्वीपों के पश्चिम भाग में
2- वर्षा शीत ऋतु में
3- रसदार फल के लिए प्रसिद्ध
4- प्रमुख झाड़ीया –
उत्तरी अफ्रीका – फाइन कस
कैलिफोर्निया चैपरल मध्य अमेरिका ( मैली )

शीतोष्ण कटिबंधीय घास वायोम

  • स्टेपी जलवायु( 30-45°) महाद्वीपों के आंतरिक भाग
  • प्रेयरी ( उत्तरी अमेरिका )
  • स्टेपी ( मध्य एशिया )
  • पंपास ( अर्जेंटीना )
  • वेल्ड ( उत्तरी अफ्रीका)
  • कैंटटवरी ( न्यूजीलैंड)
  • पुस्ताज ( हंगरी )

सवाना वायोम

  • 10-30° अक्षांश महाद्वीपों के आंतरिक भाग
  • हाथी घास
  • अफ्रीका महाद्वीप में अधिक विस्तार

उष्णकटिबंधीय घास वायोम

  1. सवाना घास
  2. लानोसर ( वेनेजुएला)
  3. कंपास ( ब्राजील )

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