महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर इस्तांबुल अभिसमय
हाल ही में, तुर्की, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को रोकने से संबंधित ‘इस्तांबुल अभिसमय’ (Istanbul Convention) से बाहर हो गया है।
पृष्ठभूमि:
24 नवंबर, 2011 को तुर्की द्वारा ‘इस्तांबुल अभिसमय’ की पुष्टि की गई थी और यह इस ‘अभिसमय’ का अनुसमर्थन करने वाला पहला देश था। 8 मार्च 2012 को तुर्की ने ‘इस्तांबुल अभिसमय’ को अपने ‘घरेलू कानूनों’ में शामिल कर लिया था।
इस्तांबुल अभिसमय’ से अलग होने पर की जा रही आलोचनाओं का कारण:
तुर्की के इस निर्णय की विभिन्न क्षेत्रों से कड़ी आलोचना की जा रही है और इसके विरोध में देश भर में विरोध हुए हैं।
- देश में हिंसा और स्त्री-हत्या की खतरनाक रूप से उच्च दर होने के बावजूद तुर्की, इस अभिसमय से अलग हो गया है।
- ‘ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट’ 2021 में, 156 देशों की सूची में तुर्की को 133 वां स्थान प्राप्त हुआ था।
- संयुक्त राष्ट्र ‘महिला’ (UN Women) के आंकड़ों के अनुसार, तुर्की में 38 प्रतिशत महिलाओं को अपने जीवनकाल में, अपने साथी द्वारा हिंसा का सामना करना पड़ता है।
- तुर्की सरकार द्वारा महिलाओं की हत्या पर कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है।
तुर्की के अभिसमय से अलग होने के कारण:
- तुर्की सरकार का कहना है, कि यह अभिसमय, पारंपरिक पारिवारिक संरचना का अवमूल्यन करता है, तलाक को बढ़ावा देता है और समाज में LGBTQ के स्वीकरण को प्रोत्साहित करता है।
- सरकार के अनुसार, इसके अलावा भी तुर्की में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए पर्याप्त स्थानीय कानून मौजूद हैं।
चिंता का विषय
- तुर्की सरकार ने या निर्णय ऐसे समय में लिया है, जब कोविड-19 महामारी के दौरान दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ घरेलू हिंसा तीव्र हो रही है।
- लोग इस बात से भी चिंतित हैं, कि अब तुर्की की महिलाओं के बुनियादी अधिकार और सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगी।
‘ इस्तांबुल अभिसमय’ क्या है?
- इसे, ‘महिलाओं और घरेलू हिंसा के विरुद्ध हिंसा की रोकथाम तथा उससे निपटने हेतु यूरोपीय समझौता परिषद’ (Council of Europe Convention on preventing and combating violence against women and domestic violence) भी कहा जाता है।
- यह संधि महिलाओं के खिलाफ हिंसा की रोकथाम करने और निपटने के लिए विश्व का पहला बाध्यकारी उपकरण है।
- इस व्यापक वैधानिक ढाँचे में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा, घरेलू हिंसा, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, महिला जननांग अंगभंग (female genital mutilation- FGM), तथा सम्मान-आधारित हिंसा (honour-based violence) और बलपूर्वक विवाह को रोकने के लिए प्रावधान किये गए है।
- किसी देश की सरकार के द्वारा अभिसमय के पुष्टि किये जाने के पश्चात वह इस संधि का पालन करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य होते हैं।
- मार्च 2019 तक, इस संधि पर 45 देशों तथा यूरोपीय संघ द्वारा हस्ताक्षर किये गए है।
- इस अभिसमय को 7 अप्रैल 2011 को यूरोपीय परिषद की ‘कमेटी ऑफ़ मिनिस्टर्स’ द्वारा अपनाया गया था।
- इस अभिसमय में, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा से निपटने हेतु सरकारों के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित किये गए है।
फ्लाई ऐश
(Fly Ash)
चर्चा में क्यों?
- विद्युत मंत्रालय के अधीन एक महारत्न केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (CPSU) और भारत की सबसे बड़ी एकीकृत विद्युत उत्पादक कंपनी NTPC लिमिटेड ने अपने थर्मल पावर प्लांटों द्वारा उत्पादित फ्लाई ऐश (Fly Ash) की 100 फीसदी उपयोगिता की दिशा में अपने प्रयास के तहत मध्य पूर्व और अन्य क्षेत्रों के नामित बंदरगाहों से फ्लाई ऐश की बिक्री के लिए रुचि-प्रपत्र (Expression of Interest – Eol) आमंत्रित किए हैं।
- NTPC बिजली संयंत्रों से बंदरगाहों को फ्लाई ऐश की आपूर्ति करेगा और इसके निर्यात हेतु 14.5 मिलियन टन प्रति वर्ष की कुल मात्रा निर्धारित है।
पृष्ठभूमि~
● केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार, थर्मल प्लांट शुरू होने के चौथे वर्ष से फ्लाई ऐश की 100 फीसदी उपयोगिता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
‘फ्लाई ऐश’ क्या होती है?
- इसे आमतौर ‘चिमनी की राख’ अथवा ‘चूर्णित इंर्धन राख’ (Pulverised Fuel Ash) के रूप में जाना जाता है। यह कोयला दहन से निर्मित एक उत्पाद होती है।
- यह कोयला-चालित भट्टियों (Boilers) से निकलने वाले महीन कणों से निर्मित होती है।
फ्लाई ऐश का गठन:
- भट्टियों में जलाये जाने वाले कोयले के स्रोत तथा उसकी संरचना के आधार पर, फ्लाई ऐश के घटक काफी भिन्न होते हैं, किंतु सभी प्रकार की फ्लाई ऐश में सिलिकॉन डाइऑक्साइड (SiO2), एल्यूमीनियम ऑक्साइड (AI203) और कैल्शियम ऑक्साइड (Cao) पर्याप्त मात्रा में होते हैं।
- फ्लाई ऐश के सूक्ष्म घटकों में, आर्सेनिक, बेरिलियम, बोरोन, कैडमियम, क्रोमियम, हेक्सावलेंट क्रोमियम, कोबाल्ट, सीसा, मैंगनीज, पारा, मोलिब्डेनम, सेलेनियम, स्ट्रोंटियम, थैलियम, और वैनेडियम आदि पाए जाते है। इसमें बिना जले हुए कार्बन के कण भी पाए जाते है।
स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी खतरे
- विषाक्त भारी धातुओं की उपस्थति: फ्लाई ऐश में पायी जाने वाली, निकल, कैडमियम, आर्सेनिक, क्रोमियम, लेड, आदि सभी भारी धातुएं प्रकृति में विषाक्त होती हैं। इनके सूक्ष्म व विषाक्त कण श्वसन नालिका में जमा हो जाते हैं तथा धीरे-धीरे विषाक्तीकरण का कारण बनते रहते हैं।
- विकिरणः परमाणु संयंत्रो तथा कोयला-चालित ताप संयत्रों से समान मात्रा में उत्पन्न विद्युत करने पर, परमाणु अपशिष्ट की तुलना में फ्लाई ऐश द्वारा सौ गुना अधिक विकिरण होता है।
- जल प्रदूषण: फ्लाई ऐश नालिकाओं के टूटने और इसके फलस्वरूप राख के बिखरने की घटनाएं भारत में अक्सर होती रहती हैं, जो भारी मात्रा में जल निकायों को प्रदूषित करती हैं।
- पर्यावरण पर प्रभाव: आस-पास के कोयला आधारित विद्युत् संयंत्रों से उत्सर्जित होने वाले राख अपशिष्ट से मैंग्रोव का विनाश, फसल की पैदावार में भारी कमी, और कच्छ के रण में भूजल के प्रदूषण को अच्छी तरह से दर्ज किया गया है।
फ्लाई ऐश का उपयोग
- कंक्रीट उत्पादन, रेत तथा पोर्टलैंड सीमेंट हेतु एक वैकल्पिक सामग्री के रूप में।
- फ्लाई-ऐश कणों के सामान्य मिश्रण को कंक्रीट मिश्रण में परिवर्तित किया जा सकता है।
- तटबंध निर्माण और अन्य संरचनात्मक भराव। ।
- सीमेंट धातुमल उत्पादन – (चिकनी मिट्टी के स्थान पर वैकल्पिक सामग्री के रूप में)
- नरम मिट्टी का स्थिरीकरण।
- सड़क निर्माण।
- ईंट निमार्ण सामग्री के रूप में।
- कृषि उपयोग: मृदा सुधार, उर्वरक, मिट्टी स्थिरीकरण। 9. नदियों पर जमी बर्फ पिघलाने हेतु।
- सड़कों और पार्किंग स्थलों पर बर्फ जमाव नियंत्रण हेतु।
पंजाब सूबा आंदोलन
- हाल ही में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने 4 जुलाई, 1955 को पंजाब सूबा आंदोलन (मोर्चा) के दौरान स्वर्ण मंदिर के अंदर पुलिस बल द्वारा की गई कार्यवाही को याद करते हुए एक कार्यक्रम आयोजित किया।
पंजाब सूबा आंदोलन के बारे में:
- आज़ादी के तुरंत बाद पंजाब में इस आंदोलन की शुरुआत हुई। शिरोमणि अकाली दल (राजनीतिक दल) द्वारा एक पंजाबी भाषी राज्य को लेकर इस आंदोलन का नेतृत्व किया गया।
- हालाँकि इस विचार का विरोध भी हुआ।
- जो लोग इसकी मांग के पक्ष में थे उनके द्वारा “पंजाबी सूबा अमर रहे” का नारा लगाया गया तथा मांग का विरोध करने वाले लोग ‘महा-पंजाब’ के समर्थन में नारे लगा रहे थे।
- अप्रैल 1955 में सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 144 के तहत कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिये नारों पर प्रतिबंध लगा दिया।
- पंजाबी सूबे के निर्माण की मांग ने स्वतः ही अलग हरियाणा राज्य की मांग का आधार निर्मित कर दिया।
- आंदोलन की मांग:
- एक पंजाबी भाषी राज्य का निर्माण जिसमें पंजाबी भाषी क्षेत्रों की जनसंख्या शामिल होगी।
- किसी भी स्थायी तरीके से इसके आकार को बढ़ाने या घटाने हेतु कोई उग्र/हिंसक प्रयास न करना
- पंजाबी भाषी राज्य भारतीय संविधान के अधीन होगा।
अमेरिका की वापसी और अफगान शांति वार्ता
चर्चा में क्यों
अमेरिकी सैनिकों ने 20 वर्ष के लंबे युद्ध के बाद अफगानिस्तान के सबसे बड़े एयरवेज को खाली कर अपने सैन्य अभियानों को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया है।
प्रमुख तथ्य
• तालिबान से वार्ता करने के भारत के तीन महत्वपूर्ण हित हैं।
- अफगानिस्तान में अपने निवेश की रक्षा करना।
- भावी तालिबान शासन को पाकिस्तान का मोहरा बनने से रोकना।
- यह सुनिश्चित करना कि पाकिस्तान समर्थित भारत विरोधी आतंकवादी समूहों को तालिबान का समर्थन न मिले।
• अमेरिका और तालिबान से समझौते में हजारों तालिबानी को रिहा करने का अफगान सरकार पर दबाव बनाया।
• काबुल का कहना है कि तालिबान को पाकिस्तान का समर्थन विद्रोहियों को सैन्य दबाव से उबरने और अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद कर रहा है।
आर्कटिक के “लास्ट आइसएरिया” का पिघलना
- ग्रीनलैंड के उत्तर में आर्कटिक क्षेत्र में स्थित “लास्ट आइस एरिया” (LIA) वैज्ञानिकों के अनुमान की अपेक्षा पहले ही पिघलने लगा।
- यह क्षेत्र ग्रीनलैंड और एलेस्मेरे द्विप के उत्तर में स्थित है।
- इस क्षेत्र को ग्लोबल वार्मिंग सहने के लिए मजबूत माना जाता था।
- आर्कटिक में ग्रीष्म कालीन बर्फ के वर्ष 2040 तक पूरी तरह गायब होने का अनुमान लगाया गया था, जबकि L.I.A. इसका अपवाद माना गया था।
- इस क्षेत्र का नामांकरण L.I.A विश्व वन्यजीव कोष ने किया।
महत्त्व
- हिमानी परिस्थितिक तंत्र का विनाश।
- तटीय क्षेत्रों पर बढ़ते जल स्तर का संकट।
- ध्रुवीय भालू तथा अन्य ध्रुवीय जीवो का जीवन संकट में हो जाएगा।
टीम रूद्रा
मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs )
अभिनव आनंद (डायट प्रवक्ता)
डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या
अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर)
योगराज पटेल (VDO)-
अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )
प्रशांत यादव – प्रतियोगी –
कृष्ण कुमार (kvs -t )
अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)
मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)
अश्वनी सिंह – प्रतियोगी
प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।