पाठ 2. वन एवं वन्य जीव संसाधन

पाठ 2. वन एवं वन्य जीव संसाधन

  समीक्षा 

वनस्पतिजात – विशेष क्षेत्र जिसमें विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों पाई जाती हैं , जिनकी अपनी विशेषताएँ तथा लाभ है । 

 प्राणिजात – विभिन्न प्राणियों का समूह वन – जहाँ विभिन्न प्रकार के पेड़ – पौधे प्राकृतिक रूप से पनप जाते हैं । 

 वन्य जीव – वनों में रहने वाले प्राणी । 

पादप जातियाँ – पेड़ – पौधों की विभिन्न प्रजातियाँ 

जल स्थल चर – जल तथा भूमि दोनों पर रहने वाले जीव 

     कृत्रिम वन – वृक्षारोपण तथा वनमहोत्सव की सहायता से निर्मित वन । 

हिमालयन यव – हिमालय क्षेत्र में पाया जाने वाला औषधीय पौधा । 

  • पश्चिमी बंगाल में बक्सा टाइगर रिजर्व डोलोमाइट के खनन के कारण गंभीर खतरे में हैं भारतीय वन्य जीव ( रक्षण ) अधिनियम 1972 में लागू किया गया ।
  •  प्रोजेक्ट टाईगर परियोजना 1973 में शुरू गई । 
  • भारत में 10 प्रतिशत वन्य वनस्पतिजाँत तथा 20 प्रतिशत स्तनधारियों के लुप्त होने का खतरा है । 

सरदार सरोवर परियोजना – नर्मदा नदी पर बनाई जा रही बहुउद्देशीय परियोजना है । भूमि पर रहने वाला सबसे तेज स्तनधारी प्राणी चीता ‘ एक विशिष्ट प्राणी है जो 112 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से दौड़ सकता है । . 

अभ्यास 

( i ) इनमे से कौन – सी प्राकृतिक वन्स्पतिजात और प्राणिजात के हास का सही कारण नहीं है ?

 ( क ) कृषि प्रसार 

 ( ख ) पशुचारण और ईधन लकड़ी एकत्रित करना 

 ( ग ) वृहत स्तरीय विकास परियोजनाएं 

 ( घ ) तीव्र औधोगीकरण और शहरीकरण 

उत्तर : – ( ग ) वृहत स्तरीय विकास परियोजनाएँ । 

( ii ) इनमे से कौन – सा संरक्षण तरीक समुदायों के सीधी भागीदारी नहीं करता ? 

( क ) संयुक्त वन प्रबंधन 

( ख ) बीज बचाओं आन्दोलन 

( ग ) चिपको आन्दोलन 

( घ ) वन्य जीव पशुविहार ( Santuary ) का परिसीमन 

उत्तर : – ( घ ) वन्य जीव पशुविहार ( Santuary ) का परिसीमन |

 4. निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए ?

 ( क ) जैव विविधता क्या है ? यह जीवन के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है ? उत्तर : – ( क ) जैव विविधता से अभिप्राय पृथ्वी पर पाई जाने वाली विभिन्न वन्स्पति एवं प्राणियों की प्रजातियों से है , जो प्राय : अपने कार्यों एवंम आधार पर भिन्न – भिन्न होते है | जैव विविधता मानव जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण है | मानव तथा दुसरे अन्य जीवधारी एक जटिल पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते है तथा हम अपने असितत्त्व को बनाए रखने के लिए इसके विभिन्न तत्वों पर परस्पर निर्भर करते है । अत : ये हमारे लिए विभिन्न प्रकार से महत्त्वपूर्ण सिद्ध होते है | उदाहरण के लिए हवा , पानी तथा मिट्टी आदि जीवन यापन के लिए आवश्यक है वहीं पौधे , पशु तथा विभिन्न सुक्ष्मजीवी इनका पुन : सृजन करते है । इस प्रकार से परस्पर निर्भर है |

      ( क ) बढ़ती खाधान्न जरूरतों की पपूर्ति हेतु पेड़ों की कटाई वन संसाधनों में कमी लिए एक प्रमुख उत्तरदायी कारक रहा | 

( ख ) अत्यधिक पशुचारण , ईंधन के लिए लकड़ी तथा संवदन वृक्षारोपण अर्थात् एकल वृक्ष जातियों के बड़े पैमाने पर रोपण ने भी वनस्पति विनाश में बड़ी भूमिका निभाई है ।

 ( ग ) जंगलों की बर्बादी के लिए खनन क्रियाएँ भी काफी सीमा तक जिम्मेदार है । 

( घ ) 1952 से बड़ी विकास परियोजनाओं के कारण भी 5000 वर्ग . किमी . जंगलों को साफ़ करना पड़ता है ।

 ( ड ) इसके अतिरिक्त औपनिवेशिक काल में रेलवे लाइन , कृषि , वाणिज्य वानिकी और खनन क्रियाओं से जंगली को सर्वधिक क्षति पहुँची है । 

5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए | 

( क ) भारत में विभिन्न समुदायों ने किस प्रकार वनों और वन्य जीव संरक्षण और रक्षण में योगदान किया विस्तारपूर्वक विवेचना करें ।

 उत्तर : –

 ( क ) राजस्थान के विशनोई समुदाय के गावों में काले हिरण , चिंकारा , नीलगाय एवं मोरों का शिकार वर्जित है । 

( ख ) टिहरी के किसानों द्वारा लिए गए ” बीज बचाओं ” आन्दोलन तथा नवदानय ने सिद्ध कर दिया कि रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के बिना भी आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृर्षि संभव है । 

( ग ) इसी प्रकार छोटा नागपुर क्षेत्र में मुंडा तह संथाल जनजातियों द्वारा महुए एवं कदंब के वृक्षों की पूजा ने इन वृक्षों को संरक्षण प्रदान किया है । 

( ख ) वन और वन्य जीव संरक्षण में सहयोगी रीति – रिवाजों पर एक निबधं लिखिए | 

उत्तर : – 

  • भारत एक सांस्कृतिक विविधता वाला देश है जहाँ लोगों के अलग – अलग रीति – रिवाज के द्वारा वह प्राय : प्रकृति से अपनी निकटता को व्यक्त करता है ।
  •  इन रिवाजों में जंगली जीवों से संबधित कुछ रीति – रिवाज है जो वन एवं वन्य जीवों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है | 
  • राजस्थान का विश्नोई समाज खेजरी के पेड़ों , कलले हिरण , चिंकारा आदि के संरक्षण क लिए पुरे भारत में विख्यात है । 
  • इसी प्रकार बिहार के छोटा नागपुर क्षेत्र में मुंडा एवं संथाल जनजातियों द्वारा महुआ और कदंब के वृक्षों की पूजा व उड़ीसा तथा बिहार के छोटा में शादी के अवसर पर इमली तथा आम के वृक्षों की पूजा इनके संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही है । 

    3. पारिस्थितिक तंत्र : – वे तंत्र जिसमें सभी जीव – जन्तु एक दुसरे को फायदा पहुँचते है और आपस में मिल – जुलकर रहते है तथा पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं । 

 4. वनों की पारिस्थितिक तंत्र में भूमिका : – वन पारिस्थितिक तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है क्योंकि में प्राथमिक उत्पादक है जिन पर दुसरे सभी जीव निर्भर करते है । जैसे वनों तथा खेती में उत्पादों को जीव – जन्तु एवं मनुष्य सभी खाते है यदि वन ही नहीं होगा तो पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन बिगड़ जाएगा | 

5. मानव क्रियाएँ प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के हास के कारण है : ( a ) कृषि के विस्तार के लिए वनों की कटाई इसका मुख्य कारक हैं ।

     6. I.U.C.N का पूरा नाम : – अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ | 7. I.U.C.N के द्वारा विभिनन श्रेणियों में बॉट गया है :

 ( a ) सामान्य जातियाँ : – सामान्य जातियों वे जातियाँ होती है जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान होती है जैसे पशु , साल , चील और कृन्तक आदि । 

( b ) संकटग्रस्त जातियाँ : – संकटग्रस्त जातियाँ वे जातियाँ है जिनकी संख्या बहुत कम है जिनके लुप्त होने का खतरा है जिन कारणों से इनकी संख्या कम हुई है यदि वह जारी रही हो ये कभी भी समाप्त हो सकते है जैसे काला हिरण , मगरमच्छ , भारतीय जंगली गधा , गैंडा आदि | 

( c ) सुभेय जातियाँ : – सुभेय जातियाँ वे जातियाँ है जिनकी संख्या कम होती जा रही है यदि हमने शिकार एवं वर्नोन्मुलन को कम नहीं किया तो यह संकटग्रस्त जीवों में शामिल हो सकती है | जैसे नीली भेइ , एशियाई हाथी , गंगा नदी की डॉलिफान आदि ।

 ( d ) दुर्लभ जातियाँ : – वे जातियाँ जिनकी संख्या बहुत कम है ये आसानी से नहीं पाए जाते ये सुभेय जातियाँ भी होती है | 

( e ) स्थानिक जातियाँ : – प्राकृतिक जातियों या भौगोलिक सीमाओं से अलग विशेष क्षेत्रों में पाई जाने वाली जातियों या वे जातियाँ जो एक विशेष स्थान पर ही पाई जाती है । उदहारण निकोबारी कबूतर , अंडमानी जंगली सूअर , अंडमानी रील आदि । 

( 1 ) लुप्त जातियाँ : – ये वे जातियाँ है जो इनके रहने के आवासों में खोज करने पर पाई नही जाती है | या वे जातियाँ जो पृथ्वी से लुप्त हो गई जाती है वे लुप्त जातियाँ होती है | जैसे एशियाई चीता और गुलाबी सिरावाली बत्तख | 

8. औपनिवेशिक काल में वन के नुकसान के कारण

( a ) रेल – लाइनों क विस्तार |

 ( b ) कृषि 

( c ) व्यवसाय एवं उघोगों का विस्तार | 

 ( d ) वाणिज्य वानिकी ।

 ( e ) खनन क्रियाओं में वृद्धि । 

9. वनों के ह्रास में वाणिज्य वानिकी ( वन नीति ) की भूमिका : – वाणिज्य वानिकी के कारण वनों की संख्या में ह्रास हुआ क्योंकि कुछ वृक्ष जातियों को बड़े पैमाने पर्लागाने के कारण पेड़ों की दूसरी जातियाँ खत्म हो है है जैसे सागवन के पर्दा को लगाने ले लारण दक्षिण भारत के अन्य्प्रकृयिक वन बर्बाद हो गए है ।

10. वनों के ह्रास में विकास परियोजनओं की भूमिका : – बड़ी विकास परियोजनाओं ने भी वनों को बहुत नुकसान पहुचाया है । कुछ ऐसे परियोजना होते है जिसके लिए वनों को काटना आवश्यक होता है जैसे नदी घाटी परियोजनों के कारण कई वर्ग कि.मी तक वनों को काट दिया गया | नर्मदा सागर परियोजना के कारण के कई हजार हेक्टेयर वन जलमगन हो गए ।

11. हिमालयन यव : – हिमालयन यव एक प्रकार का औषधीय पौधा है जो हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में पाया जाता है । 

12. हिमालयन यव का प्रयोग : – इस पौधे के पेड़ की छाल , पत्तियों , टहनियों और जड़ों से टकसोल नामक रसायन निकालता है जिसका उपयोग कुछ कैंसर रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है । 

13. भारत में जैव – विविधता को कम करने वाले कारक : ( a ) जीव के आवास का विनाश | ( b ) जंगली जानवरों को मारना | ( c ) पर्यावरणीय प्रदुषण | ( d ) दावानल | 

14. पर्यावरण विनाश के अन्य कारक : ( a ) संसाधनों का असमान बंटवारा | ( b ) संसाधनों का असमान प्रयोग | ( c ) पर्यावरण के रख – रखाव की जिम्मेदारी में असमानता | ( d ) अत्यधिक जनसंख्या | 

15. जैव विनाश के प्रभाव : ( a ) के मूल जातियाँ और वनों पर आधारित समुदाय निर्धन होते जा रहे हैं और आर्थिक रूप से हाथिये पर पहुंच गए है । ये समुदाय अपने दैनिक आवश्कताओं के लिए वनों पर निर्भर है । 16. वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण की आवश्कता : वों और वन्य संरक्षण करना आवश्कता है क्योकों संरक्षण से पारिस्थितिक विविधता बनी रहती है तथा हमारे जीवन साध्य संसाधन – जल – वायु और मृदा बने रहते है यह विभिन्न जातियों में बेहतर जनन के लिए वनस्पति और पशुओं में से विविधता को भी संरक्षित करती है | उदारहण के तौर पर हम कृषि में अभी पांरपरिक फसलों पर निर्भर है । जलीय जैव विविधता मोटे तौर पर मछली पालन बनाए पर निर्भर है । 

17. भारतीय वन्य जीवन रक्षण अधिनियम ( 1972 ) : – जिसमे वन्य – जीवों के आवास रक्षण के अनेक प्रावधान थे | सरे भारत में रक्षित जातियों की सूचि भी प्रकाशित की गई । इस कार्यकम के तहत बची हुई संगटाग्रस्त जातियों के बचाव पर , शिकार प्रतिबंधन , वन्य जीवों आवासों का कानूनी रक्षण तथा जंगली जीवों के व्यापार पर रोक लगाने पर जोर दिया गया । 

18. भारतीय वन्य जीवन अधिनियम ( 1972 ) : ( a ) संगटाग्रस्त जातियों के बचाव के लिए उपाय | ( b ) शिकार प्रतिबंधन ले लिए कानून बनाए गए । ( c ) वन्य आवास का कानूनी रक्षण तथा जंगली जीवों के व्यापार के रोग पर रोक | 

19. राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार वन संरक्षण के उपाय : ( a ) पारिस्थितिक संतुलन के द्वारा पर्यावरण सिथारता रखना | ( b ) प्रत्यास्थापन मुलं के द्वारा मृदा अपरदन पर रोक ।

( c ) प्रकृतिक क्षेत्रों तथा समुद्री तटी पट्टियों में बालू टिब्बों के विस्तार पर रख | ( d ) राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बों की उत्पादकता बढ़ाना | ( e ) जनजातियों एवं ग्रामीण लोगों के लिए जलाशय लकड़ी , चाय उत्पाद तथा लकड़ियाँ उपलब्ध करना | 

20. वनों संरक्षण के लिए उपाय : ( a ) वन उत्पादों का कुशल प्रयोग । ( b ) वृहत जन आंदोलानों के साथ मनाना | ( c ) जिन क्षेत्रों में खेती नहीं की जा सकती है वहाँ पेड़ लगाना | ( d ) सभी राष्ट्रीय उत्सर्वो के कार्यक्रयों को वृक्षारोपण के कार्यक्रयों के बढ़ाना देना | 

21. वृक्षारोपण पारिस्थितिकी सतुलन बानर रखने में सहायक है : वनों के लाभ : ( a ) ये मृदा अपरदन को नियंत्रित करते है । ( b ) नदी प्रवाह को प्रदान करते है । ( c ) कच्चा माल प्रदान करते है । ( d ) अन स्थानीय जलावायुको सैम बनाते है । ( e ) के समुदायों को आजीविका प्रदान करते है । ( 1 ) वनों की पत्तियों आदि से हमस बनते हैं जो मृदा को उपजाऊ बनाते है | ( 9 ) पवन प्रवाह को नियंत्रित करते है । ( h ) वन पर्यावरण संतुलन को बनाये रखने में सहायक है । 

22. वन और वन्य जीव संसाधनों के वितरण की आवश्यकता है : – क्योंकि सभी वन और वन जीरों को प्रबन्धन , नियंत्रण कठिन है इन्हें आसानी समझाने के लिए इन्हें जामने के लिए हमें वन और वन्य जीव का वितरण करना आवश्क | 

23. वनों के प्रकार : ( a ) प्राकृतिक वातावरण के आधार पर : ( क ) प्राकृतिक वातावरण के आधार परवन पाँच प्रकार के होते है : ( a ) उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन ( b ) उष्ण कटिबंधीय पर्वपातिवन ( c ) कहिली झाड़िया ( d ) उष्ण कटिबंधीय शिष्तोषणण वन | ( e ) टुंड्रा वनस्पति भी अल्पाइन | 

 टीम रूद्रा

मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs ) 

अभिनव आनंद (डायट प्रवक्ता) 

डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या 

अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर) 

योगराज पटेल (VDO)- 

अभिषेक कुमार वर्मा (प्रतियोगी)

प्रशांत यादव – प्रतियोगी – 

कृष्ण कुमार (kvs -t ) 

अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)

 मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)

प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।

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