बाल मनोविज्ञान / बाल विकास

   गर्भावस्था, शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था अर्थात 0 से लेकर 18 वर्ष की बालकों की अवस्था का अध्ययन ही बाल मनोविज्ञान या बाल विकास कहलाता है।

    बाल मनोविज्ञान – गर्भावस्था से लेकर किशोरावस्था तक के बालकों का अध्ययन। 

      बर्क (अमेरिका) बाल मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है जिसमें बालकों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

      बाल मनोविज्ञान को सबसे पहले परिभाषित किया।

     पेस्टालॉजी – बाल मनोविज्ञान का वैज्ञानिक अध्ययन (अपने 3 वर्षीय पुत्र के ऊपर अध्ययन)

      पुस्तक– baby biography

    स्टेनलीहोल – प्रश्नावली का निर्माण, बाल मनोविज्ञान के जनक

    क्रो एंड क्रो – बीसवीं शताब्दी बालकों का काल।

                   अभिवृद्धि और विकास

   अभिवृद्धि – अभिवृद्धि का अर्थ होता है बढ़ना, 

  • कोशिकाओं में बढ़ोतरी
  • इसका संबंध शारीरिक पक्ष से होता है
  • एकाकी/एक पक्षीय
  • लंबाई, चौड़ाई एवं आकार में वृद्धि
  • संख्यात्मक/मात्रात्मक
  • निश्चित समय होता है।
  • अभिवृद्धि संकीर्ण होती है।
  • अभिवृद्धि में विकास में ही नहीं होता है।
  • वह्य स्वरूप होता
  • मापा या तौला जा सकता हैं।

विकास – कार्य क्षमता को दर्शाता है।

  • जन्म से लेकर मृत्यु उपरांत चलने वाली प्रक्रिया।
  • संवेगात्मक, नैतिक , मानसिक और शारीरिक पक्ष सभी से होता है।
  • कार्यरत क्षमता में वृद्धि
  • संख्यात्मक+गुणात्मक 
  • विकास व्यापक होता है।
  • विकास में वृद्धि निहित होती है।
  • वाह्य + अंतरिक 
  • मापा या तौला नहीं जा सकता

     जीवन के आरंभिक समय में अभिवृद्धि तेजी से होती है जबकि विकास धीमा होता है।

    जीवन के अंतिम समय में अभिवृद्धि धीमी होती है जबकि विकास तेजी से होता है।

               अभिवृद्धि व विकास के प्रमुख नियम / सिद्धांत

   1- सतत्ता का सिद्धांत / निरंतरता का सिद्धांत – 

   2- व्यक्तिगता का सिद्धांत –

   3- परिमार्जिता का सिद्धांत – 

   4- समान प्रतिमान का सिद्धांत – अभिवृद्धि और विकास प्राणी के प्रतिमान के अनुसार होती है।

   5- चिक्राकार प्रगति का नियम – अभिवृद्धि और विकास रेखीय ना होकर चक्राकार होती है।

   हरलॉक (लेडीस) मनुष्य का जीवन घंटी की आकृति के समान होता है।

   6- सामान्य से विशिष्ट की ओर – 

   7- निश्चित पूर्व कथनीय सिद्धांत

         i- मस्तबोध मुखी नियम – सिर से पैर की ओर वृद्धि और विकास होता है।

         ii- केंद्र से सिरों की ओर- 

   8- वातावरण और वंशानुक्रम की अंतः क्रिया का सिद्धांत- 

फ्रैंक – प्रत्येक व्यक्ति, की जीवन यात्रा एक चौड़ा मार्ग हैं जिस पर प्रत्येक व्यक्ति को चलना पड़ता है।

 गैसले- व्यक्तिगत विभिन्नता का फैलाव उतना है जितना मानव जाति का है।

       विकास के परिवर्तन

  1- आकार में परिवर्तन – 

           i- शारीरिक परिवर्तन – लंबाई, चौड़ाई, भाऱ में परिवर्तन

          ii- – मानसिक परिवर्तन – चित्त, चिंतन, मनन, सोच, विचार, बुद्धि, संप्रत्यय।

   2- अनुपात में परिवर्तन – शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक, भाषाई पक्ष

   3- पुराने चिन्हों का लोप – कच्चे दाद, दूध के दांत, अस्थाई दांत, बोली /आवाज, बाल ।

   4- नई चिन्हों का उदय – अस्थाई दांत का आना, दाढ़ी मूंछ के बाल आना,

      अभिवृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक

  • वंशानुक्रम 50%
  • बुद्धि- 
  • वातावरण 50% सर्वाधिक प्रभावित करता है।
  • रोग /दुर्घटना/ चोट ग्रस्त
  • परिवार/समाज/देश
  • संस्कृति और सभ्यता

विकास की अवस्थाएं

गर्भावस्था – जीरो से जन्म तक – 9 माह 10 दिन

                 भ्रूण से जन्म – 280 दिन

शैशवावस्था – 5 वर्ष का आरंभ 6 वर्ष का अंत

बाल्यावस्था – 12 वर्ष का अंत 13 वर्ष का प्रारंभ

किशोरावस्था – 13 वर्ष का प्रारंभ और 18 वर्ष का अंत

  प्रौढ़ावस्था – 19 वर्ष से ऊपर

विकास के पक्ष

  शारीरिक विकास

  मानसिक विकास

  सामाजिक विकास

  नैतिक विकास

  भाषा विकास

                     शैशवावस्था

जन्म से 5 वर्ष का अंत और 6 वर्ष का आरंभ तक माना जाता है।

स्टैंग – जीवन के प्रथम 2 वर्षों में बालक अपने भावी जीवन का शिलान्यास करता है।

ब्रिजेस – 2 वर्ष की उम्र तक बालक में लगभग सभी संवेगों का विकास हो जाता है।

जे.न्यूमेन – 5 वर्ष तक की अवस्था शरीर व मस्तिष्क के लिए बड़ी ग्रहणशील रहती है।

क्रो एंड क्रो- बीसवीं शताब्दी बालकों की शताब्दी है।

वैलेंटाइन- शैशवावस्था सीखने का आदर्श काल है।

हरलॉक महोदया – शैशवावस्था एक खतरनाक काल एवं अपीली काल है।

सिगमंड फ्रायड – 4 से 5 वर्ष में बालक वह बन जाता है जो भावी जीवन में बनता है।

गुडएनफ – व्यक्ति का मानसिक विकास कितना होता है उसका आधा 3 वर्ष में हो जाता है।

रॉस – शिशु कल्पना का नायक है अतः उसका भली प्रकार निर्देशन अपेक्षित है।

एडलर – शिशु के जन्म के कुछ समय बाद ही यह निश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में उसका स्थान क्या है।

गैसल – बालक प्रथम 6 वर्ष में बाद के 12 वर्ष से भी दुगना सीख जाता है।

सिगमंड फ्रायड के अनुसार – शिशु में काम प्रवृत्ति बहुत प्रबल होती है पर वयस्कों की भांति उसकी अभिव्यक्ति नहीं होती है।

वाटसन के अनुसार – शैशवावस्था में सीखने की सीमा व तीव्रता विकास की अन्य अवस्था से बहुत अधिक होती है।

रूसो के अनुसार – बालक के हाथ, पैर व नेत्र उसके प्रारंभिक शिक्षक हैं। इन्हींं के द्वारा वह पहचान सकता है, सोच सकता है और याद कर सकता है।

उपनाम – इस अवस्था में चिंतन अतार्किक होता है।

  • जीवन का महत्वपूर्ण काल।
  • खिलौनों की आयु
  • अनुकरण द्वारा सीखने की आवश्यक।
  • भाभी जीवन की आधारशिला।

शैशवावस्था की प्रमुख विशेषताएं

  • शैशवावस्था भावी जीवन को प्रभावित करती हैं।
  • शरीर एवं मस्तिष्क अत्यधिक ग्रहणशील होता है जीवन का आधार।
  • इस अवस्था में शरीर और मानसिक विकास तीव्रता के साथ होता है।

   मानसिक विकास – 3 वर्ष में 50%, 5 से 6 वर्ष में 90%।

  • सीखने की दृष्टि से सहसा वस्था महत्वपूर्ण अवस्था है।
  • शैशवावस्था में जिज्ञासा प्रबल होती है।
  • शिशु में शब्दों , वासियों एवं क्रियाओं को दोहराने की प्रवृत्ति होती है।
  • शैशवावस्था मैं शिशुओं में सहायता और  निर्भरता पाई जाती है।
  • शैशवावस्था में आत्म प्रेम की भावना पाई जाती है।
  • शैशवावस्था में व्यवहार मूल प्रवृत्तियों पर आधारित होता है।
  • जन्म के समय उत्तेजना नामक संवेग पाया जाता है।
  • 2 वर्षों में अधिकांश संवेग विकसित हो जाते हैं- प्रेम, घृणा, भय , क्रोध।
  • शैशवावस्था में समाजिक वह नैतिकता का अभाव पाया जाता है।
  • लड़कों में पितृ विरोधी ग्रंथि जबकि लड़कियों में मात्र विरोधी ग्रंथि विकसित हो जाती है।

सिगमंड फ्रायड – काम प्रवृत्ति विकसित होती है।

शैशवास्था में शारीरिक विकास

  • जन्म के समय औसतन लंबाई 51 सेंटीमीटर – बालक 51 सेंटीमीटर और बालिका 50.5 सेंटीमीटर।
  • अंत में 108 सेंटीमीटर
  • वजन जन्म के समय 3 किलो, 6 माह बाद 2 गुना, अंत में 16 किलोग्राम।
  • जन्म के समय मस्तिष्क का भार 300 ग्राम। इस अवस्था के अंत में 1 किलो 250 ग्राम।
  • हड्डियां 270 होती है।
  • जन्म के समय कोई जात नहीं होती है। छह माह में पहला दांत आता है। इस अवस्था के अंत में 16 दांत आ जाते हैं। दो से तीन स्थाई दांत बाकी अस्थाई दांत होते हैं।
  • नवजात शिशु में शैशवावस्था के अंत में 23 से 25% तक मांसपेशियों का विकास हो जाता है।
  • हृदय की धड़कन शैशवावस्था में 140 बार, बाल्यावस्था में 100 बार, जबकि किशोरावस्था में 72 बार हो जाता है।
  • एक माह में शिशु अपना सर उठाने लगता है।
  • चौथे माह में शिशु सहारे के साथ बैठने लगता है। 
  • सातवें महीने में बिना सहारे का बैठने लगता है।
  • दसवें महीने में शिशु घुटने पर चलने लगता है।
  • 14 माह में शिशु खड़ा होने लगता है।
  • 15 माह में शिशु पैर पर चलने लगता है।

मानसिक विकास

  • पहले महीने में भूख, प्यास, निद्रा, अन्य शारीरिक आवश्यकता होने पर बालक हाथों से और पैरों से क्रिया करता है। रोने और चिल्लाने लगता है।
  • 2 माह में बालक ध्वनि के प्रति प्रतिक्रिया करता है।
  • शर्मा का बालक वस्तुओं को पकड़ने लगता है, अनेक प्रकार की आवाज निकालता है, परिवार जनों को देख कर मुस्कुराने लगता है।
  • शर्मा का बालक सुनो ही आवाज की नकल करने लगता है, अपना नाम पहचान नहीं लगता है।
  • 8 माह का बालक खिलौनों के साथ खेलने लगता है, और उसे छीनने पर वह रोने लगता है।
  • 3 वर्ष का बालक पांच व 7 वाक्य बोलने लगता है। गिनती बोलने लगता है। रेखाएं बनाता है।
  • 10 माह में शब्द बोलने लगता है,14 माह में प्रथम सार्थक शब्द बोलता है, 20 माह में 1 वाक्य बोलने लगता है।
  • 4 वर्ष के बालक में जिज्ञासा और प्रबल हो जाती है। चित्र बनाने लगता है, कई बार रेखाएं बनाता है।
  • कई प्रकार के बार-बार प्रश्न पूछता है। हल्की व भारी वस्तुओं में अंतर करने लगता है। वस्तुओं को क्रम में रखता है।
  • 6 वर्ष का बालक 15 से 20 तक गिनती सीख जाता है। व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध वाक्य बोलने लगता है।

  

  • Emotion – लैटिन भाषा के Emovede से बना है जिसका अर्थ गति / आवेग / उत्तेजित दशा होता है।
  • विचारों/भावनाओं का वाह्य प्रकाशन संवेग कहलाता है।
  • वुडवर्थ – संवेग व्यक्ति की गति/आवेश में आने की स्थिति है।

   संवेगो की प्रमुख विशेषताएं

  • संवेग सार्वभौमिक होते हैं।
  • संवेग जन्मजात होते हैं।
  • संवेग उत्पन्न होने पर शरीर में परिवर्तन (आंतरिक और बाह्य दोनों) होता है।
  • संवेग के तीव्र होने पर विचार प्रक्रिया धीमी/बंद हो जाती है।
  • संवेगों की अभिव्यक्ति व्यक्तिगत होती है।
  • संवेग की प्रकृति अस्थाई होती है।
  • संवेग सुख और दुख दोनों देता है।
  • भावना – संवेग – मूल प्रवृत्ति
  • विलियम मैक्डयूगल ने 14 प्रकार के संवेग बताएं।

शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास

जन्म के समय ‘उत्तेजना’ संवेग पाया जाता है।

J.B. वाटसन – जन्म के समय  क्रोध, भय, प्रेम  शैशवावस्था में शिशु का व्यवहार संवेग की अभिव्यक्ति करता है।

जन्म के समय संवेग तीव्र होता है, नकारात्मक होता है और आयु के बढ़ने के साथ-साथ सकारात्मक संवेग आने लगता है।

जन्म के समय उत्तेजना, 3 माह में कष्ट और आनंद, 6 माह में क्रोध और भय एवं घृणा, 12 माह में स्नेहा और उल्लास।

शैशवावस्था में संवेग तीव्र, बाल्यावस्था में कम किशोरावस्था में बिल्कुल कम हो जाती है।

  शैशवावस्था में सामाजिक विकास

  • जन्म के समय शिशु सामाजिकता से तटस्थ/शुन्य होता है।
  • 3 माह का बालक मां को पहचानने नहीं लगता है।
  • 4 माह का बालक अभिभावकों को देखकर हंसने लगता है।
  • 5 माह का बालक अपरिचितों से डरता है।
  • सामा का शिशु अपना नाम पहचानने लगता है।
  • 1 वर्ष का बालक परिवार के साथ घुल मिल जाता है।
  • 2 वर्ष का बालक परिवार में कुछ कार्य करता है।
  • 3 वर्ष का बालक पड़ोसी के बच्चों के साथ खेलने लगते हैं।
  • 4 वर्ष का बालक विद्यालय में जाने लगता।

     बाल्यावस्था (5/6 वर्ष  – 12/13 वर्ष )

  उपनाम

  • आरम्भिक विद्यालय की आयु।
  • गन्दी अवस्था।
  • स्पूर्ति की अवस्था।
  • जीवन का अनोखा काल।
  • निर्माणकारी अवस्था।
  • मूर्त चिंतन की अवस्था।
  • तार्किक चिंतन की अवस्था।
  • वैचारिक क्रिया की अवस्था।
  • खेल की अवस्था।
  • मूर्त संक्रियात्मक अवस्था।

रॉस : – बाल्यावस्था अहम परिपक्वता की अवस्था है। मिथ्या परिपक्वता।

बर्ट के अनुसार – बाल्यावस्था भ्रमण व साहसिक कार्य की प्रवृत्ति में वृद्धि होती है।

स्ट्रैग – बालक अपने को पति विशाल संसार में पाता है वह उसके बारे मेंं जल्दी से जल्दी जानकारी प्राप्त करना चाहत है।

किलपैट्रिक – बाल्यावस्था प्रतिद्वंदात्मक समाजीकरण का काल है।

   कोल व ब्रुस – बाल्यावस्था जीवन का अनोखा काल है।

   स्टैंग – शायद ही ऐसा कोई खेल हो जिसे 10 वर्ष का बालक न खेलते हैं।

   प्रमुख विशेषताएं:- 

  • मानसिक विकास की दर/गति धीमी हो जाती है। व्यवहार में चंचलता कम लगती हैं।
  • संवेदनशीलता, तर्क, स्मरण, चिंतन, मनन, आदि करने लगता है।
  • इस अवस्था में आत्मनिर्भरता पाई जाती है।
  • कार्य कारण में संबंध स्थापित करना सीख जाता है।
  • रचनात्मक कार्य करना सीख जाता है।
  • सामाजिकता और नैतिकता के गुणों में तेजी से वृद्धि होने लगती है।
  • संग्रहण की प्रवृत्ति विकसित होने लगती है।
  • यौन ऊर्जा सुप्त रहती है।
  • बालक की रूचि में परिवर्तन होता रहता है।
  • अभिरुचि परिवर्तन की अवस्था।
  • चोरी करने व झुट बोलने की आदत विकसित होने लगती है।
  • भाई बहनों में झगड़ा।

बाल्यावस्था में शारीरिक विकास 

  • प्रतिवर्ष 5 से 6 सेंटीमीटर शरीर की लंबाई में वृद्धि।
  • आरंभ में बालक बड़े और बालिकाएं छोटी होती है। जबकि अंत में बालक छोटे बालिकाएं बड़ी हो जाती है।
  • 12 वर्ष में बालक 138.3 सेमी बालिका 139.2 सेमी
  • हड्डियां 270, 350, 206

   बाल्यावस्था में मानसिक विकास

  • 7 वर्ष का बालक छोटी-छोटी घटनाओं का उल्लेख करने लगता है। वस्तुओं की समानता एवं अंतर को समझने लगता है।
  • 8 वर्ष का बालक कहानियां का अर्थ समझने लगता है और प्रश्न पूछने लगता है।
  • नव वर्ष का बालक समय, दिन, दिनांक, वर्षा आदि समझने लगता है।
  • 10 वर्ष का बालक द्रुत गति से पढ़ने लगता है। तार्किक और निरीक्षण क्षमता विकसित होने लगती है।
  • 11 वर्ष का बालक कठिन शब्दों को समझने लगता है। विषय में तुलना करने लगता है।
  • 12 वर्ष का बालक कार्यक्रम स्थापित, जिज्ञासा की प्रबल प्रवृत्ति।

      बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास

  • तीव्र संवेग में कमी आने लगती है। 
  • समाजीकरण की अवस्था होने के कारण संवेग ऊपर नियंत्रित करना शुरू कर देता है।
  • द्वेष की भावना विकसित होती है। भाई बहन में लड़ाई देखने को मिलती है।।
  • इच्छा की पूर्ति ना होने पर निराशा उत्पन्न होती है।
  • असफलता से पर्याप्त भय बना रहता है वर्तमान के लिए।
  • आनंद, उल्लास, सुख, प्रफुल्लता आदि का विकास होता है।
  • शैशवावस्था में वर्तमान का भय होता है, बाल्यावस्था में असफलता का भय बना रहता है, किशोरावस्था में भविष्य का भय बना रहता है।

    बाल्यावस्था में सामाजिक विकास

  • समूह / टोली की अवस्था- सहयोग, मित्रता, सद्भभावना, सम्मान।
  • बर्हिमुक्ता आने लगती है।
  • नकारात्मक मन का आरंभ होती है। चोरी, झूठ, बहाना बनाना।
  • समलिंगी भावना।- बालक बालक को पसंद करता है, और बालिका बालिका को

बालक स्वयं मित्र का चयन करता है उनके आदर्शों तथा मध्य होने वाले विचारों को अपनाता है।

बालक बालिका प्रशंसा की प्राप्ति हेतु तीव्र इच्छा रखती है।

किशोरावस्था (12/13-18/19)

  • Adolescence शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के Adolescare से बना है जिसका अर्थ परिपक्वता की ओर ले जाना होता है।

     उपनाम

  • उलझन  की अवस्था
  • दुखी अवस्था
  • संवेगात्मक परिवर्तन
  • बसंत ऋतु
  • स्वर्ण काल
  • द्रुत व तीव्र विकास की अवस्था।
  • अमूर्त चिंतन की अवस्था

   स्टेनली हॉल – 1-  किशोरावस्था प्रबल दबाव, तनाव, तूफान एवं संघर्ष की अवस्था है।

                       2- किशोरावस्था में शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक विकास अचानक होता है। 

  किलपैट्रिक – किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है।

  वैलेंटाइन – 1- किशोरावस्था अपराध की एक नाजुक अवस्था है।

                  2- व्यक्तिगत एवं घनिष्ठ मित्रता किशोरावस्था की प्रमुख विशेषता है।

       किशोरावस्था की प्रमुख विशेषताएं

  • किशोर पुरुषत्व एवं किशोरी मातृत्व को प्राप्त करती हैं।
  • लंबाई व विकास में तीव्र वृद्धि देखने को मिलती है।
  • मानसिक शक्तियों का तीव्र विकास- चिंतन में वृद्धि, कल्पना करने की शक्ति, कल्पांतरण, स्मरण, मनन में वृद्धि।
  • संवेगो की प्रबलता देखने को मिलती है। 
  • इस अवस्था में मन या मस्तिष्क पुनः चंचल होने लगता है।
  • यौन ऊर्जा सक्रिय रहती है।

प्रारंभ में रुचियां स्थाई होती हैं ,लेकिन बाद में रुचि में परिवर्तन देखने को मिलता है।

खुली आंखों से सपने देखने लगते हैं।

समूह में घनिष्ठ मित्रता देखने को मिलती है।

विषम लिंगी आकर्षण देखने को मिलता है।

स्वतंत्रता की भावना देखने को मिलती है।

त्याग, बलिदान, परोपकार, सेवा, मित्रता आदि देखने को मिलता है।

स्वतंत्रता की भावना, नेतृत्व की भावना, स्वाभिमान की भावना, वीर पूजा की भावना,

अपराध की ओर ले जाने वाली अवस्था।

ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करता है।

    किशोरावस्था  में शारीरिक विकास

    शैशवावस्था         बाल्यावस्था            किशोरावस्था

  • हंडिया  270     350                            206
  • दांत      16   स्थायी 15                  27 व 28 दांत
  • लम्बाई   51cm 108 cm       138.2cm 139.3cm   161.8cm 151.6cm
  • धड़कन      140 प्रति मिनट       85 से 100 प्रति मिनट   72 बार
  • थायराइड ग्रंथि सक्रिय हो जाती है।

मस्तिष्क का भार 1400 ग्राम हो जाता है।

  किशोरावस्था में मानसिक विकास

   क्रो एंड क्रो – 16 वर्ष में पूर्ण मानसिक विकास हो जाता है।

    वाटसन – 18 वर्ष में पूर्ण मानसिक विकास हो जाता है।

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