सन 1939 ईस्वी में हार्टसोर्न ने क्षेत्रीय विभेदन की संकल्पना का अपनी पुस्तक perspective in geography में प्रतिपादित किया।
क्षेत्रीय विभेदन का अर्थ
रिचर्ड हार्टसोर्न के अनुसार – “क्षेत्रीय विभेदन के अंतर्गत भूत दृश्य को परी घटनाओं के सकेंद्रण के आधार पर बांटना,उनके विशिष्ट लक्षणों का अध्ययन करना तथा समीपवर्ती क्षेत्रों के कारकों का अध्ययन किया जाता है।
“प्रदेशों एवं प्रादेशिक भूगोल के अध्ययन हेतु क्षेत्रीय विभेदन में सैद्धांतिक प्रमाणिकता उपलब्ध की है”
हालांकि हैटनर की chorology नामक संकल्पना का अनुवाद करते समय अमेरिकन भूगोलवेत्ता हार्टसोर्न ने क्षेत्रीय विभेदन शब्द का सर्वप्रथम उपयोग किया।
हम जानते हैं कि भूगोल के एक स्थान का पर्यावरण दूसरे स्थान के पर्यावरण से कई मायने में भिन्न होता है। स्पष्ट है कि प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक दोनों प्रकार से भिन्नता पृथ्वी तल पर पाई जाती है।
चित्र
इस तरह क्षेत्रीय विभेदन समस्त भौगोलिक अध्ययनों का आधार है।
क्षेत्रीय विभेदन का ऐतिहासिक विकास
यदि इसके विकास क्रम पर चर्चा की जाए तो हिकेटियस ने इसकी आधारशिला ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी पूर्व रखी थी। स्ट्रेबो ने इसे प्रदेश विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया तथा कहा कि भूगोलवेत्ता का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी की विभिन्ननताओं के विषय में अध्ययन करना है। इस तरह उन्होंने प्रादेशिक भूगोल के माध्यम से क्षेत्रीय विभेदन की संकल्पना का प्रतिपादन किया है । क्षेत्रीय विभेदन की विचारधारा रिचथोपेन के द्वारा हंबोल्ट एवं रिटर के विचारों से अंकुरित हुई जिसे बाद में हैटनर ने आगे बढ़ाया। उनके chorology की संकल्पना के अनुसार पृथ्वी तल पर विभिन्न क्षेत्रों में भिन्नता पाई जाती हैं।
उनके अनुसार भूगोल वह विज्ञाान है जो पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों की भिन्नता तथा एक दूसरे के साथ उनके स्थानिक संबंधों को दर्शाता है। रिचर्ड हार्टसोर्न ने क्षेत्रीय विभेदन को आधार बनाते हुए कहा कि भूगोल का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी के परिवर्तनशील स्वरूप का अध्ययन करना है।
रिटर की लैंड सॉफ्ट कुण्डे, ब्लाश की पेंज संकल्पना तथा अल्वर्ड डिमाजिया का farmstead संकल्पना, अरब भूगोलवेत्ताओं की cultural regian ( किश्ववार प्रदेश) संकल्पना कहीं ना कहीं क्षेत्रीय विभेदन पर आधारित है।
हैटनर ने भूगोल को Nomothetic एवं Edeographic में वर्गीकृत किया तथा Edeographic का समर्थन किया जिसका अर्थ प्रादेशिक संश्लेषण होता है।
क्षेत्रीय विभेदन एवं प्रादेशिक संश्लेषण
हम जानते हैं कि प्रादेशिक संश्लेषण में एक समान चरों के आधार पर प्रदेश का निर्माण किया जाता है। इसमें विभिन्न प्रतिमानों को एकीकृत कर एवं संश्लेषित कर पूर्ण चित्र की प्राप्ति की जाती है जो कि एक प्रदेश होता है।
उदाहरण स्वरुप सवाना प्रदेश के लिए मृदा ,वर्षा, तापमान, वनस्पति, प्राणी जगत जैसे प्रतिमानो को ( Paradigm) को संश्लेषित कर एक सवाना प्रदेश के रूप में एक प्राकृतिक प्रदेश की कल्पना की जाती है। यह प्राकृतिक प्रदेश अपने अंतर्निहित कारकों जैसे कि जलवायु, वनस्पति जगत ,प्राणी जगत आदि के आधार पर अपने निकटवर्ती जलवायु प्रदेश से भिन्न होता है।
पूर्व निष्कर्ष –
मात्रात्मक क्रांति के दौर में सेफर के तर्कों के आगे क्षेत्रीय विभेदन कुछ समय तक अस्वीकृत रहा। अर्थात मात्रात्मक क्रांति एवं क्षेत्रीय विभेदन के मध्य विपरीत संबंध है।
1976 के बाद आलोचनात्मक क्रांति के उदय के कारण क्षेत्रीय विभेदन को पुनः बल मिला। असमान विकास एवं श्रम का स्थानिक वितरण ,मानव भूगोल में समाजशास्त्र की बढ़ती भूमिका, प्रादेशिक विकास एवं नियोजन पिछड़ा क्षेत्र विकास कार्यक्रम एवं आकांक्षी जिला कार्यक्रम, मानवतावादी विषयों को व्याख्या करने का उपायगम क्षेत्रीय विभेदन है। नए सामाजिक प्रसंगों का उदय जैसे कि नक्सलवाद को क्षेत्रीय विभेदन से भी समझा जा सकता है।
आलोचना
क्षेत्रीय विभेदन संबंधित संकल्पना की आलोचना मुलत: अनुवाद जनित है। जोकि हैटनर के क्षेत्रीय विभेदनसंकल्पना की अनुवाद के परिणाम स्वरुप उत्पन्न हुई।
आलोचनाएं निम्नांकित हैं:–
किसी क्षेत्र में भिन्नता ही नहीं समानताएं भी होती हैं । कभी-कभी समानताएंं भिन्नताओं से अधिक होती हैं। अनुवाद के कारण भिन्नता एवंं विविधता के मध्य अंतर को समझनेेे का प्रयास नहीं किया गया।
भूगोल में केवल क्षेत्रीय भिन्नता की ही नहीं क्षेत्रीय संबंधों का भी अध्ययन किया जाता है।
जैसे – जलवायु एवं वनस्पति, मृदा एवं जल वायु आदि विभिन्न प्रकार के संबंधों का अध्ययन।
पार्थिव एकता या अंतर्संबंध का सिद्धांत
पार्थिव एकता एक सार्वभौमिक सत्य है जो हर देश काल में विद्यमान हैं
हम जानते हैं कि सभी भगोली तथ्य चाहे वह भौतिक हो या सांस्कृतिक अथवा जड़ हो या चेतन एक दूसरे से किसी न किसी रूप से संबंधित है और किसी भी तथ्य का पृथक व स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है एक तथ्य अन्य तथ्यों से प्रभावित होता है और उन्हें प्रभावित करता है।
रैटजल के अनुसार :-
अनु भूगोल के दृश्य पर्यावरण से संबंधित होते हैं और पर्यावरण भौतिक दशाओं का योग होता है।
अंतर संबंध का सिद्धांत
प्राकृतिक तत्व मानवी तत्व
ब्रह्मांड जनसंख्या वितरण
जलवायु एवं वनस्पति मानव एवं खनिज
वायुमंडलीय दशाएं संसाधन मानव एवं कृषि
मानव एवम् परिवहन
इस तरह पार्थिव एकता अंतर्संबंध काशी धाम हर देश काल परिस्थिति एक सामान्य विशेषता है इसीलिए ग्लास ने कहा कि सभी भगौली उन्नति में प्रमुख विचार पार्थिव एकता का है।
निष्कर्ष:-
मानव भूगोल के तथ्यों के विश्लेषण में किसी भी तथ्य का भौगोलिक अध्ययन स्वतंत्र रूप में नहीं बल्कि समन्वित रूप में किया जाना चाहिए।
क्रियाशीलता एवं परिवर्तनशील ता का सिद्धांत:-
परिवर्तन प्रकृति का नियम है संसार में कोई भी चीज पूर्ण रूप से अस्थाई नहीं है पर्यावरण के सभी तथ्य जड़ हो या चेतन अथवा प्राकृतिक हो या संस्कृति सभी परिवर्तनशील है और उनके स्वरूप में परिवर्तन की प्रक्रिया निरंतर क्रियाशील रहती है।
ब्रूंश के अनुसार हम से संबंधित सभी चीजें परिवर्तनशील हो रही हैं चीजें बढ़ रहे हैं अथवा घट रही हैं वास्तव में कुछ भी गति रहित या परिवर्तन रहित नहीं है।
स्वयं पृथ्वी भीपरिवर्तनशील है परिवर्तन की शक्तियां हर समय कार्यरत रही है।जिसके द्वारा प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तत्वों में परिवर्तन किया जा रहा है।
परिवर्तन की शक्तियां
भौतिक
सूर्यातप
गुरुत्वाकर्षण शक्ति
जैविक
पेड़ पौधे
पशु जगत
मानव
वास्तव में क्रियाशील का सिद्धांत एकरूपता बाद के नियम का अनुसरण करता है।
निष्कर्ष:-
निष्कर्षत: क्रियाशीलता का सिद्धांत एक प्रकार का सार्वभौमिक नियम है जो समय अनुसार सदैव अधिक व कम गति से परिवर्तन की शक्तियों द्वारा क्रियान्वित किया जाता है।