28 July 2021 Current affairs

सामरिक पेट्रोलियम भंडार के अंतर्गत नई सुविधाएँ

चर्चा में क्यों

  • हाल ही में सामरिक पेट्रोलियम भंडार (SPR) कार्यक्रम के तहत सरकार ने दो अतिरिक्त सुविधाएँ स्थापित करने की मंज़ूरी दे दी है।
  • वर्ष 2020 में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट को देखते हुए भारत ने अपने सामरिक पेट्रोलियम भंडार को भरना शुरू कर दिया।

नई सुविधाएँ:

  • नई सुविधाओं में भूमिगत भंडारण की कुल 6.5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) भंडारण क्षमता के साथ वाणिज्यिक-सह-सामरिक सुविधाएँ होंगी:
  • चंदीखोल (ओडिशा) (4 MMT)
  • पाडुर (कर्नाटक) (2.5 MMT)
  • इन्हें SPR कार्यक्रम के दूसरे चरण के तहत सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल में बनाया जाएगा।

मौजूदा सुविधाएँ:

  • कार्यक्रम के पहले चरण के तहत भारत सरकार ने 3 स्थानों पर 5.33 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) की कुल क्षमता के साथ सामरिक पेट्रोलियम भंडारण (SPR) सुविधाएँ स्थापित की हैं:
  • विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) (1.33 MMT).
  • मंगलौर (कर्नाटक) (1.5 MMT).
  • पाडुर (कर्नाटक) (2.5 MMT).
  • पहले चरण के तहत स्थापित पेट्रोलियम भंडार की प्रकृति सामरिक महत्त्व के लिये है। इन भंडारों में संग्रहीत कच्चे तेल का उपयोग तेल की कमी की स्थिति में किया जाएगा और ऐसा तब होगा जब भारत सरकार की ओर से इसकी घोषणा की जाएगी।

सामरिक पेट्रोलियम भंडार
परिचय:

  • सामरिक पेट्रोलियम भंडार कच्चे तेल से संबंधित किसी भी संकट जैसे- प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध या अन्य आपदाओं के दौरान आपूर्ति में व्यवधान से निपटने के लिये कच्चे तेल के विशाल भंडार होते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा कार्यक्रम (International Energy Programme- IEP) पर समझौते के अनुसार, कम-से-कम 90 दिनों के लिये शुद्ध तेल आयात के बराबर आपातकालीन तेल का स्टॉक रखना अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency- IEA) के प्रत्येक सदस्य देश का दायित्व है।
  • गंभीर तेल आपूर्ति व्यवधान के मामले में IEA सदस्य सामूहिक कार्रवाई के हिस्से के रूप में इन शेयरों को बाज़ार में जारी करने का निर्णय ले सकते हैं।
  • भारत वर्ष 2017 में IEA का सहयोगी सदस्य बना।
  • ओपेक (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) द्वारा पहली बार तेल के संकट के बाद सामरिक भंडार की इस अवधारणा को वर्ष 1973 में संयुक्त राज्य अमेरिका में लाया गया था।
  • भूमिगत भंडारण, पेट्रोलियम उत्पादों के भंडारण की अब तक की सबसे किफायती विधि है, क्योंकि भूमिगत भूमिगत भंडारण व्यवस्था भूमि के बड़े हिस्से की आवश्यकता को समाप्त करती है, निम्न वाष्पीकरण सुनिश्चित करती है और चूँकि गुहा रूप संरचनाएँ समुद्र तल से काफी नीचे बनाई जाती हैं, इसलिये जहाज़ों द्वारा इनमें कच्चे तेल का निर्वहन करना आसान होता है
  • भारत में सामरिक कच्चे तेल की भंडारण सुविधाओं के निर्माण कार्य का प्रबंधन भारतीय सामरिक पेट्रोलियम भंडार लिमिटेड (Indian Strategic Petroleum Reserves Limited- ISPRL) द्वारा किया जा रहा है।
  • ISPRL पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत तेल उद्योग विकास बोर्ड (OIDB) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
  • नई सुविधाओं के चालू होने के बाद कुल 22 दिनों (10+12) में खपत किये जा सकने योग्य तेल की मात्रा उपलब्ध कराई जाएगी।
  • सामरिक सुविधाओं के साथ भारतीय रिफाइनरीज़ 65 दिनों के कच्चे तेल के भंडारण (औद्योगिक स्टॉक) की सुविधा बनाए रखती हैं।
  • इस प्रकार SPR कार्यक्रम के दूसरे चरण के पूरा होने के बाद भारत में कुल 87 दिनों तक (रणनीतिक भंडार द्वारा 22 + भारतीय रिफाइनर द्वारा 65) तक खपत के लिये तेल उपलब्ध कराया जाएगा। यह मात्रा IEA द्वारा 90 दिनों के लिये तेल उपलब्ध कराने के शासनादेश के काफी निकट होगा।
  • भारत में SPRs की आवश्यकता:

पर्याप्त क्षमता का निर्माण:

अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के बाज़ार में होने वाली किसी भी अप्रत्याशित घटना से निपटने के लिये इसकी वर्तमान क्षमता पर्याप्त नहीं है।
एक दिन में लगभग 5 मिलियन बैरल तेल की खपत के साथ देश का 86% हिस्सा तेल पर निर्भर है।

ऊर्जा सुरक्षा:

  • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत में उतार-चढ़ाव से भारत को देश की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और मौद्रिक नुकसान से बचने के लिये पेट्रोलियम भंडार बनाने की सख्त ज़रूरत है।
  • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत में उतार-चढ़ाव से भारत को देश की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और मौद्रिक नुकसान से बचने के लिये पेट्रोलियम भंडार बनाने की सख्त ज़रूरत है।

आगे की राह:

  • वर्तमान मांग विदेशों में मौजूद ऊर्जा स्रोतों से संबंधित संपत्ति की तलाश करने की है। भारत को मेज़बान देशों में भारतीय संपत्ति के रूप में तेल की खरीद और उसे स्टोर करना चाहिये तथा आवश्यकता पड़ने पर चीन की तरह प्रयोग करना चाहिये।
  • भारत को कई देशों के साथ तेल अनुबंध करना चाहिये ताकि किसी एक क्षेत्र के एकाधिकार से बचा जा सके।
  • उदाहरण के लिये वर्तमान में भारत खाड़ी क्षेत्र से अधिकांश तेल आयात कर रहा है।

स्वच्छ गंगा निधि
(Clean Ganga Fund)

चर्चा में क्यों?

  • ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ (National Mission for Clean Ganga – NMCG) को वर्ष 2014 में गंगा नदी को साफ करने हेतु 20,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ एक कार्यक्रम के रूप में परिकल्पित किया गया था। इसके तहत अब तक 15,074 करोड़ रुपये आवंटित किए जा चुके हैं।
  • इसमें से केवल ₹10,972 करोड़, या लगभग दो-तिहाई राशि, वित्त मंत्रालय द्वारा, ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को जारी की गई है।
  • इसके अंतर्गत, उत्तर प्रदेश को सर्वाधिक 3,535 करोड़ रुपये दिए गए हैं, इसके बाद बिहार (₹2,631 करोड़ बंगाल (₹1,030 करोड़) और उत्तराखंड (₹1001 करोड़) का स्थान है।

महत्व:-

  • यह फंडिंग काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि 30 जून तक, नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत NMCG के पास मात्र 1,040.63 करोड़ रुपये की राशि बची थी।
  • नदी की सफाई और पुनरुद्धार के लिए, घरेलू सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट और ठोस अपशिष्ट का नदी में प्रवाह किए जाने से पहले इसका उपचार एवं प्रबंधन, पारिस्थितिक प्रवाह को बनाए रखना, ग्रामीण स्वच्छता, वनीकरण, जैव विविधता संरक्षण, और सार्वजनिक भागीदारी जैसे कई तरह के हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ के बारे में:-

  • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) को सोसाइटी पंजीकरण अधिनियमन, 1860 के अंतर्गत 12 अगस्त 2011 को एक सोसाइटी के रुप में पंजीकृत किया गया था।
  • यह ‘पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम’ (EPA), 1986 के प्रावधानों के तहत गठित ‘राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण’ (NGRBA) की कार्यान्वयन शाखा के रूप में कार्य करता था।

ध्यान देने योग्य:-

  • ‘राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण’ (NGRBA) को ‘गंगा नदी के पुनरुद्धार, संरक्षण और प्रबंधन हेतु राष्ट्रीय परिषद’ (National Council for Rejuvenation, Protection and Management of River Ganga), जिसे ‘राष्ट्रीय गंगा परिषद’ (NGC) भी कहा जाता है, का गठन किए जाने बाद 7 अक्टूबर 2016 को भंग कर दिया गया।

अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा’ (INSTC)

  • अंतर्राष्‍ट्रीय उत्‍तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा बहु-विधिक (मल्टी-मोड) नेटवर्क है।
  • सम्मिलित क्षेत्र: भारत, ईरान, अफगानिस्तान, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप।

इस गलियारे का महत्व

  • ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा’ (INSTC) की परिकल्पना, चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) से काफी पहले की गयी थी।
  • INSTC के माध्यम से, भारत से ईरान के रास्ते रूस और यूरोप के लिए भेजे जाने वाले माल की परिवहन लागत और समय की बचत होगी और साथ ही में, यूरेशियन देशों के साथ संपर्कों के लिए वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध होगा।
  • यह मध्य एशिया और फारस की खाड़ी तक माल-परिवहन हेतु एक अंतरराष्ट्रीय परिवहन और पारगमन गलियारा बनाने के लिए, भारत, ओमान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उजबेकिस्तान और कजाकिस्तान द्वारा हस्ताक्षरित एक बहुउद्देशीय परिवहन समझौते, जिसे ‘अश्गाबात समझौता’ कहा जाता है, के साथ भी तालमेल स्थापित करेगा।

असम – मिजोरम सीमा विवाद

  • इस वर्ष मिजोरम असम सीमा पर दो खाली घरों को जला देने से विवाद अनुपात।
  • मिजोरम के अनुसार वर्तमान समय में और संघ के लोगों ने “नो मैंस लैंड” की यथास्थिति का उल्लंघन किया है।
  • 1972 में मिजोरम को असम से पृथक कर केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया तत्पश्चात 1987 में पूर्ण राज्य बनाया गया।

विवाद का मुख्य कारण ब्रिटिश काल की दो अधिसूचना है।

  1. लुशाई पहाड़ियों को कछार के मैदानी इलाकों से अलग करना (1875)
  2. लुशाई पहाड़ियों और मणिपुर के बीच एक सुनना का निर्धारण (1933)

झगड़े की वजह

  • दोनों पड़ोसी राज्यों के बीच काल्पनिक रेखा है। यह नदियों, पहाड़ियों, घाटियों और जंगलों के प्राकृतिक अवरोध के साथ बदल जाती है।
  • सीमावर्ती लोगों को अस्पष्ट सीमांकन की जानकारी नहीं है अतः वे सीमा पार कर एक दूसरे के क्षेत्र में चले जाते हैं।

भारत का वन आरक्षण और बंजर भूमि

चर्चा में क्यों

  हाल ही में राज्यसभा में भारतीय वनों की स्थिति तथा बजट भूमि की स्थिति की चर्चा की गई।

• देश में कुल वन क्षेत्र लगभग 76,7419 वर्ग किलोमीटर है।

वनों की श्रेणियां

  1. आरक्षित वन श्रेणी
  2. संरक्षित वन श्रेणी
  3. असुरक्षित वन श्रेणी
  4. बंजर भूमि
  • ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रकाशित बंजर भूमि इंटेलस 2019 के अनुसार देश में कुल 55,7665 वर्ग किलोमीटर वन है।
  • बंजर भूमि, कृषि, व्यवसाय किया वन के रूप में प्रयोग नहीं की जाती।

सरकारी पहल

  1. हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन।
  2. राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम।
  3. क्षतिपूरक वनीकरण कोष। प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण।
  4. नेशनल एक्शन प्लान टु कम्बैट रिजर्टीफिकेशन ।
  5. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई। योजना।

 टीम रूद्रा

मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs ) 

अभिनव आनंद (डायट प्रवक्ता) 

डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या 

अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर) 

योगराज पटेल (VDO)- 

अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )

प्रशांत यादव – प्रतियोगी – 

कृष्ण कुमार (kvs -t ) 

अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)

 मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)

अश्वनी सिंह – प्रतियोगी 

सुरजीत गुप्ता – प्रतियोगी

प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।

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