पर्वत पृथ्वी की सतह पर स्थित द्वितीय श्रेणी की भू आकृति एवं उच्चावच का लक्षण है।जिसकी उत्पत्ति भूगर्भिक क्रियाओं के कारण उत्पन्न अन्तर्जात बल से वलन, भ्रंशन एवं ज्वालामुखी क्रिया के परिणाम स्वरुप होती है।इन क्रियाओं की विविधता के कारण विभिन्न प्रकार के पर्वतों की भौतिक संरचना में भी विविधता पाई जाती है।
लेकिन सामान्य रूप से ऐसे किसी भी स्थलाकृति को पर्वत कहते हैं जिसकी ऊंचाई आसपास के क्षेत्रों से न्यूनतम 1500 फिट हो और जिसका शिर्ष आधार की तुलना में संकुचित हो।
पर्वतों की उत्पत्ति की प्रक्रिया और भौतिक संरचना के आधार पर तीन मुख्य प्रकार में विभाजित करते हैं।
1- वलित पर्वत (folded mountain)
2- भ्रंशोत पर्वत ( foult mountain)
3- ज्वालामुखी पर्वत ( volcanic mountain)
- वलित पर्वतों की उत्पत्ति संपीडन बल के सक्रिय रहने से भूपटल की चट्टानों में मोड़ पड़ने से होता है।
- भ्रंशोत्थ पर्वत की उत्पत्ति भूपटल की चट्टानों में भ्रंश रेखा के सहारे उत्थान एवं धसान की क्रिया से होती है जिसमें तीव्र ढाल वाले भ्रंश कगार पाए जाते हैं।
- ज्वालामुखी पर्वत शंकु आकार आकृति का होता है जिसकी उत्पत्ति ज्वालामुखी क्रिया द्वारा भूगर्भ के मैग्मा एवं ज्वालामुखी पदार्थों के सतह पर आने से होता है।
- इस तरह विभिन्न पर्वतों की उत्पत्ति की प्रक्रिया विशिष्ट है। इस संदर्भ में कई सिद्धांत दिए गए लेकिन प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा ही विभिन्न पर्वों की वैज्ञानिक व्याख्या की जा सकी। इससे पहले दिए गए सिद्धांतों में दलित पर्वतों की उत्पत्ति की ही व्याख्या करने का प्रयास किया गया।
पर्वत निर्माण का काल
i – कैंब्रियन युग से पूर्व के पर्वत – ज्यादा महत्व नहीं।
ii- केलेडोनियन पर्वत – मुख्यतः ओडिविसियन – डिवोनियन तक ( सिलूरियन – पर्मियन )
iii – हर्सीनियन पर्वत – कार्बोनिफेरस – पर्मियन
iv- अल्पाइन पर्वत – इयोसीन – शुरुआती प्लीस्टोसीन ( तृतीय युग / टर्शियरी युग)
पर्वत निर्माण से संबंधित निम्न महत्वपूर्ण सिद्धांत
1- कोबर का भूसन्नति सिद्धांत
2- होम्स का संवहन तरंग सिद्धांत
3- वेगनर का सिद्धांत ( अमान्य सिद्ध हो चुका है)
4- प्लेट टेक्टोनिक सिद्धांत
1- कोबर का भूसन्नति / भूअभिनति सिद्धांत
( Lover’s Geosynclinal Theory)
कोबर ने पर्वत निर्माण से संबंधित प्रारंभिक सिद्धांत दिया जिसमें मुख्यता हिमालय, कुनलुन एवं तिब्बत का पठार की भौगोलिक स्थिति के संदर्भ में वलित पर्वत की उत्पत्ति की व्याख्या की गई।
इसमें भूसन्नति को पर्वत निर्माण का कारण मानते हुए भूसन्नति को वलित पर्वतों का पालना माना गया है। भूसन्नतियां कम गहरी, सकरी जलयुक्त गर्म होती हैं जो भूखंडों से घिरी होती है। भूसन्नतियों मैं मलबो के लगातार निक्षेप होनेे से परतदार चट्टानों का निर्माण होता है। लेकिन साथ ही मलबो से भर में वृद्धि होने से परतदार चट्टान में दबाव के कारण भूसन्नति में धसान की क्रिया होती है। इसमें मलवो का निक्षेप होता रहता है। और मलबों के निक्षेप एवं धसान के कारण भूसन्नतियों के दोनों ओर स्थित भूखंडों में गति उत्पन्न होती है।
- इन भूखंडों का दबाव भूसन्नति के मलबों पर होने के कारण ही वलन की क्रिया प्रारंभ होती है जिससे वलित पर्वत का निर्माण होता है।
- वलन की क्रिया भूसन्नति के अधिक सक्ंरे होने की स्थिति में संपूर्ण भाग पर होता है।लेकिन यदि भूसन्नतियों की चौड़ाई अधिक होती है। तब वलन का प्रभाव भूसन्नतियों के किनारे के मलबों पर होता है। इसी कारण दोनों किनारों पर वलित पर्वतों की उत्पत्ति होती है। मध्य का भाग वन से अप्रभावित रह जाता है। यहां चट्टाने क्षैतिज रूप से ही ऊपर उठ जाती है इस क्षेत्र को कुंवर ने मध्य पिंड कहा।
- प्रीति सागर एक प्राचीनतम भूसन्नति था जिसमें इसी प्रक्रिया द्वारा उत्तर में कुनलुन और दक्षिण में हिमालय वलित पर्वत की उत्पत्ति हुई, जिसके मध्य में तिब्बत का पठार एक मध्य पिंड के रूप में है।
कोबर की भूसन्नति सिद्धांत की आलोचनाएं
कोबर का सिद्धांत एक प्रारंभिक सिद्धांत हैं, जिसमें कई वैज्ञानिक कमियां पाई जाती हैं ये भूसन्नति पर आधारित है।
- भूसन्नतियों को पर्वत निर्माण और मुख्यतः वलित पर्वत की उत्पत्ति का एक आधार माना जाता है। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत में भी भूसन्नतियों के मलबों में बलन को स्वीकार किया गया है लेकिन केवल भूसन्नति के मलबों से वलित पर्वत की उत्पत्ति नहीं होती है क्योंकि पर्वतों में अवसादी परतदार चट्टानों के साथ ही भूपटल की प्रारंभिक चट्टाने अआग्नेय एवं रूपांतरित चट्टानें भी पाई जाती हैं। यदि भूसन्नतियोंसे वलित पर्वत की उत्पत्ति होती तब इनमें केवल अवसादी परतदार चट्टाने पाई जानी चाहिए थी।
- यह सिद्धांत वलित पर्वतों की ऊंचाई की भी व्याख्या करने में असमर्थ है इसके अतिरिक्त यह सिद्धांत रॉकी एवं एडीज जैसे वलित पर्वतों की उत्पत्ति को स्पष्ट नहीं करता है। ज्वालामुखी एवं भ्रंशोत पर्वत की उत्पत्ति की व्याख्या भी इससे नहीं हो पाती, वलित पर्वतों के संदर्भ में भी संपीडन के लिए जीवनी शक्ति /बल चाहिए वह मलबों के धसान से संभव नहीं है।
- इस तरह कई आधारों पर इस सिद्धांत की आलोचना की गई और इसे पर्वत निर्माण के संदर्भ में वैज्ञानिक मान्यता प्राप्त नहीं हुई। इसके बावजूद हिमालय, कुनलुन,तथा तिब्बत के पठार की भौगोलिक स्थिति की व्याख्या इस सिद्धांत से होती है। विशेष कर दो वलित पर्वतों के मध्य, मध्य पिंड की स्थिति की व्याख्या केवल इसी सिद्धांत से होती है।
होम्स का संवहन तरंग सिद्धांत
( Convection current theory of Holmes)
- आर्थर होम्स ने पर्वत निर्माण से संबंधित संवहन तरंग सिद्धांत का प्रतिपादन किया। यह भी एक प्रकार का भूसन्नति सिद्धांत है जिसमें भू- सन्नतियों से ही पर्वत निर्माण की व्याख्या की गई है।
- इसमें बलित पर्वतों के निर्माण की प्रक्रिया को भूसन्नति एवं अध:स्तर से उत्पन्न होने वाली संवहनीक तापीय उर्जा तरंगों से समझाया गया। इस दृष्टिकोण से अपने समय के अनुसार अधिक अग्रगामी और वैज्ञानिक सिद्धांत है।
- दरअसल होम्स ने पृथ्वी के आंतरिक मंडल को 2 भागों में बांटा, ऊपरी मंडल को कृषि तथा निचले मंडल को अध: स्तर के रूप में नामित किया। अध: संयंत्र को तरल अवस्था में माना इसका कारण यहां उपस्थित रेडियो एक्टिव पदार्थ को माना।
- होम्स के अनुसार अध:संयंत्र से तापीय ऊर्जा तरंगों की उत्पत्ति होती है। सामान्यतः महाद्वीपों एवं महासागरों के मध्यवर्ती भागों में प्रभावी ऊर्जा तरंगे उत्पन्न होती हैं।
- भूपटल के नीचे जहां ऊर्जा तरंगों में अभिसरण होता है। वहां चट्टानों में दबाव से घनत्व में वृद्धि के कारण अवतल (धसान) की प्रक्रिया से भूसन्नति उत्पत्ति होती है। और जहां ऊर्जा तरंगों का अपसरण होता है वहां विखंडन के कारण भूसन्नति की उत्पत्ति होती हैं।
- इन्हें भूसन्नतियों मैं मलबों के निक्षेप और ऊर्जा तरंगों के कारण मलबों में वालन की क्रिया से वलित पर्वत ओं की उत्पत्ति होती है। राकी, एंडीज, हिमालय जैसे वलित पर्वत का निर्माण इसी प्रक्रिया से हुआ है।
होम्स ने पर्वत निर्माण की तीन अवस्था बताइई
1- भूसन्नति की अवस्था
2- पर्वत निर्माण की अवस्था
3- संतुलन की अवस्था
भूसन्नति की उत्पत्ति की अवस्था
- प्राथमिक रूप से तापीय ऊर्जा तरंगों के कारण भूपटल में भूसन्नतियों का निर्माण होता है। इनमें धीरे-धीरे निरंतर मलबों का निक्षेप होता रहता है और और अवसादी परतदार चट्टानों का निर्माण होता है। इस समय ऊर्जा तरंगे क्रमश: तीव्र होती जाती है, इसके बाद पर्वत निर्माण की दूसरी अवस्था प्रारंभ होती है।
- दूसरी अवस्था उर्जा तरंगों की गति सर्वाधिक हो जाती तथा इसकी तीव्रता से मलबे में संपीड़न होना प्रारंभ हो जाता है। संपीड़न होने से मलबों में मोड़ पड़ने लगते हैं और इस प्रकार वालित पर्वतों की उत्पत्ति होती है। इसे ही पर्वत निर्माण की अवस्था कहते है।
- तीसरी अवस्था में वलित पर्वत की ऊंचाई में कोई वृद्धि नहीं होती लेकिन चट्टानों में वलन के कारण संतुलन की अवस्था को प्राप्त करने के क्रम में कहीं-कहीं उत्थान एवं धसान घटित होता है। यह संतुलन की अवस्था कहलाती है।इस समय ऊर्जा तरंगों की तीव्रता में क्रमश: कमी आने लगती है इस अवस्था में कहीं-कहीं भूगर्भ का मैग्मा ऊपर आने का प्रयास करता है।
राकी एवं एंडीज पर्वत का निर्माण अमेरिका के पश्चिम तटीय भाग में स्थित भूसन्नति में वलन से हुआ है जबकि हिमालय, आल्पस, एटलस वलित पर्वत की उत्पत्ति टेथिस भूसन्नति के मलबे में वालन से हुआ है।
- यह सिद्धांत भी सभी पर्वतों की व्याख्या करने में सक्षम नहीं है।इसके अतिरिक्त इसमें भी केवल भूसन्नति के मलबों में वलन से वलित पर्वतो की व्याख्या की गई है।
अतः यह सिद्धांत भी वलित पर्वतों की शैल संरचना और अधिक ऊंचाई की व्याख्या करने में सक्षम नहीं है। इसके बावजूद यह सिद्धांत उन शक्तियों की व्याख्या करने में सक्षम हुआ जो संपीड़न के लिए उत्तरदाई हैं।वर्तमान में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा पर्वतों की व्याख्या की जाती है लेकिन इसमें भी प्लेटों की गतिशीलता का कारण तापीय ऊर्जा तरंगों को ही माना जाता है। इस दृष्टि से होम्स का सिद्धांत महत्वपूर्ण है।
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा पर्वत निर्माण की व्याख्या
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत पर्वत निर्माण सहित विभिन्न भूगर्भिक क्रियाओं की व्याख्या अपेक्षाकृत अधिक वैज्ञानिक आधारों पर करने में सक्षम है।इस सिद्धांत द्वारा वलित पर्वत एवं ज्वालामुखी पर्वत की उत्पत्ति की वैज्ञानिक व्याख्या की गई है साथ ही यह पर्वतों की भौगोलिक स्थिति को भी समझाने में सक्षम है इसी कारण पर्वत निर्माण से संबंधित यह सिद्धांत मान्य है।
इस सिद्धांत के अनुसार प्लेटो की अपसारी गति के कारण अपसारी सीमांतों पर विखंडन की क्रिया से उत्पन्न दरार के सहारे भूगर्भिक मैग्मा के उद्गगार के कारण ज्वालामुखी क्रिया घटित होती है। अटलांटिक महासागर के मध्यवर्ती कटक क्षेत्र में ज्वालामुखी की उत्पत्ति इसी प्रक्रिया से हुई, कटक के सहारे कई ज्वालामुखी (सक्रिय) भी पाए जाते हैं।
प्लेटो के अभिसारी सिमान्तों के सहारे अधिक घनत्व के प्लेट में प्रत्यावर्तन और कम घनत्व के प्लेट में वलन की क्रिया से वलित पर्वतों की उत्पत्ति होती है। अधिकांश वलित पर्वतों में ज्वालामुखी क्षेत्र भी पाए जाते हैं। यहां कई सक्रिय ज्वालामुखी वलित पर्वतों के साथ स्थित है। इसका कारण अधिक घनत्व के प्लेट के क्षेपण/प्रत्यावर्तन के बाद प्लास्टिक दुर्बल मंडल में पिघलकर मैग्मा के रूप में सतह पर आना है।
उत्तरी अमेरिकन एवं दक्षिणी अमेरिकन प्लेट का प्रशांत प्लेट से अभिसरण के कारण कम घनत्व के उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिकन प्लेट में वलन की क्रिया द्वारा क्रमश: राखी,एण्डीज वलित पर्वतों की उत्पत्ति हुई।
इन्हीं क्षेत्रों में कई सक्रिय ज्वालामुखी पाए जाते हैं, इसका कारण प्रशांत प्लेट के क्षेपण के साथ गहराई में पिघल कर मैग्मा के रूप में सपा पर आना है।
अभीसारी प्लेट गति के कारण ही भारतीय प्लेट एवं यूरेशियन प्लेट के अभिसरण से कम घनत्व के यूरेशियन प्लेट में वलन की क्रिया द्वारा हिमालय पर्वत की उत्पत्ति हुई।
यहां यूरेशियन प्लेट के अधिक मोटे होने के कारण भूगर्भ का मैग्मा सतह को तोड़ने में सक्षम नहीं है। अतः: यहां ज्वालामुखी पर्वत नहीं पाए जाते।
आल्पस एवं एटलस पर्वत की उत्पत्ति यूरेशियन प्लेट और अफ्रीकन प्लेट में अभिसरण के कारण इन प्लेटों के सीमांत भाग में वलन की क्रिया से हुई है।
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा प्रशांत महासागर के पश्चिम के भाग में स्थित द्विपीय चाप एवं तोरण तथा इन पर स्थित ज्वालामुखी पर्वतों की भी व्याख्या होती है। जापान, फिलीपींस और इंडोनेशिया के 1000 द्वीपों के समूह द्वीपीय चाप एवं तोरण पर है।इनकी उत्पत्ति दो सागरिया पतले प्लेटों के अभिसरण से अपेक्षाकृत कम घनत्व के सागरीय प्लेटों में वलन से होती है। यहां अधिक घनत्व के सागरीय प्लेट के क्षेपित होने, अधिक तापमान के धारणा पिघलने और मैग्मा के रूप में 17 पर आने से ज्वालामुखी क्रिया घटित होती है।
अस्पष्टता इस सिद्धांत द्वारा विभिन्न प्रकार के वलित पर्वत और ज्वालामुखी पर्वतों की उत्पत्ति के साथ ही भौगोलिक स्थिति की भी व्याख्या की जा सकती है भ्रंशोत्थ पर्वत भूपटल की चट्टानों में धर्म संक्रिया से उत्पन्न पर्वत है जिसका प्रत्यक्ष संबंध प्लेट विवर्तनिकी से नहीं है लेकिन इस सिद्धांत द्वारा भ्रम संक्रिया पर भी प्रकाश पड़ता है। पृथ्वी पर वलित एवं ज्वालामुखी पर्वत का विस्तार व्यापक क्षेत्र में है। और यह प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत से संभव हो सका।
दक्षिण अफ्रीका में स्थित डेकेंन्सबर्ग एक नवीन वलित पर्वत है जिसकी व्याख्या इस सिद्धांत से नहीं होती, लेकिन यह कम ऊंचाई कम क्षेत्र है। जो सामान्य संपीडन से भी संभव है।
विश्व के कुछ प्रमुख वलित पर्वत
- हिमालय
- आल्पस
- कुनलुन
- काराकोरम
- एलबुर्ज
- जाग्रोस
- यूराल
- थ्यान सान
- नान सान
- याख्लोनोय
- स्टेनोवॉच
- संतान
- एटलस
- राखी
- एण्डीज
- अप्लेशियन
- ग्रेट डिवाइडिंग
- पिरेनीज
- कार्पेथियन
- काकेशस
भ्रंशन एवं भ्रंश स्थलाकृतियां ( भ्रंशोत पर्वत)
भूपटल की चट्टानों में उत्पन्न संपीड़न एवं तनाव बल के कारण उत्पन्न दरार को भ्रंश रेखा कहते हैं। लेकिन इनका प्रमुख कारण भूपटल में उत्पन्न तनाव बल ही है।भ्रंश रेखा के सहारे चट्टानों में विस्थापन से कई प्रकार के भ्रंश और भ्रंश स्थलाकृतियां का निर्माण होता है। इस संपूर्ण प्रक्रिया को भ्रंशन कहते हैं।
भ्रंशन अतिरिक्त भूखंडों में गति भी होती है, जिसके कारण कई प्रकार के भ्रंश उत्पन्न होते हैं जैसे – सामान्य भ्रंश,उत्क्रम भ्रंश, अति उत्क्रम भ्रंश, सोपानी भ्रंश,भ्रंशोत पर्वत या भ्रंश घाटी आदि।
- भ्रंश रेखा के दोनों ओर चट्टानों के विपरीत दिशा में विस्थापित होने से सामान्य भ्रंश की उत्पत्ति होती है।
- भ्रंश रेखा के दोनों ओर की चट्टानों में संपीडन बल से या एक दूसरे की ओर खिसकने से उत्पन्न भ्रंश को उत्क्रम भ्रंश कहते हैं।
- अति उत्क्रमण की स्थिति में अति उत्क्रम भ्रंश का निर्माण होता है।
- संरक्षी प्लेट गति के कारण जब दो प्लेटें समानांतर एवं वितरित रगडते हुए गुजरती हैं तब संरक्षी सिमतों के सहारे निर्मित भ्रंश को रूपांतर भ्रंश कहते हैं।
- जब भूपटल की चट्टाने कई भ्रंश रेखाओं के सहारे सीढ़ीदार आकृति बनाते हैं तो उसे सोपानी भ्रंश करते हैं।
भ्रंशोत्थ पर्वत तथा भ्रंश घाटीयॉ
1- भ्रंशोत्थ पर्वत/ब्लॉक पर्वत ( black mountain)
2- हार्स्ट पर्वत ( Harst mountain)
3- रिफ्ट घाटी ( rift valley)
4- रैम्प घाटी ( ramp valley)
दो भ्रंश रेखा के सहारे चट्टानों में उत्थान एवं धसान स्थलाकृतिया जैसे – पर्वत एवं घाटी का निर्माण होता है।