महासागरीय जल का तापमान –
स्थल खंडो की भाति महासागरीय जल के तापमान का मुख्य स्रोत सूर्य है। हालांकि उसे ज्वालामुखी तथा जल दबाव के द्वारा भी नगण्य मात्रा में सूर्यातप की प्राप्ति होती हैै। यदि महासागरीय जल का उष्मा बजट 100 इकाई हो । क्योंकि सूर्य ही महासागरीय जल की उष्मा का मुख्य स्रोत है इसीलिए सौर्यिक विकिरण द्वारा महासागरीय जल को 100 इकाई उष्मा की प्राप्ति होती है, ऐसा मान लिया गया है । शीतलन की प्रक्रिया में वाष्पीकरण (50 यूनिट), पार्थिव विकिरण (47 यूनिट) तथा चालन (3 यूनिट) द्वारा संपन्न होती है। इस तरह देखा जाए तो शीतलन की प्रक्रिया में वाष्पीकरण का प्रमुख योगदान है।
स्थल की तुलना में महासागर में होने वाली उष्मन व शीतलन की प्रक्रिया थोड़ा भिन्न होती है क्योंकि महासागरीय पर लंबवत व क्षैतिज गतियों के अलावा वाष्पीकरण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।
सामान्यतया ग्रीष्म ऋतु के समय वाष्पीकरण का प्रभाव अधिक होने के कारण जलीय सतह का तापमान संलग्न वायु की अपेक्षा कम होता है। जबकि शीत ऋतु में यह स्थिति एकदम उलट जाती है।
महासागरीय जलीय सतह के वितरण को प्रभावित करने वाले
कारक-
आपतन कोण
तथा समुद्री जल धाराएं
स्थल जल का स्वभाव
नदियों द्वारा स्वच्छ जल की आपूर्ति
हिमगलन के द्वारा ठंडे जल की आपूर्ति
आपतन कोण- हम जानते हैं कि भूमध्य रेखा से ध्रुव की ओर जाने पर आपतन कोण में कमी के कारण पृथ्वी को सूर्यातप की कम प्राप्ति होती है। यही कारण है कि जलीय सतह को निम्न अक्षांशो से उच्च अक्षांशों की तरफ जाने पर प्राप्त सूर्यातप की मात्रा कम होती जाती है।
महासागर के तापमान के वितरण का अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता है कि आपतन कोण के अलावा कुछ अन्य प्रमुख कारक भी हैं जो जलीय सतह के तापमान के वितरण को प्रभावित करते हैं।
प्रचलित पवने – पवन जलीय सतह के पूर्वी और पश्चिमी किनारों के तापमान को प्रमुख रूप से प्रभावित करते हैं।
अपतट पवन से प्रभावित महासागरों के जल का तापमान कम होता है। क्योंकि अपतट पवन से प्रभावित महासागरीय जलीय सतह जल का पवन के द्वारा स्थानांतरण करने के कारण जल स्तर में कमी आ जाती है।
जल स्तर में आई कमी के प्रति पूर्ति हेतु महासागरीय नितल के ठंडे जल का सतह पर आगमन होता है । इसी तरह अनुतट से प्रभावित महासागरीय वाले भाग में गर्म जल के जमाव से तापमान बढ़ जाता है।
उदाहरण स्वरूप अपतट व्यापारिक पवन से प्रभावित महासागर के पूर्वी भाग का तापमान अपतट पवन से प्रभावित पश्चिमी भाग के तापमान से कम हो जाता है। इसी तरह अपतट तथा अनुतट पछुआ पवन के प्रभाव के कारण क्रमशः महासागर के पश्चिमी भाग का तापमान कम तथा पूर्वी भाग का तापमान अधिक हो जाता है।
समुद्री जल धारा- ठंडी जलधारा के द्वारा महासागरीय जलीय सतह का तापमान कम तथा गर्म जल धाराओं के द्वारा बढ़ा दिया जाता है जैसे- गल्फस्ट्रीम, क्यूरोशिययो तथा ब्राजील जैसी गर्म जल धाराएं उच्च अक्षांश पर स्थित जलीय सतह के तापमान को बढ़ा देती हैं इसी तरह लैब्रोडोर, बेरिंग, हम्बोल्ट आदि ठंडी जलधाराएं अपेक्षाकृत निम्न अक्षांश पर पहुंचकर वहां के तापमान को घटाने का काम करती हैं।
स्थल व जल के स्वभाव में भिन्नता-
उत्तरी गोलार्द्ध में स्थलों की अधिकता के कारण निम्न अक्षांश पर स्थित उष्ण जलीय क्षेत्रों का तापक्रम दक्षिणी गोलार्द्ध की तुलना में अधिक तथा उच्च अक्षांश पर स्थित शीत स्थलीय भागों के कारण कम हो जाता है।
स्थल के अधिकता के कारण ही समताप रेखाएं उत्तरी गोलार्द्ध में अक्षांशों के समानांतर नहीं पायी जाती हैं। जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में जलाधिक्य के कारण समताप रेखाएं एवं अक्षांश रेखाएं एक दूसरे के अनुरूप होती हैं।
खुले महासागर के अपेक्षा अंशत: बंद व बंद जलीय भागो के तापमान पर स्थलीय प्रभाव अधिक पड़ता है।
जैसे निम्न अक्षांश प्रदेश में स्थित अंशत: बंद व बंद जलीय भाग का तापमान अधिक तथा उच्च अक्षांशीय प्रदेश में स्थित अंशत: बंद व बंद जलीय भाग का तापमान कम हो जाता है।
नदी द्वारा स्वच्छ जल की आपूर्ति-
वैसे स्थलीय भाग जहां नदियों की अधिकता है वहां नदियों द्वारा लाए गए स्वच्छ जल के द्वारा जलीय सतह का तापमान कम कर दिया जाता है।
महासागरीय जलीय सतह के तापमान का लंबवत वितरण-
जिस तरह सतह से ऊंचाई पर जाने पर वायुमंडल के तापमान में कमी आती है उसी तरह जलीय सतह से महासागर के नितल की तरफ जाने पर महासागरों के तापमान में कमी आती है। हालांकि यह दर निश्चित नहीं होती है।
पूर्व अध्ययन से यह विदित है कि विषुवत रेखा से ध्रुवो की तरफ जाने पर जलीय सतह का तापमान कम होता जाता है। यह मान लिया गया है कि सभी अक्षांशों पर महासागरीय नितल का तापक्रम एक समान होता है यही कारण है कि निम्न अक्षांश पर स्थित जलीय सतह का तापमान अधिक होने के कारण महासागरीय नितल की तरफ जाने पर होने वाला ताप ह्रास का दर अधिक होता है। इसी तरह मध्य अक्षांशों में गहराई पर जाने पर ताप ह्रास की दर कम हो जाती है। जबकि उच्च अक्षांशो पर यह देखा गया है कि गहराई में जाने पर पहले तापमान में कमी की जगह वृद्धि होती है उसके बाद नगण्य दर से कमी आती है।
अपवेलिंग से प्रभावित महासागर वाले भाग में ताप ह्रास की दर अधिक होती हैं जबकि डाउनवेलिंग से प्रभावित महासागरीय क्षेत्र में ताप ह्रास की दर कम हो जाती है।
महासागरीय जल के तापमान में ऊर्ध्वाधर भिन्नता के कारण महासागरीय जल को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
• ऊपरी परत (Epiliminon layer)- (सतह- 500 मीटर)
• मध्यवर्ती परत (Thermoceline layer)- (500-1000 मीटर)
• निचली परत (Hypolimion layer)- (1000-नितल तक )
ऊपरी परत- यह सबसे ऊपरी परत होती है। यह परत उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में साल भर तथा मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में केवल ग्रीष्म काल में ही विकसित हो पाती है। इसकी औसत मोटाई लगभग 500 मीटर तथा औसत तापक्रम 25-30 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। उल्लेखनीय है कि उपरोक्त स्थिति केवल उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पायी जाती है। घनत्व की दृष्टि से यह परत हल्की होती है।
मध्यवर्ती परत- महासागर में ऊपरी तथा निचली परत के मध्य स्थित महासागरीय भाग को थर्मोक्लाइन कहते हैं। यह सर्वाधिक ताप ह्रास दर वाला क्षेत्र होता है।
निचली परत- यह महासागर का सबसे निचला क्षेत्र होता है। जिसका विस्तार महासागरीय नितल तक होता है इसका तापक्रम अत्यंत कम होता है।
विशिष्ट तथ्य-
• अक्षांशीय दृष्टि से विस्तृत सागरों का तापमान देशांतरीय विस्तार वाले विस्तृत सागरों के तापमान से कम होता है।
• सभी महासागरों का औसत तापमान 17.2 डिग्री सेंटीग्रेड (63 फारेनहाइट) निश्चित किया गया है। उत्तरी गोलार्द्ध का तापमान 19.4 डिग्री सेंटीग्रेड तथा दक्षिणी गोलार्द्ध का 16.1 डिग्री सेंटीग्रेड सुनिश्चित किया गया है।
आवश्यक तथ्य
महासागरीय जल का औसत दैनिक तापमान लगभग नगण्य होता है। दैनिक स्तर पर महासागरीय जल का उच्चतम तापमान सायं काल 2:00 बजे तथा न्यूनतम तापमान 5:00 बजे प्रातः होता है। वार्षिक स्तर पर अधिकतम तापमान की स्थिति अगस्त में तथा न्यूनतम तापमान की स्थिति फरवरी में देखी जाती है।
स्थल से घिरे सागर तथा कम विस्तार वाले महासागर अथवा सागर का वार्षिक तापांतर अपेक्षाकृत बड़े तथा खुले महासागर की तुलना में अधिक होती है।
जैसे प्रशांत महासागर का वार्षिक तापांतर अटलांटिक महासागर की तुलना में कम होता है। सामान्यतया वाष्पीकरण का प्रभाव अधिक होने के कारण ग्रीष्म ऋतु में जलीय सतह का तापमान संलग्न वायु की तुलना में कम हो जाता है किंतु अपवाद स्वरूप हिंद महासागर पर स्थलीय प्रभाव अधिक पड़ने के कारण ग्रीष्म ऋतु में जलीय सतह का तापमान संलग्न वायु की प्राप्ति तुलना में अधिक हो जाता है। इसी तरह सामान्यतया शीत ऋतु में जलीय सतह पर पड़ने वाले वाष्पीकरण प्रभाव के कारण शीतलन की प्रक्रिया अत्यंत मंद गति से संपन्न होती है। जिसके कारण जलीय सतह का तापमान संलग्न वायु की तुलना में अधिक होता है। हालांकि अपवाद स्वरूप कर्क एवं मकर रेखा की समीप शीत ऋतु में वायु के अवरोहण के द्वारा होने वाली रुद्धोष्म उष्मन प्रक्रम की प्रक्रिया से संलग्न वायु का तापमान जलीय सतह की तुलना में अधिक हो जाता है।