प्लेट विवर्तनिकी

प्लेट विवर्तनिकी

भूमिका

  • क्रस्ट एवं ऊपरी मेंटल के ऊपरी परत से निर्मित स्थल मंडल तथा जलमंडल के बृहद खंड को प्लेट कहते हैं। जो दुर्बलता मंडल के ऊपर संचालन करते हैं इन्हें प्लेटों के संचालन के कारण प्लेट के आंतरिक भागों में होने वाले विरूपण के अध्ययन को प्लेट विवर्तनिकी कहते हैं।
  • प्लेट विवर्तनिकी विस्थापन का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं जाता है, बल्कि यह महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत पूरा चुंबकत्व अध्ययन तथा सागर नितल प्रसरण सिद्धांत का सम्मिलित रूप है।

1- प्रशांत प्लेट

2- उत्तरी अमेरिकन प्लेट

3- दक्षिणी अमेरिकन प्लेट

4- अफ्रीकन प्लेट

5- यूरेशियन प्लेट

6- भारतीय प्लेट या इंदौर ऑस्ट्रेलियन प्लेट

7- अंटार्कटिका प्लेट।

इसके अलावा कई छोटे प्लेट हैं इनमें फिलीपींस प्लेट, अरेबियन प्लेट, कैरीबियन प्लेट, कोकोस प्लेट (पनामा के पास) ,नजका प्लेट(पेरू के पास), स्कोशिया प्लेट ( अर्जेंटीना के दक्षिण में), सोमाली प्लेट,वर्मी प्लेट इत्यादि।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत का विकास:

  • वर्ष 1955 में सर्वप्रथम कनाडा के भू-वैज्ञानिक जे. टूजो विल्सन (J-Tuzo Wilson) ने ‘प्लेट’ शब्द का प्रयोग किया।
  • वर्ष 1967 में मैकेंजी, व पारकर पूर्व के उपलब्ध विचारों को समन्वित कर ‘प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत’ का प्रतिपादन किया।
  • बाद में वर्ष 1968 में मॉर्गन ने इस सिद्धांत को रेखांकित किया।

प्लेट एवं प्लेट विवर्तनिकी:

  • क्रस्ट एवं ऊपरी मेंटल की ऊपरी परत से निर्मित 5 किलोमीटर से लेकर 200 किलोमीटर मोटाई की ठोस परत अर्थात् स्थलमंडल के वृहद भाग को प्लेट कहते हैं। क्रस्ट + ऊपरी मेंटल का ऊपरी भाग= प्लेट
  • दो प्लेटों को विभाजित करने वाली रेखा को प्लेट सीमा कहते हैं।
  • प्लेट सीमा के दोनों ओर स्थित क्षेत्र जहां प्लेटो की गति का सर्वाधिक प्रभाव होता है उसे प्लेट सीमांत (plate merging ) कहते हैं।
    • यह कई खंडों में विभाजित होती है जो महाद्वीपीय और महासागरीय क्रस्ट से निर्मित होती है।
    • इनमें सिलिका, एल्युमिनियम तथा मैग्नीशियम की अधिकता होती है।
    • प्लेटो की दूर जाने तथा पास आने की क्रिया को विवर्तनिकी कहते हैं।
    • प्लेटो का संचलन दो प्रकार का होता है। ऊर्ध्वाधर संचलन द्वारा और क्षैतिज संचलन
  • ये प्लेटें स्वतंत्र रूप से पृथ्वी के दुर्बलमंडल (प्लास्टिक मंडल) पर विभिन्न दिशाओं में संचलन करती हैं।
  • प्लेटों के एक दूसरे के सापेक्ष होने वाले संचलन के परिणामस्वरूप पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तन के अध्ययन को प्लेट विवर्तनिकी कहते हैं।

प्लेट्स के संचरन का कारण

  • मुख्यतः संवहन तरंग, कटक दबाव एवं स्लैब खिंचाव को सम्मिलित रूप को प्लेट संचलन के लिये उत्तरदायी माना जाता है।
    • जिसमें संवहन तरंगों का योगदान सर्वाधिक होता है।
    • ध्यातव्य है कि संवहन तरंगों की उत्पत्ति तापमान में वृद्धि एवं दाब में कमी के कारण गर्मगलित पदार्थ अर्थात् मैग्मा के प्रभाव से होती है।

प्लेट संचलन के प्रकार: प्लेटों का संचलन तीन प्रकार से होता है।

अपसारी संचलन-

  • जब दो प्लेटें एक-दूसरे की विपरीत दिशा में गमन करती हैं तो उसे अपसारी संचलन कहा जाता हैं।
  • अपसारी प्लेट किनारों पर नए क्रस्ट का निर्माण होने के कारण इन्हें रचनात्मक सीमा तथा सीमांत भी कहते हैं।
  • विश्व के अधिकांश सीमांत तथा अपसारी सीमा मध्य महासागरीय कटकों के सहारे हैं। इसका सर्वोत्तम उदाहरण मध्य-अटलांटिक कटक है।
  • अपसारी संचलन के द्वारा प्लेटो का निर्माण होता है।

अभिसारी संचलन-

  • इसमें दो प्लेटें एक-दूसरे की ओर गति करती हैं। यहाँ पर भारी (अधिक घनत्व वाली) एवं तेज़ गति वाली प्लेट का हल्की व कम गति वाली प्लेट के नीचे क्षेपण होता है।
  • क्षेपण के कारण यहाँ क्षेपित सीमांत का क्षय होता है। इसके फलस्वरूप इसे विनाशात्मक सीमा एवं सीमांत भी कहते हैं।
  • अभिसारी सीमा पर जब कोई भी प्लेट गहराई में क्षेपित होती तो यहाँ ज्वालामुखी पर्वतों के स्थान पर वलित पर्वतों का निर्माण होता है।
  • हिमालय पर्वत तथा अप्लेशियन पर्वत का निर्माण अभिसारी प्लेट सीमा पर ही हुआ है।
  • अभिसारी संचलन द्वारा प्लेटो का विनाश होता है।

अभिसारी प्लेट संचलन तीन प्रकार से होता है।

1-महाद्वीपीय- महासागरीय संचलन

2- महाद्वीपीय- महाद्वीपीय संचलन

3- महासागरीय- महासागरीय संचलन

समानांतर प्लेट संचलन/संरक्षी प्लेट सीमा तथा सीमांत-

  • जब प्लेटें एक-दूसरे के समानांतर गति करती हैं जिससे न तो किसी प्रकार की पर्पटी का निर्माण होता है न विनाश होता है समानांतर प्लेट संचलन या संरक्षी प्लेट सीमांत कहलाता है।
  • संरक्षी प्लेट सीमा पर बहुत अधिक भूकंप आते हैं। 
  • प्लेट विवर्तनिकी के आधार पर भूंकप, ज्वालामुखी एवं पर्वत निर्माण की प्रक्रिया की व्याख्या की जा सकती है।

सागर तल प्रसरण

प्लेटों की गतिशीलता के कारण इनके के किनारे या सीमायें तीन प्रकार के पाए जाते हैं।

विनाशात्मक/अभिसारी किनारा

इस प्रकार के किनारों के सहारे दो प्लेटें एक दूसरे की ओर गति करती हैं और टकराकर उनमें से भारी प्लेट हलकी प्लेट के नीचे क्षेपित होती है। मुड़कर नीचे की ओर क्षेपित होने वाला यह हिस्सा गहराई में जा कर ताप और दाब की अधिकता के कारण पिघलकर मैग्मा में परिवर्तित होता है।जिस गहराई पर यह घटना होती है उसे क्षेपण मण्डल या बेनीऑफ़ ज़ोन कहते हैं। ऐसे किनारों के सहारे भूसन्नतियों के पदार्थ दबाव के कारण मुड़कर पर्वतों का निर्माण करते हैं। नीचे जाकर पिघला पदार्थ मैग्मा प्लूम के रूप में ऊपर उठ कर ज्वालामुखीयता भी उत्पन्न करता है।

रचनात्मक/अपसारी किनारा

जहाँ दो प्लेटें एक दूसरे के विपरीत गतिशील होती हैं, अर्थात एक दूसरे से दूर हटती हैं वहाँ नीचे से मैग्मा ऊपर उठकर नयी प्लेट का निर्माण करता है। इन किनारों पर पाए जाने वाले सबसे प्रमुख स्थलरूप मध्य महासागरीय कटक हैं। जब यह किनारा किसी महाद्वीप पर स्थित होता है तो रिफ्ट घाटियों का निर्माण होता है।नयी प्लेट के निर्माण के कारण इसे रचनात्मक किनारा भी कहते हैं।

संरक्षणात्मक किनारा

संरक्षी किनारा वह है जिसके सहारे दो प्लेटे एक दूसरे को रगड़ते हुए गतिशील हों, अर्थात न तो अपसरण हो रहा हो न ही अभिसरण। सामान्यतः इस किनारे के सहारे एक दूसरे को रगड़ते हुये विपरीत दिशाओं में गतिशील होती हैं किन्तु यह अनिवार्य नहीं है, यदि दो प्लेटें एक ही दिशा में गतिशील हों और उनकी गति अलग-अलग हो तब भी उनके किनारे रगड़ते हुये संरक्षी किनारा बना सकते हैं। इनके सहारे ट्रांसफोर्म भ्रंश पाए जाते हैं। चूँकि इनके सहारे न तो प्लेट (क्रस्ट या स्थलमण्डल) का निर्माण होता है और न ही विनाश अतः इन्हें संरक्षी/संरक्षणात्मक किनारे कहते हैं जहाँ निर्माण/विनाश के सन्दर्भों में यथास्थिति संरक्षित रहती है।

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