महासागरीय जल धाराएं

महासागरीय जल धाराएं

महासागरीय जल का कार्य कई कारकों के द्वारा संपन्न होता है। जिनमें सागरीय लहर,सागरीय धाराएं सुनामी तथा ज्वारीय तरंग प्रमुख है।
महासागरीय बेसिन में उत्पन्न जल के क्षेत्रीय व ऊर्ध्वाधर गति के द्वारा जल के चक्रीय प्रवाह से महासागरीय परिसंचरण का विकास होता है। इस परिसंचरण में जलीय सतह पर उत्पन्न क्षैतिज गति को जलधारा कहते है।
उत्पत्ति व सीमा रेखाओं के आधार पर जल धाराओं को तीन वर्गों में रखा जा सकता है।

  1. ड्रिफ्ट
  2. जलधारा
  3. स्ट्रीम

ड्रिफ्ट :-पवन जनित परिसंचरण द्वारा उत्पन्न जलधारा को ड्रिफ्ट कहते है।
इसका भी अत्यंत एवं सीमा रेखा की अस्पष्ट होती है।

जलधारा :- जल धारा को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों को सम्मिलित प्रभाव से जलधारा की उत्पत्ति होती है जिसका वेग ड्रिफ्ट की तुलना में अधिक व सीमा रेखा भी अधिक स्पष्ट होता है।

स्ट्रीम :- जल धाराओं के समूह को स्ट्रीम कहते है । इसका वेग सर्वाधिक होने के साथ-साथ इसकी सीमा रेखा भी स्पष्ट होती है जैसे गल्फ स्ट्रीम।

सागरीय नितल पर जल धारा के विपरीत दिशा में मंद गति से जल के क्षैतिज प्रवाह को सर्पण (creeping) कहते है । महासागरीय परिसंचरण के द्वारा विभिन्न अक्षांशों के मध्य उष्मा के स्थानांतरण के कारण अक्षांशीय तापीय संतुलन की स्थिति उत्पन्न होती है।

महासागरीय जलधारा की उत्पत्ति व विकास को प्रभावित करने वाले कारक :-
तापमान :- हम जानते हैं कि महासागरीय में उत्पन्न तापीय प्रवणता के कारण ही जलधारा की उत्पत्ति होती है। भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में अधिक तापमान के साथ निम्न वायुदाब के कारण उच्च आद्रता वाले बादलों के द्वारा वाष्पीकरण की तुलना में वर्षा काफी अधिक होती है जिससे लवणता में कमी आने से घनत्व में भी कमी आ जाती है।परिणाम स्वरूप जल स्तर में वृद्धि होने के कारण जल धाराएं निम्न जल स्तर की ओर चल पड़ती हैं। इसी तरह उच्च अक्षांशीय प्रदेशों में हिमगलन के द्वारा स्वच्छ जल की आपूर्ति होने से लवणता में कमी के साथ घनत्व में कमी आनेे के साथ जल स्तर में वृद्धि हो जाती है । उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश की ओर निकल पड़ती है जलधाराओं के चलने का यही प्रमुुुुख कारण हैै।
जैसे- लैब्राडोर की जलधारा

जल की लवणता एवं घनत्व :- सामान्य अक्षांशीय प्रदेशों में जलधारा की उत्पत्ति का मुख्य कारण लवणता होता है खुले महासागर तथा अंंशत: जलीय भाग के बीच लवणता का घनत्व से समानुपातिक संबंध होने के कारण जलधाराएं चलती है।
जैसे -उत्तरी अटलांटिक महासागर से भूमध्य सागर की तरफ तथा उत्तरी अटलांटिक महासागर से बाल्टिक सागर की तरफ।
उल्लेखनीय है कि जल धाराओं की उत्पत्ति का मुख्य कारण घनत्व में परिवर्तन के कारण जल स्तर में परिवर्तन का होना है।
चलने वाली जलधारा का मुख्य कारण क्रमशः भूमध्य सागर के सापेक्ष उत्तरी अटलांटिक महासागर की लवणता तथा उत्तरी अटलांटिक महासागर के सापेक्ष वॉल्टिक महासागर की लवणता का कम होना है। क्योंकि हम जानते हैं कि लवणता कम होने से घनत्व में कमी आने के कारण जल स्तर में वृद्धि होती है।
पवन :- हम जानते हैं कि पवन जनित परिसंचरण को ड्रिफ्ट कहते है । उत्तरी अटलांटिक ड्रिफ्ट तथा प्रशांत महासागर ड्रिफ्ट के विकास मे जहां पछुआ पवनों की मुख्य भूमिका है वहीं उत्तरी एवं दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधारा की उत्पत्ति में व्यावहारिक पवनों की उत्पत्ति को नकारा नहीं जा सकता । कनारी जैसी ठंडी जलधारा की उत्पत्ति में अब तक पवन मुख्य भूमिका अदा की है ।
कमोवेश कैलिफोर्निया नामक ठंडी जलधारा की यही स्थिति है ।

जल धाराओं के दिशा को प्रभावित करने वाले कारक :-
1.पवन की दिशा

  1. कोरियॉलिस बल
  2. तट का स्वरूप एवं विस्तार की दिशा
  3. महासागरीय नितली स्थलाकृति
  4. ऋतुवत परिवर्तन
    कोरियालिस बल :– पृथ्वी की घूर्णन गति से उत्पन्न कोरियॉलिस बल के द्वारा उत्तरी गोलार्ध में जल धाराओं की दिशा clockwise तथा दक्षिणी गोलार्ध में Anticlockwise होती है।
    तट का स्वरूप एवं विस्तार :- यह जल धाराओं के दिशा को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण है क्योंकि अधिकांश जल धाराएं तट से संलग्न होकर प्रवाहित होती है।

महासागरीय नितलीय स्थलाकृति :- महासागरीय नितल पर पाए जाने वाले कटक महासागरीय जल धाराओं को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है ।

ऋतुवत परिवर्तन :- ऋतुवत परिवर्तन का हिंद महासागर पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। ग्रीष्म ऋतु के समय चलने वाली दक्षिणी पश्चिमी जलधारा तथा शीत ऋतु के समय चलने वाली उत्तरी पूर्वी जलधारा की उत्पत्ति का मुख्य कारण ऋतुवत परिवर्तन ही है।
जल धाराओं की सामान्य विशेषताएं :-

1- समानता गर्म जलधारा की दिशा निम्न अक्षांश से उच्च अक्षांश की तरफ तथा ठंडी जलधारा की दिशा उच्च स्थानों से निम्न अक्षांशों की तरफ होती है।
2- उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अपतट व्यापारिक पवन के कारण महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में ठंडी जलधारा तथा पूर्वी भाग में गर्म जलधारा की उत्पत्ति होती है। पछुआ पवन से प्रभावित मध्य अक्षांशीय क्षेत्र में इसके विपरीत स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
3- उत्तरी अटलांटिक महासागर में जलधारा प्रतिरूप का स्पष्ट विकास होता है वहीं दक्षिणी अटलांटिक महासागर में स्थल खंड के अभाव के कारण तथा प्रशांत महासागर का क्षेत्रीय विस्तार अधिक होने के कारण स्पष्ट प्रतिरूप का विकास नहीं हो पाता है। इसी तरह हिंद महासागर में जल धाराओं को स्पष्ट प्रतिरूप के विकसित ना होने का मुख्य कारण ऋतुवत परिवर्तन होता है।

आंध्र महासागर की धाराएं

1- ठंडी धाराएं

  • कनारी
  • लेब्राडोर
  • फाकलैंड धारा
  • दक्षिणी अटलांटिक धारा
  • बेंगुला धारा
  • उत्तरी अटलांटिक धारा

गर्म धाराएं

  • उत्तरी विषुवतीय जलधारा
  • दक्षिणी विषुवतीय जलधारा
  • गल्फ स्ट्रीम
  • फ्लोरिडा धारा
  • ब्राजील की धारा

प्रशांत महासागर की धाराएं

गर्म धाराएं-

  • उत्तरी विषुवतीय धारा
  • दक्षिणी विषुवतीय धारा
  • प्रति विषुवतीय धारा
  • क्यूरोशियो तंत्र
  • सुशिमा धारा
  • एल नीनो
  • पूर्वी आस्ट्रेलिया धारा

ठंडी धाराएं-

  • ओशियो धारा
  • कैलिफोर्निया की धारा
  • पेरू की धारा
  • ला नीना
  • क्यूराइल

हिंद महासागर की धाराएं

गर्म धाराएं- 

  • दक्षिण विषुवतीय धारा
  • मोजाम्बिक धारा
  • अगुलहास धारा

ठंडी धाराएं-

  • पश्चिमी आस्ट्रेलिया धारा

प्रमुख महासागरीय जलधाराएं –

अटलांटिक महासागर की जलधाराएं:- अध्ययन की सुविधा के दृष्टिकोण से अटलांटिक महासागर जलधारा को दो उप वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है।


उत्तरी अटलांटिक महासागर जलधारा

• गल्फ स्ट्रीम विषुवतीय जलधारा (गर्म)

• लैब्रोडोर (गर्म जलधारा)

• कनारी ( ठंडी जलधारा)

उत्तरी विषुवतीय जलधारा – व्यापारिक पवनों के प्रभाव से तथा कनारी की ठंडी जलधारा के अग्रभाग द्वारा विषुवत जल क्षेत्रों में धक्का दिए जाने के कारण पूरब से पश्चिम दिशा में 0 से 10 डिग्री उत्तरी अक्षांश के मध्य यह जलधारा चलती है।
यह एक गर्म जलधारा है जो दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप के पूर्वी तट से टकराने के बाद दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है। एक शाखा एण्टीलीज नाम से तथा दूसरी शाखा कैरीबियन सागर में यूकाटन चैनल तक प्रवाहित होती है।
गल्फ स्ट्रीम या खाड़ी की धारा – यह धारा तीन धाराओं का एक सम्मिलित रूप है जो कि मेक्सिको की खाड़ी से लेकर ग्रीनलैंड आइसलैंड तथा पश्चिमी यूरोपीय क्षेत्र तक प्रवाहित होती है। इसकी खोज सर्वप्रथम पोंस-डी-लिओन द्वारा 1513 ईसवी में किया गया।
यह जलधारा फ्लोरिडा जलडमरूमध्य से हैटरस अंतरिप तक फ्लोरिडा जलधारा के नाम से जानी जाती है। हैटरस अंतरीप से ग्रैंड बैंक के बीच इसे गल्फ स्ट्रीम के नाम से जानी जाती है गल्फ स्ट्रीम अपने दाहिने ओर सारगैसो सागर से तथा बाई ओर यूएसए के पूर्वी तट से संलग्न ठंडी दीवारों से अलग होकर प्रवाहित होती है। 40 डिग्री उत्तरी अक्षांश के आसपास पछुआ हवाओं तथा कोरियॉलिस बल के कारण उत्तरी अटलांटिक प्रवाह के नाम से पश्चिमी यूरोप तक प्रवाहित होती है।उल्लेखनीय है कि 40 डिग्री उत्तरी अक्षांश के आस-पास ही लैब्राडोर की खाड़ी से जन्मी लैब्राडोर नामक ठंडी जलधारा गल्फ स्ट्रीम से मिलती है।
उत्तरी अटलांटिक प्रवाह की एक शाखा इरमिंजर के नाम से आइसलैंड के दक्षिण में तथा ग्रीनलैंड के दक्षिण में ग्रीनलैंड जलधारा के नाम से प्रवाहित होती है।
उत्तरी अटलांटिक की एक शाखा रेनेल जलधारा के नाम से स्पेन और फ्रांस के तटवर्ती क्षेत्र में प्रवाहित होती है।
यही जलधारा पुुन: कनारी के जलधारा से मिल जाती है।उल्लेखनीय है कि गल्फ स्ट्रीम एक गर्म जलधारा है इसलिए इससे संबंधित सभी जलधाराएं उष्ण होंगी।

लैब्राडोर की जलधारा – हिम गलन के द्वारा स्वच्छ जल की आपूर्ति से लैब्राडोर की खाड़ी में लैब्राडोर नामक ठंडी जलधारा की उत्पत्ति होती है जो कि उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर प्रवाहित होते हुए गल्फ स्ट्रीम की जलधारा से मिल जाती है।
कनारी की जलधारा – यह एक ठंडी जलधारा है। जो अफ्रीका महाद्वीप के पश्चिमी तट पर विषुवत रेखीय क्षेत्र में अपतट व्यापारिक पवनों के द्वारा महासागरीय जल के हटाए जाने से विकसित होती है। इसकीी

सारगेसो सागर – उत्तरी अटलांटिक महासागर में उत्तरी विषुवत रेखा जलधारा गल्फ स्ट्रीम तथा कनारी धारा द्वारा विकसित प्रतिचक्रवात प्रवाह के कारण अटलांटिक महासागर के मध्य भाग का जल शांत व गतिहीन हो जाता हैं। इस क्षेत्र में सारगेसम नामक सागरीय घास पाए जाने के कारण इसे सारगेसम (पोंचूगीज) कहते हैं।
मारमर के अनुसार सारगैसो सागर का विस्तार 20 डिग्री से 40 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा 35 डिग्री पश्चिमी देशांतर से 75 डिग्री पश्चिमी देशांतर के मध्य पाया जाता है।
सारगैसो सागर की उत्पत्ति के कारण
1- जल धाराओं के चक्राकार गति के कारण बीच के जल का शांत व गतिहीन होना।
2- पछुआ तथा व्यापारिक हवाओं के अवांतर मंडल में स्थित होने के कारण प्रतिचक्रवाती दशा का प्रभाव।
3- उत्तरी विषुवतीय जलधारा तथा गल्फ स्ट्रीम की तीव्र गति के कारण बीच के जल का शांत पड़ना।
4- उच्च तापमान,अत्यधिक वाष्पीकरण तथा शेष महासागरीय जल से संपर्क न होने के कारण यह अटलांटिक महासागर का (सर्वाधिक लवणता वाला (37% ) क्षेत्र में हैं।

दक्षिणी अटलांटिक महासागर जलधारा
• दक्षिणी विषुवत जलधारा
• ब्राजील की जलधारा
• फाकलैंण्ड की जलधारा
• दक्षिणी अटलांटिक की जलधारा
• बेगुला की जलधारा
दक्षिणी विषुवत की जलधारा-
यह एक गर्म जलधारा है जो व्यापारिक पवनों के प्रभाव से पूरब से पश्चिम दिशा में विषवत रेखीय क्षेत्र (0 से 10 डिग्री दक्षिणी अक्षांश) में प्रवाहित होती है। वास्तव में यह वेगूला नामक ठंडी जलधारा की अग्रभाग है।

ब्राजील की जलधारा – दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधारा दक्षिणी अमेरिका के ब्राज़ील तट से टकराने के बाद यह जलधारा ब्राजील तट के समानांतर ब्राजील जलधारा के नाम से प्रवाहित होने लगती है।

फाकलैंण्ड जलधारा – अंटार्कटिक महासागर का ठंडा जल दक्षिण से उत्तर दिशा में फाकलैंण्ड की ठंडी जलधारा के रूप में अर्जेंटीना तक प्रवाहित होता है तथा ब्राजील की जलधारा से मिल जाता है।

दक्षिणी अटलांटिक जलधारा – (अण्टार्कटिक प्रवाह)
कोरियॉलिस बल तथा स्थलखण्डों की अनुपस्थिति में पछुआ पवनों के अनुरूप अंटार्कटिक महासागर में एक ठंडी जलधारा प्रवाहित होती है जिसे दक्षिणी अटलांटिक जलधारा, पछुआ जलधारा कहते हैं। यह ब्राजील जलधारा का अग्रभाग है।

बेगुला जलधारा
दक्षिणी अटलांटिक जलधारा अफ्रीका महाद्वीप के दक्षिणी सिरे से टकराने के कारण इस जलधारा का कुछ अंश ठंडी जलधारा के रूप में दक्षिण से उत्तर दिशा में अफ्रीका महादीप के पश्चिमी तट पर प्रवाहित होता हैं। इसे ही बेगुला जलधारा कहते हैं।

प्रति विषुवत रेखीय जलधारा-
उत्तरी एवं दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधारा के मध्य में दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप के पास अधिशेष जल एकत्र होने के कारण अफ्रीका महाद्वीप के तरफ एक नैसर्गिक ढाल बन जाता है। इस कारण अफ्रीका तट के पास कम जल राशि के पूर्ति के लिए क्षतिपूर्ति जलधारा के रूप में प्रति विषुवतीय रेखीय जलधारा के रूप में चलती है। हालांकि इसका अस्तित्व पूर्व में गिनी तट तक ही रहता है। इसलिए इसे गिनी जलधारा के नाम से जाना जाता है।

प्रशांत महासागर की जलधाराएं

उत्तरी प्रशांत महासागर की जलधाराएं

1- उत्तरी विषुवत रेखीय जलधारा

2- क्यूरोशियो तंत्र

3- क्यूराइल जलधारा

4- कैलिफोर्निया जलधारा

1- उत्तरी विषुवत रेखीय जलधारा- यह जलधारा विषुवत रेखीय क्षेत्र में पूरब से पश्चिम दिशा में व्यापारिक पवनो के प्रभाव के कारण मेक्सिको के तट से फिलिपिंस के तट तक प्रभावित होती है। यह एक गर्म जलधारा है जो कैलिफोर्निया के ठंडी जलधारा का अग्रभाग है। 

2- क्यूरोशियो तंत्र- यह गल्फ स्ट्रीम तंत्र के समान गर्म जलधारा है जो कई जल धाराओं का समूह है उत्तरी विषुवत रेखीय जलधारा के आगे बढ़ने से इस जलधारा का विकास होता है। जापान तट के निकट क्यूरोशियो जलधारा के नाम से जाना जाता है। इसके बाद पछुआ हवाओं के कारण यह जलधारा जापान तट को छोड़कर पूरब की ओर प्रवाहित होने लगती है। 35 अंश उत्तरी अक्षांश के आसपास यह जलधारा क्यूराइल तथा ओयाशियो नामक ठंडी जलधारा से मिलती है। जापान के पश्चिमी तट पर क्यूरोशियो की एक शाखा सुशिमा जलधारा के नाम से प्रवाहित होती हैं।

उत्तरी प्रशांत महासागरीय प्रवाह, उत्तरी अटलांटिक प्रवाह के अनुरूप है जो कि पृथ्वी के कोरियॉलिस बल तथा पछुआ हवाओं के प्रवाह के कारण पूरब दिशा में अलास्का तक प्रवाहित होती है। अलास्का के पास इसे अलास्का जलधारा के नाम से जाना जाता है।

हवाई द्वीप तथा अमेरिकी तटों के मध्य क्यूरोशियो तंत्र में चक्राकार रूप का विकास होने के कारण इसकी दिशा पश्चिम हो जाती है जिसे प्रति क्यूरोशियो जलधारा कहते हैं।

3- क्यूराइल जलधारा- हिमगलन के द्वारा स्वच्छ जल की आपूर्ति होने से बेरिंग सागर में एक ठंडी जलधारा का जन्म होता है जो उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश की तरफ प्रवाहित होते हुए क्यूरोशियो के जलधारा से मिल जाती है।

4- कैलिफोर्निया जलधारा- अपतट व्यापारिक पवनों द्वारा इस ठंडी जलधारा का जन्म कैलिफोर्निया (USA) से संलग्न USA के पश्चिमी तट पर होता है। यह जलधारा आगे बढ़कर उत्तरी प्रशांत महासागर में मिल जाती है।

दक्षिणी प्रशांत महासागर की जलधाराएं- व्यापारिक पवनों के प्रभाव के कारण पूरब से पश्चिम दिशा में विषुवत रेखीय क्षेत्र में दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट तथा ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के पूर्वी मध्य यह गर्म जल धारा प्रवाहित होती है।

पूर्वी आस्ट्रेलियन जलधारा- ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के पूर्वी तट से दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधारा से टकराने के बाद दक्षिण दिशा में प्रवाहित होनेे पर एक नयी जलधारा की उत्पत्ति होती है। यह एक गर्म जलधारा है। जिसे पूर्वी ऑस्ट्रेलियन जलधारा के नाम से जाना जाता है।

पछुआ पवन प्रवाह- यह दक्षिणी अटलांटिक प्रवाह के समान है। इसकी उत्पत्ति दक्षिणी अटलांटिक महासागर में कोरियॉलिस बल तथा स्थल खंड की अनुपस्थिति में होती है। यह पछुआ पवन के अनुरूप प्रवाहित होती है। यह एक ठंडी जलधारा है।

पीरु अथवा हम्बोल्ट की जलधारा- पछुआ पवन प्रवाह के दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के दक्षिणी क्षोर से टकराने के बाद पछुआ पवन प्रवाह का एक अंश उत्तर दिशा में दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में पश्चिमी तट से संलग्न प्रवाहित होती है। यह एक ठंडी जलधारा है जिसे पीरु अथवा हम्बोल्ट की जलधारा कहते हैं।

हिंद महासागर की जलधाराएं

मानसूनी जलवायु तथा अस्थल मंडलीय प्रभाव के कारण इस माह सागर के जल धाराओं के प्रति रूप में रितु वत परिवर्तन होता है। भारतीय महाद्वीप अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया महाद्वीप से घिराहोने के कारण इस महासागर में जल धाराओं का स्थानिक क्रम विकसित नहीं हो पाता है इसी तरह मानसूनी हवाओं के कारण हिंद महासागर के कुछ जल धाराओं के कारण साल भर में 2 बार परिवर्तन हो जाता है।हिंद महासागर की जल धाराएं –

  • उत्तरी पूर्वी मानसूनी जलधारा
  • दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी जलधारा
  • दक्षिण अमेरिका विषुवत रेखीय जलधारा
  • विपरीत जलधारा
  • मोजांबिक तथा अगलूहास जल धारा
  • पछुआ पवन प्रवाह
  • लिविन धारा


उत्तरी पूर्वी मानसूनी जलधारा – शीत ऋतु में उत्तरी पूर्वी मानसूनी हवाओं के प्रभाव से उत्तरी हिंद महासागर में इस जलधारा की उत्पत्ति होती है। इसकी दिशा दक्षिणी पश्चिमी अथवा पश्चिमी होती है । ग्रीष्म काल में यह जलधारा लुप्त हो जाती है।
दक्षिणी पश्चिमी मानसून की जलधारा – ग्रीष्म काल में मानसूनी जलवायु प्रभाव के कारण उत्तरी हिंद महासागर में दक्षिणी पश्चिमी जलधारा की उत्पत्ति होती है यह जलधारा उत्तर पूर्व दिशा में प्रवाहित होती है तथा शीतकाल में लुप्त हो जाती है।
दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधारा – दक्षिणी हिंद महासागर में मानसूनी जलवायु का प्रभाव कम होने के कारण ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका महाद्वीप के मध्य विषुवत रखिए क्षेत्र में ( शून्य से 10 डिग्री दक्षिणी अक्षांश ) इस जलधारा की उत्पत्ति होती है या जलधारा व्यापारी पौधों के प्रभाव से पूरब से पश्चिम दिशा में प्रवाहित होती है।
विपरीत धारा – शरद काल उत्तरी गोलार्ध के समय ही जंजीबार से सुमात्रा के बीच विषुवत रेखा के संलग्न क्षेत्र में (2 डिग्री से 80 डिग्री दक्षिणी ) पश्चिम से पूरब दिशा में यह जलधारा चलती है।
मोजांबिक तथा अगलूहास जलधारा – दक्षिण विषुवत रेखीय जलधारा की एक शाखा अफ्रीका महादीप से टकराने के बाद दक्षिण की ओर प्रवाहित होने लगती है जिसे क्रमश: मोजांबिक क्षेत्र तथा अगलू हास अंतरिप के पास मोजांबिक तथा अगलूहास जलधारा के नाम से जाना जाता है।
पछुआ पवन प्रवाह – अंटार्कटिक महासागर में अस्थल खंडों की उपस्थिति तथा कोरियॉलिस बल के कारण पछुआ पवन के अनुरूप प्रवाहित होने वाली ठंडी जलधारा को पछुआ पवन प्रवाह कहते हैं।
लिवीन जलधारा – यह जलधारा जावा सुमात्रा के दक्षिण में पूरब से पश्चिम दिशा में प्रवाहित होती है यह दक्षिण पश्चिम विषुवत जलधारा की कृष्ठ भाग है।

महासागरीय जल धाराओं का प्रभाव

  • महासागरीय जलधाराएं महासागरीय क्षेत्र में जल के साथ ऊष्मा का स्थानीय व कालिक वितरण करते हैं। जिसका क्षेत्र विशेष में जलवायु व्यवसाय तथा समुद्री जैविक परितंत्र पर क्रांतिकारी प्रभाव पड़ता है। इसका प्रभाव हानिप्रद तथा लाभप्रद दोनों होता है।
  • गल्फ स्ट्रीम जलधारा पश्चिमी यूरोपीय क्षेत्र में प्रवाहित होकर वहां की क्षेत्र के तापमान को बढ़ाकर वहां की जलवायु को मानव के अनुकूल बना देती है। हालांकि यूएसए इससे सकारात्मक रूप से लाभान्वित नहीं होता है क्योंकि इस जलधारा द्वारा ग्रीष्म काल में अमेरिका में ग्रीष्म लहर को जन्म दिया जाता है । वही शीतकाल में अमेरिका के पछुआ हवाओं के ( स्थलीय हवा ) के कारण अमेरिका को इसका लाभ नहीं मिल पाता है।
  • ठंडी जलधाराए ( लैबराडोर, क्यूराइल ) क्षेत्र विशेष तापमान को काफी कम कर देती है गर्म आदर जल धाराएं वर्षा के सहायक पश्चिमी यूरोपीय क्षेत्र ठंडी जलधाराएं ( कनारी बैगलू हम्बोल्ट ) मरुस्थल के विकास में भी भूमिका अदा करती है।
  • ठंडी और गर्म जलधारा के मिलन स्थल पर काफी कोहरा पड़ता है।
  • एलनीनो तथा लानीना जैसी जलधारा विश्व के मौसम प्रतिरूप को परिवर्तन करने की क्षमता रखती है।
  • ठंडी एवं गर्म धाराएं मिलकर मछलियों को जन्म देती हैं।
  • जल धाराओं के द्वारा प्लैकटन नामक घास लाकर मछलियों के विकास के लिए आदर्श स्थिति उत्पन्न किया जाता है जैसे गल्फ स्ट्रीम द्वारा न्यूफाउंडलैंड ( ग्राण्ड बैंक ) तथा पश्चिमी यूरोपीय तटीय क्षेत्र में (डांगर बैंक ) प्लैकटन घास को लेने आने के कारण यह क्षेत्र विश्व का प्रमुख मत्स्य उत्पादक क्षेत्र है।
  • जल धाराओं का समुंद्री परिवहन पर भी असर पड़ता है । गर्म एवं ठंडे जल धाराओं के सम्मिलित स्तर पर कोहरा पड़ने से व्यापारिक जहाजों का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। ठंडे जल धाराओं के द्वारा बर्फ के बड़े बड़े टुकड़े ले आए जाने के कारण जहाजों का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है।

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