जैव विविधता
विस्तृत क्षेत्र के पर्यावरणीय दशाओं में पौधे एवं जंतुओं के समुदायों के जीवो के प्रजाति की विविधता को जैव विविधता कहते हैं। दूसरे शब्दों में जैव विविधता से तात्पर्य पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवो की विविधता से है।
जैव विविधता को तीन स्तरों पर देखा जा सकता है।
1-प्रजातीय विविधता
2-अनुवांशिक विविधता
3-पारितंत्रय विविधता
अनुवांशिक विविधता– एक प्रजाति के अंदर जीन के अंतर्गत पाई जाने वाली विविधता।
प्रजाति विविधता– एक समुदाय के अंदर प्रजातियों की विविधता।
पारितंत्रीय विविधता- समुदायों के मध्य पाई जाने वाली विविधता
जैव विविधता का मूल्य-
पृथ्वी पर जीवन की विविधता है या विविधता ही वह आधार है, जिसका उपयोग अपने वृद्धि एवं विकास के लिए हर सभ्यता ने किया है। जो सभ्यताएं संसाधनों का उपयोग बुद्धिमत्ता और निर्वहनीय ढंग से किया है वह जीवित तथा उन्नति के पथ पर आगे बढ़ती रही। दुरुपयोग करने वाली सभ्यताएं नष्ट हो गई इस प्रकार जैव विविधता एक अमूल्य संसाधन है जिसको हम अग्रलिखित बिंदुओं के माध्यम से और स्पष्ट कर सकते हैं।
•उत्पादक मूल्य
•उपभोग मूल्य
•सामाजिक मूल्य
•नैतिक मूल्य
•सौंदर्यात्मक मूल्य
•वैकल्पिक मूल्य
भारत का जैव भौगोलिकरण
जैव विविधता का मापन-
अल्फा(α) विविधता- इसका संबंध प्रजातियों की कुल संख्या से है।
बीटा(β) विविधता- समुदायों के पर्यावरणीय प्रवणता के साथ प्रजातियों के विस्थापन होने की दर बीटा(β)विविधता कहलाती है। इसके अंतर्गत प्रजातियों की विविधता की तुलना की जाती है।
गामा(γ) विविधता– यह आवासों की प्रजातियों की प्रचुरता को बताता है इसके अंतर्गत आवासों की विषमता व विभिन्नता का पता चलता है। यह प्रजातियों की किस्म (Variety)को बताता है।
जैव विविधता की प्रवणता- अक्षांशों में प्राय: उच्च अक्षांशो से निम्न अक्षांशो की ओर तथा पर्वतीय क्षेत्रों में उच्च अक्षांशो से निम्न अक्षांशो की प्रजातिय अंतर को जैव विविधता की प्रवणता कहते हैं।
जैव विविधता (hotspot)- इस शब्द का उपयोग नॉर्मन मायर ने 1988 में किया। इन्होंने उन समृद्ध जैव विविधता वाले क्षेत्रों को जैव विविधता (hotspot) कहा जिनमें संवहनीय पौधों की 1500 या उससे अधिक स्थानिक युवा पाई जाती है तथा उनके मौलिक आवासों का 70% भाग नष्ट हो गया है।
जैव विविधता को मेगा (diversity)भी कहते हैं।
वर्तमान में विश्व में 35 जैव विविधता हॉटस्पॉट क्षेत्र हैं भारत में चार जैव विविधता क्षेत्र को चिन्हित किया गया है।
1- इंडोवर्मा क्षेत्र
2-हिमालयन क्षेत्र
3-पश्चिमी घाटी व श्रीलंका क्षेत्र
4-सुण्डा लैंड(निकोबार दीप समूह) क्षेत्र
उल्लेखनीय है कि ऐसे क्षेत्र जो विविधता के दृष्टिकोण से काफी संपन्न है किंतु वे संवेदनशील भी हो तो ऐसे क्षेत्रों को जैव विविधता कहा जाता है। वर्तमान में यह विश्व के 2.3 % क्षेत्र पर विस्तृत है तथा विश्व की 60% प्रजातियां इन्हीं क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
जैव विविधता का चिन्हांकन दो स्तरों पर किया जाता है-
1-स्थलीय जैव विविधता
2-सागरीय जैव विविधता
जैव विविधता ह्रास के कारण-
1-आवासों का विनाश
2-विदेशी प्रजातियों का प्रवेश
3-प्रदूषण
4-जनसंख्या वृद्धि एवं गरीबी
5-प्राकृतिक कारण
6-अवैध शिकार
7-अतिक्रमण
जैव विविधता संरक्षण के प्रयास-
जैव विविधता पृथ्वी की एक अनिवार्य विशिष्टता है। इसका खतरे में पड़ना मानव सभ्यता के विनाश का द्योतक है।
IUCN (international union of the the conservation nature and natural resources-1948) तथा WWF (world wide fund-1961) ने जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रयास किया है। IUCN प्रजातियों की संवेदनशीलता के आधार पर उन्हें 9 वर्गों में वर्गीकृत करता है।
IUCN रेड डाटा बुक जारी करता है तथा संकटग्रस्त प्रजातियों को गुलाबी पेज पर दर्शाता है।
IUCN संयुक्त राष्ट्र का अंग नहीं है।
WWF एक गैर सरकारी संगठन है जो जीवो के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जैव विविधता के क्षेत्र में व्यवस्थित प्रयास की न्यू स्टॉकहोम कन्वेंशन (1972) में हुई।
भारत सरकार ने इस कन्वेंशन से प्रेरित होकर जैव विविधता संरक्षण प्रति प्रतिबद्धता दिखाते हुए वन जीव अधिनियम (1972) का निर्माण किया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जंगली वनस्पति एवं वन जीवो की प्रजातियों के विनियमन हेतु 1975 में साइट्स (CITES) the conversion on international trade in dangerd species of wild fauna and flora अभीसमय लागू किया गया इसे वागे वाशिंगटन कन्वेंशन भी कहा जाता है।
इसके अंतर्गत प्रजातियों की तीन परिशिष्टों में विभाजित किया गया है।
1- परिशिष्ट-1 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर पूर्ण प्रतिबंध
2-परिशिष्ट-2 विनियमन के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार की अनुमति
3-परिशिष्ट-3 इसमें शामिल प्रजातियां किसी एक देश के द्वारा संरक्षित की जाती हैं तथा वह देश किसी साइट्स सहयोगी से व्यापार नियंत्रित करने के लिए मांग करता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार की अनुमति विनियमन के साथ प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण हेतु CMS (conversion of the conservation migratory species of wild animals-1979)
इसे “वान सम्मेलन” से संबंधित कन्वेंशन नाम से भी जाना जाता है। इस समझौते के अंतर्गत प्रवासी प्रजातियों के सर्वेक्षण हेतु 2परिशिष्टों का निर्माण किया गया है।
परिशिष्ट-1 ऐसी प्रजातियां जिनके विलुप्त होने का खतरा है।
परिशिष्ट-2 ऐसी प्रजातियां जिन्हें अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से लाभ पहुंचाया जा सकता है। 20 वर्ष स्टॉकहोम अभीसमय के मूल्यांकन हेतु रियो-1 (RIO)( पृथ्वी-1-1972) सम्मेलन का आयोजन किया गया इसके अंतर्गत जैव विविधता एक प्रमुख मुद्दा था।
प्रत्येक 2 सालों पर आयोजन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होता आ रहा है। भारत सरकार ने रियो 2 सम्मेलन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए जैव विविधता अधिनियम 2002 पारित किया तथा जैव विविधता प्राधिकरण का निर्माण भी किया। भारत में जैव विविधता के संरक्षण के क्षेत्रों में किए गए प्रयासों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए जीवो का संरक्षण दो स्तर पर किया जाता है।
1-स्वस्थानी संरक्षण
2-वाह्य स्थानी संरक्षण
स्वस्थाने संरक्षण- जब प्रजातियों को उनके निवास स्थान पर सर्वेक्षण किया जाता है तो सर्वेक्षण की ऐसी व्यवस्था को स्वस्थानी संरक्षण कहा जाता है।
•राष्ट्रीय उद्यान
•वन्य जीव अभ्यारण
•जैव मंडल अंगार
•पवित्र उपवन एवं झीलें आदि
ENSO सर्वेक्षण के उदाहरण हैं।
बांह्य स्थाने संरक्षण – जब प्रजातियों का सर्वेक्षण उनके निवास स्थान पर संभव नहीं होता है तब ऐसी स्थिति में उन्हें अनियंत्र ले जाकर संरक्षित करने का प्रयास किया जाता है।
जैसे
• चिड़ियाघर, वनस्पति उद्यान
•जंतु उद्यान
•बीज बैंक
•जीन बैंक
•निम्न तापीय संरक्षण
अन्यत्र स्थाने जैव विविधता के रूप हैं।
जनसंख्या विस्फोट-
जनाधिक्य अल्पजनसंख्या तथा अनुकूलतम जनसंख्या एक सापेक्ष संकल्पना है। अनुकूलतम जनसंख्या उस स्थिति को व्यक्त करती है जब किसी क्षेत्र विशेष के नागरिकों का जीवन स्तर काफी बेहतर होता है। दूसरे शब्दों में उच्च जीवन स्तर वाली स्थिति का संबंध अनुकूलतम जनसंख्या से है जबकि इसके विपरीत अल्प जनसंख्या तथा जनाधिक जनसंख्या संसाधन अनुपात के असंतुलन की तरफ इशारा करते हैं जनाधिक की स्थिति में संसाधनों की तुलना में जनसंख्या काफी अधिक होती है तथा तकनीकी पिछड़ापन भी होता है।
एकर मैंन ने 1970 में विश्व को जनसंख्या संसाधन अनुपात तथा तकनीकी को आधार बनाते हुए जनसंख्या प्रदेशों में वर्गीकृत किया। उन्होंने विश्व को 5 जनसंख्या संसाधनों में वर्गीकृत किया है।
1- USA Type
2- यूरोपियन Type
3-चीन/मिस्रType
4-ब्राजीलType
5-अंटार्कटिकType
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत का द्वितीय चरण जनसंख्या विस्फोट की स्थिति को बताने का प्रयास करता है। जनसंख्या संक्रमण सिद्धांत की इस अवस्था में आर्थिक उन्नति के कारण मृत्यु दर में काफी कमी आ जाती है। किंतु सामाजिक उन्नति न होने के कारण जन्मदर उच्चतम स्तर पर बनी रहती है।ऐसी स्थिति में कुल जनसंख्या काफी अधिक हो जाती है।
वृद्धि की सीमाएं (1970) तथा माल्थस की जनसंख्या सिद्धांत भी कहीं ना कहीं जनसंख्या विस्फोट से संबंधित पहलुओं पर प्रकाश डालता है। इस तरह जनसंख्या विस्फोट पर विचार करने से यह स्पष्ट होता है कि जनसंख्या विस्फोट वह स्थिति है जब किसी देश के नागरिकों का जीवन स्तर निम्न हो तथा जनसंख्या भी अधिक हो। वर्तमान विश्व में अनेक क्षेत्र जनाधिक्य की स्थिति का सामना कर रहे हैं। विश्व की जनसंख्या भी काफी तेजी से बढ़ी है। जैसे- जनसंख्या के 1 से 2 अरब होने में जहां 123 वर्ष लगा था वहीं विश्व की जनसंख्या केवल 11 वर्षों में ही पांच से छह अरब हो गई । इसी तरह भारत भी जनसंख्या विस्फोट की स्थिति का सामना कर रहा है। भारत के 2.4% क्षेत्र पर विश्व की 17.5% आबादी रहती है विश्व पापुलेशन प्रोस्पेक्ट्स 2019 के अनुसार वर्तमान में भारत की आबादी लगभग 1.37 बिलियन है जिसके 2050 तक 1.64 बिलियन के आंकड़े को पार कर जाने की संभावना है। भारत की जनसंख्या 2027 तक चीन को पछाड़ ते हुए विश्व में सबसे अधिक हो जाएगी।