महाद्विपीय विस्थापन सिद्धांत

महाद्विपीय विस्थापन सिद्धांत

महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत

  • परिचय
  • उद्देश्य
  • महासागरों और महाद्वीपों का विकास
  • साक्ष्य
  • स्थलाकृतियों के विकास की प्रक्रिया

i- आलोचना

ii- प्रासंगिकता

  परिचय

    महाद्वीपों के गतिशील व प्रभावों से संबंधित दिए गए विचारों में सर्वप्रथम फ्रांसिस बेकन ने    स्थलस्वरूपी विशेषताओं के आधार पर यूरोप, दक्षिणी अमेरिका एवं अफ्रीका महाद्वीपो के अतीत में एक दूसरे से जुड़े हैं।

  ए० स्नाइडर ने प्रत्यक्ष प्रमाण पर आधारित भू-गार्भिक विशेषताओं के आधार पर बताया कि दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका के अटलांटिक तत्वों में समानता होती है। महाद्वीपों के गतिशील व प्रवाहमान होने का सर्वप्रथम विचार एफ.बी. टेलर ने दिया। उनका उद्देश्य टर्शियर युग में निर्मित मुर्दार पर्वत की उत्पत्ति की व्याख्या करना था। इनका मानना है कि क्रीटेशस युग में पृथ्वी के पृथक्करण से चंद्रमा की उत्पत्ति हुई थी।चंद्रमा की ज्वारीय बल के प्रवाह से ही महाद्वीपों का विखंडन हुआ तथा महाद्वीपों के विस्थापन के फलस्वरुप मोड़दार पर्वत की उत्पत्ति हुई इनका आलोचना करते हुए यह कहा गया कि

   चंद्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी से नहीं है। तथा ज्वारीय बल के द्वारा महाद्वीपों का विस्थापन संभव नहीं है।इन्होंने अपने विचार को प्रमाणित करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं दिया।

  वैगनआर ने सर्वप्रथम साक्ष्यों के आधार पर महाद्वीपीय विस्थापन की बात की तथा महाद्वीपीय प्रवाहमान की संकल्पना को महाद्वीपीय विस्थापन के रूप में प्रस्तुत किया वेगनर मूलतः रितु विज्ञानी थे वह अतीत में हुए जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करना चाहते थे।

उन्होंने जलवायु विशेषताओं के अध्ययन के दौरान देखा कि विषुवत रेखीय जलवायु प्रदेश में हिम का निक्षेप तथा ध्रुवीय प्रदेश में आज भी कोयले के निक्षेप मौजूद हैं। अर्थात जिनका संबंध उस क्षेत्र के जलवायु से नहीं है। इस परिवर्तन के संदर्भ में वेगनर का यह मानना था की ऐसी स्थिति या तो जलवायु कटिबंध में परिवर्तन के द्वारा संभव है या तो महाद्वीपों के विस्थापन के द्वारा संभव है। वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन को उक्त स्थिति के लिए जिम्मेदार मानते हैं।

वेगनर के अनुसार महाद्वीप एवं महासागर की उत्पत्ति की प्रक्रिया

वेगनर के अनुसार अतीत में सारे महाद्वीप एक दूसरे से जुड़े हुए थे। जिसे वेगनर ने पेंजिया नाम दिया। इस पैंजिया के चारों तरफ एक पैंथालासा नामक बृहद जलीय भूभाग था। इनका यह मानना था कि सियाल से निर्मित महाद्वीपीय क्रस्ट सीमा से निर्मित महासागरीय क्रस्ट पर तैर रहा है।

कार्बोनिफरस युग के समय दक्षिणी ध्रुव वर्तमान दक्षिणी अफ्रीका के डरबन के पास था। उसी समय चंद्रमा के ज्वारीय बल तथा उत्प्लावन बल गुरुत्वाकर्षण बल से पैंजिया का विखंडन प्रारंभ हो गया।

चंद्रमा से ज्वारीय बल के द्वारा महाद्वीपों के विखंडन के पश्चिम दिशा में तथा गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा विषुवत रेखा के तरफ विस्थापन हुआ।

    मेसोजोइक कल्प के जुरैशिक युग में गोंडवाना लैण्ड का विखंडन प्रारंभ हुआ जिससे दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका महाद्वीप से अलग होकर पश्चिम की ओर प्रवाहमान हुआ इसी समय अंगारालैंड का भी विखंडन हुआ।

  क्रिटेशियस युग के आने तक अटलांटिक महासागर का विकास हो गया।

 टर्शियरी युग के आने तक अफ्रीका से अंटार्कटिका इंडो के विखंडन और विस्थापन के कारण हिंद महासागर की उत्पत्ति हुई।

सभी महाद्वीपों के विस्थापित होने से पैंथाल्सा में संकुचन हुआ। जिससे बचे हुए पैंथालसा को वेगनर ने प्रशांत महासागर नाम दिया। इस प्रकार और वेगनर के अनुसार टर्शियरी युग के अंत तक सभी महाद्वीप एवं महासागर अपने अस्तित्व में आ गए थे।

इस प्रकार वेगनर ने महाद्वीपों के विस्थापन के द्वारा अतीत में महाद्वीपों पर पड़ने वाले जलवायु के प्रभाव को स्पष्ट करने का प्रयास किया।

 साक्ष्य

  जिगसाफिर – जगस्ट्रापोजिशन – फ्रांसिस बेकन

  संरचनात्मक एवं स्तरित प्रमाण

  तट के किनारों पर वृक्षों का पाया जाना।

  जीवाश्म प्रमाण – लैमिंग,ग्लोसोप्टरिस,मेसोसार

पूरा जलवायु प्रमाण – हिम व कोयले का पाया जाना

   पर्वतों की उत्पत्ति वेगनर के अनुसार

   वेगनर ने महाद्वीपों के विस्थापन के साथ पृथ्वी की सतह पर निर्मित विभिन्न प्रकार के स्थलरूपों को स्पष्ट करने का प्रयास किया।

इनका यह मानना था कि सियाल से निर्मित महाद्वीपीय विस्थापन के समय सीमा से निर्मित महासागरीय क्रस्ट के द्वारा रुकावट उत्पन्न किए जाने के कारण संपीडन बल के द्वारा महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर मोड़दार पर्वत की उत्पत्ति हुई।

  द्बिपचाप 

    इसी प्रकार वैगनआर ने कहा कि महाद्वीपों के विस्थापन में शिथिलता के कारण यूरेशिया तथा अमेरिका के पश्चिमी तरफ विस्थापन के समय महाद्वीपों के कुछ अंश पीछे छूट गए और इस तरह से महाद्वीप चाप की उत्पत्ति हुई।

  मूल्यांकन

 A- आलोचना

    पृथ्वी की सतह अस्थाई और परिवर्तनशील है। अतः अस्थल रूपिया विशेषताओं में स्थायित्व संभव नहीं है। ऐसी स्थिति में तर्क के वर्तमान या तत्कालीय विशेषताओं के आधार पर अतीत में इनके जुड़े होने का विचार प्रसांगिक नहीं है।

संरचनात्मक एवं स्तरित प्रमाण भी पूरी तरह से सही नहीं है।क्योंकि पृथ्वी की सतह पर अपलेसियन पर्वत तथा अरावली पर्वत में भूगर्भिक समानता है।

  जबकि उनका जुड़ाव संभव नहीं है।इसी तरह कनाडा की उच्च भूमि तथा ब्राजील की उच्च भूमि समान संरचना वाली है इन उदाहरणों से महाद्वीपों के जुड़ाव से संबंधित संरचनात्मक सर्च है या प्रमाण महाद्वीपों के जुड़ाव के संदर्भ में उचित नहीं है।

तट के किनारे निर्मित भ्रंश के लिए वृहद स्तर पर भू-संचलन के अपेक्षा क्षेत्रीय संचलन ही पर्याप्त हैं।

वेगनर ने अपने सिद्धांत में यह स्पष्ट नहीं किया कि पैंजिया का विखंडन कार्बोनिफरस के समय ही क्यों हुआ तथा इसके पहले सभी महाद्वीप पैंजिया के रूप में संगठित थे। वेगनर ने महाद्वीपों के लिए जिन तथ्यों का उल्लेख किया है। वो अपर्याप्त है।

वर्तमान ज्वारीय बल के द्वारा महाद्वीपीय विस्थापन तभी संभव है जब वह वर्तमान में 90 मिलीयन गुना अधिक हो। यदि इतनी शक्ति महाद्वीपों के प्रवाह के समय रही होती तो पृथ्वी का परिभ्रमण एक ही वर्ष में बंद हो जाती।

यही आधार गुरुत्व शक्ति के विषय में किया जा सकता है।

इनका यह मानना था कि सीमा से निर्मित क्रस्ट के ऊपर सियाल से निर्मित क्रस्ट टहल रहे हैं।लेकिन पर्वतों की उत्पत्ति के समय सीमा से निर्मित क्रस्ट के द्वारा रुकावट उत्पन्न किए जाने के बाद इनके द्वारा पूर्व में दिए गए मान्यता को खारिज करता है।

 प्रासंगिकता

 वेगनर के द्वारा दिए गए अंतर विरोधी विचार तथा कुछ साथियों ने उनके सिद्धांत की प्रासंगिकता को कम कर दिया यदि वह पर्वत निर्माण की प्रक्रिया को स्पष्ट करने का प्रयास ना करते तो उनका सिद्धांत वर्तमान संदर्भ में स्थापित सत्य के अनुरूप (लगभग) होता।

 फिर भी यह प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने महाद्वीपीय प्रवाह के साक्ष्यों के साथ एक सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया।

भू आकृति विज्ञान की प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत महाद्वीपों के प्रवाह की विचार को प्रमाणित करता है जो कि वैगनआर की सिद्धांत की सबसे बड़ी देन है।

          महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत एवं प्लेट विवर्तनिकी में तुलनात्मक अध्ययन

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