11 July 2021 Current affairs

भारत-नेपाल रेल सेवा समझौता

चर्चा में क्यों?
भारत और नेपाल ने भारत-नेपाल रेल सेवा समझौता (RSA), 2004 हेतु एक विनिमय पत्र (एलओई) पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • यह सभी अधिकृत कार्गो ट्रेन ऑपरेटरों को कंटेनर और अन्य माल को नेपाल ले जाने के लिये भारतीय रेलवे नेटवर्क का उपयोग करने की अनुमति देगा (भारत तथा नेपाल या तीसरे देश के बीच भारतीय बंदरगाहों से नेपाल तक)।
  • अधिकृत कार्गो ट्रेन ऑपरेटरों में सार्वजनिक और निजी कंटेनर ट्रेन ऑपरेटर, ऑटोमोबाइल फ्रेट ट्रेन ऑपरेटर, विशेष माल ट्रेन ऑपरेटर या भारतीय रेलवे द्वारा अधिकृत कोई अन्य ऑपरेटर शामिल हैं।

रेल सेवा समझौता, 2004:

  • रेल सेवा समझौता, 2004 को दोनों देशों के बीच रक्सौल (भारत) के रास्ते बीरगंज (नेपाल) से मालगाड़ी सेवाओं की शुरुआत के लिये रेल मंत्रालय, भारत सरकार और वाणिज्य मंत्रालय तथा नेपाल सरकार के बीच निष्पादित किया गया था।
  • यह समझौता भारत और नेपाल के बीच रेल द्वारा आवाजाही का मार्गदर्शन करता है।
  • समझौते की समीक्षा हर पाँच वर्ष में की जाएगी और इसे आपसी सहमति से अनुबंध करने वाले पक्षों द्वारा संशोधित (एक्सचेंज के पत्रों के माध्यम से) किया जा सकता है।
  • अतीत में तीन अवसरों पर LoE के माध्यम से RSA में संशोधन किया गया है।
  • ऐसा पहला संशोधन वर्ष 2004 में किया गया था।
  • दूसरा एलओई वर्ष 2008 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कार्गो की शुरूआत के समय हस्ताक्षरित किया गया था, जिसके लिये नई सीमा शुल्क प्रक्रियाओं की शुरूआत की आवश्यकता थी।
  • तीसरे एलओई पर 2016 में हस्ताक्षर किये गए थे, जो कोलकाता/हल्दिया बंदरगाह के माध्यम से रेल परिवहन के मौजूदा प्रावधान के अलावा विशाखापत्तनम बंदरगाह तक/से रेल परिवहन यातायात को सक्षम बनाता है।

नवीनतम समझौते के लाभ:

  • बाज़ार की ताकतों को संचालित करने की अनुमति : यह उदारीकरण नेपाल के रेल खंड में बाज़ार की ताकतों (जैसे उपभोक्ताओं और खरीदारों) को आने की अनुमति देगा और इससे दक्षता और लागत-प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि होने की संभावना है, अंततः नेपाल के उपभोक्ताओं को इससे लाभ होगा।
  • परिवहन लागत कम होगी: उदारीकरण विशेष रूप से ऑटोमोबाइल और कुछ अन्य उत्पादों के लिये परिवहन लागत को कम करेगा जिनकी ढुलाई विशेष वैगनों द्वारा होती है तथा यह दोनों देशों के बीच रेल कार्गो गतिविधियों को बढ़ावा देगा।
  • क्षेत्रीय संपर्क में वृद्धि: नेपाल रेलवे कंपनी के स्वामित्व वाले वैगनों को भी IR मानकों और प्रक्रियाओं के अनुसार भारतीय रेलवे नेटवर्क पर नेपाल जाने वाले माल (कोलकाता/हल्दिया से विराटनगर/बीरगंज मार्गों पर आने वाली और बाहर जाने वाली) को ले जाने के लिये अधिकृत किया जाएगा।
  • इस LoE पर हस्ताक्षर “नेबरहुड फर्स्ट” नीति के तहत क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के भारत के प्रयासों में एक और मील का पत्थर है।

अन्य कनेक्टिविटी परियोजना:

  • नेपाल तीन तरफ से भारत से घिरा हुआ है और एक तरफ तिब्बत की ओर खुला है जहाँ बहुत सीमित वाहनों की पहुँच है।
  • भारत-नेपाल ने लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न संपर्क कार्यक्रम शुरू किये हैं।
  • भारत में काठमांडू को रक्सौल से जोड़ने वाला इलेक्ट्रिक रेल ट्रैक बिछाने हेतु दोनों सरकारों के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
  • भारत व्यापार और पारगमन व्यवस्था के ढाँचे के भीतर कार्गो की आवाजाही हेतु अंतर्देशीय जलमार्ग विकसित करना चाहता है, यह नेपाल को सागर (हिंद महासागर) के साथ सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) को जोड़ने के लिये समुद्र तक अतिरिक्त पहुँच प्रदान करता है।
  • वर्ष 2019 में भारत और नेपाल ने संयुक्त रूप से एक सीमा पार पेट्रोलियम पाइपलाइन का उद्घाटन किया है।
  • यह पाइपलाइन भारत के मोतिहारी से पेट्रोलियम उत्पादों को नेपाल के अमलेखगंज तक ले जाती है।
  • यह दक्षिण एशिया की पहली सीमा पार पेट्रोलियम उत्पाद पाइपलाइन है।

भारत-नेपाल संबंध

  • पड़ोसी: नेपाल, भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी है और सदियों से चले आ रहे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों के कारण वह हमारी विदेश नीति में भी विशेष महत्त्व रखता है।
  • वर्ष 1950 की ‘भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि’ दोनों देशों के बीच मौजूद विशेष संबंधों का आधार है।

सांस्कृतिक संबंध: भारत और नेपाल हिंदू धर्म एवं बौद्ध धर्म के संदर्भ में समान संबंध साझा करते हैं, उल्लेखनीय है कि बुद्ध का जन्मस्थान लुम्बिनी नेपाल में है और उनका निर्वाण स्थान कुशीनगर भारत में स्थित है।
खुली सीमाएँ : दोनों देश न सिर्फ एक खुली सीमा और लोगों की निर्बाध आवाजाही को साझा करते हैं, बल्कि उनके बीच विवाह और पारिवारिक संबंधों जैसे घनिष्ठ संबंध भी हैं, जिसे ‘रोटी-बेटी के रिश्ते’ के रूप में जाना जाता है।
बहुपक्षीय साझेदारी: भारत और नेपाल कई बहुपक्षीय मंचों को साझा करते हैं, जैसे- BBIN (बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल), बिम्सटेक (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation), गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) तथा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (The South Asian Association for Regional Cooperation-SAARC) आदि।

मुद्दे:

  • वर्ष 2017 में नेपाल ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर हस्ताक्षर किये, जिसने देश में राजमार्ग, हवाई अड्डे तथा अन्य बुनियादी ढाँचे के निर्माण की मांग की।
  • BRI को भारत ने खारिज कर दिया था तथा नेपाल के इस कदम को चीन के प्रति झुकाव के तौर पर देखा जा रहा था।
  • वर्तमान में भारत-नेपाल और चीन के बीच कालापानी (Kalapani), लिंपियाधुरा (Limpiyadhura), लिपुलेख (Lipulekh), ट्राइजंक्शन और सुस्ता क्षेत्र (पश्चिम चंपारण ज़िला, बिहार) को लेकर भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद है।

हाथीपाँव रोग

चर्चा में क्यों?

● हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने हाथीपाँव (Lymphatic Filariasis) के उन्मूलन के लिये एक दवा अभियान शुरू किया है और कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद इस दवा अभियान को फिर से शुरू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।

बारे में:-

  • हाथीपाँव, जिसे आमतौर पर एलिफेंटियासिस (Elephantiasis) के रूप में जाना जाता है एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (Neglected Tropical Disease- NTD) के रूप में माना जाता है। मानसिक स्वास्थ्य बाद यह दूसरी सबसे अधिक अक्षम करने वाली बीमारी है।
  • यह लसीका प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है और शरीर के अंगों के असामान्य विस्तार को जन्म दे सकता है जिससे दर्द, गंभीर विकलांगता और सामाजिक कलंक की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • हाथीपाँव एक वेक्टर जनित रोग है, जो फाइलेरियोइडिया (Filarioidea) कुल के नेमाटोड (राउंडवॉर्म) के रूप में वर्गीकृत परजीवियों के संक्रमण के कारण होता है। हाथीपाँव रोग का कारण धागेनुमा आकार के निम्नलिखित तीन प्रकार के फाइलेरियल परजीवी होते हैं-
  • वुचेरेरिया बैनक्रोफ्टी (Wuchereria Bancrofti) हाथीपाँव के लगभग 90% मामलों के लिये होता है।
  • ब्रुगिया मलाई (Brugia Malayi) अधिकाँश मामलों के लिये उत्तरदायी है।
  • ब्रुगिया तिमोरी (Brugiya Timori) भी इस रोग का कारण है।

औषधीय उपचारः-

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) हाथीपाँव के वैश्विक उन्मूलन में तेजी लाने के लिये तीन औषधीय उपचारों की सिफारिश करता है।

आईडीए (IDA):- इसमें आइवरमेक्टिन (Ivermectin), डायथाइलकार्बामाज़िन साइट्रेट (Diethylcarbamazine Citrate) और एल्बेंडाज़ोल (Albendazole) का संयोजन शामिल है।

० इन औषधियों को लगातार दो वर्षों तक दिया जाता है। वयस्क कृमि का जीवनकाल लगभग चार वर्षों का होता है, इसलिये वह व्यक्ति को कोई नुकसान पहुंचाए बिना स्वाभाविक रूप से मर जाता है।

भारतीय परिदृश्य:-

● हाथीपाँव भारत के लिये गंभीर खतरा है। 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अनुमानित 650 मिलियन भारतीयों को हाथीपाँव होने का खतरा है।

● विश्व में हाथीपाँव के 40% से अधिक मामले भारत में पाए जाते हैं।

भारत सरकार के प्रयास:-

  • भारत ने इस रोग के उन्मूलन के लिये दोहरी रणनीति अपनाई है। इसके तहत हाथीपाँव निरोधक दो दवाओं (ईडीसी तथा एल्बेन्डाज़ोल- EDC and Albendazole) का प्रयोग, अंग विकृति प्रबंधन (Morbidity Management) और दिव्यांगता रोकथाम शामिल है।
  • सरकार ने वर्ष 2018 में ‘हाथीपाँव रोग के तीव्र उन्मूलन की कार्य-योजना’ (Accelerated Plan for Elimination of Lymphatic Filariasis- APELF) नामक पहल शुरू की थी।
  • केंद्र सरकार दिसंबर 2019 से ट्रिपल ड्रग थेरेपी (Triple Drug Therapy) को चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाने के लिये प्रयासरत है।

वैश्विक प्रयास:

  • 2021-2030 के लिये WHO का नया रोडमैप: यह रोडमैप वर्ष 2030 तक 20 उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों की रोकथाम, उन्हें नियंत्रित करने और उन्मूलन करने के लिये है।

हाथीपाँव उन्मूलन के लिये वैश्विक कार्यक्रम (GPELF):~

  • वर्ष 2000 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (Mass Drug Administration- MDA) के साथ संक्रमण को रोकने के लिये GPELF की स्थापना की ताकि रुग्णता प्रबंधन एवं विकलांगता रोकथाम (MMDP) के माध्यम से बीमारी से प्रभावित लोगों की पीड़ा को कम किया जा सके।
  • GPELF द्वारा विश्व स्तर पर हाथीपाँव को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में समाप्त करने का लक्ष्य वर्ष 2020 तक हासिल नहीं किया गया है । कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न समस्या के बावजूद WHO वर्ष 2030 तक इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये काम में तेजी लाएगा।

WHO की अहर्ता-पूर्व या आपातकालीन उपयोग सूची

संदर्भ:

● किसी भी वैक्सीन उत्पादक कंपनी द्वारा ‘कोवक्स’ (COVAX) अथवा ‘अंतरराष्ट्रीय अधिप्राप्ति’ (International Procurement) जैसी वैश्विक सुविधाओं के लिए टीकों की आपूर्ति करने हेतु, उन टीकों का विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ‘अहर्ता-पूर्व’ (pre-qualification) या ‘आपातकालीन उपयोग सूची’ (Emergency Use Listing – EUL) में शामिल होना अनिवार्य है।

  • अब तक आठ टीकों को WHO की ‘आपातकालीन उपयोग सूची’ ( EUL) में शामिल किया जा चुका है।
  • WHO द्वारा शीघ्र ही ‘भारत बायोटेक’ द्वारा निर्मित ‘कोवैक्सिन’ को EUL सूची में शामिल करने पर निर्णय लिया जाएगा।

WHO की ‘आपातकालीन उपयोग सूची’ (EUL) के बारे में:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की ‘आपातकालीन उपयोग सूची’ (Emergency Use Listing- EUL), गैर- लाइसेंसशुदा टीकों, चिकित्सा-विधानों (Therapeutics) तथा ‘परखनली में किए गए निदानों’ (in vitro diagnostics) का आकलन करने और सूचीबद्ध करने के लिए एक जोखिम-आधारित प्रक्रिया है।
  • इसका प्रमुख उद्देश्य, किसी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान प्रभावित लोगों के लिए इन उत्पादों को उपलब्ध कराने संबंधी प्रकिया को तेज करना होता है।
  • यह सूची, उपलब्ध गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता और प्रदर्शन आंकड़ों के आधार पर विशिष्ट उत्पादों का उपयोग करने संबंधी स्वीकार्यता निर्धारित करने में संयुक्त राष्ट्र की इच्छुक खरीद एजेंसियों और सदस्य देशों की सहायता करती है।

WHO सूची में शामिल होने के लिए निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करना आवश्यक है:

  • जिस बीमारी के लिए किसी उत्पाद को ‘आपातकालीन उपयोग सूची’ में शामिल करने हेतु आवेदन किया गया है, वह बीमारी, गंभीर, जीवन के लिए तत्काल संकट उत्पन्न करने वाली, प्रकोप, संक्रामक रोग या महामारी फैलाने में सक्षम होनी चाहिए। इसके अलावा, उत्पाद को ‘आपातकालीन उपयोग सूची’ मूल्यांकन हेतु विचार करने हेतु उचित आधार होने चाहिए, जैसेकि बीमारी से निपटने, अथवा आबादी के किसी उपभाग (जैसेकि, बच्चे) के लिए कोई लाइसेंस प्राप्त उत्पाद उपलब्ध नहीं है।
  • मौजूदा उत्पाद (टीके और दवाईयां), बीमारी को खत्म करने या प्रकोप को रोकने में विफल रहे हैं।
  • उत्पाद का निर्माण, दवाओं और टीकों के मामले में वर्तमान अच्छी विनिर्माण पद्धतियों (Good Manufacturing Practices- GMP) का अनुपालन करते हुए और ‘इन विट्रो डायग्नोस्टिक्स’ (IVD) के मामले में कार्यात्मक ‘गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली’ (QMS) के तहत किया गया होना चाहिए।
  • आवेदक को उत्पाद के विकास (IVD के मामले में उत्पाद की पुष्टि और सत्यापन) को पूरा करने के लिए वचनबद्ध होना तथा लाइसेंस प्राप्त होने के बाद उत्पाद के लिए WHO से पूर्व-योग्यता (prequalification) हासिल करने हेतु आवेदन करना आवश्यक है।

 टीम रूद्रा

मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs ) 

अभिनव आनंद (डायट प्रवक्ता) 

डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या 

अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर) 

योगराज पटेल (VDO)- 

अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )

प्रशांत यादव – प्रतियोगी – 

कृष्ण कुमार (kvs -t ) 

अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)

 मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)

अश्वनी सिंह – प्रतियोगी

प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।

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