घाघरा नदी की उत्पत्ति तकलाकोट के उत्तर पश्चिम में मापुचा चूंगो हिमनद से हुई है। तीला, शेती और बेरी नदियों के जल का संग्रहण कर शीश पानी के निकट 600 मीटर गहरे गार्ज का निर्माण करते हुए मैदान में प्रवेश करती हैं। उल्लेखनीय है कि घागरा को नेपाल में करनाली अथवा कौणियाली के नाम से तथा तिब्बत में जियाग्लेह के नाम से जानी जाती है। ब्रह्म घाट (भारत) के पास जब शारदा करनाली में मिलती है तो उसके बाद करनाली घाघरा के नाम से जानी जाती है। जैसा कि हम जानते हैं कि सरयू नदी का उद्गम यूपी के बहराइच जिले में हुआ माना जाता है। यहां से यह नदी निकलकर गोंडा होते हुए अयोध्या तक जाती है। उल्लेखनीय है कि पहले यह नदी गोंडा के परसपुर तहसील में स्थित पसका के पास घाघरा में मिलती थी लेकिन वर्तमान में इस स्थान पर बांध बन जाने के कारण यह नदी पसका से करीब 8 किलोमीटर आगे चंदापुर नामक स्थान पर मिलती है। घाघरा को अयोध्या तक सरयू के नाम से जाना जाता है। अयोध्या के बाद इसे पुनः घाघरा नदी के नाम से ही जाना जाता है। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के राजस्व विभाग के प्रस्ताव को सरकार ने मंजूरी दे दी है। इस प्रस्ताव का संदर्भ घाघरा का नामकरण सरयू करने से है। इस प्रस्ताव के अंतर्गत गोंडा जिले के पसका संकूर क्षेत्र में स्थित चंदापुर कथौली गांव से रेवालगंज बिहार तक घाघरा नदी को सरयू के नाम से जाना जाएगा। उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने उपरोक्त प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर गृह मंत्रालय भारत सरकार के पास अनुमति हेतु भेज दिया है। अनुमति मिलने के बाद घाघरा नदी से संबंधित सभी अभिलेखों में घाघरा का नाम सरयू कर दिया जाएगा। इस प्रस्ताव को तैयार करने में बिहार की कोई भूमिका नहीं है। चुकि नदियां समवर्ती सूची का विषय होती है इसलिए केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक है। इसके प्रमुख सहायक नदियां छोटी गंडक, शारदा, राप्ती आदि हैं। राप्ती इसकी प्रमुख सहायक नदी है। जो देवरिया जिले में स्थित बरहज नामक स्थान पर घाघरा में मिलती है। गोरखपुर राप्ती नदी के किनारे ही स्थित है। घाघरा नदी की कुल लंबाई 1080 किलोमीटर है। भारत में 970 किलोमीटर इसकी लंबाई है। इसका अपवाह क्षेत्र लगभग 127500 वर्ग किलोमीटर है। बहराइच, सीतापुर, गोंडा, दोहरीघाट, सुल्तानपुर, बलिया, अयोध्या आदि प्रमुख नगर घाघरा नदी के किनारे स्थित है। यह एक सीमा पार (भारत और नेपाल) नदी है। घाघरा नदी पूर्ववर्ती नदी का उदाहरण है। यह नदी सदा वाहिनी भी है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में घाघरा नदी
“अवधपुरी मम पुरी सुहावनि
दक्षिण दिश वह सरयू पावनी।”
तुलसीदास कृत रामचरितमानस में उद्धृत उपर्युक्त चौपाई सरयू नदी के महत्ता का वर्णन करता है। विजयेन्द्र कुमार माथुर के अनुसार वाल्मीकि कृत रामायण में सरयू नदी को कौशल जनपद की प्रमुख नदी बताया गया है।
कोसलो नाम मुदितः स्फीतो जनपदों महान्, निविष्टः सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान्। अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता मनुना मानवैनद्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम्।’ (वाल्मीकि रामायण 5, 19)।
राम की जन्मभूमि अयोध्या सरयू नदी के दाएं तट पर अवस्थित है अयोध्या हिंदुओं के प्राचीन तथा सात पवित्र स्थलों में से एक है। अथर्ववेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है। इसके संपन्नता की तुलना ईश्वर की नगर से की गई है।
सरयू से संलग्न घने जंगल में ही राजा दशरथ के हाथों अनजाने में श्रवण कुमार की हत्या हो गई थी । उल्लेखनीय है कि श्रवण कुमार जब अपने अंधे माता पिता के लिए सरयू नदी से पीने के लिए जल लेने गए थे तो यह हृदय विदारक दुर्घटना घटित हुई थी।
ऋग्वेद में भी सरयू नदी का उल्लेख है। ऋग्वेद में यह उल्लेखित है कि तुर्वससु ने इस नदी को पार किया था। पद्मपुराण के उत्तरखंड में भी सरयू नदी की महत्ता का वर्णन मिलता है। कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंशम में सरयू नदी को अयोध्या वासियों के लिए जननी के समान पूज्य बताया है।
सेयं मदीया जननीव तेन मान्येन राज्ञा सरयूवियुक्ता, दूरे बसन्तं शिशिरानिलैर्मां तरंगहस्तैरूपगूहतीव।’ (रघुवंश 13, 63)
महाभारत के अनुशासन पर्व में (१५५) सरयू को मानसरोवर से निकला हुआ बताया गया है। अध्यात्म रामायण (युद्ध कांड) भी इसी तरफ इशारा करता हुआ कहता है कि
एषा भागीरथी गंगा दृश्यते लोकपावनी, एषा सा दृश्यते सीते सरयूर्यूपमालिनी। ( अध्यात्म रामायण, युद्धकांड 14, 13)
कालिदास अपने रघुवंशम नामक महाकाव्य में सरयू को मानसरोवर झील से निकला हुआ ही मानते हैं। उल्लेखनीय है कि मानसरोवर का एक नाम ब्रह्म सर भी है। तुलसीदास भी रामचरितमानस के बालकांड में सरयू के भौगोलिक स्थिति के विषय में बात करते हैं। वे सरयू को मानस नंदनी के नाम से पुकारते हैं।
गंगा सरयू के संगम पर चैरान (एक प्राचीन तीर्थ स्थल) को कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंशम में तीर्थ स्थल बताया है। उल्लेखनीय है कि दशरथ के पिता अज वृद्धावस्था में इसी स्थान पर प्राण त्याग किए थे । महाभारत के भीष्म पर में भी सरयू का नाम उल्लेख है।
रहस्यां शतकुभां च सरयूं च तथैव च, चर्मण्वतीं वेत्रवतीं हस्तिसोमां दिश्र।
श्रीमद्भागवत में वर्णित नदियों की सूची में भी सरयू नदी का नाम भी उल्लेखित है _
यमुना सरस्वती दृषद्वती गोमती सरयू।’
मिलिंदपन्हो नामक बौद्ध ग्रंथ में सरयू नदी को सरभु के नाम से संबोधित किया गया है।
सरयू नदी पारितंत्र की वर्तमान स्थिति-
केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय की एक रिपोर्ट (२००७) में यह कहा गया है कि सारण क्षेत्र के आसपास के लोग आज भी खुले में शौच के लिए नदी के किनारे जाते हैं। यह कुप्रथा कमोबेश सरयू नदी से संबंधित अन्य क्षेत्रों में आज भी प्रचलित है। इसी पेपर में घाघरा नदी का बीओडी (B.O.D- biological oxygen demand) 44.5 से 214 mg/l बताया गया है। उल्लेखनीय है कि यह रिपोर्ट पांच चुने हुए क्षेत्रों से लिए गए सैंपल पर आधारित था। बीओडी का यह मान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा निर्धारित बीओडी (3 एमजी प्रति लीटर) से काफी अधिक है। 2016 के सीपीसीबी के रिपोर्ट के अनुसार अयोध्या के मुख्य घाट का बीओडी 4mg/ लीटर पाया गया है। डाउन टू अर्थ में छपे एक लेख के अनुसार यह कहा गया है कि सरयू का जल वर्तमान में नहाने लायक तक नहीं है। उसके बावजूद भी 300000 दिए दिवाली केे अवसर पर जलाए गए। रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश एवं बिहार की जीवन रेखा मानी जाने वाली सरयू नदी जिसका पाट (चौड़ाई में विस्तार) डेढ़ किलोमीटर तक कहीं-कहीं हैै, वहीं प्रदूषण तथा पंचेश्वर बांध (नेपाल) के कारण सिकुड़ कर 30 से 40 मीटर के संकरे क्षेत्र में प्रवाहित होने को मजबूर है। औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण जनरल में छपी रिपोर्ट के अनुसार (२००७) अयोध्या में मिलने वाले अपशिष्ट के कारण वह काफी प्रदूषित हो गई है। छोटे पैमाने के उद्योग जैसे धनकुट्टी, डेयरी, लॉन्ड्री, सीवेज, अस्पताल से निकले खतरनाक अपशिष्ट पदार्थ आदि के कारण नदी के जल की गुणवत्ता लगभग नष्ट हो गई है। इसी में छपी 2012 की रिपोर्ट के अनुसार प्लंगिंग वाटर लेबल काफी कम हो गया है जिससे क्षेत्र की कृषि भी काफी प्रभावित हो रही हैै। भूमिगत जल स्तर में आने वाली कमी के कारण हजारों नलकूप सूख गए हैं विशेषकर गर्मी के सीजन में इन्होंने पानी देना बंद कर दिया है। सीपीसीबी (2016) के अनुसार नदी में (faecal colliform) 39 ०० से ५१००० mpn प्रति 100ml है जो कि सीपीसीबी के द्वारा निर्धारित (2500mpn/100 ml) से काफी अधिक है। अयोध्या के संतों का यह कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या के विकास के लिए 133 करोड़ का अभी हाल ही में आवंटन किया है। लेकिन प्रदूषण की शिकार sarayu के लिए इस बजट में कोई व्यवस्था नहीं की गई है। इनकेेे अनुसार अयोध्या में ही 20 छोटे बड़े नाले सरयू में गिरते हैं। दशम घाट में लगा एसटीपी आज भी अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य नहीं कर पा रहा है। अयोध्या के महंत नृत्य गोपाल दास ने इसके लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच में एक जनहित याचिका दायर कर रखा है। इस प्रमुख संत का यह कहना है कि सरयू नदी की साफ सफाई अयोध्या के विकास का अहम घटक होना चाहिए। हमें एक बात और ध्यान रखनी होगी यदि हम नमामि गंगे मिशन को 2019 तक सफल बनाना चाहते हैं तो हमें सरयू जैसी सहायक नदियो के स्वास्थ्य के विषय में जरूर सोचना होगा।