स्पाइकमैन का रीमलैंड सिद्धांत

स्पाइकमैन का रीमलैंड सिद्धांत


परिचय
स्पाइक मैन का रिमलैंड सिद्धांत मैकिंडर के हृदय स्थल सिद्धांत आलोचना पर आधारित है।
उनके इस सिद्धांत का व्यवस्थित वर्णन उनकी पुस्तक geography of peace (1944) में दिया है। इनकी पुस्तक का प्रकाशन इनके मरने के बाद (1943)किया गया।उनके अनुसार मैकिंडर द्वारा बताया गया आंतरिक अर्धचंद्राकार क्षेत्र हृदय स्थल की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है।उन्होंने मैकिंडर द्वारा बताए गए आंतरिक अर्धचंद्राकार क्षेत्र को रिमलैंड के नाम से संबोधित किया।

मुख्य भाग

उनके अनुसार मैकिंडर का हृदय स्थल वाला क्षेत्र उनके कारणों से आंतरिक अर्धचंद्राकार वाले क्षेत्र की तुलना में कम भू-आर्थिक एवं भू-राजनीतिक महत्व वाला है।
प्रतिकूल जलवायु स्थिति ने हृदय स्थल के संभावित आर्थिक उन्नति की संभावना को जहां कम कर दिया वही परिवहन मार्गो तथा परिवहन साधनों की सिमितता ने इस क्षेत्र के व्यवहार को दुष्प्रभावित किया। जनसंख्या कम की स्थिति के कारण वैश्विक उपभोक्ता के बाजार में कम महत्वपूर्ण वाला है। उनके अनुसार हार्टलैंड की ऊपर बताई गई सीमितता रीमलैंड वाले क्षेत्रों की मजबूत पक्ष है। यह क्षेत्र जहां खनिज संसाधनों की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध क्षेत्र है वहीं क्षेत्र से समुद्र से जुड़े होने के कारण वर्ष भर परिवहन की सुविधा उपलब्ध रहती है।
उल्लेखनीय है कि हिंद महासागर की उष्णकटिबंधीय उपस्थिति के कारण वर्ष भर परिवहन की सुविधा उपलब्ध रहती है।
यह एक अत्यधिक जनसंख्या वाला क्षेत्र होने के कारण इसके पास स्वयं का घरेलू बाजार है तथा यदि वैश्विक उपभोक्ता बाजार का हब कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
इस क्षेत्र में कई प्राचीन संस्कृतिया जन्मी और पली-बढ़ी जिसके कारण क्षेत्र के सांस्कृतिक मूल्य सॉफ्ट पावर कूटनीति के महत्वपूर्ण हथियार साबित हो सकते हैं। उनके अनुसार रीमलैंड के संदर्भ में उपरोक्त बताई गई अनुकूल बातें रिमलैंड को ग्लोबल पावर रूप में स्थापित कर सकती हैं। रीमलैंड की महत्ता को उन्होंने निम्नलिखित कथन के द्वारा व्यक्त किया।
“जो रीमलैंड को नियंत्रित करेगा
वही यूरेशिया को नियंत्रित करेगा।
जो यूरेशिया को नियंत्रित करेगा
वही संसार का भाग्य तय करेगा।।”
स्पाइकमैन के उपरोक्त विचार ने वैश्विक भूराजनीतिक के निर्धारण में (द्वितीय विश्व युद्ध के बाद) महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
शीत युद्ध के दौर में अमेरिका द्वारा समर्थित पूंजीवादी देशों तथा साम्यवादी रसिया के बीच यह क्षेत्र वैश्विक ग्रेड गेम का अखाड़ा बन कर उभरा।
चाहे अफगान संकट या वियतनाम युद्ध उत्तरी कोरिया के बीच विभाजन हो या भारत एवं पाकिस्तान का बंटवारा।
ये सब अंतरराष्ट्रीय महाशक्तियों के बीच होने वाले भू राजनीतिक संघर्षों का प्रतिफल है। आज भी यह क्षेत्र अमेरिकी खेमा तथा रूस द्वारा समर्थित साम्यवादी खेमे के मध्य वर्गीकृत है।

रीम लैंड की सीमितताए-
यह क्षेत्र आज भी पूंजी की कमी तथा तकनीकी पिछड़ेपन के कारण पश्चिमी देशों पर निर्भर है। इस क्षेत्रों के देशों के मध्य आपसी तनाव ने सीमा विवाद तथा क्षेत्रीय संघर्षों को जन्म दिया। उत्पन्न अशांति के कारण इस क्षेत्र के वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने की संभावना पर पानी फिर गया।
आतंकवाद तथा चरमपंथ के साथ अनेक प्रचलित रूढ़ियों ने क्षेत्र के मानव संसाधन को समस्यात्मक मानव के रूप में तब्दील कर दिया। यह क्षेत्र आज छद्म साम्राज्यवाद का शिकार हो गया।

निष्कर्ष

निष्कर्षत: स्पाइक मैन द्वारा इस क्षेत्र के वैश्विक शक्ति बनने की जो संभावना व्यक्त की गई थी वह अनेक कारणों से सच साबित नहीं हो पाया है। किंतु सिद्धांत में छिपा हुआ संदेश आज भी उस क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है।
हालांकि चीन और भारत का सैन्य एवं आर्थिक उभार उनके द्वारा रीमलैंड के संदर्भ में की गई भविष्यवाणी को सीमित स्तर नहीं साबित करता है।

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