आदिकाल से ही पृथ्वी अथवा सौरमंडल तथा ब्रम्हांड की उत्पत्ति के विषय में जानने की जिज्ञासा मानव की सोच विस्तार का केंद्रीय विषय वस्तु रहा शुरुआती दौर में पृथ्वी अथवा सौरमंडल की उत्पत्ति या आयुु संबंधी तथ्य पूर्णतया धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है।
जैसे-ईसाई धर्म के अनुसार ईश्वर ने पृथ्वी का निर्माण 4004 ईसा पूर्व को 4 बजकर 4 मिनट,4 सेकेंड के
पर रविवार के दिन किया था। जो कि वर्तमान में पूर्णतया असत्य है।धार्मिक संकल्पों के विपरीत तर्कों पर आधारित परिकल्पनाए वैज्ञानिक संकल्पनाए होती हैं।
सर्वप्रथम कास्तेबफन ने 1749 ई० वी० में पहली बार तर्कों के आधार पर पृथ्वी की उत्पत्ति की प्रक्रिया को समझाने का प्रयास किया। वर्तमान में पृथ्वी अथवा सौरमंडल के उत्पत्ति में अनेक परिकल्पनाओं एवं संकल्पनाओ का प्रतिपादन किया जा चुका है किसी को पूर्णरूपेण मान्यता नहीं प्राप्त है।
ग्रहों के उत्पत्ति में भाग लेने वाले तारों की संख्या के आधार पर वैज्ञानिक
संकल्पनाओं को दो वर्गों में रखा जा सकता है।
- अद्वैतवादी संकल्पना
- द्वैतवादी संकल्पना
अद्वैतवादी संकल्पना:-
इसके अनुसार पृथ्वी सहित सभी ग्रहों की उत्पत्ति एक तारे से जुड़े हैं इसलिए इसे पेरेंटल हैपोथेसिस भी कहते हैं।कास्तेदबफन , कांट, लाप्लास, रॉस, लकियर इसी संकल्पना से संबंधित है।
दैतवादी संकल्पना :-
इसके अनुसार पृथ्वी सहित सभी तारों का निर्माण एक से अधिक तारों के द्वारा हुआ है।
इससे संबंधित प्रमुख संकल्पनाएं:-
1 चैम्बरलीन एवं मॉल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना
2.जेम्स जींस एवं जैफ्रिज की ज्वारीय परिकल्पना
- रसेल की द्वेतारक परिकल्पना
- पायल एवं लीट लीटन का सुपरनोवा परिकल्पना
- ऑटोस्मिट का अंतर तारक धूल परिकल्पना
- अल्फ़वेंन का अंतर तारक मेघा विद्युत चुंबकीय परिकल्पना
- रासजन का परिभ्रमण एवं ज्वारी परिकल्पना
- E.M ड्रोबीस्वेस्की की दशपती सूर्य द्वैतारक परिकल्पना
- A.C. बनर्जी की C फीड परिकल्पना
- वान वाइज सैकर की निहारिका मेघ परिकल्पना
- क्युपर की आदिम ग्रह परिकल्पना
- जॉर्ज लिमेंत्रे का महाद्वीपीय विस्फोट सिद्धांत
अंततारक धूल परिकल्पना
(Inter-Steller Dust Theory)
- रूसी वैज्ञानिक 1943 में रूसी वैज्ञानिक ऑटो श्मिड ने दिया था।
- इस परिकल्पना में ग्रहों की उत्पत्ति गैस व धूलकणों से मानी गई है।
सिद्धांत
- उनके अनुसार जब सूर्य आकाशगंगा के करीब से गुजर रहा था तो उसने अपनी आकर्षण शक्ति से कुछ गैस मेघ तथा धूलकणों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया जो सामूहिक रूप से सूर्य की परिक्रमा करने लगे। इन्हीं धूलकणों के संगठित व घनीभूत होने से पृथ्वी व अन्य ग्रहों का निर्माण हुआ। यह परिकल्पना सूर्य और ग्रहों के बीच कोणीय संवेग, विभिन्न ग्रहों की संरचना में अंतर, ग्रहों की गति में अंतर, सूर्य व ग्रहों की वर्तमान दूरी आदि सभी की वैज्ञानिक व्याख्या करने में समर्थ है।
- इसमें कोणीय संवेग के वितरण में असमानता को स्पष्ट करते हुए ग्रहों व सूर्य की रासायनिक रचना की भिन्नता को उत्तरदायी बतलाया गया ।
- ग्रहों व उपग्रहों का निर्माण सूर्य से न होकर गैस व धूल के बादल से माना है ।
- सूर्य के निकट भारी पदार्थ वाले ग्रह स्थित हैं तथा दूर हल्के पदार्थ से निर्मित ग्रह हैं ।
आलोचना
- यह सिद्धान्त यह बताने में असमर्थ रहा कि सूर्य ने गैस व धूल के कणों को आकर्षित कैसे किया।
- गैस तथा धूल का बादल सूर्य की तरफ किस प्रकार आकर्षित हो गया जबकि आकाशीय नक्षत्रों में काफी दूरियां रहती हैं ।
- यदि गैस तथा धूल के कण बिखरे हुए थे , तो सूर्य ने कैसे अपहरण कर लिया ?
- गैस तथा धूल का बादल किस प्रकार अन्तरिक्ष में आया ? इसका कोई उल्लेख नहीं है ।
- इस परिकल्पना में ग्रहों की प्रारम्भिक अवस्था शीतल एवं ठोस मानी गई है , जिससे अधिकांश भू – गर्भ वैज्ञानिक सहमत नहीं हैं ।
चैम्बरलीन तथा मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना
इन्होंने अपनी ग्रहाणु परिकल्पना के माध्यम से सौरमंडल की उत्पत्ति , वायुमंडल का संगठन, उष्मा की उत्पत्ति तथा महाद्वीप एवं महासागर की रचना की उत्पत्ति के विषय में बताने का प्रयास किया।
चैंम्बरलीन के अनुसार ब्रह्मांड में दो विशाल तारे थे एक सूर्य तथा दूसरा उसका साथी विशाल तारा था। प्रारंभ में सूर्य ठोस कणों से निर्मित एक शीतल पिंड था। उनके अनुसार जब सहायक तारा सूर्य के पास से होकर गुजरा तो उसके आकर्षण बल के कारण सूर्य की सतह से असंख्य छोटे-छोटे कण बाहर आकर अलग हो गए। जिन्हें ग्रहाणु कहा गया।
यह तारा जब सूर्य से दूर चला गया तो सूर्य से निकले हुए यह पदार्थ सूर्य के चारों तरफ घूमने लगे तथा यही धीरे-धीरे संघनित होकर ग्रहों के रूप में परिवर्तित हो गए। इस प्रकार ग्रहों का निर्माण दो विशाल तारों सूर्य एवं उसके साथी विशाल तारे से हुआ।
कांट की वायव्य राशि परिकल्पना (1755)
आधार – न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम
मान्यताएं- ब्रह्मांड में दैव निर्मित आद्य पदार्थों की बिखरी हुई अवस्था में पूर्व उपस्थिति।
• प्रारंभ में यह अत्यंत कठोर, शीतल, गतिहिन थे।
सौरमंडल के निर्माण की प्रक्रिया- आपसी आकर्षण के कारण कण आपस में टकराने लगे जिससे ताप में निरंतर वृद्धि हुई तथा वह वायव्य राशि में परिवर्तित हुई। निरंतर ताप में भ्रमण तथा गति में वृद्धि के कारण वायव्य राशि निहारिका में परिवर्तित हो गई। जमकर ठोस हो गए और इस तरह नौ ग्रहों का निर्माण हुआ।
मौलिक निहारिका का जो भाग बचा रह गया वह तारों में परिवर्तित हो गए।
उपग्रहों का निर्माण भी उपरोक्त प्रक्रिया की पुनरावृति के द्वारा हुआ।
आलोचना-
1- टकराव का भ्रमण गति से कोई संबंध नहीं है क्योंकि कोणीय आवेग की स्थिरता के सिद्धांत के अनुसार न हीं टकराव से गति उत्पन्न हो सकती है और न ही किसी पिंड के आकार में वृद्धि होने से उसकी गति में कमी आती है।
लाप्लास की निहारिका का परिकल्पना
परिचय : इनकी निहारिका परिकल्पना कांट की वायव्य राशि परिकल्पना का संशोधित स्वरुप है।
मान्यताएं –
• विशाल ज्ञात निहारिका की पहले से ही विद्यमान या उपस्थिति।
• यह पहले से ही गतिशील थी।
• निहारिका निरंतर शीतल होकर गुजरती गई।
वर्णन : उपर्युक्त मान्यताओं के आधार पर इनके अनुसार निहारिका के आयतन में कमी के कारण निहारिका के गति में निरंतर वृद्धि होने लगी।
घूर्णन गति में वृद्धि से अपकेंद्रीय बल में वृद्धि हुई जब अपकेंद्रीय बल गुरुत्वाकर्षण बल से अधिक हो गया तब निहारिका से एक छल्ला अलग हो गया और वह छल्ला कई भागों में खंडित हो गया।
यह छल्ला ही ठंडा होकर ग्रह एवं उपग्रह बन गए निहारिका का शेष भाग हमारा सूर्य है।
कालांतर में फ्रांसीसी विद्वान राशि ने इनकी परिकल्पना में संशोधन किया तथा बताया कि निहारिका से कई पतली छल्ले अलग हुए यह प्रत्येक छल्ले घनीभूत होकर ग्रह बन गए।
जेंम्स जींस की ज्वारीय परिकल्पना
इस परिकल्पना का प्रतिपादन जेम्स जींस (1919) ने किया 1929 में जेफरीज ने संशोधन के द्वारा इसे और प्रासंगिक बनाने का प्रयास किया ।
मान्यताएं-
- सौरमंडल का निर्माण सूर्य एवं अन्य साथी तारे से।
- सूर्य अपनी जगह पर स्थिर व घूम रहा था।
- पथ के सामने घूम रहा साथी तारा सूर्य के निकट आ रहा था।
- साथी तारा सूर्य से आकार व आयतन में काफी बड़ा था।
संकल्पना के मुख्य भाग का वर्णन – निकट आ रहे साथी तारे के आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य की सतह पर ज्वार उत्पन्न होने लगा जब तारा सूर्य के निकटतम दूरी पर आ गया तो इसकी आकर्षण शक्ति सूर्य से अधिक होने के कारण हजारों किलोमीटर लंबा सिगार के आकार का ज्वार सूर्य के बाह्य भाग से उठा।
शिगार के आकार वाले इस भाग को फिलामेंट कहा गया साथी तारे के सूर्य के अत्यधिक निकटतम दूरी पर पहुंचने से उत्पन्न अधिकतम आकर्षण शक्ति के कारण विशाल फिलामेंट सूर्य से अलग होकर साथी तारे के तरफ अग्रसरित हुआ।
चुकी साथी तारा सूर्य के मार्ग पर नहीं था यही कारण है कि फिलामेंट तारे के साथ न जा सका। और वह सूर्य के चारों तरफ परिक्रमा करने लगा। फिलामेंट का सूर्य के पास पुन: न आने का कारण फिलामेंट का सूर्य की आकर्षण क्षेत्र से बाहर होना था।
साथी तारे के बहुत दूर चले जाने के कारण पुनः कोई भी फिलामेंट सूर्य से अलग नहीं हुआ।
फिलामेंट सिगार के आकार में मध्य में मोटा तथा किनारे पर पतला था किनारे पर फिलामेंट के पतला होने का कारण सूर्य की आकर्षण शक्ति को बताया जाता है।
फिलामेंट में गति का प्रभाव दूर होते हुए तारों के गुरुत्वाकर्षण शक्ति के खींचाव के द्वारा हुआ।
ग्रहों एवं उपग्रहों की उत्पत्ति – फिलामेंट के शीतल व संकुचन होने से वह कई टुकड़ों में टूट गया तथा घनीभूत होकर ग्रहो में बदल गया।इसी प्रकार सूर्य के आकर्षण शक्ति के कारण ग्रहों में ज्वार उत्पन्न होने से अलग हुए कई कुछ पदार्थ घनीभूत होकर उपग्रह बन गए।यह प्रक्रिया तब तक चलती रही जब तक ज्वारीय पदार्थों की केंद्रीय आकर्षण शक्ति उन्हें संगठित रखने में समर्थ न हो गई।
ग्रहों एवं उपग्रहों का क्रम व प्रकार – फिलामेंट का मध्य भाग चौड़ा तथा किनारे का भाग पतला होने के कारण मध्य में बड़े ग्रह तथा किनारे पर छोटे ग्रह बने । यही स्थिति उपग्रहों की भी है इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि ग्रह और उपग्रह की रचना प्रणाली एक जैसी है।
आधुनिक सिद्धांत
ब्रह्मांड की उत्पत्ति – आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधितक्सर्वमान्य सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत है इसे विस्तृत ब्रह्मांड की परिकल्पना भी कहते हैं।
1920 ईस्वी में एडमिड हंबल ने प्रमाण दिए कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है और समय बीतने के साथ आकाश गंगा एक दूसरे से दूर हो रही हैं।
हम प्रयोग कर जान सकते हैं कि ब्रह्मांड के विस्तार का अर्थ क्या है – एक गुब्बारा ले और उस पर कुछ निशान लगाएं और उस निशान को आकाश गंगा मान ले अब गुब्बारे को फुल आएंगे तो गुब्बारे पर लगे निशान आपस में दूर जाते दिखेंगे इसी प्रकार आकाशगंगा की दूरी बढ़ रही है। वैज्ञानिक मानते हैं कि आकाशगंगा के बीच की दूरी बढ़ रही है परंतु प्रेक्षण अकाश गंगा के विस्तार को सिद्ध नहीं करते अतः गुब्बारे का उदाहरण आंशिक रूप से ही मान्य है।
निम्न अवस्थाएं
आरंभ में वे सभी पदार्थ जिन से ब्रह्मांड बना है अति छोटे गोलक के रूप में एक ही स्थान पर स्थित है। अति छोटे गोला के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे। जिसका आयतन अत्यधिक सूचना एवं तापमान तथा घनत्व अनंत था।
बिग बैंग प्रक्रिया से इस अति छोटे गोलक मैं भीषण विस्फोट हुआ और इस विस्फोट से ही बृहद विस्तार हुआ वैज्ञानिकों का विश्वास है कि बिग बैंक की घटना आज से 13.7 और वर्ष पहले हुई और ब्रह्मांड का विस्तार आज भी जारी है।
विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई।
बिग बैंग से 300000 वर्षों के दौरान तापमान 45000 डिग्री केल्विन तक गिर गया और परमाणु भी पदार्थ का निर्माण हुआ।
हायल ने इसका विकल्प स्थिर अवस्था संकल्पना के नाम से प्रस्तुत किया।
तारों का निर्माण – प्रारंभिक ब्रह्मांड में उर्जा व पदार्थ का वितरण सामान नहीं था।घनत्व में आरंभिक भिन्नता से गुरुत्वाकर्षण बलों में भिन्नता आई इसी कारण पदार्थ एकत्र हुए यही एकत्रण आकाशगंगा के विस्तार का आधार बना।
एक आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह है।
इसका विस्तार इतना अधिक होता है कि इसकी दूरी हजारों प्रकाश वर्ष में मापी जाती है।
एक आकाशगंगा का निर्माण की शुरुआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से होता है जिसे निहारिका कहा गया।
इस बढ़ती हुई निहारिका में गैस के झुंड विकसित हुए यह झुंड बढ़ते बढ़ते घने गैसीय पिंड बने जिससे तारों का निर्माण आरंभ हुआ।