पृथ्वी की आंतरिक संरचना

पृथ्वी की आंतरिक संरचना

पृथ्वी की आंतरिक संरचना

  • पृथ्वी की सतह पर निर्मित प्राथमिक एवं द्वितीयक स्थलाकृति की उत्पत्ति का संबंध पृथ्वी के आंतरिक भागों से उत्पन्न अंतर्जनित बलों से हुआ है। इस बल से संबंधित विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए पृथ्वी के आंतरिक भाग का अध्ययन करना जरूरी है।
  • भूकंप, ज्वालामुखी क्षेत्र आदि के साथ-साथ पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन सौरमंडल की उत्पत्ति और विकास को समझने में भी सहायक हो सकता है।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना के प्रमुख साक्ष्य

प्रत्यक्ष प्रमाण पर आधारित स्रोत

  • चट्टाने (सतह और आंतरिक भाग की चट्टाने)

अप्रत्यक्ष प्रमाणों पर आधारित स्रोत

  • घनत्व
  • तापमान
  • दबाव
  • गुरुत्वाकर्षण बल
  • चुंबकत्व
  • ये अप्राकृतिक स्रोत हैं।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में जानकारी देने वाले स्रोत

अप्राकृतिक स्रोत

तापमान, दबाव, घनत्व

पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित तथ्य

प्राकृतिक स्रोत-

ज्वालामुखी उदगार एवं भूकंप

पृथ्वी की आंतरिक संरचना के संबंध में जानकारी देने वाले स्रोतों को हम प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष स्रोतों के रूप में भी वर्गीकृत कर सकते हैं।

अप्रत्यक्ष स्रोत

तापमान, दाब, घनत्व, गुरुत्वाकर्षण बल, चुंबकीय क्षेत्र, भूकंप, उल्का पिंड

प्रत्यक्ष स्रोत

  • पृथ्वी की सतह को आंतरिक भागो से प्राप्त चट्टाने, ज्वालामुखी मिश्रित पदार्थ

अप्राकृतिक साक्ष्य

घनत्व

  • पृथ्वी का औसत घनत्व- 5.5 GCM-3
  • क्रस्ट का औसत घनत्व- 3 GCM-3
  • कोर का घनत्व- 11.3GCM-3

 निष्कर्ष

  • सतह से केंद्र की ओर जाने पर घनत्व में वृद्धि
  • आंतरिक परतो के ठोस अवस्था में होने के संकेत

सीमाएं

  • वाह्य कोर तरल अवस्था मे ( भूकंप शास्त्रीय मत के अनुसार)
  • प्रत्येक पदार्थ के अधिकतम घनत्व की एक सीमा होती है उस सीमा के बाद दबाव बढ़ाने के बावजूद घनत्व नहीं बढ़ सकता।
  • पृथ्वी के अंतरतम के अधिक घनत्व का एकमात्र कारण दाब नहीं है, वरन लोहा और निकिल जैसे भारी तत्वों की उपस्थिति एक बड़ा कारण है।

तापमान

  • पृथ्वी की सतह से नीचे जाने पर प्रति 100 मीटर पर 2- 3 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में वृद्धि।
  • इससे आंतरिक परतों के पिघली हुई अवस्था में होने का संकेत।

सीमाएं

  • मेंटल तथा आंतरिक कोर के ठोस अवस्था में होना (भूकंपशास्त्रीय मत के अनुसार)
  • सतह  से केंद्र की तरफ जाने पर तापमान में वृद्धि दर कम होती जाती है।
  • चुकी सतह से केंद्र की तरफ जाने पर दाब में वृद्धि होने से गलनांक बिंदु भी बढ़ता जाता है इस कारण कोई पदार्थ अपेक्षाकृत अधिक तापमान पर भी ठोस अवस्था में रह सकता है।
  • पृथ्वी को अपनी आकृति को बनाए रखना मुश्किल होगा।

दाब

  • पृथ्वी की सतह से केंद्र की तरफ जाने पर विभिन्न परतों के मोटाई बढ़ते जाने के कारण दाब भी बढ़ता जाता है।
  • इस आधार पर तापमान के अत्यधिक होने के बावजूद आंतरिक परतों के ठोस अवस्था में होने के संकेत मिलते हैं।
  • मेंटल तथा आंतरिक कोर के ठोस अवस्था में होने का एक कारण दाब भी है।

सीमाएं

  • वाह्य कोर तरल अवस्था में।

उल्का पिंड

  • उल्का पिंड हमारी सौरमंडल का अभिन्न अंग है।इसलिए पृथ्वी की आंतरिक भागों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का एक प्रमुख स्रोत है।
  • महाविस्फोट सिद्धांत के अनुसार सभी ब्राह्मणीय पिंड का निर्माण एक ही पिंड से हुआ है।

सीमाएं

  • जिस प्रकार हम पृथ्वी के अध्ययन को शनि ग्रह के अध्ययन का आधार नहीं बना सकते उसी प्रकार पृथ्वी के अध्ययन के बारे में उल्का पिंड की अपनी सीमाएं हैं।

गुरुत्वाकर्षण बल

  • हम जानते हैं की गुरुत्वाकर्षण बल का मान भूमध्य रेखा से ध्रुव की तरफ बढ़ता जाता है।
  • गुरुत्वाकर्षण बल का मान पदार्थों के द्रव्यमान के मान के अनुसार भी बदलता है।अर्थात गुरुत्व विसंगति भी पृथ्वी के आंतरिक भागों के अध्ययन का एक प्रमुख साधन हो सकता है।

चुंबकीय क्षेत्र

  • चुंबकीय सर्वेक्षण भी भूपर्पटी में चुंबकीय पदार्थों के वितरण की जानकारी देते हैं।

पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धांतों के साक्ष्य

चैंम्बरलीन की ग्रहाणु परिकल्पना

  • इनके अनुसार पृथ्वी को ठोस पदार्थों द्वारा निर्मित माना गया है।
  • इनके अनुसार इस आधार पर पृथ्वी का अंतरतम ठोस अवस्था में है।

जेम्स जींस की ज्वारीय परिकल्पना

  • इनके अनुसार पृथ्वी का निर्माण सूर्य से निसृत पदार्थों से हुआ है इस आधार पर पृथ्वी का अंतरतम तरल अवस्था में होना चाहिए।

लाप्लास की वायव्य परिकल्पना

  • इसके अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति गैस से बनी निहारिका से हुई है।
  • इस आधार पर पृथ्वी का अंतरतम वायव्य अवस्था में होनी चाहिए।
  • हालांकि लाप्लास ने पृथ्वी की अंतरतम को तरल अवस्था में माना है।

सीमाएं

  • अनुमान पर आधारित, वैज्ञानिक नहीं।

प्राकृतिक स्रोत

ज्वालामुखी

  • ज्वालामुखी पृथ्वी के आंतरिक भागों के जानकारी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
  • ज्वालामुखी प्रक्रिया से पृथ्वी के आंतरिक भागों से आने वाले मैग्मा से इस बात के संकेत मिलते हैं कि पृथ्वी के आंतरिक भागों के कुछ क्षेत्र अपेक्षाकृत कम ठोस (Less Solid Form) चट्टानों से युक्त है। जिसे वर्तमान में दुर्बल मंडल (100-400 मीटर) तथा प्लास्टिक मंडल के मध्य में संयोजित किया जाता है।

भूकंप

  • भूकंपीय तरंगों का अध्ययन पृथ्वी के आंतरिक भागों की जानकारी के संदर्भ में वर्तमान में एक प्रमुख स्रोत बन कर उभरा है।
  • भूकंप के दौरान ऊर्जा निकलने के कारण तरंगे उत्पन्न होती हैं जो सभी दिशाओं में फैल कर भूकंप लाती हैं।

भूकंपीय तरंगो के प्रकार

भूगर्भिक तरंगे- P, S

 NOTE-

  • P जहां सभी पदार्थों से गुजर सकती है, वही S द्रव पदार्थों में लुप्त हो जाती है।

  धरातलीय तिरंगे -L

  • यह पृथ्वी के धरातलीय सतह में उत्पन्न होती है।

NOTE

  • P का वेग सर्वाधिक तथा L का सबसे कम होता है।
  • P की आवृत्ति अधिक होने के कारण यह विनाशकारी नहीं होती है वहीं L की आवृत्ति कम तथा तरंगदैर्ध्य अधिक होने के कारण वेग कम होने के बावजूद अत्यंत विनाशकारी होती है।
  • भूकंप शास्त्रीय अध्ययन के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना समझने में काफी मदद मिली है।

पृथ्वी का रासायनिक संगठन एवं विभिन्न परत

स्वेस के अनुसार पृथ्वी की आंतरिक संरचना

स्वेस नामक विद्वान ने पृथ्वी की रासायनिक संरचना के विषय में प्रकाश डाला। उनके अनुसार भूपटल का ऊपरी भाग परतदार शैलो से मिलकर बना है। इसके घनत्व व भार काफी कम है। यह परत सिलीकेट पदार्थों से मिलकर बनी है। एवं सिलिकेट निर्मित परत के नीचे 3 परतो की कल्पना स्वेस ने की ।

1- सियाल।

2- सीमा

3- निफे

सियाल  –  इस परत की रचना ग्रेनाइट नामक चट्टान से हुई है। सिलिका तथा एलुमिनियम तत्वों से निर्मित होने के कारण इसे उन्होंने सियाल नाम दिया। इसका औसत घनत्व 2.9 तथा इसकी औसत गहराई 50 से 300 किलोमीटर तक मानी गई। विशेषकर महाद्वीप की रचना सियाल से ही मानी जाती है

सीमा – इसकी रचना बेसाल्ट नामक अग्नि तत्व से मानी गई है। सियाल के नीचे स्थित इस परत को सिलिका तथा एलुमिनियम की प्रधानता के कारण सीमा नाम दिया गया । यहीं से ज्वालामुखी तत्व बाहर आते हैं। क्षारीय तत्वों की प्रधानता वाले इस परत की गहराई 1000 से 2000 किलोमीटर तक है।

नीफे –  निकिल तथा लोहे की प्रधानता से युक्त यह परत तीसरी व अंतिम है। कठोर धातुओं से बने इस परत का घनत्व सर्वाधिक(11) है। लोहे की मुख्य स्थिति वाला यह परत पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति का मुख्य स्रोत है। 

  • आर्थर होम्स ने पृथ्वी को भूपटल तथा अध:स्तर नामक 2 परतो में विभाजित किया।
  • भूकंपीय तरंगों पर आधारित आधुनिक मत के अनुसार वर्तमान में पृथ्वी के आंतरिक संरचना को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है।

1- भूपर्पटी/क्रस्ट

2- मेंटल/प्रवाह

3- कोर

पृथ्वी की आंतरिक संरचना

   पृथ्वी के अंतररूप की भौतिक विशेषताओं से संबंधित अब तक दिए गए साक्ष्यो में भूकंपशास्त्र के अध्ययन के द्वारा पृथ्वी की आंतरिक संरचना की तार्किक व वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा सकता है।

  पृथ्वी की सतह पर अकस्मिक भूसंचलन द्वारा उत्पन्न भूकंपीय तरंगों के वेग में अंतर के आधार पर Pg, Sg, और P,S में वर्गीकृत किया जाता है। भूकंपीय तरंगों के वेग का पदार्थों के घनत्व से सीधा संबंध होता है सतह से केंद्र की ओर जाने पर भूकंपीय तरंगों के वेग में वृद्धि होने से चट्टानों के घनत्व में वृद्धि के प्रमाण मिलते हैं

                    फोटो

   वेग में होने वाले परिवर्तन के आधार पर ही प्रारंभ में पृथ्वी को 3 परतों में वर्गीकृत किया गया। इसके ऊपरी परत में Pg,Sg मध्यवर्ती परत में PQ, SQ तथा निचली परत में P,S का प्रभाव होता है। इन भूकंपीय तरंगों में Pg,Sg का वेग सबसे कम तथा P,S का वेग सर्वाधिक होता है।

   भूकंपशास्त्र पर आधारित अभिनव मत के अनुसार पृथ्वी की आंतरिक संरचना को तीन मुख्य परतों में वर्गीकृत किया गया है।

       (I) क्रस्ट

       (ii) मेंटल

      (III)  कोर

क्रस्ट

    पृथ्वी की सतह से मोहो़ अवसांतत्य तक के ऊपरी परत को क्रस्ट कहते हैं।  इस परत में Pg, Sg तरंगों की प्रभाव होने के कारण इसे ठोस पदार्थों से निर्मित परत माना जाता है। जहां पहले यह माना जाता था कि क्रस्ट के ऊपरी तथा निचली परतो के रसायनिक विशेषताओं में अंतर होता है वही वर्तमान में यह प्रमाणित हो चुका है की दोनों परतों की रासायनिक विशेषताओं में समानता होती है तथा दाब में वृद्धि होने के कारण क्रस्ट की निचली परत का घनत्व ऊपरी परत से अधिक हो जाता है।

 मेंटल

  मोहो से गुटेनबर्ग विचर्ट और अवसांतत्य तक की परत को मेंटल कहते हैं । P तथा S तरंगों की प्रभावशीलता के कारण इसे ठोस पदार्थों से निर्मित परत माना जाता है मोहो और अवसांतत्य के बाद P तथा S तरंगों की वेग में वृद्धि होती है परंतु 100 से 200 किलोमीटर तब की गहराई में P तथा S तरंगों की वेग में वृद्धि की दर कम हो जाती है मेंटल के ऊपरी परत में स्थित निम्न वेग वाले क्षेत्र ( low velocity of zone) को दुर्बलता मंडल ( asthenosphere) अथवा प्लास्टिक मंडल के नाम से जाना जाता है।

ज्वालामुखी पदार्थों की दृष्टिकोण से यह क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है । इसके तरंगों की वेग में वृद्धि हो जाती है।

 रैपिटी अवसांतत्य के बाद भूकंपीय तरंगों के वेग में और भी वृद्धि हो जाती है इससे नीचले मेंटल की परतो का घनत्व ऊपरी मेंटल के तुलना में अधिक होने की पुष्टि होती हैं। उल्लेखनीय है कि क्रस्ट तथा ऊपरी मेंटल के ऊपरी परत के मिलने से विवर्तनिक प्लेटों का निर्माण होता है।सभी प्लेटों के सामूहिक योग को सम्मिलित रूप से स्थलमंडल कहते हैं जो दुर्बल मंडल के ऊपर तैर रहे हैं।

          कोर/अंतरतम

   गुटेनबर्ग और अवसांतत्य से पृथ्वी के केंद्र तक की परत को अंतरतम के नाम से संबोधित किया जाता है। गुटेनबर्ग अवसांतत्य के S तरंगों लुप्त हो जाती है तथा P तरंगों की वेग में वृद्धि की दर भी कम हो जाती हैं। इससे गुटेनबर्ग से लेहमान अवसांतत्य तक के कोर के ऊपरी परत के तरल अवस्था में होने की पुष्टि होती है। इसे वाह्य कोर के नाम से जाना जाता है। वाह्य कोर पृथ्वी की चुंबकीय प्रभाव शीलता का प्रमुख निर्धारक हैं।

   लेहमान अवसांतत्य के बाद आंतरिक परतों को आंतरिक कोर के नाम से जाना जाता है। यहां P तरंगों का वेग सर्वाधिक होता है।अत्यधिक दबाव के कारण इस परत के जमी हुए अवस्था में होने की पुष्टि होती है 

उल्लेखनीय है कि प्रत्येक पदार्थ की एक प्रत्यास्था सीमा होती है उसके बाद में दबाव में वृद्धि के बावजूद भी घनत्व में वृद्धि नहीं हो सकती है। इन्हीं कारणों से पृथ्वी की आंतरिक कोर के घनत्व में वृद्धि की अधिकता के कारण वहां उपस्थित भारी तत्वों अथवा निकेल व लोहा को बताया जा रहा है।

    

  

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