30 & 31 OCTOBER 2021 CURRENT AFFAIR

30 & 31 OCTOBER 2021 CURRENT AFFAIR

BTIA की पुन: वार्ता: भारत-यूरोपीय संघ

  • सरकारी अधिकारियों ने खुलासा किया है कि भारत और यूरोपीय संघ (EU) ‘द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते’ (BTIA) पर वार्ता पुनः शुरू करने के लिये तैयार हैं। BTIA वार्ता वर्ष 2013 से स्थगित है।
  • हालाँकि इस वर्ष की शुरुआत में भारत-यूरोपीय संघ के नेताओं की बैठक में दोनों देश BTIA के लिये मुक्त व्यापार वार्ता को फिर से शुरू करने पर सहमत हुए और एक कनेक्टिविटी साझेदारी को भी अपनाया।

• BTIA के बारे में:

  • पृष्ठभूमि: भारत और यूरोपीय संघ ने एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) करने के लिये बातचीत बहुत पहले 2007 में शुरू की थी, जिसे आधिकारिक तौर पर BTIA कहा जाता है।
  • BTIA को वस्तुओं, सेवाओं और निवेशों में व्यापार को शामिल करने का प्रस्ताव दिया गया था।
  • हालाँकि बाज़ार पहुँच और पेशेवरों की आवाजाही पर मतभेदों को लेकर 2013 में बातचीत ठप हो गई।
    • व्यापकता: यूरोपीय संघ वर्ष 2019-20 में चीन और अमेरिका से आगे भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था, जिसके साथ कुल व्यापार 90 बिलियन अमेरिकी डालर के करीब था।
  • BTIA पर हस्ताक्षर के साथ भारत और यूरोपीय संघ अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में वस्तुओं एवं सेवाओं के व्यापार व निवेश में बाधाओं को दूर करके द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने की उम्मीद करते हैं।
  • चुनौतियाँ: आत्मनिर्भर भारत मिशन के तहत कोविड-19 संकट से आत्मनिर्भरता पर ज़ोर दिया जा रहा है। यह यूरोपीय संघ द्वारा भारत के ‘संरक्षणवादी रुख’ माना जाता है।
    भारत के लिये श्रम और पर्यावरण के स्थायी मानकों को पूरा करना मुश्किल हो सकता है, जिस पर यूरोपीय संघ अब अधिक ज़ोर देता है।
  • महत्त्व: भारत यह संकेत देना चाहता है कि अंतिम समय में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से बाहर निकलने के बाद व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करने के खिलाफ नहीं है।
  • यूरोपीय संघ बदले में चीन से इतर भारत में अपनी मूल्य शृंखला में विविधता लाना चाहता है और इसलिये भारत के साथ व्यापार समझौता करने में भी उसकी रुचि है।
    • कनेक्टिविटी रोडमैप:
  • भौतिक संपर्क से अधिक: यह एक महत्त्वाकांक्षी और व्यापक कनेक्टिविटी परियोजना है, जो न केवल भौतिक बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित करती है बल्कि डिजिटल, ऊर्जा, परिवहन और लोगों से लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने की भी परिकल्पना करती है।
  • घटक: भारत-ईयू कनेक्टिविटी रोडमैप में तीन मुख्य क्षेत्र शामिल हैं- व्यापार और निवेश, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी)।
    • क्षेत्रीय और बहु हितधारक दृष्टिकोण: फोकस क्षेत्र देश के भीतर कनेक्टिविटी, यूरोप के साथ कनेक्टिविटी का निर्माण और इस प्रक्रिया में दक्षिण एशिया और इंडो-पैसिफिक में अन्य देशों के साथ मिलकर काम करना था।
  • यह कनेक्टिविटी परियोजनाओं के लिये निजी और सार्वजनिक वित्तपोषण को उत्प्रेरित करेगा।
  • BRI का मुकाबला: इंडिया-ईयू कनेक्टिविटी: पार्टनरशिप फॉर डेवलपमेंट, डिमांड एंड डेमोक्रेसी’ शीर्षक वाली रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि कनेक्टिविटी रोडमैप के माध्यम से दोनों पक्षकार परोक्ष रूप से चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का मुकाबला करना चाहते हैं।
    जैसा कि इसने लोकतंत्र, कानून के शासन, समावेश और पारदर्शिता और डेब्ट ट्रैप से बचने आदि सिद्धांतों पर ज़ोर दिया।

• आगे की राह

  • भू-आर्थिक सहयोग: भारत सुरक्षा की बजाय भू-आर्थिक रूप से इंडो-पैसिफिक परिदृश्य में संलग्न होने के लिये यूरोपीय संघ के देशों का प्रयोग कर सकता है।
  • यह क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचे के सतत् विकास के लिये बड़े पैमाने पर आर्थिक संसाधन जुटा सकता है, राजनीतिक प्रभाव को नियंत्रित कर सकता है और इंडो-पैसिफिक परिदृश्य को आकार देने के लिये अपनी महत्त्वपूर्ण सॉफ्ट पावर का लाभ उठा सकता है।
  • भारत-यूरोपीय संघ BTIA संधि को अंतिम रूप देना: भारत और यूरोपीय संघ एक मुक्त व्यापार सौदे पर बातचीत कर रहे हैं, लेकिन यह 2007 से लंबित है।
  • इसलिये भारत और यूरोपीय संघ के बीच घनिष्ठ अभिसरण के लिये दोनों को व्यापार समझौते को जल्द-से-जल्द अंतिम रूप देने में संलग्न होना चाहिये।
  • महत्त्वपूर्ण खिलाड़ियों के साथ सहयोग: 2018 की शुरुआत में फ्राँस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन की भारत यात्रा ने रणनीतिक साझेदारी को पुनर्जीवित करने के लिये एक विस्तृत ढाँचे का अनावरण किया।
  • फ्राँस के साथ भारत की साझेदारी इंडो-पैसिफिक परिदृश्य में एक मज़बूत क्षेत्रीय प्रयास है।
  • भारत ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौते के लिये बातचीत में संलग्न हैं।

G20 जलवायु जोखिम एटलस

  • ‘यूरो-मेडिटेरेनियन सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज’ (CMCC) ने ‘G20 जलवायु जोखिम एटलस’ नामक एjक रिपोर्ट में बताया है कि G20 (20 देशों का एक समूह) देश, जिसमें अमेरिका, यूरोपीय देश और ऑस्ट्रेलिया जैसे सबसे धनी देश शामिल हैं, आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन के अत्यधिक प्रभावों को सहन करेंगे। ।
  • यह पहला अध्ययन है जो G20 देशों में जलवायु परिदृश्य, सूचना, डेटा और भविष्य में जलवायु परिवर्तन संबंधी जानकारी प्रदान करता है।
  • यह रिपोर्ट अक्तूबर 2021 के अंत में रोम में G20 शिखर सम्मेलन से दो दिन पहले आई है।

• प्रमुख बिंदु:

  • G20 देशों पर प्रभाव:
    • हीटवेब्स:
      सभी G20 देशों में हीटवेब्स कम-से-कम दस गुना अधिक समय तक चल सकती है, अर्जेंटीना, ब्राज़ील और इंडोनेशिया में हीटवेव वर्ष 2050 तक 60 गुना अधिक समय तक चल सकती हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया में बुश फायर्स, तटीय बाढ़ और चक्रवात बीमा लागत बढ़ा कर संपत्ति के मूल्यों को वर्ष 2050 तक 611 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर तक कम कर सकते हैं।
  • सकल घरेलू उत्पाद में हानि:
    G20 देशों में जलवायु क्षति के कारण जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का नुकसान हर वर्ष बढ़ रहा है, जो वर्ष 2050 तक वार्षिक रूप से कम-से-कम 4% तक बढ़ सकता है। यह वर्ष 2100 तक 8% से अधिक तक पहुँच सकता है, जो कोविड-19 से हुए आर्थिक नुकसान के दोगुने के बराबर है।
  • कुछ देश इससे बुरी तरह प्रभावित होंगे, जैसे कि कनाडा, वर्ष 2050 तक इसके सकल घरेलू उत्पाद में कम-से-कम 4% की कमी और 2100 तक 13% से अधिक की कमी हो सकती है।

• समुद्र स्तर में वृद्धि:

  • समुद्र स्तर में वृद्धि 30 वर्षों के भीतर तटीय बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर सकती है, जापान को 404 बिलियन यूरो और दक्षिण अफ्रीका को वर्ष 2050 तक 815 मिलियन यूरो का नुकसान हो सकता है।
  • बाढ़:
    वर्ष 2050 तक नदियों की बाढ़ से अनुमानित वार्षिक नुकसान कम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत 376.4 बिलियन यूरो और उच्च उत्सर्जन परिदृश्य के तहत 585.6 बिलियन यूरो तक बढ़ने का अनुमान है।

• भारत पर प्रभाव:

  • उत्सर्जन परिदृश्य:
    कम उत्सर्जन (वर्तमान की तुलना में कम):
    अनुमानित तापमान भिन्नता की स्थिति वर्ष 2050 और 2100, दोनों तक 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे बनी रहेगी।
    मध्यम उत्सर्जन (वर्तमान के समान):
    वर्ष 2036 और 2065 के बीच भारत में सबसे गर्म महीने का अधिकतम तापमान मध्यम उत्सर्जन की तुलना में कम-से-कम 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है।
  • उच्च उत्सर्जन (वर्तमान से अधिक):
    वर्ष 2050 तक उच्च उत्सर्जन परिदृश्य के तहत औसत तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
  • वर्षण:
    वर्ष 2050 तक सभी उत्सर्जन परिदृश्यों में 8% से 19.3% तक की वृद्धि के साथ वार्षिक वर्षा में भारी वृद्धि दर्ज किये जाने की संभावना है।
  • आर्थिक प्रभाव:
    भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण चावल और गेहूँ की पैदावार में गिरावट आने से वर्ष 2050 तक 43 से 81 बिलियन यूरो (जीडीपी के 1.8-3.4%) के बीच आर्थिक नुकसान हो सकता है।
  • वर्ष 2050 तक कृषि के लिये पानी की मांग लगभग 29% बढ़ने की संभावना है, जिसका अर्थ है कि उपज के नुकसान को कम करके आँका जा सकता है।

• हीटवेब्स:
यदि भारत में उत्सर्जन (4 डिग्री सेल्सियस) अधिक होता है तो वर्ष 2036-2065 के बीच हीटवेब्स का प्रभाव 25 गुना अधिक रहेगा, वहीं वैश्विक तापमान वृद्धि लगभग 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित होने पर पाँच गुना अधिक और उत्सर्जन बहुत कम होने पर डेढ़ गुना अधिक समय तक इनका प्रभाव रहेगा और तापमान में वृद्धि केवल 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुँचेगी।

  • कृषिगत सूखा:
    4 डिग्री सेल्सियस वैश्विक तापन पर वर्ष 2036-2065 तक कृषि सूखा की बारंबारता 48% अधिक हो जाएगी।
  • बाढ़:
    यदि उत्सर्जन अधिक होता है तो 1.8 मिलियन से कम भारतीयों को वर्ष 2050 तक बाढ़ का खतरा हो सकता है, जो वर्तमान के 13 लाख की तुलना में अधिक है।
  • श्रम:
    गर्मी में वृद्धि के कारण वर्ष 2050 तक कम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत कुल श्रम 13.4% और मध्यम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत वर्ष 2080 तक 24% घटने की उम्मीद है।
  • खाद्य सुरक्षा:
    भारत में चावल और गेहूँ के उत्पादन में गिरावट से वर्ष 2050 तक 81 बिलियन यूरो तक का आर्थिक नुकसान हो सकता है तथा वर्ष 2100 तक किसानों की आय में 15% तक का नुकसान हो सकता है।

अपतटीय गश्ती पोत सार्थक

  • भारतीय तटरक्षक बल द्वारा एक अपतटीय गश्ती पोत (Offshore Patrol Vessel – OPV), भारतीय तटरक्षक पोत (ICGS) सार्थक (Sarthak) को गोवा में कमीशनिंग करके राष्ट्र को समर्पित किया गया है। *यह 2,450 टन की स्थापित क्षमता वाला 105 मीटर लंबा जहाज़ है जो 9,100 किलोवाट दो डीजल इंजन द्वारा संचालित है जिसे 26 समुद्री मील की अधिकतम गति प्राप्त करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • पाँच अपतटीय गश्ती पोत (OPV) की शृंखला में ‘सार्थक’ चौथे स्थान पर है जो राष्ट्र की समुद्री सुरक्षा और बचाव को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देगा।
  • OPVs लंबी दूरी के सतही जहाज़ हैं, जो भारत के समुद्री क्षेत्रों में संचालन में सक्षम हैं, जिसमें हेलीकॉप्टर संचालन क्षमता वाले द्वीप क्षेत्र भी शामिल हैं।
  • उनकी भूमिकाओं में तटीय और अपतटीय गश्त, भारत के समुद्री क्षेत्रों में पुलिसिंग, नियंत्रण और निगरानी, ​​तस्करी विरोधी और सीमित युद्धकालीन भूमिकाओं के साथ समुद्री डकैती विरोधी अभियान शामिल हैं।

• विकास:

  • इसे ‘मेक इन इंडिया’ दृष्टिकोण के अनुरूप मैसर्स ‘गोवा शिपयार्ड लिमिटेड’ (GSL) द्वारा स्वदेशी रूप से डिज़ाइन एवं निर्मित किया गया है।
  • इसमें लगभग 70% स्वदेशी उपकरण हैं, इस प्रकार यह भारतीय जहाज़ निर्माण उद्योग को आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान करता है और ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है।

•विशेषताएँ:

  • यह जहाज़ अत्याधुनिक नेवीगेशन एवं संचार उपकरण, सेंसर एवं मशीनरी से सुसज्जित है।
  • इस जहाज़ को ट्विन-इंजन हेलीकॉप्टर, चार उच्च गति वाली नौकाओं तथा स्विफ्ट बोर्डिंग एवं सर्च एंड रेस्क्यू ऑपरेशन के लिये एक इनफ्लैटेबल (Inflatable) नौका को ढोने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • यह जहाज़ समुद्र में तेल रिसाव प्रदूषण से निपटने के लिये ‘सीमित प्रदूषण प्रतिक्रिया उपकरण’ ले जाने में भी सक्षम है।

• उपयोगिता:

  • इस जहाज़ को राष्ट्र के समुद्री हितों की सुरक्षा के लिये तैनात किया गया है जिनमें अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone- EEZ) की निगरानी, ​​तटीय सुरक्षा और तटरक्षक चार्टर में निहित अन्य कर्त्तव्य शामिल हैं।

• अन्य OPV:

  • सजग
  • विग्रह
  • यार्ड 45006 वज्र
  • वराह

• भारतीय तटरक्षक बल (ICG):
यह रक्षा मंत्रालय के तहत एक सशस्त्र बल, खोज और बचाव तथा समुद्री कानून प्रवर्तन एजेंसी है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।

  • इसकी स्थापना अगस्त 1978 में तटरक्षक अधिनियम, 1978 द्वारा भारत के एक स्वतंत्र सशस्त्र बल के रूप में की गई थी।
  • ICG के गठन की अवधारणा वर्ष 1971 के युद्ध के बाद अस्तित्व में आई तथा रुस्तमजी समिति द्वारा एक बहु-आयामी तटरक्षक के लिये दूरदर्शी खाका तैयार किया गया था।
  • सन्निहित क्षेत्र और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone-EEZ) सहित भारत के क्षेत्रीय जल पर इसका अधिकार क्षेत्र है।
  • यह भारत के समुद्री क्षेत्रों में समुद्री पर्यावरण संरक्षण के लिये उत्तरदायी है तथा भारतीय जल क्षेत्र में तेल रिसाव की प्रतिक्रिया के लिये ​एक समन्वय प्राधिकारी के रूप में कार्य करता है।

CO2 का मीथेन में परिवर्तन

  • वैज्ञानिकों ने एक कार्बनिक पॉलिमर को इस तरह से डिज़ाइन किया है जो दृष्टिगोचर प्रकाश को अवशोषित करने और कार्बन डाइऑक्साइड न्‍यूनीकरण प्रतिक्रिया को उत्प्रेरित करने में भी सक्षम होगा।
  • अधिकांश उत्प्रेरकों में विषैले और महँगे धातु प्रतिरूप उपस्थित होते हैं। इसलिये वैज्ञानिकों ने इस कमी को दूर करने हेतु एक धातु मुक्त तथा संरंध्रयुक्त (Porous) कार्बनिक बहुलक तैयार किया है।
  • CO2 के न्यूनीकरण की यह प्रकाश-रासायनिक विधि ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत के रूप में सूर्य के प्रकाश का उपयोग करती है।
  • फोटोकेमिकल, इलेक्ट्रोकेमिकल, फोटोइलेक्ट्रोकेमिकल, फोटोथर्मल आदि सहित ऐसी कई विधियाँ हैं जिनमें कार्बन डाइऑक्साइड को कम किया जा सकता है।

• महत्त्व:

  • मीथेन के महत्त्वपूर्ण उपयोगों के साथ-साथ यह सबसे स्वच्छ ज्वलनशील जीवाश्म ईंधन के रूप में मूल्यवर्द्धित उत्पादों में से एक हो सकता है और सीधे हाइड्रोजन वाहक के रूप में ईंधन कोशिकाओं में उपयोग किया जा सकता है।
  • यह प्राकृतिक गैस का मुख्य घटक भी है और इसमें बिजली उत्पादन के लिये कोयले की जगह लेने और नवीकरणीय उत्पादकता को सुदृढ़ करने की आपूर्ति क्षमता है।

• मीथेन का पर्यावरणीय प्रभाव:

  • यह कार्बन की तुलना में 84 गुना अधिक शक्तिशाली है और टूटने के बाद वायुमंडल में अधिक समय तक नहीं रहता है।
  • यह एक खतरनाक वायु प्रदूषक, ज़मीनी स्तर पर ओज़ोन निर्माण हेतु ज़िम्मेदार है।

विकलांगता: चुनौती और अधिकार

  • नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा हवाई अड्डों पर दिव्यांगों के लिये पहुँच सुनिश्चित करने हेतु मसौदा मानदंड जारी किये गए हैं।
  • यह मसौदा ‘दिव्यांगजन अधिकार नियम, 2017’ का अनुसरण करता है, जिसके तहत सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को दिव्यांग व्यक्तियों हेतु पहुँच मानकों के लिये सामंजस्यपूर्ण दिशा-निर्देश तैयार करने की आवश्यकता है।
  • यह मसौदा उन विभिन्न बुनियादी ढाँचागत आवश्यकताओं का विवरण प्रदान करता है, जो एक हवाई अड्डे को दिव्यांग व्यक्तियों की सुविधा हेतु प्रदान करना चाहिये।
  • पिछले वर्ष राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा विकलांगता पर जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की लगभग 2.2% आबादी किसी-न-किसी तरह की शारीरिक या मानसिक अक्षमता से पीड़ित है।

• संवैधानिक प्रावधान:
* राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत के अंतर्गत अनुच्छेद-41 में कहा गया है कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता एवं विकास की सीमा के भीतर कार्य, शिक्षा व बेरोज़गारी, वृद्धावस्था, बीमारी तथा अक्षमता के मामलों में सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिये प्रभावी प्रावधान करेगा।

  • संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में ‘दिव्यांगों और बेरोज़गारों को राहत’ विषय निर्दिष्ट है।

• संबंधित पहलें:

  • विशिष्ट दिव्यांगता पहचान (UDID) पोर्टल
  • सुगम्य भारत अभियान
    *दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना
  • एडिप योजना
  • दिव्यांग छात्रों हेतु राष्ट्रीय फैलोशिप

ग्रीन डे-अहेड मार्केट

*केंद्रीय मंत्री (विद्युत, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा) ने ‘इंडियन एनर्जी एक्सचेंज’ के अंतर्गत एक नया बाज़ार खंड ‘ग्रीन डे-अहेड मार्केट’ (GDAM) लॉन्च किया है।

  • भारत दुनिया का एकमात्र बड़ा विद्युत बाज़ार है, जिसने विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा हेतु ‘ग्रीन डे अहेड मार्केट’ (जीडीएएम) प्रारंभ किया है। • इंडियन एनर्जी एक्सचेंज:
  • इंडियन एनर्जी एक्सचेंज भारत में पहला और सबसे बड़ा ‘एनर्जी एक्सचेंज’ है जो बिजली की भौतिक डिलीवरी, नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र और ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र के लिये एक राष्ट्रव्यापी, स्वचालित ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म प्रदान करता है।

• डे-अहेड मार्केट (DAM):
यह मध्यरात्रि से शुरू होने वाले अगले दिन के 24 घंटों में किसी भी/कुछ/पूर्ण समय के वितरण हेतु एक भौतिक बिजली व्यापार बाज़ार है।

• टर्म-अहेड मार्केट (TAM):
TAM के तहत 11 दिनों की अवधि के लिये बिजली खरीदने/बेचने हेतु अनुबंध किया जाता है।

  • यह प्रतिभागियों को ‘इंट्रा-डे’ अनुबंधों के माध्यम से उसी दिन हेतु तथा ‘डे-अहेड कांटिजेंसी’ के माध्यम से अगले दिन के लिये और इसी तरह दैनिक आधार पर दैनिक अनुबंधों के माध्यम से सात दिनों तक बिजली खरीदने में सक्षम बनाता है।

• प्रमुख बिंदु

* यह ‘डे-अहेड’ आधार पर नवीकरणीय ऊर्जा के व्यापार हेतु संचालित एक बाज़ार है।
  • नोडल एजेंसी के रूप में ‘नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर’ (NLDC), ‘पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (POSOCO) ने GDAM के शुभारंभ के लिये अपेक्षित प्रौद्योगिकियों और बुनियादी ढाँचे की स्थापना की है।
  • GDAM के साथ कोई भी नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन कंपनी एक्सचेंज पर नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापना और बिक्री कर सकती करेगा।

• GDAM की कार्यविधि:

  • यह पारंपरिक ‘डे-अहेड मार्केट’ के साथ एकीकृत तरीके से कार्य करेगा।
    यह एक्सचेंज अलग-अलग ‘बिडिंग विंडो’ के माध्यम से बाज़ार सहभागियों के लिये पारंपरिक और नवीकरणीय ऊर्जा दोनों हेतु एक साथ बिडिंग का प्रावधान प्रस्तुत करेगा।
  • अगर बाज़ार सहभागियों की ‘बिडिंग’ क्षमता हरित बाज़ार में ही समाप्त हो जाती है फिर भी यह तंत्र नवीकरणीय ऊर्जा विक्रेताओं को पारंपरिक खंड के अंतर्गत बिडिंग की अनुमति देगा।
  • पारंपरिक और नवीकरणीय दोनों के लिये अलग-अलग मूल्य निर्धारित किये जाएंगे।

• संभावित लाभ:

  • ‘ग्रीन मार्केट’ को मज़बूती:
    यह ‘ग्रीन मार्केट’ को मज़बूती प्रदान करेगा और प्रतिस्पर्द्धी मूल्य सुनिश्चित करेगा, साथ ही यह बाज़ार सहभागियों को सबसे पारदर्शी, लचीले, प्रतिस्पर्द्धी और कुशल तरीके से ‘ग्रीन ऊर्जा’ में व्यापार करने का अवसर प्रदान करेगा।

• नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि में तेज़ी लाना:
यह नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को बिजली विक्रय के साथ-साथ एक स्थायी एवं कुशल ऊर्जा अर्थव्यवस्था के रूप में भारत के दृष्टिकोण के प्रति नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि में तेज़ी लाने हेतु एक और विकल्प प्रदान करेगा।

  • वितरण कंपनियाँ अपने क्षेत्र में उत्पादित अधिशेष नवीकरणीय ऊर्जा को बेचने में भी सक्षम होंगी।
    PPA आधारित अनुबंध मॉडल से
    • बाज़ार आधारित मॉडल में रूपांतरण:
    यह एक ‘डोमिनो इफेक्ट’ उत्पन्न करेगा, जो धीरे-धीरे बिजली खरीद समझौतों (PPAs) आधारित अनुबंधों से बाज़ार-आधारित मॉडल में रुपांतरण की ओर ले जाएगा।
  • यह वर्ष 2030 तक 450 GW हरित ऊर्जा क्षमता के अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने हेतु भारत के लिये मार्ग प्रशस्त करेगा।

• हरित ऊर्जा की कटौती में कमी:
यह हरित ऊर्जा की कटौती को कम करेगा, अप्रयुक्त नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को अनलॉक करेगा और नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को तत्काल भुगतान सुनिश्चित करेगा।

• भारत में नवीकरणीय ऊर्जा:
भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उपभोक्ता है और नवीकरणीय स्रोतों से वर्ष 2020 में कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता का 38% (373 GW में से 136 GW) के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक भी है।

  • वर्ष 2016 में पेरिस समझौते के तहत भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 450 GW या अपनी कुल बिजली का 40% उत्पादन करने की प्रतिबद्धता जताई।
  • GDAM को ऐसे समय में प्रस्तुत किया गया है, जब देश कोयले की कमी से जूझ रहा है।
  • देश को जीवाश्म ईंधन के आयातित स्रोतों पर अपनी निर्भरता कम करने की ज़रूरत है।

• संबंधित पहलें:

  • राष्ट्रीय सौर मिशन (NSM)
  • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति और SATAT
  • लघु जल विद्युत (SHP)
  • राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (NHEM)
  • उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना
  • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति और SAYAY

कृषि उड़ान 2.0

  • केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ने हवाई मार्ग से कृषि उपज की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिये कृषि उड़ान 2.0 (Krishi UDAN 2.0) की शुरुआत की।
  • इसका उद्देश्य कृषि-उपज और हवाई परिवहन के बेहतर एकीकरण एवं अनुकूलन के माध्यम से उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त करने तथा विभिन्न व गतिशील परिस्थितियों में कृषि-मूल्य शृंखला में स्थिरता व लचीलापन लाने में योगदान देना है।
  • इससे पहले उड़ान दिवस (21 अक्तूबर) से पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने उड़ान योजना के तहत उत्तर-पूर्वी भारत की हवाई कनेक्टिविटी का विस्तार करते हुए 6 नए मार्गों को मंज़ूरी दी थी।
  • प्रमुख बिंदु:-
  • कृषि उत्पादों के परिवहन में किसानों की सहायता करने के उद्देश्य से अगस्त 2020 में अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय मार्गों पर कृषि उड़ान योजना शुरू की गई थी ताकि कृषि उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त किया जा सके।
  • कृषि उड़ान 2.0 पहाड़ी क्षेत्रों, पूर्वोत्तर राज्यों और आदिवासी क्षेत्रों में खराब होने वाले खाद्य उत्पादों (Perishable Food Products) के परिवहन पर ध्यान केंद्रित करेगा।
    इसे देश भर के 53 हवाई अड्डों पर मुख्य रूप से पूर्वोत्तर और आदिवासी क्षेत्रों पर केंद्रित किया जाएगा तथा इससे किसान, मालवाहकों एवं एयरलाइन कंपनियों को लाभ होने की संभावना है।
  • चुने गए हवाई अड्डे न केवल क्षेत्रीय घरेलू बाज़ारों तक पहुँच प्रदान करते हैं बल्कि उन्हें देश के अंतर्राष्ट्रीय गेटवे से भी जोड़ते हैं।

• मुख्य विशेषताएँ:

• शुल्क में छूट:
लैंडिंग, पार्किंग, टर्मिनल नेविगेशन और मार्ग नविगेशन सुविधा शुल्क (Route Navigation Facilities Charges- RNFC) में पूर्ण छूट प्रदान कर हवाई परिवहन द्वारा कृषि उत्पादों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाना और उसे प्रोत्साहित करना।

• हब एंड स्पोक मॉडल:
हब एंड स्पोक मॉडल और फ्रेट ग्रिड के विकास को सुगम बनाते हुए हवाई अड्डों के भीतर व बाहर माल ढुलाई से संबंधित बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना।

  • हब और स्पोक मॉडल एक वितरण पद्धति को संदर्भित करता है जिसमें एक केंद्रीकृत “हब” मौजूद होता है।

• संसाधन पूलिंग:
कनवर्ज़ेंस तंत्र की स्थापना के माध्यम से संसाधन पूलिंग अर्थात् अन्य सरकारी विभागों और नियामक निकायों के साथ करार करना।

  • यह कृषि उत्पादों के हवाई परिवहन को बढ़ाने के लिये मालवाहकों, एयरलाइंस और अन्य हितधारकों को प्रोत्साहन एवं रियायतें प्रदान करेगा।

• ई-कौशल:
कृषि उपज के परिवहन के संबंध में सभी हितधारकों को सूचना प्रसार की सुविधा उपलब्ध कराने के लिये ई-कुशल (सतत् समग्र कृषि-लॉजिस्टिक्स हेतु कृषि उड़ान) नामक एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी विकसित किया जाएगा।

  • मंत्रालय ने ई-कुशल को राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) के साथ जोड़ने का भी प्रस्ताव किया है।

• संभावित लाभ:

  • कृषि विकास के नए रास्ते:
    यह योजना कृषि क्षेत्र के विकास के लिये नए रास्ते खोलेगी और आपूर्ति शृंखला, रसद एवं कृषि उपज के परिवहन में बाधाओं को दूर कर किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगी।

• खाद्य अपशिष्ट को कम करना:
यह देश में कृषि खाद्य अपशिष्ट की बर्बादी की समस्या को हल करने में मदद करेगा।

• किसानों से संबंधित अन्य पहलें:

  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
  • ग्रीन इंडिया मिशन
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC)
  • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
  • बारानी क्षेत्र विकास (RAD)
  • कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF)
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र हेतु जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (MOVCDNER)

• कृषि और उड्डयन का अभिसरण:
दो क्षेत्रों (A2A – कृषि से विमानन) के बीच अभिसरण तीन प्राथमिक कारणों से संभव है:

  • भविष्य में विमानों के लिये जैव ईंधन का विकासवादी संभावित उपयोग।
  • कृषि क्षेत्र में ड्रोन का उपयोग।
    *कृषि उड़ान जैसी योजनाओं के माध्यम से कृषि उत्पादों का एकीकरण और अधिक मूल्य प्राप्त करना

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