द्वैतवाद (Dualism)

द्वैतवाद (Dualism)

द्वैतवाद (Dualism)

  • द्वैतवाद वह स्थिति है जिसमें किसी एक ही समय में समान विषय वस्तु पर दो विपरीत विचार उत्पन्न होते हैं। इसके अंतर्गत जब दोनों विपरीत विचार विचारधारा के स्तर पर वाद के रूप में किसी विषय में सिद्धांत: स्थापित हो जाते हैं। द्विभाजन किसी विषय में द्वैतवाद का उत्पाद अथवा परिणाम होता है। भूगोल में भौगोलिक चिंतन के अध्ययन का मूल बिंदु मानव-प्रकृति संबंध रहा है इसके अंतर्गत प्रकृति का मानव पर तथा मानव का प्रकृति पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण किया गया है और यही विश्लेषित अध्ययन ही भूगोल में द्वैतवाद तथा द्विभाजन का मुख्य आधार बना।

भूगोल में द्वैतवाद के प्रकार-

  • भौतिक भूगोल बनाम मानव भूगोल
  • क्रमबद्ध भूगोल बनाम प्रादेशिक भूगोल
  • ऐतिहासिक बनाम समकालीक भूगोल
  • नियतवादी बनाम संभववादी भूगोल
  • मात्रात्मक बनाम आलोचनात्मक भूगोल

भूगोल में द्वैतवाद का विकास- भूगोल में द्वैतवाद के लक्षण प्राचीन यूनानी भूगोलवेत्ताओं के अध्ययन में ही पहली बार दिखाई दिए। यूनानी भूगोलवेत्ताओ में अरस्तू जहां क्रमबद्ध भूगोल के वहीं स्ट्रैबो प्रादेशिक भूगोल के समर्थक थे। अरब भूगोलवेत्ता प्रादेशिक भूगोल के समर्थक रहे है उन्होंने विश्व को विभिन्न प्रदेशों किश्वार (एक प्रकार का सांस्कृतिक प्रदेश) में वर्गीकृत किया। काण्ट क्षेत्रीय भूगोल के समर्थक रहे हैं। आधुनिक भौगोलिक अध्ययन में वारेनियस ने द्वैतवादी विचारधारा को स्थापित किया। हम्बोल्ट जहां क्रमबद्ध भूगोल को महत्व देते हैं वही रीटर प्रादेशिक भूगोल के समर्थक भूगोलवेत्ता रहे हैं। हेटनर के कोरोलाजी का संबंध वस्तुतः प्रादेशिक भूगोल से है। ब्लास ने अपने पेज की संकल्पना के माध्यम से प्रादेशिक अध्ययन का समर्थन किया। उल्लेखनीय है कि पेज ब्लास द्वारा चिन्हित एक रीवर बेसिन में निर्मित एक सांस्कृतिक प्रदेश है। ब्रून्स ने क्रमबद्ध अध्ययन पद्धति को महत्वपूर्ण माना। हर्बटसन ने विश्व को वृहद प्राकृतिक प्रदेशों में वर्गीकृत कर प्रादेशिक भूगोल के विषय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हर्टसोन की क्षेत्रीय विभेदन की संकल्पना मूलतः प्रादेशिक अध्ययन की है। हर्टसोन के समकालीक सेफर क्रमबद्ध भूगोल के समर्थक हैं उन्होंने भूगोल में मात्रात्मक विकास के क्रांति को प्रेरित किया।

क्रमबद्ध बनाम प्रादेशिक भूगोल अथवा सामान्य भूगोल बनाम विशिष्ट भूगोल- क्रमबद्ध तथा प्रादेशिक के मध्य का द्वैत भूगोल का प्रचलित द्वैतवाद है। इसके जनक जर्मन भूगोलवेत्ता वारेनियस माने जाते हैं। उनकी पुस्तक ज्योग्राफीया जेनेरलिस में सामान्य एवं विशिष्ट भूगोल पर विस्तृत रूप में चर्चा की गई। उल्लेखनीय है की क्रमबद्ध भूगोल ही सामान्य भूगोल जबकि प्रादेशिक भूगोल ही विशिष्ट भूगोल है।

क्रमबद्ध अध्ययन पद्धति के अंतर्गत किसी एक भौगोलिक चर का अध्ययन संपूर्ण क्षेत्र में किया जाता है जबकि प्रादेशिक भूगोल के अंतर्गत किसी क्षेत्र विशेष में लगभग सभी भौगोलिक तत्वों का अध्ययन किया जाता है। चूकि क्रमबद्ध भूगोल के अंतर्गत किसी एक चर का अध्ययन किया जाता है सभी भौगोलिक तत्वों का अध्ययन किया जाता है इसीलिए अध्ययन की इस पद्धति को एक चरीय अथवा प्रकरण भी कहते हैं। इस प्रकार क्रमबद्ध भूगोल के अंतर्गत किसी एक चर के विभिन्न आयामों का अध्ययन करते हैं। प्रादेशिक भूगोल के अंतर्गत सर्वप्रथम प्रादेशिक करण की विधियों के आधार पर संपूर्ण को विभिन्न प्रदेशों में वर्गीकृत करते हैं फिर चुने हुए विशिष्ट क्षेत्र में विद्यमान भौगौलिक तत्वों का अध्ययन करते हैं। प्रत्यक्षवाद पर आधारित मोनोथेटिक अध्ययन पद्धति मूलतः क्रमबद्ध भूगोल कहलाती है। जबकि इडियोग्राफिक का संबंध प्रादेशिक भूगोल से है। क्रमबद्ध अध्ययन पद्धति सामान्य करण की विधियों पर आधारित होने के कारण नियम, मॉडल तथा विधि निर्माण को प्रोत्साहित करता है।

क्रमबद्ध और प्रादेशिक भूगोल में अंतर-

क्रमबद्ध भूगोल

  • क्रमबद्ध भूगोल में किसी एक विशिष्ट भौगोलिक तत्वों का अध्ययन किया जाता है।
  • क्रमबद्ध विधि क्षेत्र का समा कलित रूप प्रदर्शित करता है।
  • यह विधि राजनीतिक इकाइयों पर आधारित है।
  • क्रमबद्ध भूगोल मॉडल, विधि, नियम को प्रोत्साहित करता है।

प्रादेशिक भूगोल

  • इसके अंतर्गत अधिकांश भौगोलिक तत्वों का अध्ययन किया जाता है।
  • प्रादेशिक विधि एकाकी रूप का प्रतिनिधित्व करता है।
  • यह विधि भौगोलिक इकाइयों पर निर्धारित है।
  • प्रादेशिक विधि किसी प्रदेश के मानव-प्राकृत संबंधों का विश्लेषण करती है।

भूगोल में क्रमबद्ध बनाम प्रादेशिक भूगोल का द्वैतवाद मिथ्या है- बेरी के अनुसार प्रादेशिक और सामान्य भूगोल अध्ययन की भिन्न विधियां नहीं बल्कि निरंतरता की दो चरम सीमाएं हैं। वास्तव में क्रमबद्ध एवं प्रादेशिक भूगोल भूगोलरूपी सिक्के के दो पहलू हैं। इसका तात्पर्य यह है की क्रमबद्ध विधि में प्रादेशिक विधि के लक्षण को तथा प्रादेशिक भूगोल में क्रमबद्ध अध्ययन पद्धति को स्पष्टत: देखा जा सकता है। जैसे मृदा, जलवायु जैसे तत्वों का अध्ययन जब हम किसी भी भू-क्षेत्र में करते हैं तो क्रमबद्ध अध्ययन के साथ प्रादेशिकरण के द्वारा चुने गए क्षेत्र के माध्यम से प्रादेशिक अध्ययन को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। इस तरह क्रमबद्ध व प्रादेशिक विधि में किसी प्रकार का द्वैत नहीं है। बल्कि एक विधि दूसरे विधि में निहित है केवल अध्ययन की सुविधा के लिए इन दोनों विधियों का अलग-अलग अध्ययन करते हैं।

मानव भूगोल एवं भौतिक भूगोल में द्वैतवाद

परंपरागत दृष्टि से भूगोल में दो बातों का अध्ययन किया जाता है। प्रथम पृथ्वी एवं उसके भौतिक पर्यावरण का दूसरा इस वातावरणीय एवं मानव के बीच होने वाले क्रिया एवं प्रतिक्रिया का इस दृष्टिकोण से भूगोल को हम दो शाखाओं में बांट सकते हैं।

i- भौतिक भूगोल

ii- मानव भूगोल

भूगोल में भौतिक एवं मानव भूगोल के द्वैतवाद का विकास

इस द्वैतवाद का उदय इसके चिंतन में है जिसमें भूगोल के मुख्य विषय के निर्धारित करने के क्रम में जन्म दिया। 1650 ईसवी में वेरेनियस ने जोग्राफिया जनरलिस में भौतिक भूगोल एवं मानव भूगोल में लक्षण का अंतर स्पष्ट किया। और उन्होंने भूगोल को दो उपविषयों सामान्य एवं विशिष्ट (भौतिक भूगोल) भूगोल में वर्गीकृत किया।

हंबोल्ट कांट आदि भूगोलवेत्ता भौतिक भूगोल को भूगोल के मुख्य विषय के रूप में बताते हैं।

स्ट्रेबो और प्लेटो को छोड़कर सभी ग्रीक भूगोलवेत्ता भौतिक भूगोल के समर्थक थे।

सामान्यतः अधिकतर नियत वादी भौतिक भूगोल के समर्थक थे। रिटर मानवतावादी थे उन्होंने अपनी पुस्तक लैंडर कुण्डे में प्रादेशिक भूगोल को महत्व दिया । सामान्यता सभी संभववादि मानव भूगोल के समर्थक थे। ब्लास ने अपनी पुस्तक Geography human में मानव भूगोल को प्रमुख विषय के रूप में स्वीकार किया है। अल्बर्ट डिमांजिया ने फार्मास्युटिकल में सांस्कृतिक प्रदेशों का अध्ययन कर मानव भूगोल का अनुसमर्थन किया है। जीन ब्रूस, रेटजेल, आदि भूगोलवेत्ता मानव भूगोल के समर्थक हैं। रेटजेल ने अपनी पुस्तक एंथ्रोपॉजियोग्राफी के प्रथम भाग में नियतवाद के समर्थन करने के क्रम में कहीं ना कहीं भौतिक भूगोल का समर्थन किया है। उसके भाग 2 में मानवतावादी भूगोल पर ज्यादा इस तरह रेट जल के चिंतन में द्वैतवाद स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

भौतिक भूगोल एवं मानव भूगोल में द्वैतवाद मिथ्या एवं वास्तविकता

भौतिक भूगोल एवं मानव भूगोल एक दूसरे के पूरक हैं। मानव के बिना प्रकृति अर्थहीन है 1950 से 1976 तक मात्रात्मक क्रांति में यह द्वैतवाद पुनः उभर कर आया। परंतु 1976 के पश्चात मानववाद इस द्वैतवाद की पूरकतावाद को हम एक उदाहरण के द्वारा समझ सकते हैं।

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