ग्रिफिथ टेलर का प्रवास कटिबंध सिद्धांत

ग्रिफिथ टेलर का प्रवास कटिबंध सिद्धांत

मानव प्रजातियों के आविर्भाव पर प्रकाश डालिए मानव प्रजातियों का उत्पत्ति एवं विकास एक जटिल प्रक्रिया है। मानव प्रजाति के आविर्भाव के विषय में मानव ज्ञान अभी अधूरा है और विभिन्न मानव शास्त्री इस मुद्दे पर एकमत नहीं है।
संसार के विभिन्न भागों में पाई जाने वाली मानव प्रजातियों के वाह्य लक्षणों में पर्याप्त अंतर पाया जाता है। प्रजातियां तत्व पूर्ण स्थैतिक नहीं है, बल्कि इनमें देशकाल एवं मानवीय कारकों के अनुसार कुछ पीढ़ियों पश्चात परिवर्तन देखने को मिलता है।
प्रजातियों का मिश्रण, प्राकृतिक चयन, ग्रंथि रस प्रभाव एवं भौगोलिक तथा समाजिक पर्यावरण कुछ ऐसे विशिष्ट तत्व है जो प्रजाति गुणों को आवश्यक रूप से प्रभावित करते हैं।
मानव प्रजातियों के आविर्भाव को स्पष्ट करने के संदर्भ में ग्रिफिथ टेलर का योगदान सराहनीय है। उन्होंने प्रवास कटिबंध सिद्धांत (1913) या कटिबंध व स्तर सिद्धांत ( Zone and strata theory ) के माध्यम से प्रजातियों की उत्पत्ति , विकास एवं वितरण की व्याख्या समय एवं क्षेत्र के संदर्भ में की।
डार्विन के विकास वाद से प्रभावित होकर टेलर की संकल्पना अनेक जैविक एव भौगोलिक तथ्यों पर आधारित है।
मानव प्रजातियों का उत्पत्ति स्थल मध्यएशिया का स्टेपी क्षेत्र था। आखेट मानव जीवन का आधार था। जलवायु परिवर्तन के फलस्वरुप कई अंतर्हिम युग आते गए। इन्हीं अंतर्हिम युगों में मानव प्रजातियों का उद्भभव हुआ।

सबसे पहले नीग्रो प्रजाति का विकास मध्य एशिया में हुआ। उस समय वहां की जलवायु उष्ण थी।

कालांतर में हिम युग का आविर्भाव हुआ। फल स्वरूप मध्य एशियाई क्षेत्र के अति शीतल हो जाने के कारण मानव प्रजातियां अपेक्षा गर्म दक्षिणी क्षेत्र की ओर अग्रसरित हुई।
विकास क्रम – नियण्डर थल मानव > नीग्रिटो >नीग्रो>ऑस्ट्रेलिईड>भूमध्यसागरीय > नॉर्डिक >अल्पाइन > मंगोलिक।
हिम युग के समाप्ति पर मध्य एशिया के पुनः निवास योग्य हो जाने पर प्रवासी प्रजातियां लौट आईं किंतु कुछ लोगों ने वही रहना पसंद किया। इस तरह दो प्रजातियों का उद्भभव हुआ।
‌ पुनः हिमयुग के आगमन पर एशियाई प्रजातियां पुनः प्रवासित हुई। क्योंकि बाद में विकसित प्रजातियां पहले की प्रजातियों की अपेक्षा अधिक चतुर एवं शक्तिशाली थी।इसलिए उन्होंने पहले की प्रवासित प्रजातियों को बाहर की तरफ ढकेल दिया।
इस तरह बार-बार हिम युग के आगमन के फलस्वरुप बाद में विकसित प्रजातियां अपने पूर्वज प्रजातियों को हटाती रही । फलत: जो प्रजाति सबसे पहले विकसित हुई वह परिधि पर जाने को मजबूर हुई। बाद में विकसित मंगोलॉयड प्रजाति अभी भी मध्य एशिया के केंद्र में हैं।
प्रवासी प्रजातियों को अपने वातावरण से समायोजन करना पड़ा । फलस्वरुप उसके रंग, रूप, कद आदि में परिवर्तन हो गयाा। इस प्रकार नए जलवायु कटिबंधों के प्रभाव से भिन्न भिन्न शारीरिक लक्षणों वाली मानव प्रजातियों का उद्भव हुआ एवं विकास संभव हुआ।
टेलर ने इस सिद्धांत के प्रतिपादन के संदर्भ में विभिन्न
साक्ष्यों को प्रस्तुत किया जो अग्रलिखित हैं।
A- एशिया महाद्वीप की केंद्रीय स्थिति जिसके बहिवर्ती क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूरोप महाद्वीप की स्थिति है।
B- प्रत्येक महाद्वीप में प्रजातीय कटिबंध पाए जाते हैं जो मध्य एशिया से बाहर की ओर आदिकालीन होते गए हैं।
C- आदिकालीन प्रजातियों की स्थिति परिधि पर तथा नव विकसित प्रजातियां केंद्र में है।
D – आदि प्रजातियों का निवास स्थान परिवर्तित है।
5- सर्वाधिक विकासीत क्षेत्रों में आदिम प्रजातियां दबी हुई है।
6- यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण एशिया तथा ऑस्ट्रेलिया में पाए गए साक्ष्य से पुष्टि होती है कि मध्य एशिया से अपकेंद्रीय प्रवास हुआ।

निष्कर्षत: प्रजातियों का विकास एक लंबे उद्विकास का परिणाम है जिसमें पहले पर्यावरणीय तत्वों का प्रमुख भूमिका थी बाद में मानवीय तत्व भी एक प्रमुख कारक के रूप में उभरे।

ग्रिफिथ टेलर के द्वारा प्रतिपादित प्रवास कटिबंध सिद्धांत के अनुसार प्लेस्टोसीन हिम युग के समय प्रतिकूल जलवायु दशाओं के होने के कारण मध्य एशिया से प्रजातियों का विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में प्रवास हुआ। इसके अनुसार मध्य एशिया की प्रजातियों के उद्भव का क्षेत्र था।

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