संभववाद

संभववाद

    मानव पर्यावरण के अंर्तसंबंधों पर आधारित संभववाद एक ऐसी विचारधारा है जिसमें मानव को विजेता के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में जब नियतवादी विचारधारा अपने चरम पर थी , तो उसी समय फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं ने नियतिवाद की आलोचना करते हुए कहा कि मानव प्राकृतिक पर्यावरण का एक घटक ही नहीं बल्कि प्राकृतिक पर्यावरण में परिवर्तन की क्षमता रखता है। अर्थात मानव समुदाय प्राकृतिक पर्यावरण में सर्वाधिक शक्तिशाली होते हैं।

   लूसियन फैब्रे ने अपनी पुस्तक ‘geographical introduction to history’ में पहली बार संभववाद शब्द का प्रयोग किया। उनके अनुसार कहीं भी अनिवार्यता नहीं बल्कि सर्वत्र संभावनाएं और मानव इन संभावनाओं के स्वामी के रूप में उनके प्रयोग का निर्णायक है।

संभववाद को एक विचारधारा के रूप में स्थापित करने का श्रेय वाइडल डी ला ब्लाश को जाता है। उन्होंने संभववादी विचारधारा को स्पष्ट करते हुए कहा कि प्राकृतिक पर्यावरण द्वारा मानव समुदायों को उपलब्ध कराए गए विकल्पों में मानव अपनी आवश्यकताओं की शर्तो के लिए स्वतंत्र होता है। उनके अनुसार प्रकृति का स्थान सलाहकार से अधिक नहीं हो सकता है। अर्थात ‘nature is never than advisor’ उन्होंने अपनी genre de vie ( life style) अर्थात विशिष्ट जीवन पद्धति की संकल्पना के माध्यम से स्पष्ट किया कि मानव समुदाय की जीवन शैली प्राकृतिक पर्यावरण में परिवर्तन का सामर्थ्य रखती है।

  ब्लाश की विचारधारा के समर्थक ब्रुंश व डिमांजिया ने भी मनुष्य एवं उसके कार्यों को प्रमुख स्थान दिया।

 डिमांजिया ने तो मानवीय क्रियाकलापों की महन्ता को स्पष्ट करते हुए कहा कि उपजाऊ मिट्टी में तब तक खेती की नहीं जा सकती जब तक मनुष्य अपनी शक्ति एवं तकनीकी का उपयोग नहीं करता। इसी तरह अमेरिकी भूगोलवेत्ता ईशा बोमैन ने संभववाद की विचारधारा का समर्थन किया है।

     इस तरह से देखा जाए तो इन विचारधारा के समर्थकों का यह स्पष्ट विश्वास है की मनुष्य प्रकृति से सहयोग प्राप्त करता है। उससे प्रभावित भी हो सकता है। किंतु उसके नियंत्रण में कदापि भी नहीं रहता है।

  इस विचारधारा का ही प्रभाव था कि औद्योगिक क्रांति के समय मानव समुदाय द्वारा तकनीकी विकास द्वारा संसाधनों के दोहन को बढ़ावा देकर आर्थिक विकास को गति प्रदान की गई।

  संसाधनों के अति दोहन के कारण पर्यावरण अवनयन जैसे गंभीर समस्याएं उत्पन्न होने लगी। इस विचारधारा के आधार पर विकसित आर्थिक निश्चयवादी उपागम ने मनुष्य को प्राकृतिक संसाधनों का स्वामी घोषित कर दिया, परिणाम यह हुआ कि पर्यावरण आपदा एवं अवनयन वर्तमान वैश्विक सभ्यता के समक्ष अस्तित्व के संकट के रूप में मुंह बाए खड़ा है।

    इस तरह से देखा जाए तो उनका दृढ़ विश्वास है कि मनुष्य प्रकृति से सहयोग प्राप्त करता है और उससे प्रभावित भी हो सकता है लेकिन उसके नियंत्रण में कदापि ही नहीं।

     वर्तमान संदर्भ में यदि संभववाद की व्यवहारिकता को परखा जाए तो ये सही है कि मनुष्य ने अपने कौशल के बल पर ऐसी- ऐसी वस्तुओं का निर्माण किया है तथा प्रतिकूल स्थानों पर रहने योग्य आवास निर्माण किया है जिससे कुछ हद तक यह विचारधारा सही लगती है। लेकिन उसके ऐसी गति ने प्रकृति को क्रोधित कर दिया है जिससे मानव आपदाओं के ढेर पर बैठ गया है यदि वह अपनी गतिविधि ऐसे जारी रखता है तो प्रकृति जब अपना कहर ढायेगी तो सभ्यता की सभ्यता को नष्ट होने में देर नहीं लगेगा। वर्तमान समय में प्रकृति ने कई आपदाओं के रूप में अपना रूद्र रूप दिखा भी दिया है। इसी कारण नव नियतिवाद की संकल्पना वर्तमान समय में ज्यादा प्रसांगिक है जो प्रकृति के साथ मानव के समायोजन पर बल देती है।

   संभववाद वर्तमान में मानववाद एवं कल्याणवाद के रूप में भूगोल में फल-फूल रहा है।

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