प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना
चर्चा में क्यों?
● वर्तमान में 35 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में कार्यान्वित आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत शुरू की गई ‘प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना’ (Pradhan Mantri Formalisation of Micro food processing Enterprises- PMFME) ने 29 जून, 2021 एक वर्ष पूरे किये।
प्रमुख बिंदु
नोडल मंत्रालय
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (Ministry of Food Processing Industries- MOFPI)|
विशेषताएं
● एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) दृष्टिकोण
- राज्य मौजूदा समूहों और कच्चे माल की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए ज़िलों के लिये खाद्य उत्पादों की पहचान करेंगे।
- ODOP एक खराब होने वाली उपज आधारित या अनाज आधारित या एक क्षेत्र में व्यापक रूप से उत्पादित खाद्य पदार्थ जैसे- आम, आलू, अचार, बाजरा आधारित उत्पाद, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, आदि हो सकते हैं।
● फोकस के अन्य क्षेत्रः
- वेस्ट टू वेल्थ उत्पाद, लघु वन उत्पाद और आकांक्षी ज़िले।
- क्षमता निर्माण तथा अनुसंधान: इकाइयों के प्रशिक्षण, उत्पाद विकास, उपयुक्त पैकेजिंग और सूक्ष्म इकाइयों के लिये मशीनरी का समर्थन करने हेतु राज्य स्तरीय तकनीकी संस्थानों के साथ-साथ MOFPI के अंतर्गत
- आने वाले शैक्षणिक एवं अनुसंधान संस्थानों को सहायता प्रदान की जाएगी।
● वित्तीय सहायता:
- व्यक्तिगत सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों का उन्नयन: अपनी इकाइयों को अपग्रेड करने की इच्छा रखने वाली मौजूदा व्यक्तिगत सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ पात्र परियोजना लागत के 35% पर अधिकतम 10 लाख रुपए प्रति यूनिट के साथ क्रेडिट-लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी का लाभ उठा सकती हैं।
- SHG को प्रारंभिक पूंजी: कार्यशील पूंजी और छोटे उपकरणों की खरीद के लिये प्रति स्वयं सहायता समूहू (Self Help Group-SHG) सदस्य को 40,000 रुपए का प्रारंभिक वित्तपोषण प्रदान किया जाएगा।
समयावधि:
● वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक पाँच वर्षों की समयावधि में।
वित्तपोषण
- 10,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ यह एक केंद्र परायोजित योजना है।
- व्यय केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 60:40 के अनुपात में, उत्तर पूर्वी तथा हिमालयी राज्यों के बीच 90:10 के अनुपात में, विधायिका वाले केंद्रशासित प्रदेशों के साथ 60:40 के अनुपात में तथा अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के मामले 100% केंद्र सरकार द्वारा।
आवश्यकताः
- असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र जिसमें लगभग 25 लाख इकाइयाँ शामिल हैं, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 74
- प्रतिशत रोज़गार उपलब्ध कराता है।
- असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के समक्ष कई चुनौतियाँ में,जो उनके प्रदर्शन और विकास को सीमित करती हैं, आधुनिक प्रौद्योगिकी और उपकरणों तक पहुँच की कमी; संस्थागत प्रशिक्षण का अभाव; संस्थागत ऋण तक पहुँच की कमी; उत्पादों की खराब गुणवत्ता; जागरूकता की कमी; ब्रांडिंग और विपणन कौशल की कमी शामिल हैं।
भारतीय खाद्य उद्योग की स्थिति:
- भारतीय खाद्य और किराना बाज़ार विश्व का छठा सबसे बड़ा बाज़ार है, खुदरा बिक्री में इसका योगदान 70% है।
- देश के कुल खाद्य बाज़ार में भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की हिस्सेदारी 32% है, जो भारत के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है और उत्पादन, खपत, निर्यात तथा अपेक्षित वृद्धि के मामले में पाँचवें स्थान पर है।
- यह विनिर्माण और कृषि में सकल मूल्य वर्धित (GVA) में क्रमशः लगभग 8.80 और 8.39%, भारत के निर्यात में 13% और कुल औद्योगिक निवेश में 6% का योगदान देता है।
खाद्य प्रसंस्करण से संबंधित अन्य योजनाएँ:
- खाद्य परसंस्करण उद्योग हेतु उत्पादन लिंक्ड परोत्साहन योजना (PLISFPI): घरेलू इकाइयों में निर्मित उत्पादों से बिक्री में वृद्धि पर कंपनियों को प्रोत्साहन देना।
- मेगा फूड पार्क योजना: मेगा फूड पार्क क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से मज़बूत फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज के साथ खेत से बाज़ार तक मूल्य शृंखला के साथ खाद्य प्रसंस्करण के लिये आधुनिक बुनियादी सुविधाओं का निर्माण करते हैं।
दिव्यांग व्यक्तियों के लिये पदोन्नति में आरक्षण का अधिकार
चर्चा में क्यों
- हाल ही में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार किया है कि शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को पदोन्नति में भी आरक्षण का अधिकार है।
- एक दिव्यांग व्यक्ति तब भी पदोन्नति के लिये आरक्षण का लाभ प्राप्त कर सकता है, जब उसे सामान्य वर्ग में भर्ती किया गया हो या अक्षमता की स्थिति रोज़गार प्राप्त करने के बाद उत्पन्न हुई हो।
प्रमुख बिंदु
मामले के विषय में
- यह मामला ‘दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995’ के तहत प्रस्तुत एक दावे पर आधारित है।
- इस अधिनियम को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 के साथ प्रतिस्थापित किया गया है।
- केरल प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने आवेदक की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि सरकार द्वारा 1995 के अधिनियम की धारा 32 के तहत केरल राज्य में भर्ती के नियम, सामान्य नियम और इससे संबंधी आदेशों में पदोन्नति में किसी भी आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है।
- केरल उच्च न्यायालय ने केरल प्रशासनिक न्यायाधिकरण के फैसले को रद्द कर दिया था।
निर्णय का महत्त्व
- वर्ष 1995 का अधिनियम पदोन्नति में आरक्षण के अधिकार को मान्यता देता है।
- वर्ष 1995 के अधिनियम की धारा 32 के अनुसार, आरक्षण के लिये पदों की पहचान नियुक्ति हेतु एक पूर्वापेक्षा है; लेकिन पदों की पहचान करने से इनकार करके नियुक्ति के लिये मना नहीं किया जा सकता है।
- भर्ती नियमों में आरक्षण के प्रावधान की अनुपस्थिति किसी दिव्यांग व्यक्ति के अधिकार को समाप्त नहीं करती है, क्योंकि दिव्यांग व्यक्ति को यह अधिकार कानून से प्राप्त होता है।
- दिव्यांग व्यक्ति (PwD) को पदोन्नति के लिये आरक्षण दिया जा सकता है, भले ही वह व्यक्ति मूल रूप से PwD कोटे में नियुक्त न हुआ हो।
- इसके अलावा दिव्यांग व्यक्तियों को समान अवसर प्रदान करने का दायित्त्व भर्ती के समय उन्हें आरक्षण देने के साथ समाप्त नहीं होता है।
- विधायी जनादेश दिव्यांग व्यक्तियों को पदोन्नति समेत संपूर्ण कॅॅरियर में प्रगति के लिये समान अवसर प्रदान करता है।
- इस प्रकार यदि दिव्यांग व्यक्तियों को पदोन्नति से वंचित किया जाता है और यदि ऐसा आरक्षण सेवा में शामिल होने के प्रारंभिक चरण तक ही सीमित है तो यह विधायी जनादेश की उपेक्षा होगी ।
- यदि आरक्षण की व्यवस्था नहीं की जाती है तो इसके परिणामस्वरूप दिव्यांग व्यक्ति एक निश्चित पद तक सीमित हो जाएंगे और उनमें मानसिक तनाव बढ़ेगा।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016
- यह अधिनियम ‘विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय’ (United National Convention on the Rights of Persons with Disabilities- UNCRPD) के दायित्वों को पूरा करता है, जिस पर भारत ने भी हस्ताक्षर किये हैं।
- इस अधिनियम में विकलांगता को एक विकसित और गतिशील अवधारणा के आधार पर परिभाषित किया गया है:
- अपंगता के मौजूदा प्रकारों को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है।
- इस अधिनियम में मानसिक बीमारी, ऑटिज़्म, स्पेक्ट्रम विकार, सेरेब्रल पाल्सी, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, पुरानी न्यूरोलॉजिकल स्थितियांँ, बोलने और भाषा की विकलांगता, थैलेसीमिया, हीमोफिलिया, सिकल सेल रोग, बहरापर, अंधापन, एसिड अटैक से पीड़ित व्यक्ति तथा पार्किंसंस रोग सहित कई विकलांगताएंँ शामिल हैं, जिन्हें पूर्व अधिनियम में काफी हद तक नज़रअंदाज कर दिया गया था।
- इसके अलावा सरकार को किसी विशेष प्रकार की विकलांगता को अन्य श्रेणी में अधिसूचित करने का अधिकार दिया गया है।
- यह अधिनियम दिव्यांग लोगों हेतु सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा को 3%-4% और उच्च शिक्षा संस्थानों में 3%-5% तक बढ़ाता है।
- इस अधिनियम में बेंचमार्क विकलांगता (Benchmark-Disability) से पीड़ित 6 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिये निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई है।
- सरकारी वित्तपोषित शैक्षिक संस्थानों और सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थानों को दिव्यांग बच्चों को समावेशी शिक्षा प्रदान करनी होगी।
सुगम्य भारत अभियान (Accessible India
- Campaign) को मज़बूती प्रदान करने एवं निर्धारित समय-सीमा में सार्वजनिक इमारतों (सरकारी और निजी दोनों) में दिव्यांगजनों की पहुँच सुनिश्चित करने पर बल दिया गया है।
- दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों के लिये मुख्य आयुक्त और राज्य आयुक्त नियामक निकायों के रूप में कार्य करेंगे तथा शिकायत निवारण एजेंसियांँ, अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी करेंगी।
- दिव्यांगजनों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये ‘राष्ट्रीय और राज्य निधि’ (National and State Fund) का निर्माण किया जाएगा।
प्रवासी कामगारों के लिए ” वन नेशन वन राशन कार्ड ( ONORC)
चर्चा में क्यों
हाल ही में सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में 31 जुलाई 2021 तक ONORC को लागू करने का निर्देश दिया है।
प्रमुख बिंदु
- ONORC लागू करने का मुख्य उद्देश्य खाद्य सुरक्षा अधिनियम (N.F.S.A) के तहत आने वाले प्रवासी श्रमिकों तक उचित मुल्य की दुकान से राशन तक पहुंच सुनिश्चित करना है।
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ( N.S.O) के ( 2017-18) आंकड़ों के अनुसार लगभग 38 करोड़ श्रमिक असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जो रोजगार के कारण अन्य क्षेत्रों में चले जाते हैं।
वन नेशन वन राशन कार्ड प्रणाली
- प्रारंभ – अगस्त 2019 में
- उद्देश्य – प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों के सदस्यों को N.F.S.A. के लाभों में शामिल करना।
- ONORC में इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ सेल (epos) मशीनो का प्रयोग कर लाभार्थियों के राशन कार्ड, आधार कार्ड तथा बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण के माध्यम से लाभार्थी की पहचान कर देश के किसी भी हिस्से में उन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत लाना।
यह प्रणाली दो पोर्टलों के समर्थन में चलती है
- सार्वजनिक प्रणाली का एकीकृत प्रबंधन
- अन्य वितरण पोर्टल
लाभ
- लाभार्थी अपने हिस्से का राशन कहीं भी प्राप्त कर सकता है।
- महिलाओं तथा वंचित समूहों के लिए लाभदायक।
- सतत विकास लक्ष्य-2 को प्राप्त करने में सहायक
- global hunger index में भारत के गिरते स्तर ( 94/107) को रोकने में मदद।
एनर्जी कंपैक्ट
NTPC लिमिटेड भारत में ऊर्जा क्षेत्र की पहली ऊर्जा कंपनी बनी है जिसने ऊर्जा पर संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय वार्ता के हिस्से के रूप में अपने ऊर्जा कंपैक्ट लक्ष्यों को घोषित किया है।
- एनर्जी कंपैक्ट को UN – Energy द्वारा संगठित किया जा रहा है।
- यह SDG-7 के तीन मुख्य लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगी।
- SDG – 7 के मुख्य लक्ष्य – ऊर्जा तक पहुंच, नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता)
एनर्जी कंपैक्ट्स की आवश्यकता – विश्व स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में ऊर्जा क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है, जो औद्योगिकरण की सामान्य प्रवृत्ति को जारी रखते हुए हैं।
NTPC का एनर्जी कंपैक्ट लक्ष्य
- वर्ष 2032 तक 60GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। तथा 2032 तक शुद्ध उर्जा तीव्रता में 10% की कमी करना है।
- 2025 तक स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान की सुविधा के लिए कम से कम 2 अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाएगी।
- 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने SDG को पूरा करने के लिए 2021-2030 को “डिकेड आफ एक्शन” के रूप में घोषित किया।
पायरोस्टरियां लाल जी : अंडमान में नई प्रजाति
चर्चा में क्यों
हाल ही काफी फैमली के वर्ग से संबंधित एक नई प्रजाति पायरोस्टरियां लालजी अंडमान दीप समूह में खोजी गई है।
तथ्य
- भारत में जीन्स पायरोस्टरियां का यह पहला पौधा रिकॉर्ड किया गया जिसकी लम्बाई 15 मीटर है।
- IUCN की रेड लिस्ट में गंभीर संकट ग्रस्त की सूची में शामिल किया गया है।
भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण
- यह देश के जंगली पौधों के संसाधनों पर टैक्सनॉमिक और प्रोलोरोस्टिक अध्ययन करने के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के तहत शीर्ष संगठन है।
- स्थापना – 1890 ,
- मुख्यालय – कोलकाता
उद्देश्य
- सामान्य संरक्षित क्षेत्रों में पादप विविधता की खोज, राष्ट्रीय राज्य और जिला फ्लोरा का प्रकाशन, वनस्पति उद्यान में गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों का एक्स सीटू संरक्षण।
संसदीय विशेषाधिकार
- संसदीय विशेषाधिकार ( parliamentary Privileges) , संसद सदस्यों को, व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से प्राप्त कुछ अधिकार और उन्मुक्ततियाॅ होते हैं, ताकि वे अपने कार्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन कर सकें।
- संविधान के अनुच्छेद 105 में स्पष्ट रूप से 2 विशेष अधिकारों का उल्लेख किया गया है। यह हैं संसद में वाक स्वतंत्रता और इसकी कार्यवाही के प्रकाशन का अधिकार।
- संसद का अभिन्न अंग होने के बावजूद राष्ट्रपति को संसदीय विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होते। राष्ट्रपति के लिए संविधान के अनुच्छेद 361 में विशेषाधिकारों का प्रावधान किया गया।
टीम रूद्रा
मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs )
अभिनव आनंद (डायट प्रवक्ता)
डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या
अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर)
योगराज पटेल (VDO)-
अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )
प्रशांत यादव – प्रतियोगी –
कृष्ण कुमार (kvs -t )
अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)
मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)
अश्वनी सिंह – प्रतियोगी
प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।