संघ लोक सेवा आयोग का तानाशाही रवैया

संघ लोक सेवा आयोग का तानाशाही रवैया

संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित नागरिक सेवा परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा का रिजल्ट अभी हाल के दिनों में आया है। सीसैट तथा प्रश्न पत्रों के कठिनाई के स्तर को लेकर पुनः विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई है। संघ लोक सेवा आयोग की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह खड़े किए जा रहे हैं। जहां तक संघ लोक सेवा आयोग की बात है, इस संस्थान को संविधान के रक्षकों में जैसे कैग, सर्वोच्च न्यायालय तथा मीडिया का स्थान दिया गया है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि संविधान की शक्ति का स्रोत जहां हम भारत के लोग हैं वही संविधान के रक्षकों में से प्रमुख संस्था संघ लोक सेवा आयोग को हम भारत के लोग का आवाज बोलने की अपेक्षा की गई। किंतु इस संस्थान के कार्यप्रणाली का ऐतिहासिक अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यह संस्थान अपने आरंभिक दौर से ही विभेद कारी तथा अभिजात्य वर्गीय मानसिकता वाली रहा है।पहला सबसे बड़ा उदाहरण यह दिया जा सकता है कि इस संस्थान के द्वारा आरंभ के तीन दशकों तक जब तक कोठारी कमीशन की रिपोर्ट लागू नहीं हुई थी, केवल अंग्रेजी माध्यम से ही परीक्षाओं का आयोजन कराया गया। जबकि उस समय केवल चुनिंदा स्थानों पर ही अंग्रेजी माध्यम के बोर्डिंग तथा मिशनरी स्कूल थे।यह भारत के संविधान, आजादी के मूल्य तथा भारत के अन्य भाषा भाषा जिन्हें भारत की आठवीं अनुसूची में स्थान दिया गया है के साथ किया गया दोयम दर्जे का कृत्य हीं कहा जाएगा । यह तो ऐसे ही था,जैसे अंग्रेजों ने भाषा तथा उम्र जैसी बाधाओं के माध्यम से भारतीयों को प्रशासनिक सेवा में आने से वंचित किया गया था। भाषाई अवरोध को जब 1980 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में समाप्त किया गया, उस समय की तत्कालीन परिस्थितियों ऐसी थी कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रिंट मीडिया की भी उपस्थिति नगण्य मात्रा में थी। उस समय के अभ्यर्थी जब उनके बोर्ड परीक्षा के परिणाम आते थे तो उसे देखने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि संघ लोक सेवा आयोग द्वारा किए गए भाषा संबंधी इस क्रांतिकारी परिवर्तन की सूचना ग्रामीण क्षेत्रों तथा सामान्य शहरी क्षेत्रों में किस तरह पहुंची होगी। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य है कि लोग काफी लंबे समय बाद इस तरह के परिवर्तन से अवगत हो पाए होंगे। इन सब कठिनाइयों के बावजूद भी 2006 में प्रकाशित संघ लोक सेवाआयोग की रिपोर्ट के अनुसार 50% अभ्यर्थी हिंदी समेत अन्य भाषाओं को मुख्य परीक्षा का माध्यम चुना। सीसैट लागू होने के बाद इसमें तेजी से परिवर्तन हुआ। वर्तमान में 90% से अधिक अभ्यर्थी अंग्रेजी भाषा को मुख्य परीक्षा के माध्यम के रूप में चुन रहे हैं। साथ में विज्ञान वर्ग के छात्रों की संख्या भी असाधारण रूप से 90% तक बढ़ी है। आश्चर्यजनक पहलू इसके साथ यह भी है कि विज्ञान वर्ग के छात्र भी मानविकी विषय का चयन कर रहे हैं। इसका तात्पर्य है कि वह इस परीक्षा को लेकर अपने कोर विषय में सहज नहीं हैं।सीसैट को जब 2011 में लाया गया तब हमें यह बताया गया कि यह सिविल सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए लाया गया है। जबकि यह साजिश के तहत लाया गया था ताकि ग्रामीण तथा अन्य भाषाओं में अध्ययन करने वाले छात्रों को इस सेवा से बाहर किया जा सके क्योंकि हमारे यहां उच्च स्तर के शिक्षण संस्थानों में विज्ञान विषयों तथा विशेषज्ञ कोर्सेज (जैसे आईआईटी एमबीबीएस आदि ( की पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम से ही होती है तथा सीसैट उनके लिए एक आसान पेपर है। 2011-12, 13 तथा 14 की प्रारंभिक परीक्षाओं में स्पष्ट देखा गया कि किस तरह से विज्ञान विषयों के छात्र आसानी से प्रारंभिक परीक्षा क्वालीफाई कर रहे थे तथा अन्य भाषाओं के छात्र एवं मानविकी विषय के विद्यार्थी आश्चर्यजनक रूप से असफल हो रहे थे. जब काफी विरोध हुआ तो 2015 में सीसैट को क्वालीफाइंग पेपर घोषित कर दिया गया तथा कहा गया कि इस प्रपत्र में 33% अंक पाने वाले परीक्षार्थी पास माने जाएंगे। सामान्य अध्ययन के पेपर के आधार पर मुख्य परीक्षा के लिए परीक्षार्थियों का चयन किया जाएगा। इसका एक तात्पर्य भी है की प्रथम प्रश्न पत्र (सामान्य अध्ययन) ही मुख्य प्रश्न पत्र है जबकि सीसैट केवल अहर्ता कारी प्रश्नपत्र है. किंतु संघ लोक सेवा आयोग ने प्रश्न पत्र के कठिनाई के स्तर को उच्च बनाए रखा, जिसका परिणाम यह हुआ कि हजारों छात्र प्रत्येक वर्ष प्रथम प्रश्न पत्र में अच्छे अंक में पाने के बावजूद सीसैट में असफल होने के कारण मुख्य परीक्षा से वंचित होते रहे। 2023 में सीसैट के कठिनाई स्तर को असाधारण स्तर तक बढ़ा दिया गया जिसका दुष्परिणाम आना स्वभाविक है।जब मानविकी विषय के तथा अन्य भाषाई विषय के छात्र प्रारंभिक परीक्षा में ही असफल हो जाएंगे तो स्वाभाविक है कि अंतिम परिणाम में उनका प्रतिशत कम आएगा। यदि अंतिम परिणाम में भाषाई दृष्टिकोण से विश्लेषण किया जाए तो हिंदी समेत सभी भाषाओं का प्रतिशत सीसैट लागू होने के बाद 5% से अधिक नहीं है। कुछ लोग यह कहते हैं कि जो छात्र दसवीं स्तर का गणित नहीं लगा सकते उन्हें प्रशासनिक सेवा में जाने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे लोगों से यह पूछा जाए कि वह इमानदारी से यह बताएं कि 2023 के सीसैट प्रश्नपत्र का स्तर टेंथ स्टैंडर्ड का था। इमानदारी से जवाब ना आएगा। पिछले वर्षों का प्रश्न पत्र भी आसान नहीं रहा है। अर्हताकारी प्रश्नपत्र को लेकर जो मेरी समझ है, वह यह कहती है कि जो छात्र मुख्य प्रश्न पत्र में अच्छे अंक ला रहे हैं ,वे अपवाद स्वरूप ही अहर्ता कारी प्रश्न पत्र में फेल हों। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग जैसे संस्थाओं के द्वारा कराई गई इस तरह की परीक्षाओं में यही देखा जा रहा है कि छात्र अब सीसैट परीक्षा का कोई विरोध नहीं कर रहे हैं। प्रारंभिक परीक्षा के मुख्य प्रश्न पत्र के आधार पर मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यर्थियों का चयन किया जा रहा है।संघ लोक सेवा आयोग द्वारा लागू की गई प्रारंभिक परीक्षा स्तर पर सीसैट का जो परिणाम आया है, उससे तो यही साबित होता है कि यह संस्थान आज भी अंग्रेजी भाषा की गुलामी वाली मानसिकता तथा अभिजात्य वर्गीय है। इस संस्थान ने अपने शुरुआती तीन दशकों में अंग्रेजी भाषा को ही केवल परीक्षा का मुख्य माध्यम चुना था ,पुनः उसने सीसैट के माध्यम से अंग्रेजी को ही मुख्य परीक्षा का माध्यम बना दिया है। जिसे हम संस्थान द्वारा जारी की गई वार्षिक रिपोर्ट में सहज ही देख सकते हैं। संघ लोक सेवा आयोग द्वारा पिछले 10 वर्षों का परिणाम देखने से एक निष्कर्ष और निकलता है कि अन्य अन्य भाषाओं में जो भी पढ़ाई विभिन्न राज्यों में कराई जा रही है ,वह अत्यंत निम्न स्तर की है ,क्योंकि इस संस्थान द्वारा आयोजित नागरिक सेवा परीक्षा में हिंदी को अगर हटा दिया जाए तो अन्य भाषाओं के छात्रों का चयन 1% भी नहीं है। इससे तो अब यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि या तो अन्य भाषाओं में जो पढ़ाई कराई जा रही है ,वह निम्न स्तर की है अथवा संघ लोक सेवा आयोग की कार्यप्रणाली में गंभीर खामी है। भारत का संविधान आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं के विकास एवं समृद्धि की अपेक्षा रखता है। हिंदी भाषा के उन्नति व विकास के लिए तथा इसे राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अलग से प्रावधान किया गया है। कुछ राज्यों में तो मेडिकल तथा तकनीकी सेवाओं की पढ़ाई भी हिंदी भाषा में तथा अन्य भाषाओं में आरंभ किया जा रहा है । इसके पीछे का उद्देश्य ही है की हमारे अबोध छात्र जिनका सहज मानसिक विकास अपनी मातृभाषा में अच्छे से हो सकता है वह बाल्यावस्था में ही अंग्रेजी के बोझ से तब न जाए। किंतु संघ लोक सेवा आयोग जैसी संस्था भारत के अभिभावकों कोई संदेश दे रहा है की भविष्य तो अंग्रेजी का ही है।यहां मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि अंग्रेजी से मेरा कोई बैर नहीं है। एक भाषा के रूप में सीखने में कोई हर्ज नहीं है।एक बात यह भी समझ के परे हैं कि संघ लोक सेवा आयोग क्वालीफाइंग प्रश्नपत्र में 33% अंक की न्यूनतम योग्यता रखता है। किंतु मुख्य प्रश्न पत्र में उसे कोई परेशानी नहीं है यदि कोई छात्र 20% भी अंक ले आता है तो वह क्वालीफाई है मुख्य परीक्षा के लिए। दिव्यांग छात्रों के प्रारंभिक परीक्षा कट ऑफ का विश्लेषण किए जाने पर यह स्पष्ट होता है कि दिव्यांग के अधिकांश उपश्रेणी के प्रारंभिक परीक्षा के कट ऑफ 33% के नीचे रहे हैं। 2023 के प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न पत्र के कठिनाई का स्तर के को देखते हुए यहां स्वाभाविक अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार दिव्यांग श्रेणी के साथ अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए प्रारंभिक परीक्षा का कट ऑफ 33% के नीचे आएगा। इसका सीधा सा उत्तर यह है कि संघ लोक सेवा आयोग ने आज भी सीसैट के प्रश्नपत्र को कठिन बनाकर उसे एन केन प्रकारेण मुख्य पेपर बना कर रखा है।जहां तक सामान्य नागरिक सेवा के अधिकारियों यथा आईएएस आईपीएस जैसे के गुणों की बात करें। तो यह अपेक्षा की जाती है कि उक्त अधिकारी के अंदर संवेदनशीलता सत्य निष्ठा ईमानदारी आम लोगों से घुलने मिलने की प्रवृत्ति निष्पक्षता जैसे मूल्य होने चाहिए। स्थानीय भाषा का महत्व सर्वविदित है, बिना इसके कोई भी अधिकारी आम जनता की परेशानियों तथा भावनाओं को सही ढंग से समझ ही नहीं सकता। बाकी उस वक्त पदों के निर्वहन के लिए नान टीचिंग स्टाफ तथा विशेषज्ञ अधिकारी उसे मिलते ही हैं। संघ लोक सेवा आयोग विशेषज्ञ सेवाओं की भर्ती प्रक्रिया को अलग से पूर्ण करता है। आयोग की मंशा स्पष्ट नहीं हो पा रही है कि वह किस तरह के अधिकारियों का चयन करना चाहता है। अंग्रेजी तथा विशेषज्ञ विशेषताओं से युक्त अधिकारियों की अथवा इसका मुख्य फोकस इस बात पर होना चाहिए कि कैसे वह मूल्यों से युक्त मुख्य परीक्षा में प्रतिस्पर्धा के स्तर को बढ़ाकर उचित व्यक्तियों का चयन करें।उसका उद्देश्य कदापि नहीं होना चाहिए कि वह भाषा अथवा सीसैट जैसी युक्तियों का उपयोग करते हुए प्रारंभिक परीक्षा में ही हजारों प्रतियोगी छात्रों को बाहर कर दे।

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