ढाल

ढाल

परिचय:-
ढाल भू-आकृति का प्रमुख अंग है। इसके आधार पर उच्च वच्च संबंधी विविधताओं का अध्ययन किया जाता है ।स्थल रूपों के निर्माण व विकास को ढाल प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है।
इन्हीं मुख्य विशिष्टताओ के कारण भू आकृति में ढालों के अध्ययन पर काफी बल दिया जा रहा है।

ढाल के तत्व:-
ढाल के विशिष्ट रूपों को ढाल के तत्व कहते हैं।

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ढाल परिच्छेदिका:-

  • ढाल परिचेदिका का तात्पर्य किसी भी स्थलाकृति के शिखर से आधार तक ढाल के विभिन्न तत्वों के चित्रिय प्रदर्शन से है।
  • बहिर्जनित भू संचलन के प्रभाव से स्थल रूपों में होने वाले संशोधन के कारण ढाल के कोण में परिवर्तन होता है जिससे उत्तल, मुक्त पृष्ठ ,सरल रेखीय तथा अवतल ढाल के रूप में ढाल के तत्वों का विकास होता है। स्थलाकृति के शीखरिय भाग में अन्नच्छादन के प्रभाव से उत्तल ढाल का विकास होता है। उत्तर ढाल के नीचे ढाल की तीव्रता अधिक होने पर मुक्त पृष्ठ ढाल का विकास होता है यहां पर और साधु का निक्षेपण नहीं हो पाता है और मुक्त पृष्ठ ढाल का संबंध सामान्यतया कठोर चट्टानी संरचना वाले भू आकृति से होता है।
  • सरल रेखीय ढाल का विकास मुख्य पृष्ठ तथा अवतल ढाल के मध्य होता है ढाल मंद होने के कारण यहां पर अपरदन व निक्षेपण का दर समान होता है। इस कारण ढाल के कोण में कोई परिवर्तन नहीं होता है स्थलाकृति के आधार पर और अवसादों के निक्षेपण से ढाल के अवतल तत्व का विकास होता है ढाल के चार तत्वों का समान रूप से विकास एक आदर्श ढाल परिच्छेदिका की विशेषताएं हैं।
  • क्योंकि निरपेक्ष उच्चावच के अधिक होने पर ढाल की उत्तलता में वृद्धि होती है।
  • जब की ऊंचाई कम होने के साथ ढाल के अवतल तत्व का विकास होता है।कठोर चट्टान से निर्मित संरचना पर मुक्त पृष्ठ ढाल तथा मुलायम चट्टानों पर सरल रेखीय ढाल का विकास होता है।
  • डेविस के अपरदन चक्र संकल्पना के अनुसार स्थलाकृति के विकास की अवस्था में घाटी गर्तन के कारण ढाल की उत्तलता में वृद्धि होती है। जबकि प्रौढ़ावस्था में घाटी की चौड़ाई में वृद्धि होने पर सरल रेखीय ढाल का विकास होने लगता है।स्थलाकृति के विकास की वृद्धावस्था में निरपेक्ष और सापेक्ष उच्चावच के निम्नतम होने पर ढाल के अवतल तत्व का विकास हो जाता है।इस प्रकार डाल परिच्छेदिका में डाल के तत्वों का समान रूप से विकास एक आदर्श परिकल्पना है। किंतु साथ ही में भूगोलवेताओ के द्वारा ढाल विश्लेषण सिद्धांत हेतु ढाल परिच्छेदिका आधार का कार्य करती है।

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ढाल विश्लेषण के मॉडल

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परिचय

ढाल विश्लेषण से संबंधित दिए गए सिद्धांतों में डेविस ने अपरदन चक्र की संकल्पना के आधार पर स्थलाकृतिक आधार पर विकास की विभिन्न अवस्थाओं में ढाल के तत्वों के विकास का वर्णन किया है।

अपरदन चक्र की संकल्पना के आधार पर:-

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इनके अनुसार स्थलाकृतिक विकास की युवावस्था में जब ऊर्ध्वाधर अपरदन की दर क्षैतिज अपरदन की दर से अधिक हो जाती है। ऐसी स्थिति में घाटी गर्तन के कारण सापेक्ष उच्चावच में वृद्धि होती है जिससे V- आकार की घाटी में उत्तल ढाल का विकास होता है।
जैसे ही स्थलाकृति अपने प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करती है।
क्षैतिज अपरदन की दर ऊर्ध्वाधर अपरदन के दर से अधिक होने के कारण घाटी के किनारों पर कटा होता है जिससे घाटी के चौड़ाई में वृद्धि होने से सरल रेखीय का विकास होता है वृद्धावस्था में ऊर्ध्वाधर अपरदन के स्थगन होने के साथ क्षैतिज अपरदन और अवशादो के निक्षेपण के कारण निरपेक्ष एवं सापेक्ष उच्चावच काफी कम हो जाता है। जिससे अंतत: सरल रेखीय ढाल का अवतल ढाल के रूप में विकास हो जाता है।
इस प्रकार डेविस के अनुसार ढाल के विभिन्न तत्वों के विकास का संबंध स्थलाकृति के विकास के अवस्थाओं से है।

प्रवणीत ढाल की संकल्पना के आधार पर:-

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डेविस ने प्रवणीत ढाल की संकल्पना के आधार पर ढाल का विश्लेषण किया इनके अनुसार प्रवणीत ढाल के मंद होने के कारण अपरदन और निक्षेपण का दर समान होता है। प्रवणीत ढाल के ऊपर स्थलाकृति के शिखरिय भाग में ढालों की उत्तलता अधिक होती है जहां अन्नच्छादन का प्रभाव अधिक होने के कारण अपरदन का प्रभाव अधिक होता है।

इस क्षेत्र के उत्तल ढाल का विकास होता है।
प्रवणीत ढाल के नीचे स्थलाकृति के आधार पर ढाल का कोण कम होने के कारण अवसादो का निक्षेपण अधिक होता है। इससे ढाल की अवतलता में वृद्धि होती है।
निरपेक्ष उच्चावच में कमी आने पर उत्तल ढाल का कोण कम हो जाता है। तथा प्रवणीत ढाल का विस्तार शिखरिय भाग्य की तरफ होने लगता है।
इसी तरह अवशादो के निक्षेपण में वृद्धि होने पर अवतल ढाल का ऊर्ध्वाधर (ऊपर तीर) विस्तार होने लगता है जिससे सरल रेखीय डाल के कोण में कमी आती है। इस प्रकार निरपेक्ष उच्चावच के न्यूनतम होने पर प्रवणीत ढाल का परिवर्तन अवतल ढाल में हो जाता है।

ढाल पतन सिद्धांत:-
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ढाल पतन सिद्धांत के अनुसार उत्थान की प्रक्रिया के समाप्त होने के बाद निरपेक्ष उच्चावच सर्वाधिक होता है। ऐसी स्थिति में ढाल के उत्तल तत्व का विकास होता है।
जब अपरदन के द्वारा निरपेक्ष उच्चावच में कमी आती है तब उत्तल ढाल का सरल रेखीय ढाल के रूप में विकास हो जाता है।
जब निरपेक्ष उच्चावच न्यूनतम हो जाता है तथा स्थलाकृति अपने आधार कल को प्राप्त कर लेती है तब समप्राय मैदान में ढाल के अवतल तत्व का विकास होता है। इस प्रकार डेविस के ढाल पतन के सिद्धांत के अनुसार निरपेक्ष उच्चावच में क्रमशः कमी आने पर उत्तल ढाल का सरल रेखीय तथा सरल ढाल का अवतल ढाल में परिवर्तन हो जाता है।

डेविस ने ढाल विश्लेषण हेतु अपरदन चक्र की संकल्पना को आधार बनाया इनके अनुसार स्थलाकृति विकास की अवस्था के आधार पर ऊर्ध्वाधर अपरदन के क्षैतिज अपरदन के दर से अधिक होने के कारण घाटी गर्तन में वृद्धि होती है। जिससे v आकार की घाटी में उत्तल ढाल का विकास होता है।
प्रौढ़ावस्था में पार्श्विक अपरदन की दर के अधिक होने के कारण सरल रेखीय ढाल का विकास होता है।
वृद्धावस्था में निरपेक्ष एवं सापेक्ष उच्चावच के न्यूनतम होने के कारण सरल रेखीय ढाल अवतल ढाल में परिवर्तित हो जाता है।

डेविस के ढाल पतन सिद्धांत के अनुसार निरपेक्ष उच्चावच में क्रमशः कमी आने के कारण ढाल में पतन होने से उत्तल ढाल का सरल रेखीय ढाल में तथा सरल रेखीय ढाल का अवतल ढाल में परिवर्तन हो जाता है।
इस तरह डेविस ने प्रवणीत ढाल की संकल्पना के आधार पर ढालों का विश्लेषण किया।

प्रवणीत ढाल के ऊपरी भाग में
अन्नच्छादन का प्रभाव अधिक होने से उत्तल ढाल का विकास होता है तथा प्रवणीत ढाल के नीचे स्थलाकृति के आधार पर ढाल के कोण कम होने के साथ और अवसादो के निक्षेपण के कारण अवतल ढाल का विकास होता है।

इनके अनुसार निरपेक्ष उच्चावच में क्रमशः कमी आने पर प्रवणीत ढाल का (सरल रेखीय ढाल) शिखरिय भाग की तरफ तथा अवतल ढाल का प्रवणीत ढाल की तरफ विस्तार होता है। जब निरपेक्ष उच्चावच न्यूनतम हो जाता है तब वैसी स्थिति में प्रवणीत ढाल अवतल ढाल में परिवर्तित हो जाता है।
पेंक का ढाल विश्लेषण मॉडल:-
पेंक ने स्थलाकृतिक विकास की अवस्था तथा ढाल प्रतिस्थापन सिद्धांत के माध्यम से ढाल की संकल्पना का विश्लेषण किया। स्थलाकृति विकास के अवस्था के अंतर्गत। आफस्ती जिंडे इंटिव लुंग अर्थात प्रथम अवस्था में उत्थान की दर अधिक होने के साथ निरपेक्ष एवं सापेक्ष उच्चावच में वृद्धि के कारण ढाल के उत्तल तत्व का विकास होता है।
गलिख फार्मिंग इटिवलुंग अर्थात दितीय अवस्था समंदर से विकास की प्रावस्था में उत्थान की दर कम होने के साथ सापेक्ष उच्चावच में कोई परिवर्तन नहीं होने के कारण उत्तल ढाल का सरल रेखीय ढाल में विकास हो जाता है।
अबास्ती जिंडे इंटिवक लुग अथवा तृतीय अवस्था घटती दर से विकास की अवस्था में उत्थान के दर में अत्यधिक कमी के साथ निरपेक्ष तथा सापेक्ष उच्चावच के न्यूनतम होने के कारण सरल रेखीय ढाल का अवतल रेखीय दाल में परिवर्तन हो जाता है।
इस तरह पेंक के अनुसार असला कृति के विकास के प्रारंभ से लेकर अंत तक ढाल का विकास उत्तल ,सरल रेखीय तथा अवतल ढाल के क्रम में होता है।

(कुछ समझ नहीं आ रहा)

(ब्लैक पेन पेज)

पेंक ने समांतर ढाल निवर्तन (पीछे हटना) अथवा ढाल प्रतिस्थापन सिद्धांत के द्वारा ढाल विश्लेषण की संकल्पना को स्पष्ट किया उन्होंने मुक्त पृष्ठ ढाल (क्लिफ) से निर्मित सतह के द्वारा ढाल नीवर्तन की प्रक्रिया का वर्णन किया।

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इनके अनुसार जहां मुक्त पृष्ठ ढाल से निर्मित सतह पर सभी जगह
अन्नच्छादन का दर समान होता है। वही अनच्छादित अवसादो का ढाल के आधार पर निक्षेपण होने के कारण अधार तल पर अनाच्छादन का दर नगड़य होता है। इनके अनुसार स्थलाकृति के आधार पर एक नदी प्रवाहित होती है। जिसका मुख्य कार्य अपरदन तथा निक्षेपण की जगह केवल परिवहन होता है। पेंक के अनुसार मुक्त पृष्ठ डाल से निर्मित अनाच्छादन के द्वारा ढाल का निवर्तन होता है लेकिन इस प्रक्रिया में ढाल के आधार पर अवसादो का निक्षेपण होने से निवर्तन की जगह ढाल की कोण में कमी आती है। ढाल के निवर्तन के साथ ढाल की कोण में (अधार तल पर) निक्षेपण के द्वारा कमी आने के कारण उत्तल ढाल का क्रमशः सरल रेखीय तथा अवतल ढाल के तत्वों का विकास होता है।

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समांतर निवर्तन:-
उल्लेखनीय है कि क्लिफ ढाल की सबसे निचली इकाई ( चित्र p) का मंद ढाल वाली नई इकाई द्वारा प्रतिस्थापन हो जाता है। इसी तरह उपयुक्त प्रक्रिया के पूर्णावृत्ति होने से ढाल की परिच्छेदिका की स्थितियां f,f1 तक पहुंच जाती है।
तथा नए आधारिय ढाल के लघु खंड आपस में मिलकर Af समढाल परिच्छेदिका का निर्माण करते हैं।सबसे निचली ढाल इकाई को छोड़कर ढाल खंडों के समांतर निवर्तन के कारण अंतत: अवतल ढाल परिच्छेदिका का विकास होता है।

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यदि जल विभाजक के दोनों तरफ समांतर न निवर्तन होता है,

यदि जल विभाजक के दोनों ओर समानांतर निवर्तन होता है। वह मुक्त पृष्ठ के खंडे ढाल वाले खंड के अपक्षय तथा अपरदन के द्वारा समाप्त हो जाने पर जल विभाजक पर अध:क्षय होने से उसकी ऊंचाई में क्रमिक रूप से कमी आने लगती है। और अंततः ढाल पतन होने से उत्तल – अवतल ढाल परिच्छेदिका का निर्माण हो जाता है।
इस प्रकार जहां डेविस के अनुसार ढाल का पतन होने पर निरपेक्ष उच्चावच में कमी से उत्तल ढाल से निर्मित सतह का अंततः अवतल ढाल के रूप में विकास हो जाता है।

वहीं पेंक के अनुसार ढाल के निवर्तन के समय में निरपेक्ष उच्चावच में कोई परिवर्तन नहीं होता है बल्कि डाल के कोण में कमी आने के कारण मुक्त पृष्ठ ढाल से निर्मित सतह का विकास अवतल ढाल के रूप में हो जाता है।

किंग का पहाड़ी ढाल चक्र सिद्धांत:- किंग का ढाल विकास का सिद्धांत उनके द्वारा प्रतिपादित पहाड़ी ढाल चक्र सिद्धांत से संबंधित है। उन्होंने किसी स्वतंत्र सिद्धांत का प्रतिपादन नहीं किया है बल्कि पेडिप्लेन चक्र का वर्णन करने के क्रम में ही ढाल के विकास की प्रक्रिया को स्पष्ट किया था।
इनके अनुसार पेडिप्लेन एक ऐसा गिरीपदीय मैदान होता है जो नदी घाटी और पर्वतीय ढाल के मध्य अवस्थित होता है।

किंग के अनुसार एक मानक ढाल के चारों तत्व विद्यमान रहते हैं। इस तरह का आदर्श ढाल ,ढाल के विकास का स्वभाविक प्रतिफल है। इसका निर्माण एक विकास या तो बहते जल के द्वारा या द्रव्यमान (मालवा) के स्थानांतरण द्वारा होता है।
ढाल का पूर्ण विकास दृढ़ शैल संस्तर तथा उच्चावच जैसे स्थानीय कारक पर निर्भर करता है।
यदि दोनों कारकों में से कोई भी एक अनूपस्थित हो तो डाल में कगार तथा मलवा ढाल नहीं बन पाते हैं। ऐसी स्थिति में उत्तल ,अवतल पहाड़ी ढाल का विकास हो जाता है।
किंग के अनुसार पेडिप्लेन कगार निवर्तन तथा पेडिमीटेंशन नामक दो प्रक्रियाओं का प्रतिफल होता है।
जब नदी के द्वारा क्षैतिज अपरदन के कारण निरपेक्ष उच्चावच में कमी के साथ घाटी के चौड़ाई में वृद्धि होती है तब गिरी पदीय मैदान का विकास होता है। जिससे उत्तल ढाल से निर्मित सतह के कोण में कमी आने से सरल रेखीय ढाल का विकास होता है।

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पेडिप्लेन चक्र के अंत में जब निरपेक्ष और सापेक्ष चक्र न्यूनतम हो जाता है। तब पेडिप्लेन में अवतल ढाल से निर्मित सतह का विकास हो जाता है। इस तरह किंग ने अर्धशुष्क शुष्कजलवायु प्रदेशों में पेडिप्लेन चक्र के द्वारा ढालल के क्रमिक प्रक्रिया को स्पष्ट किया है।

स्ट्रॉलर का ढाल की संकल्पना:-
स्ट्रॉलर ने ढालों के अधिक कोण मापन द्वारा ढाल के विकास से संबंधित कई दिलचस्प तथ्यों का प्रतिपादन किया है। सामान भूमि की संरचना जलवायु मिट्टी उच्चावच आदि से युक्त क्षेत्र में ढालों के अधिकतम कोण मापन के बाद उस क्षेत्र के लिए औसत अधिकतम ढाल कोण परिकलन करने के बाद इन्होंने बताया कि औसत अधिकतम कोण तथा अलग-अलग ढालों के अधिकतम कोणों में मामूली अंतर होता है। स्पष्टीकरण देते हुए स्ट्रॉलर में कहा कि इन ढालों ने सामान कोण का विकास इसलिए किया है कि उनसे मलवा का परिवहन आसानी से हो सके।

परंतु उन्होंने बताया कि ढाल की साम्यावस्था की दशा बहुल कारकों के द्वारा नियंत्रित होती है। एक भी कारक के स्वभाव में परिवर्तन हो जाने से ढाल की साम्यावस्था में पुनर समायोजन हो सकता है। इस तरह स्कॉलर के अनुसार किसी भी क्षेत्र में निवर्तनशिल ढालों के अधिकतम कोण समान होते हैं। परंतु यह नहीं कहा जा सकता है। समान अधिकतम कोण वाले ढालों में ढाल पतन की अपेक्षा समानांतर निवर्तन ही अधिक होता हैं।
अपने क्षेत्रीय पर्यवेक्षण के आधार पर स्ट्रॉलर ने घाटी पार्श्व ढाल (vally side shlope ) या धरातलीय ढाल तथा जलमार्ग ढाल में संबंध स्थापित करने का सफल प्रयास किया ।

Valley side slope जलमार्ग ढाल
प्रवणता मलवा अधिक स्थानातरित

Valley side slope जलमार्ग ढाल तल प्रवणतामलवा स्थानांतरण कम
ढाल को प्रभावित करने वाले सभी कारकों के स्थिर होने की स्थिति में ही संभव है।
एक भी कारक की भूमिका में अंतर आने से संबंध में अंतर आ सकता है।
जैसे-मान लिया जाए घाटी पार्श्व ढाल सामान्य तीव्रता वाला है, किंतु यदि घाटी के एक किनारे (तरफ) वनस्पति का आवरण हो तथा दूसरा वनस्पति से मुक्त हो इस दशा में वनाच्छादित पार्श्व ढाल पर अनाच्छादन कम होने से मलवा कम मिलेगा। जिससे जलमार्ग ढाल मंद होगा।
वनस्पति मुक्त पार्श्व ढाल पर इसकी विपरीत स्थिति देखी जाएगी। इनके अनुसार जहां पर सरिता ढाल के पद के पास होते हैं वहां तीव्र ढाल के कारण सरिता मलवा को शीघ्र ही बहा ले जाती हैं। ढाल के पद से सरिता के दूर होने की स्थिति में नदी मलवा को बहाने की अपेक्षा मलवा को संग्रह ढाल के संग्रह हेतु करता है।

इसके अलावा उड, सैविजियर, फिशर- लैहमान के मॉडल के साथ यंग का प्रक्रिया अनुक्रम मॉडल ढाल के विकास से संबंधित महत्वपूर्ण संकल्पन आए हैं।

समाप्त

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