बाल विकास एवं

बाल विकास एवं

शिक्षा की दृष्टि से निम्न तीन अवस्थाएँ महत्वपूर्ण है।

1-  शैशवावस्था (जन्म से 6 वर्ष तक)

2-  बाल्यावस्था (6 से 12 वर्ष तक )

3- किशोरावस्था (12 से 18 वर्ष तक ) 

            शैशवावस्था 

  •  मानव विकास की प्रथम अवस्था है । 
  • जन्म से 5 या 6 वर्ष तक 
  •  व्यक्ति के विकास की नींव 

    न्यूमैन के अनुसार – पाँच वर्ष तक की अवस्था शरीर तथा मस्तिष्क के लिए बड़ी ग्रहणशील होती है ।

  मनोवैज्ञानिक फ्रायड भी शैशवावस्था को निर्माण काल मानते हैं- मनुष्य को जो कुछ बनना होता है , वह चार – पाँच वर्षों में बन जाता है । 

 एडलर के अनुसार– ” बालक के जन्म के कुछ माह बाद ही निश्चित किया जा सकता है कि जीवन में उसका क्या स्थान है । ” 

 स्ट्रैग के अनुसार – जीवन के प्रथम दो वर्षों में बालक अपने भावी जीवन का शिलान्यास करता है । 

 गुडएनफ के अनुसार– “ व्यक्ति का जितना भी मानसिक विकास होता है , उसका आधा तीन वर्ष की आयु तक हो जाता है 

शैशवावस्था की प्रमुख विशेषताएं

  1. शारीरिक विकास में तीव्रता ( Rapidity in Physical Growth ) 

  2. मानसिक क्रियाओं में तीव्रता ( Rapidity in Mental Processes ) 

  3. सीखने में तीव्रता ( Rapidity in Learning ) 

  4. कल्पना ( Imagination ) 

  5. दोहराने की प्रवृत्ति ( Tendency of Repetition ) 

  6. दूसरों पर निर्भरता ( Dependence on Others ) 

  7. अनुकरण द्वारा सीखने की प्रवृत्ति ( Attitude of Learning by Imetation )

  8. मूल प्रवृत्यात्मक व्यवहार ( Instinctive Behaviour )

 9. सवेगों का प्रदर्शन ( Expression of Emotions ) 

 10. स्वप्रेम की भावना ( Feeling of Self Love ) 

 11. नैतिक भावना का अभाव ( Lack of Moral Feeling ) 

 12. सामाजिक भावना का विकास ( Development of Social Feeling ) 

 13. प्रत्याक्षात्मक अनुभव द्वारा सीखना ( Learning Perceptual Experience ) 

 14. दूसरे शिशुओं के प्रति रुचि ( Interest Forwards other Infants ) 

 15. काम प्रवृत्ति ( Sex Instinct ) 

शैशवावस्था में शिक्षा का स्वरूप 

  वैलेन्टाइन ने इसे ‘ सीखने का आदर्शकाल ‘ ( Ideal Period of Learning ) कहा है । 

  वाटसन ने  ” शैशवावस्था में सीखने की सीमा और तीव्रता , विकास की ओर किसी अवस्था की तुलना में बहुत अधिक होती है ।

 1. स्नेहपूर्ण व्यवहार ( Affectionate Behaviour ) 

 2. जिज्ञासा की संतुष्टि ( Satisfaction of Curiosity ) 

 3. वास्तविकता का ज्ञान ( Knowledge of Reality ) 

 4. व्यक्तिगत स्वच्छता की शिक्षा ( Education of Individual Cleanliness ) 

 5. मूल प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन ( Intiative to Instincts ) 

 6. पालन – पोषण ( Nurture ) 

 7. आत्मनिर्भरता का विकास ( Development of Self – dependence ) 

 8. सामाजिक भावना का विकास ( Development of Sociability ) 

 9. आत्म – प्रदर्शन के लिए अवसर ( Opportunity for Self – assertion ) 

10. आत्माभिव्यक्ति के लिए अवसर ( Opportunity for Self – expression ) 

 11. क्रिया तथा खेल द्वारा शिक्षा ( Learning by Doing and Playing )  

 12. मानसिक क्रियाओं के अवसर ( Opportunities for Mental Activities ) – 

 13. अच्छी आदतों का निर्माण ( Formation of Good Habits ) 

 14. व्यक्तिगत विभिन्नता पर ध्यान ( Attention on Individual Differences ) 

 15. संवेगात्मक सुरक्षा ( Emotional Security ) 

किशोरावस्था में विकास 

  • किलपैट्रिक ने तो इस अवस्था को जीवन का सबसे जटिल काल माना है । 
  • यह समय बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था का सन्धिकाल होता है । 
  • जिसमें वह न तो बालक ही रह जाता है और न तो प्रौढ़ ही बन पाता है ।
  • किशोरावस्था को अंग्रेजी में ‘ एडोलेसेन्स ‘ ( Adolescence ) कहते हैं , जो लैटिन भाषा के ‘ एडोलिसियर ‘ ( Adolescere ) से बना है जिसका अर्थ है – परिपक्वता की ओर बढ़ना ( To grow to Maturity ) , अतः किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमें बालक परिपक्वता की ओर अग्रसर होता है तथा जिसकी समाप्ति पर वह परिपक्व व्यक्ति बन जाता है । 
  • प्रायः 12 से 18 वर्ष की आयु के बीच की अवधि को किशोरावस्था माना जाता है ।

    हैडो कमेटी ने अपने प्रतिवेदन में लिखा है – ‘ ग्यारह या बारह वर्ष की आयु में बालक की नसों में ज्वार उठना आरम्भ हो जाता है , इसे किशोरावस्था के नाम से पुकारा जाता है ।        स्टैनली हॉल के अनुसार – ‘ किशोरावस्था प्रबल दबाव तथा तूफान एवं संघर्ष काल है ।  

किशोरावस्था की मुख्य विशेषताएं

  1. शारीरिक विकास ( Physical Development ) 

  • किशोरावस्था में आन्तरिक तथा बाह्य शारीरिक परिवर्तन अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं । 
  • इस अवस्था में लड़कों की आवाज भारी होने लगती है , जबकि लड़कियों की मधुर ।
  • उनके चलने – फिरने का अंदाज भी बदलने लगता है । 
  • लड़कियाँ अपने शरीर के प्रति चैतन्य होने लगती हैं । हड्डियों में लचीलापन कम होने लगता है ,
  •  परिपक्वता आती है ।
  •  मांसपेशियाँ दृढ़ हो जाती हैं ।
  •  लड़कों में पुरुषोचित और लड़कियों में महिला सम्बन्धी विकास और परिवर्तन आता है । आन्तरिक अंगों की वृद्धि और विकास भी तेजी से होता है । 
  • मस्तिष्क , हृदय , श्वसन तथा पाचन अंगों का एवं स्नायु तंत्र शारीरिक वृद्धि के परिप्रेक्ष्य में परिपक्व हो जाते हैं । 
  • इस अवस्था में शारीरिक विकास उत्परिवर्तनीय ( Saltory ) तथा निरन्तरता ( Continuous ) के सिद्धान्त पर होता है । 

   2. मानसिक विकास ( Mental Development ) 

  • किशोर के मस्तिष्क का चतुर्दिक विकास होता है ।
  •  उसमें कल्पना एवं दिवा – स्वप्नों की बहुलता , बुद्धि का अधिकतम विकास , सोचने – विचारने एवं तर्क करने की शक्ति में वृद्धि तथा विरोधी मानसिक दशाओं आदि गुणों का विकास होता है । 

   कॉलेसनिक के अनुसार– ” किशोर की मानसिक जिज्ञासा का विकास होता है । अतः वह सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं में रुचि लेने लगता है । वह इन समस्याओं के सम्बन्ध में अपने विचारों का निर्माण भी करता है ।

 3. घनिष्ठ व व्यक्तिगत मित्रता ( Fast and Personal Friendship ) – किसी समूह का सदस्य होते हुए भी किशोर एक या दो बालकों से घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है , जो उसके परम मित्र होते हैंं

वेलेन्टाइन के अनुसार– धनिष्ठ और व्यक्तिगत मित्रता उत्तर किशोरावस्था की विशेषता है । 

 5. व्यवहार में विभिन्नता ( Difference in Behaviour ) 

 6. बुद्धि का अधिकतम विकास ( Maximum Development of Intteligence ) – 

 7. रुचियों में परिवर्तन तथा स्थायित्व ( Changes and Stability in Interest ) 

  8. काम – भावना का विकास ( Development of Sex Instincts ) – 

  9. मानसिक स्वतंत्रता और विद्रोह की भावना ( Mental Independence and Feeling of Revolt ) – 

   कॉलेसनिक के अनुसार- “ किशोर , प्रौदों को अपने मार्ग में बाधा समझता है जो उसे अपनी स्वतंत्रता का लक्ष्य प्राप्त करने से रोकते हैं ।

 10. कल्पना का बाहुल्य ( Excuberance of Imagination ) 

 11. समूह को महत्व ( Importance to Group ) 

 12. परमार्थ की भावना ( Altruism ) 

 13. आत्म – सम्मान की भावना ( Feeling of Self – respect ) 

 14. धार्मिक भावना ( Religious Feelings )

 15. वीर पूजा ( Hero Worship ) 

 16 , व्यवसाय चुनाव की चिन्ता ( Anxiety for Vocational Selection )

   स्टेनले हॉल का कहना है- “ किशोरावस्था एक नया जन्म है , क्योंकि इसी में उच्चतर एवं श्रेष्ठतर मानव विशेषताओं के दर्शन होते हैं । 

                किशोरावस्था में शिक्षा ( EDUCATION IN ADOLESCENCE )

 1. शारीरिक विकास के लिए शिक्षा ( Education for Physical Development ) 

 2. मानसिक विकास के लिए शिक्षा ( Education for Mental Development ) – 

 3. संवेगात्मक विकास के लिए शिक्षा ( Education for Emotional Development )

 4. सामाजिक विकास के लिए शिक्षा ( Education for Social Development ) 

 5. निर्देशन एवं परामर्श ( Guidance and Counselling ) 

 6. व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार शिक्षा ( Education based on Individual Differences ) 

 7. पूर्व – व्यावसायिक शिक्षा ( Pre – Vocational Education ) 

 8. यौन शिक्षा की व्यवस्था ( Sex Education ) 

 9. जीवन – दर्शन की शिक्षा ( Education for Philosophy of Life ) 

 10. धार्मिक तथा नैतिक विकास के लिए शिक्षा ( Education for Religious and Moral Development ) 

 11. शिक्षण – शैली ( Teaching Methods ) 

 12. सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार ( Sympathy ) 

 13. किशोर के महत्व की मान्यता ( Recognition of Adolescence ) 

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