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- जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी अवरोध के तथा बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता से होता है , उन्हें क्या कहते हैं – स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है , उन्हें क्या कहते हैं- ह्रस्व स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से अधिक समय लगता है , उन्हें क्या कहते हैं – दीर्घ स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से अधिक समय लगता है , उन्हें क्या कहते हैं – प्लुत स्वर
- मूल स्वरों की संख्या हैं – ( 4 ) अ , इ , उ , ऋ
- अच् क्या है – संस्कृत में स्वर का नाम
- ह्रस्व स्वर की संख्या कितनी हैं – ( 4 ) अ , इ , उ , ऋ
- मूल दीर्घ स्वर कितने हैं – ( 4 ) आ , ई , ऊ , ऋ १ )
- दीर्घ स्वर कितने हैं – ( 7 ) आ , ई , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ
- कुल स्वरों की संख्या है – 11 स्वर
- संयुक्त स्वर हैं – ए , ऐ , ओ , औ
- आगत स्वर हैं – ऑ ( अर्ध विवृत स्वर )
- जिह्वा के आधार पर स्वरों के प्रकार हैं – अग्र , मध्य , पश्च
- अग्र स्वर हैं – इ , ई , ए , ऐ
- मध्य स्वर हैं – अ
- पश्च स्वर हैं – आ , उ , ऊ , ओ , औ , ऑ
- संवृत स्वर हैं – ई , ऊ
- अर्द्ध संवृत स्वर हैं – इ , उ
- विवृत स्वर हैं – आ , ऐ , औ
- अर्द्ध विवृत स्वर हैं – ए , अ , ओ , ऑ
- अयोगवाह कहलाते हैं – अनुस्वार ( अं ) , विसर्ग ( अः )
- कुल व्यंजनों की संख्या – ( 41 )
- स्पर्श 25 – ( क से म तक ) ,
- अंतःस्थ 4 – ( य , र , ल , व ) , ( अर्ध – स्वर )
- उष्म 4 – ( श , ष , स , ह ) , ( ऊष्म – संघर्षी )
- उत्क्षिप्त 2 – ( ड , ढ़ )
- आगत 2 – ( ज़ , फ़ ) ,
- संयुक्त 4 – ( क्ष , त्र , ज्ञ , श्र )
- संस्कृत में व्यंजन को क्या कहते हैं – हल्
- मूल व्यंजन में कौन सा नहीं आता है – आगत ( ज़ , फ़ ) & संयुक्त ( क्ष , त्र , ज्ञ , श्र ) & उत्क्षिप्त ( ड़ , ढ़ )
- मूल व्यंजन में कौन से व्यंजन आते हैं – स्पर्श ( क से म तक ) , अंतःस्थ ( य , र , ल , व ) & उष्म ( श , ष , स , ह )
- स्पर्श व्यंजनों की संख्या- स्पर्श 25- ( क से म तक ) ,
- उत्क्षिप्त व्यंजनों की संख्या- ( 2 ) उत्क्षिप्त ( ड़ , ढ़ )
- आगत व्यंजनों की संख्या – ( 2 ) ( ज़ , फ़ ) ,
- अंतःस्थ व्यंजनों की संख्या- ( 4 ) ( य , र , ल , व ) , ( अर्ध – स्वर )
- ऊष्म व्यंजनों की संख्या – ( 4 ) ( श , ष , स , ह ) , ( ऊष्म – संघर्षी )
- संयुक्त व्यंजनों की संख्या- ( 4 ) ( क्ष , ल , ज्ञ , श्र )
- क्ष ( क् + ष ) ,
- त्र ( त् + र ) ,
- ज्ञ ( ज् + र ) ,
- श्र ( श् + र ) ,
- अर्धस्वर हैं – य , र , ल , व ( अंतःस्थ )
- लुंठित व्यंजन हैं –र
- पार्श्विक व्यंजन हैं – ल
- ऊष्म – संघर्षी व्यंजन हैं – श , ष , स , ह ( ऊष्म )
- वर्णमाला में वर्णों की कुल संख्या है – 52
- संस्कृत में वर्णमाला की संख्या है – 50
- स्वर – 13 , व्यंजन – 33 , अयोगवाह –4
- संस्कृत वर्णमाला में स्वरों की कुल संख्या है – 13
- उत्पत्ति के आधार पर स्वर कितने प्रकार के होते हैं → 2 प्रकार – मूल स्वर और संधि स्वर
- जाति के आधार पर स्वरों की संख्या होती है → 2 – सवर्ण स्वर और असवर्ण स्वर
- उच्चारण के आधार पर स्वर होते हैं → 2 – सानुनासिक स्वर और निरनुनासिक स्वर
- जीभ के प्रयोग के आधार पर स्वरों की संख्या होती है → 3 – अग्र , मध्य , पश्च स्वर
- मुँह के खुलने के आधार पर स्वरों के भेद होते हैं → 4 – विवृत , अर्द्धविवृत , संवृत , अर्द्धसंवृत स्वर
- होठों की स्थिति के आधार पर स्वर के भेद हैं वृतमुखी , अवृतमुखी स्वर
- व्यंजनों को मुख्यतः कितनी श्रेणियों में बाँटा गया है —3 – स्पर्श , अन्तःस्थ , ऊष्म व्यंजन
- वर्गीय व्यंजनों की संख्या है → 25- ( स्पर्श व्यंजन )
- स्पर्श संघर्षी व्यंजन होते हैं → च वर्ग के सभी वर्ण
- द्विगुण व्यंजन होते हैं → 2 – ड , ढ़ ( उत्क्षिप्त व्यंजन )
- उच्चारण में वायु प्रक्षेय की दृष्टि से व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं → 2 – अल्पप्राण , महाप्राण
- अल्पप्राण व्यंजन में शामिल होते हैं → प्रत्येक वर्ग का पहला , तीसरा , पाँचवां वर्ण तथा अन्तःस्थ व्यंजन
- महाप्राण व्यंजन में शामिल होता है → प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा ऊष्म व्यंजन 14 )
- तरंग के आधार पर व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं → 2 – सघोष , अघोष
- सघोष वर्ण में शामिल होते हैं → प्रत्येक वर्ग का तीसरा , चौथा , पाँचवां वर्ण तथा समस्त अन्तःस्थ व्यंजन और स्वर एवं ह ( ऊष्म )
- अघोष वर्ण में शामिल होते हैं – प्रत्येक वर्ग का पहला , दूसरा वर्ण तथा ऊष्म व्यंजन ( श , ष , स )
- प्रयत्न के आधार पर व्यंजन को कितने भागों में बाँटा गया → 5- कंठ्य , तालव्य , मूर्धन्य , दंत्य , ओष्ठ्य
- नासिक्य व्यंजन होते हैं → 5- ङ् , ञ् , ण , न् , म्
- अनुनासिक व्यंजन होते हैं → 5 – ङ् , ञ् , ण , न् , म्
- अनुस्वार को दर्शाते हैं – ( 6 ) जैसे – अंग , अंक , अंश आदि
- अनुनासिक को दर्शाते हैं ते हैं ( ॐ ) जैसे – गाँव , दाँत , आँख , आँ दाँत , आँख , आँसू , साँस , मुँह आदि ।
- कंठ्य ध्वनियों में शामिल किया जाता है → अ , आ , विसर्ग और क वर्ग एवं ह
- तालव्य ध्वनियों में शामिल किया जाता है → इ , ई , च वर्ग तथा य , श
- मूर्धन्य ध्वनियों में शामिल किया जाता है → ऋ , ट वर्ग तथा र , ष
- दन्त्य वर्ण में शामिल किये जाते हैं → त वर्ग तथा ल , स
- ओष्ठ्य वर्ण में शामिल किये जाते हैं , उ , ऊ तथा प वर्ग
- कंठ्यतालव्य वर्ण होते हैं → ए , ऐ
- दन्तोष्ठ्य वर्ण होते हैं → व , फ
- स्वरतंत्रीय वर्ण कहा जाता है → ह
- वर्ण्य वर्ण कहते हैं → स , र , ल , ज़
- प्रकंपित व्यंजन कहते हैं → र् ( लुंठित )
- पार्श्विक वर्ण कहते हैं – ल्
- उत्क्षिप्त व्यंजन अल्प्राण है या महाप्राण → दोनों ( ड़ – अल्पप्राण , ढ़ – महाप्राण )
- आगत व्यंजन है → क , ख , ग़ , ज़ , फ़ , विदेशी भाषाओं की ध्वनियाँ
- द्वित्व व्यंजन कहे जाते हैं → जब समान व्यंजन संयुक्त हो जैसे – बच्चा , इक्का , सत्तर , अस्सी , अड्डा आदि ।
- काकल्य ध्वनि किसे कहते हैं → हु , तथा विसर्ग
- संघर्षहीन व्यंजन किसे कहते हैं , य , व्
- संघर्षी व्यंजन है → श् , ए , स् , हु
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