6 June 2021 Current affairs

ब्लैक कार्बन पर सुदृढ़ नीतियां, हिमनदों के पिघलने में तेजी से कमी लाने में सक्षम: विश्व बैंक

● हाल ही में, विश्व बैंक द्वारा हिमालय, काराकोरम और हिंदुकुश( HKHK) पर्वत श्रृंखलाओं पर ब्लैक कार्बन के प्रभाव जानने हेतु एक शोध अध्ययन कराया गया था।
इन पर्वत श्रंखलाओं में हिमनदों के पिघलने के गति, विश्व के औसत हिमक्षेत्रों की तुलना में काफी अधिक है।
● इस शोध रिपोर्ट का शीर्षक “हिमालय के ग्लेशियर, जलवायु परिवर्तन, ब्लैक कार्बन और क्षेत्रीय लचीलापन” है।

प्रमुख निष्कर्ष

  • मानव गतिविधियों से निर्मित उत्पादित ब्लैक कार्बन (BC) निक्षेपों की वजह से हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर और बर्फ के पिघलने की गति तेज होती है।
  • HKHK पर्वत श्रंखलाओं के हिमनदों / ग्लेशियरों के पीछे हटने की दर, पश्चिमी क्षेत्रों में 3 मीटर प्रति वर्ष और पूर्वी क्षेत्रों में 1.0 मीटर प्रति वर्ष होने का अनुमान है।
  • ब्लैक कार्बन, जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले प्रभावों को भी तीव्र करता है।
  • ब्लैक कार्बन के निक्षेप, ग्लेशियर के पिघलने की गति को तेज करने के लिए दो प्रकार से कार्य करते हैं: सतह से होने वाले सौर-परावर्तन को कम करके और हवा के तापमान में वृद्धि करके।

सुझाव

  • ब्लैक कार्बन को कम करने हेतु मौजूदा नीतियों के पूर्ण कार्यान्वयन से हिमनदों के पिघलने के गति में 23% की कमी हो सकती है।
  • ग्लेशियरों के पीछे हटने की दर को, नई तथा वर्तमान में व्यवहार्य नीतियों के माध्यम से मौजूदा स्तर के अलावा 50% तक अधिक तेजी से कम किया जा सकता है।
  • रसोई-चूल्हे, डीजल इंजन और खुले में दहन से होने वाले ब्लैक कार्बन उत्सर्जन को कम करने से विशेष रूप से हिमालय में सर्वाधिक अधिक प्रभाव पड़ेगा और इससे विकिरण बलों को भी काफी कम किया जा सकता है।

ब्लैक कार्बन के बारे में

ब्लैक कार्बन, एक अल्पकालिक प्रदूषक है, तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बाद पृथ्वी को गर्म करने में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है।

अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के विपरीत, ब्लैक कार्बन शीघ्रता से साफ़ हो जाता है और यदि इसका उत्सर्जन बंद कर दिया जाए तो इसे वातावरण से समाप्त किया जा सकता है।

ऐतिहासिक कार्बन उत्सर्जन के विपरीत, यह स्थानीय स्रोतों से उत्पन्न होता है, और इसका स्थानीय क्षेत्रों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।

यह जीवाश्म ईंधन, जैव ईंधन और बायोमास के अधूरे दहन के माध्यम से उत्पन्न होता है, और मानवजनित और प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली कालिख, दोनों से फैलता होता है।

हिमालय, काराकोरम और हिंदुकुश (HKHK) क्षेत्रों में ब्लैक कार्बन के स्रोत:-

  • क्षेत्रीय मानवजनित ब्लैक कार्बन जमाव में, उद्योग (मुख्य रूप से ईंट भट्टों) और स्थानीय निवासियों द्वारा ठोस ईंधन के दहन का 45-66% योगदान होता है, इसके बाद परिवहन वाहनों द्वारा डीजल ईंधन (7-18%) और खुले में दहन (3% से कम) का योगदान होता है।

वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स रिपोर्ट

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने ‘वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स रिपोर्ट-2021’ जारी की है।

प्रमुख बिंदु

कोविड का प्रभाव

  • कोरोना महामारी ने दुनिया भर में 100 मिलियन से अधिक श्रमिकों को गरीबी के दुष्चक्र में धकेल दिया है। महामारी के कारण इस वर्ष के अंत में 75 मिलियन नौकरियों की कमी की संभावना है।
  • वर्ष 2019 के सापेक्ष अनुमानित अतिरिक्त 108 मिलियन श्रमिक अब अत्यंत या मध्यम गरीब हैं, जिसका अर्थ है कि क्रय शक्ति समानता के संदर्भ में ऐसे लोगों और उनके परिवार के सदस्यों को प्रतिदिन 3.20 अमेरिकी डॉलर (यह निम्न-मध्यम-आय वाले देशों के लिये विश्व बैंक की गरीबी रेखा है) से कम पर जीवनयापन करना पड़ता है।
  • गरीबी दर में तेज़ी से हो रही वृद्धि काम के घंटे खोने के कारण है, क्योंकि विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में लॉकडाउन लागू किया गया है और अधिकांश लोगों की नौकरी छूट गई है या फिर उनकी आय में कमी आ रही है।
  • गरीबी के उन्मूलन की दिशा में बीते पाँच वर्षों में की गई समग्र प्रगति व्यर्थ हो गई है, क्योंकि गरीबी दर अब वर्ष 2015 के स्तर पर वापस आ गई है।

बढ़ती असमानता

  • महामारी ने श्रम बाज़ार में मौजूद असमानताओं को और बढ़ा दिया है, जिसमें कम-कुशल श्रमिक, महिलाएँ, युवा या प्रवासी सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।

कार्य-समय का नुकसान

  • बहुत से लोगों के काम के घंटों में नाटकीय रूप से कटौती देखी गई है।
  • वर्ष 2020 में वर्ष 2019 की चौथी तिमाही की तुलना में वैश्विक कामकाजी घंटों का 8.8 प्रतिशत का नुकसान हुआ, जो कि 255 मिलियन पूर्णकालिक रोज़गार के समान है।
  • यद्यपि स्थिति में सुधार हुआ है, किंतु वैश्विक काम के घंटों में बढ़ोतरी होने में अभी काफी समय लगेगा और विश्व में अभी भी इस वर्ष के अंत तक 100 मिलियन पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर नुकसान होने की आशंका है।

बेरोज़गारी दर

वर्ष 2020-21 में बेरोज़गारी दर 6.3 प्रतिशत है, जो कि अगले वर्ष (2021-22) तक गिरकर 5.7 प्रतिशत हो जाएगी, किंतु तब भी यह पूर्व-महामारी (वर्ष 2019) दर यानी 5.4 प्रतिशत से अधिक है।

महिला बेरोज़गारी

  • महिलाओं के अवैतनिक कार्य के समय में वृद्धि हुई है और उन्हें अनुपातहीन रोज़गार के नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
  • इसके अलावा महिलाओं पर बच्चों की देखभाल और होम स्कूलिंग गतिविधियों का भी असमान बोझ पड़ा है।
  • नतीजतन पुरुषों के लिये 3.9 प्रतिशत की तुलना में महिलाओं के लिये रोज़गार में 5 प्रतिशत की गिरावट आई है।

श्रमिकों पर प्रभाव

  • श्रमिकों और उद्यमों पर महामारी के दीर्घकालिक प्रभाव देखने को मिलेंगे।
  • अतः इसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अनुमानित रोज़गार वृद्धि दर महामारी के कारण उत्पन्न संकट से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं होगी।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

परिचय

इस संगठन को वर्ष 1919 में वर्साय की संधि के हिस्से के रूप में बनाया गया था, जो कि इस विश्वास के साथ गठित किया गया था कि सार्वभौमिक और स्थायी शांति तभी प्राप्त की जा सकती है जब यह सामाजिक न्याय पर आधारित हो।
वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी बन गई।
यह एक त्रिपक्षीय संगठन है, जो अपने कार्यकारी निकायों में सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाता है।
सदस्य

  • भारत ILO का संस्थापक सदस्य है और इसमें कुल 187 सदस्य हैं।
  • वर्ष 2020 में भारत ने ILO के शासी निकाय की अध्यक्षता ग्रहण की है।

S.D.G. index – नीति आयोग

चर्चा में क्यों
हाल ही में नीति आयोग ने S.D.G. index का तीसरा संस्करण जारी किया।
S.D.G. index 2020-21 भारत में संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से विकसित किया गया है।
• प्रारंभ – 2018 में
उद्देश्य

  • सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में की गई प्रगति की निगरानी।
  • यह राज्यों के बीच S.D.G. लक्ष्यों को प्राप्ति के लिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है।
  • देश के समस्त S.D.G. Score की प्राप्ति में 6 अंकों का सुधार हैं। (60-66)

राज्यों की रैंकिंग

  • केरल – पहला स्थान
  • हिमाचल प्रदेश – दूसरा स्थान
  • सबसे खराब प्रदर्शन – बिहार, झारखंड ,असम
  • केंद्र शासित प्रदेशों में – चंडीगढ़ सिर्फ पर

क्लीन एनर्जी

  • इंडस्ट्रियल दीप डी कार्बोनाइजेशन इनीशिएटिव ( IDDI) सार्वजनिक और निजी संगठनों का एक वैश्विक गठबंधन है, जो निम्न कार्बन वाली औद्योगिक सामग्री की मांग को प्रोत्साहित करने के लिए कार्य करता है।
  • यह संयुक्त राष्ट्रीय औद्योगिक विकास संगठन द्वारा समन्वित होता है।
  • इसका नेतृत्व यूनाइटेड किंगडम और भारत द्वारा संयुक्त रुप से किया जाता है और जर्मनी और कनाडा इसके वर्तमान सदस्यों में शामिल है।
  • क्लीन एनर्जी मिनिस्ट्रियल की स्थापना दिसंबर 2009 में कोपेनहेगन में आयोजित पार्टियों के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन पर संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क इनमें कन्वेंशन किया गया था।
  • यह स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने वाली नीतियों और कार्यक्रमों को बढ़ावा देने एवं प्रोत्साहित करने हेतु वैश्विक मंच है।
  • क्लीन एनर्जी मिनिस्ट्रियल में भारत सहित कुल 29 देश शामिल है।

मेगा फूड पार्क योजना

  • केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री ने छत्तीसगढ़ के रायपुर में वर्चुअल रूप से इंडस बेस्ट मेगा फूड पार्क का उद्घाटन किया।
  • इससे करीब 5000 लोगों को रोजगार मिलेगा तथा लगभग 25000 किसान लाभान्वित होंगे।
  • इसका उद्देश्य किसानों, प्रसंस्करणकर्ताओं और खुदरा विक्रेताओं को एक साथ लाकर कृषि उत्पादन को बाजार से जुड़ने के लिए एक यंत्र प्रदान करना है।
  • ताकि मूल्यवर्धन को अधिक, अबे को कम तथा किसानों की आय को ज्यादा करके रोजगार के नए अवसर ( विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में) सुनिश्चित किए जा सकें।
  • केंद्र सरकार प्रति मेगा फूड पार्क योजना के लिए 50 करोड़ तक की वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • वर्तमान में 22 मेगा फूड पार्क काम कर रहे हैं। या भारत के make in India और आत्मनिर्भर भारत विजन के अनुरूप है।

 टीम रूद्रा

मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs ) 

अभिनव आनंद (डायट प्रवक्ता) 

डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या 

अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर) 

योगराज पटेल (VDO)- 

अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )

प्रशांत यादव – प्रतियोगी – 

कृष्ण कुमार (kvs -t ) 

अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)

 मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)

अश्वनी सिंह – प्रतियोगी

प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।

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