अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC)
* अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court -ICC) हेग, नीदरलैंड में स्थित है। यह नरसंहार, युद्ध अपराधों तथा मानवता के खिलाफ अपराधों के अभियोजन के लिए अंतिम न्यायालय है।
- ICC पहला स्थायी, संधि आधारित अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय है, जिसकी स्थापना अंतरराष्ट्रीय समुदायों से संबधित गंभीर अपराधों को करने वाले अपराधियों पर मुकदमा चलाने तथा उन्हें सजा देने के लिए की गयी है • संरचना और मतदान शक्ति:-
- प्रत्येक सदस्य का एक वोट होता है तथा सर्वसम्मति से निर्णय लेने के लिए “हर संभव प्रयास” किया जाता है। किसी विषय पर सर्वसम्मति नहीं होने पर वोटिंग द्वारा निर्णय किया जाता है।
- ICC में एक अध्यक्ष तथा दो उपाध्यक्ष होते है, इनका चुनाव सदस्यों द्वारा तीन वर्ष के कार्यकाल के लिए किया जाता है।
आईसीसी की आलोचनाएँ:-
- यह संदिग्ध अपराधियों को गिरफ्तार करने में सक्षम नहीं है इसके लिए ICC को सदस्य राज्यों पर निर्भर होना पड़ता है।
- ICC के आलोचकों का तर्क है कि आईसीसी अभियोजक तथा न्यायाधीशों के अधिकार पर अपर्याप्त नियंत्रण और संतुलन हैं एवं अभियोगों के राजनीतिकरण होने के विरुद्ध अपर्याप्त प्रावधान है।
- ICC पर पूर्वाग्रह का आरोप लगाया जाता है और पश्चिमी साम्राज्यवाद का एक उपकरण होने के नाते, समृद्ध तथा शक्तिशाली देशों द्वारा किए गए अपराधों की अनदेखी करता है तथा छोटे और कमजोर देशों के नेताओं को दंडित करता है।
- ICC कई मामलों को राज्य सहयोग के बिना सफलतापूर्वक नहीं हल कर सकता है, इससे कई समस्याएं उत्पन्न होती है।
सरकारी उधारी
- सरकार, ‘दिनांकित प्रतिभूतियों’ और ‘ट्रेजरी बिलों’ के माध्यम से अपने वित्तीय घाटे को पूरा करने के लिए बाजार से धन जुटाती है।
- बजट में चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटा 8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था, जोकि वित्त वर्ष 2021 के लिए अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद के 9.5 प्रतिशत से कम है।
‘सरकारी उधारी’ क्या है?
- यह उधारी, सरकार द्वारा लिया गया एक ऋण होती है, जो बजट दस्तावेज में पूंजीगत प्राप्तियों के अंतर्गत आती है।
- सामान्यतः सरकार, सरकारी प्रतिभूतियों और ट्रेजरी बिल को जारी करके बाजार से ऋण लेती है। • बढ़ी हुई सरकारी उधारी सरकार के वित्त को कैसे प्रभावित करती है?
- सरकार के राजकोषीय घाटे के भारी बोझ, उसके पिछले कर्ज पर देय ब्याज के कारण होता है।
- यदि सरकार अनुमानित राशि से अधिक ऋण लेती है, तो इसकी ब्याज लागत भी अधिक होगी, जो अंततः राजकोषीय घाटे को प्रभावित करती है और सरकार के वित्त को हानि पहुंचाती है।
- बड़े उधारी कार्यक्रम के कारण सार्वजनिक ऋण में वृद्धि होती है और विशेष रूप से ऐसे समय में जब जीडीपी की वृद्धि दर नियंत्रित हो तो यह एक उच्च ऋण–जीडीपी अनुपात को दर्शाती है।
‘ऑफ-बजट ऋण’ क्या होता है?
- ‘बजटेतर ऋण / ऑफ-बजट ऋण’ (Off-budget borrowing), केंद्र सरकार के निर्देश पर किसी अन्य सार्वजनिक संस्थान द्वारा लिए गए ऋण होते हैं। इस प्रकार के ऋण सीधे केंद्र सरकार द्वारा नहीं लिए जाते हैं।
- इस प्रकार के ऋणों का उपयोग सरकार की व्यय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाता है।
- चूंकि, इन ऋणों की देयता जिम्मेवारी औपचारिक रूप से केंद्र पर नहीं होती है, इसलिए इन्हें राष्ट्रीय राजकोषीय घाटे में शामिल नहीं किया जाता है।
- इससे देश के राजकोषीय घाटे को एक स्वीकार्य सीमा के भीतर सीमित रखने में सहायता मिलती है।
आयुष्मान भारत राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन
मिशन की प्रमुख विशेषताऐं:
- ‘आयुष्मान भारत राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन’ एक डिजिटल स्वास्थ्य पारितंत्र है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक भारतीय नागरिक को एक यूनिक स्वास्थ्य पहचान पत्र दिया जायेगा जिसमे व्यक्ति के सभी डॉक्टरों के साथ-साथ नैदानिक परीक्षण और निर्धारित दवाओं का अंकीकृत स्वास्थ्य रिकॉर्ड (Digitised Health Records) सम्मिलित होगा।
- यह नई योजना आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत शुरू की जायेगी।
- इस योजना के छह प्रमुख घटक हैं – स्वास्थ्य पहचान पत्र (HealthID), डिजीडॉक्टर (DigiDoctor), स्वास्थ्य सुविधा रजिस्ट्री, व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड, ई-फार्मेसी और टेलीमेडिसिन।
देश में इस मिशन के डिजाइन, निर्माण, तथा कार्यान्वयन का दायित्व राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (National Health Authority) को सौंपा गया है। - मिशन के मुख्य घटकों, हेल्थ आईडी, डिजीडॉक्टर और स्वास्थ्य सुविधा रजिस्ट्री को भारत सरकार के स्वामित्व में रखा जाएगा तथा इनके संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी भी भारत सरकार की होगी।
- निजी साझेदारों को बाजार के लिए अपने उत्पादों का निर्माण करने व समन्वय करने के लिए समान अवसर दिया जाएगा। हालांकि, मुख्य गतिविधियों तथा सत्यापन प्रक्रिया का अधिकार केवल सरकार के पास रहेगा।
- राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के तहत, प्रत्येक भारतीय को एक हेल्थ आईडी कार्ड दिया जाएगा जो हेल्थ अकाउंट के रूप में कार्य करेगा जिसमें व्यक्ति की पिछली चिकित्सा स्थितियों, उपचार और निदान के बारे में भी जानकारी सम्मिलित होंगी।
- परामर्श हेतु अस्पताल जाने पर, नागरिक अपने डॉक्टरों और स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के लिए इस डेटा के अवलोकन की अनुमति दे सकेंगे।
स्वच्छ सर्वेक्षण 2021
- स्वच्छ सर्वेक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य 2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती पर शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान के प्रदर्शन की निगरानी करना है।
- इसका लक्ष्य भारत का सर्वाधिक स्वच्छ शहर बनने की दिशा में शहरों के मध्य स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना उत्पन्न करना है।
सातवें संस्करण के प्रमुख बिंदु:-
- ‘पहले जनता’ के मुख्य ‘दर्शन’ (Philosophy) के साथ तैयार किए गए स्वच्छ सर्वेक्षण, 2022 में शहरों में अग्रणी स्वच्छता कर्मचारियों के समग्र कल्याण और स्वास्थ्य पर केंद्रित पहलों को शामिल किया गया है।
- आजादी@75 की विषयवस्तु से जुड़े इस सर्वेक्षण में वरिष्ठ नागरिकों और युवाओं की बात को भी प्राथमिकता दी जाएगी और शहरी भारत की स्वच्छता को बनाए रखने की दिशा में उनकी भागीदारी को मजबूत बनाया जाएगा।
- स्वच्छ सर्वेक्षण 2022 में वैज्ञानिक संकेतकों को शामिल किया गया है, जो शहरी भारत के स्वच्छता के सफर में इन अग्रणी सैनिकों के लिए काम की स्थितियों और आजीविका के अवसरों में सुधार के लिए शहरों को प्रेरित करते हैं।
- यह सर्वेक्षण, शहरी भारत के स्मारकों और विरासत स्थलों को साफ करने के लिए नागरिकों को जिम्मेदारी लेने और पहल करने के लिए प्रेरित करके भारत की प्राचीन विरासत और संस्कृति की रक्षा करने के लिए तैयार है।
- इस वर्ष का सर्वेक्षण 15 हजार से कम और 15-25 हजार के बीच की जनसंख्या वाली दो श्रेणियों की शुरुआत के द्वारा छोटे शहरों को समान अवसर देने के लिए प्रतिबद्ध है।
- सर्वेक्षण के दायरे को बढ़ाने के लिए, पहली बार जिला रैकिंग शुरू कर दी गई है।
- सर्वेक्षण का विस्तार करते हुए अब इसमें नमूने के लिए 100 प्रतिशत वार्डों को शामिल कर लिया गया है, पिछले वर्षों में यह आंकड़ा 40 प्रतिशत था।
‘सरकार से सहायता प्राप्त करने का अधिकार’ और मौलिक अधिकार
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, किसी संस्थान को सरकारी सहायता दिया जाना नीतिगत मामला है, और ‘सरकार से सहायता प्राप्त करने का अधिकार’ मौलिक अधिकार नहीं है।
न्यायालय द्वारा की गई महत्वपूर्ण टिप्पणियां:-
- सहायता अनुदान के साथ कुछ शर्तें भी होती हैं, अनुदान प्राप्त करने वाला संस्थान जिनका पालन करने के लिए बाध्य होता है। यदि कोई संस्थान इन शर्तों को स्वीकार नहीं करना चाहता है, तो वह अनुदान को अस्वीकार कर सकता है लेकिन यह नहीं कह सकता कि अनुदान उसकी शर्तों पर दिया जाना चाहिए।
- सहायता प्रदान करने का निर्णय, नीतिगत निर्णय होता है। इस प्रकार के निर्णय करते समय, सरकार न केवल संस्थानों के हित, बल्कि इसका उपयोग किए जाने की क्षमता के बारे में विचार करती है।
- जहां तक ‘सहायता प्राप्त संस्थानों’ का संबंध है, अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यक के बीच कोई अंतर नहीं हो सकता है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 30, अनुदान के संबंध में यथोचित एवं तर्कसंगत होने का प्रतिबंध लगाता है।
अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के संबंध में संवैधानिक प्रावधान:-
- अनुच्छेद 30(1) भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को मान्यता देता है, लेकिन इसमें नस्ल, जातीयता पर आधारित अल्पसंख्यकों को मान्यता नहीं दी गयी है।
- इसमें, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के अधिकार को मान्यता दी गयी है, वास्तव में, अनुच्छेद 30(1), विशिष्ट संस्कृति के संरक्षण में शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका को मान्यता देता है।
- बहुसंख्यक समुदाय द्वारा भी शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन किया जा सकता है लेकिन इनके लिए अनुच्छेद 30(1)(a) के तहत विशेष अधिकार प्राप्त नहीं होंगे।
धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों को प्राप्त विशेष अधिकार:–
- अनुच्छेद 30(1)(a), के तहत, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों (MEI) को ‘शिक्षा का अधिकार’ मौलिक अधिकार के रूप में प्राप्त है। * यदि किसी कारणवश, किसी अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान की परिसंपत्तियों का राज्य द्वारा अधिग्रहण किया जाता है, तो संस्था को अन्यत्र स्थापित करने के लिए उचित मुआवजा प्रदान किया जाना चाहिए।
- अनुच्छेद 15(5) के तहत, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों (MEI) में आरक्षण संबंधी प्रावधान लागू नहीं होते हैं।
- ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ के तहत, ‘अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों’ को समाज के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित 25% नामांकन के तहत 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रवेश देने की आवश्यकता नहीं होती है।
- ‘सेंट स्टीफंस’ बनाम ‘दिल्ली विश्वविद्यालय’ मामले, 1992 में, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, ‘अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों’ में अल्पसंख्यकों के लिए 50% सीटें आरक्षित हो सकती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी
यूरोपीय संघ और अमेरिका द्वारा ईरान से ‘अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी’ (IAEA) के निरीक्षकों को एक परमाणु स्थल तक पहुंचने की अनुमति देने का आग्रह किया गया है। इस पर तेहरान का तर्क है, कि संयुक्त राष्ट्र प्रहरी ‘अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी’ के साथ हुए हाल के समझौते में इस ‘परमाणु स्थल’ को एजेंसी की निगरानी से छूट दी गई थी।
निहितार्थ / चिंताएं:-
- इस घोषणा के बाद, वर्ष 2015 के ईरान परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने के लिए छह प्रमुख शक्तियों और ईरान के बीच जारी वार्ता और जटिल हो सकती है।
- तीन साल पहले, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अमेरिका को समझौते से अलग करने और प्रतिबंधों को फिर से लागू करने के बाद से ईरान ने विश्व शक्तियों के साथ 2015 के समझौते की शर्तों को धीरे-धीरे तोड़ना शुरू कर दिया था।
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के बारे में:-
- अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की स्थापना, वर्ष 1957 में संयुक्त राष्ट्र संघ भीतर ‘वैश्विक शांति के लिए परमाणु’ (Atoms for Peace) के रूप की गयी थी।
- यह एक अंतरराष्ट्रीय स्वायत संगठन है।
- IAEA, संयुक्त राष्ट्र महासभा तथा सुरक्षा परिषद दोनों को रिपोर्ट करती है।
- इसका मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में स्थित है।
प्रमुख कार्य:-
- IAEA, अपने सदस्य देशों तथा विभिन्न भागीदारों के साथ मिलकर परमाणु प्रौद्योगिकियों के सुरक्षित, सुदृढ़ और शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है।
- इसका उद्देश्य परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना तथा परमाणु हथियारों सहित किसी भी सैन्य उद्देश्य के लिए इसके उपयोग को रोकना है।
वर्ष 2015 का परमाणु समझौता:-
- वर्ष 2015 में ईरान के द्वारा, विश्व के छह देशों (P5+1 समूह)– अमेरिका, चीन, रूस, ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी के साथ, अपने परमाणु कार्यक्रम पर एक दीर्घकालिक समझौते पर सहमति व्यक्त की गई थी।
- इस समझौते को ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (Joint Comprehensive Plan of Action- JCPOA) का नाम दिया गया और आम बोलचाल में इसे ‘ईरान परमाणु समझौता कहा जाता है।
- समझौते के तहत, ईरान, अपने ऊपर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने और वैश्विक व्यापार तक पहुंच प्रदान किए जाने के बदले में अपनी परमाणु गतिविधियों को सीमित करने पर सहमत हुआ था।
- इस समझौते के तहत, ईरान के लिए अनुसंधान कार्यों हेतु अल्प में यूरेनियम के भंडारण हेतु अनुमति दी गई किंतु रिएक्टर ईंधन और परमाणु हथियार बनाने में प्रयुक्त होने वाले, यूरेनियम के संवर्धन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
- ईरान को भारी पानी चालित रिएक्टर को फिर से डिजाइन करने के लिए कहा गया, क्योंकि, इसमें प्रयुक्त होने वाले ईधन के अपशिष्ट में बम निर्माण के लिए उपयुक्त ‘प्लूटोनियम’ का उत्सर्जन हो सकता है। इसके अलावा, ईरान से ‘अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण’ की अनुमति देने के लिए भी कहा गया था।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री का भाषण
- हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित किया।
- इस वर्ष के लिये यूएनजीए का विषय “कोविड-19 से उबरने की आशा के माध्यम से लचीले रुख का निर्माण, स्थायी रूप से पुनर्निर्माण, ग्रह की ज़रूरतों का जवाब देना, लोगों के अधिकारों का सम्मान करना और संयुक्त राष्ट्र को पुनर्जीवित करना” है।
- पीएम ने कोविड-19 महामारी, आतंकवाद के खतरे, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये भारत की कार्रवाई और महासागरों में नेविगेशन की स्वतंत्रता की रक्षा करने की आवश्यकता जैसे विषयों पर बात की।
प्रमुख बिंदु:-
- आतंकवाद का खतरा: विश्व प्रतिगामी सोच और उग्रवाद के बढ़ते खतरे का सामना कर रहा है तथा कई देश “आतंकवाद को एक राजनीतिक उपकरण के रूप में कर रहे हैं”।
- इन्होंने यूएनएससी प्रस्ताव 2593 का पालन करने पर भी ज़ोर दिया।
- भारत का महत्त्व: आज विश्व का हर छठा व्यक्ति भारतीय है। इस प्रकार जब भारतीय प्रगति करते हैं, तो विश्व के विकास को भी गति मिलती है।
- इन्होंने भारत को ‘लोकतंत्र की जननी’ माना और लोकतंत्र के माध्यम से कई सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
- भारत का विकासात्मक मॉडल: दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद का हवाला देते हुए भारत के विकास मॉडल में एक सर्व-समावेशी, सर्व-व्यापक और सार्वभौमिक दृष्टिकोण की परिकल्पना की गई है।
- कोविड-19 से निपटना: भारत ने विश्व का पहला डीएनए वैक्सीन विकसित कर लिया है। इसे 12 वर्ष से ऊपर के किसी भी व्यक्ति को लगाया जा सकता है।
- अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी संतुलन: भारत 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है।
- नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना: भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के विस्तारवाद पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि महासागर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की जीवन रेखा हैं और उन्हें विस्तार तथा बहिष्कार की दौड़ से संरक्षित किया जाना चाहिये।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के बारे में:-
- महासभा में संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व है, जो इसे सार्वभौमिक प्रतिनिधित्व वाला एकमात्र संयुक्त राष्ट्र निकाय बनाता है।
- प्रतिवर्ष सितंबर में संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों की वार्षिक महासभा का आयोजन न्यूयॉर्क के जनरल असेंबली में किया जाता है और इसमें सामान्य बहस होती है।
- महासभा में महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर निर्णय लेने, जैसे कि शांति एवं सुरक्षा, नए सदस्यों के प्रवेश तथा बजटीय मामलों के लिये दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
- अन्य प्रश्नों पर निर्णय साधारण बहुमत से लिया जाता है।
- महासभा के अध्यक्ष को प्रत्येक वर्ष महासभा द्वारा एक वर्ष के कार्यकाल के लिये चुना जाता है।
- मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद को वर्ष 2021-22 के लिये यूएनजीए के 76वें सत्र के लिये अध्यक्ष चुना गया है।
महाराष्ट्र में बहु-सदस्यीय वार्ड प्रणाली
हाल ही में, महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने मुंबई को छोड़कर राज्य के अन्य शहरी निकायों में बहु-सदस्यीय वार्ड (Multi-Member Wards) बनाए जाने की योजना को मंजूरी दी है।
इसके साथ ही, राज्य में मुंबई को छोड़कर, राज्य के अन्य सभी नगर निगमों और नगर परिषदों में हर वार्ड से कई पार्षदों या नगरसेवकों के चुनाव की प्रणाली वापस शुरू हो गयी है।
महाराष्ट्र में प्रस्तावित प्रावधान:
इस नई व्यवस्था में, नगर निगम क्षेत्र के प्रत्येक वार्ड में मतदाताओं द्वारा तीन सदस्यीय पैनल का चुनाव किया जाएगा।
नगर परिषद क्षेत्रों (Municipal Council Areas) में, मतदाता दो सदस्यों के पैनल का चुनाव करेंगे।
एकल सदस्यीय वार्ड प्रणाली में, एक मतदाता द्वारा केवल एक उम्मीदवार के लिए वोट दिया जाता है।
नई व्यवस्था में, वार्ड या पार्षदों की संख्या में कोई बदलाव नहीं होगा। वार्डों को केवल चुनाव के उद्देश्य से एक साथ समूहित किया जाएगा।
बहु-सदस्यीय वार्ड व्यवस्था की कार्यपद्धति
- किसी एक निर्दिष्ट बहु-सदस्यीय वार्ड में, एक ही पार्टी या गठबंधन से चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति, दो या तीन वार्डों में प्रचार करेंगे, हालांकि वे अपना नामांकन केवल अपने वार्डों से ही दाखिल करेंगे।
- निर्वाचित होने पर, प्रत्येक सदस्य केवल अपने वार्ड का ही प्रतिनिधित्व करेगा। हालांकि, मतदाता अपने स्वयं के वार्ड के साथ-साथ, बहु-सदस्यीय वार्ड में एक साथ शामिल किए गए अन्य वार्डों में भी उम्मीदवारों का चयन करने में सक्षम होंगे।
- हालांकि, बहु-सदस्यीय वार्ड प्रणाली में एक ही पार्टी/गठबंधन के उम्मीदवारों को “पैनल” कहा जाएगा, किंतु मतदाता वास्तव में एक पैनल का चयन करने की बजाय, अकेले उम्मीदवार का ही चयन करता है, और ये उम्मीदवार एक ही पार्टी या विभिन्न दलों से भी हो सकते हैं।
- मतदाता को केवल एक उम्मीदवार का चयन करने का भी अधिकार होता है। लेकिन इसके लिए मतदाता को बूथ के पीठासीन अधिकारी को लिखित में देना होगा। यह इस बात का दस्तावेजी सबूत होगा, कि यदि कोई पार्टी या उम्मीदवार, अदालत में यह सवाल करता है कि किसी उम्मीदवार को दूसरों की तुलना में कम वोट कैसे मिले।
बहु-सदस्यीय प्रणाली के लाभ:
- यह प्रणाली, किसी पार्टी या गठबंधन को अपनी सीटों को अधिकतम करने में मदद करने जैसी प्रतीत होती है।
- इस व्यवस्था में, कोई पार्टी, बहु-सदस्यीय वार्ड में कमजोर उम्मीदवारों को मजबूत उम्मीदवारों के साथ संतुलित कर सकती है।
- हालांकि, इस बात की कोई गारंटी नहीं होती है, लेकिन फिर भी उम्मीद की जाती है कि, सबसे मजबूत उम्मीदवार “पैनल” में दूसरों उम्मीदवारों के लिए जिताने में मदद कर सकता है।
संबंधित मुद्दे और चिंताएं:
- आमतौर पर, बहु-सदस्यीय वार्ड में कोई भी पार्षद दूसरे सदस्यों को ठीक से काम नहीं करने देता है और सभी सदस्य एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करते रहते हैं।
पीएम केयर्स
हाल ही में, केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित करते हुए कहा है, कि पीएम केयर्स (PM CARES) फंड “भारत सरकार का कोष नहीं है और इसकी राशि ‘भारत के समेकित कोष’ में शामिल नहीं की जाती है”।
पृष्ठभूमि:
केंद्र सरकार द्वारा यह हलफनामा, उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक याचिका के प्रत्युत्तर में दिया गया। उक्त याचिका में, PM CARES फंड को‘सूचना के अधिकार’ (RTI) अधिनियम के तहत ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ घोषित करने की मांग की गई थी।
सरकार द्वारा दिया गया जबाब:
- भले ही, ‘न्यास’ (Trust) भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 की व्याख्या के भीतर एक “राज्य” या अन्य ‘प्राधिकरण’ समझा जाता है, और यह सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 2[h], सामान्य रूप से अधिनियम की धारा 8 और उपबंध [e] और [j] में निहित प्रावधानों के तहत आता है, किंतु ‘सूचना का अधिकार अधिनियम’ के तहत, किसी तीसरे पक्ष की जानकारी का खुलासा करने की अनुमति नहीं है।
- और, पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, ट्रस्ट द्वारा प्राप्त धन के उपयोग के विवरण के साथ, एक ऑडिट रिपोर्ट ट्रस्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर जारी कर दी जाती है।
पीएम केयर्स फंड के बारे में:
- PM CARES फंड की स्थापना 27 मार्च 2020 को ‘पंजीकरण अधिनियम, 1908’ के तहत एक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में की गयी थी।
- यह विदेशी अंशदान से से प्राप्त दान का लाभ उठा सकता है और इस निधि में दिया जाने वाला दान 100% कर-मुक्त होता है।
- PM-CARES, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) से अलग है।
फंड का प्रबंधन कौन करता है?
प्रधानमंत्री, PM CARES फंड के पदेन अध्यक्ष और रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री, भारत सरकार निधि के पदेन न्यासी होते हैं।
निष्क्रिय राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग
- हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग ने पंजीकृत राजनीतिक दलों की अद्यतन सूची को अधिसूचित किया है, पंजीकृत राजनीतिक दल चुनाव नहीं लड़ने वाले दलों के पंजीकरण को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।
- देश में दो हज़ार से अधिक पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियांँ हैं। चुनाव आयोग ने आयकर छूट कानून का दुरुपयोग करने वाली ऐसी निष्क्रिय पार्टियों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की शक्ति की मांग की है।
पंजीकरण रद्द करने की शक्ति:-
- ECI के पास जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, (RPA) 1951 के तहत पार्टियों को पंजीकृत करने की शक्ति है, लेकिन निष्क्रिय पार्टियों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीं है।
- किसी पार्टी का पंजीकरण केवल तब रद्द किया जा सकता है जब उसने धोखाधड़ी से पंजीकरण किया हो, अगर इसे केंद्र सरकार द्वारा अवैध घोषित किया जाता है या कोई पार्टी अपने आंतरिक संविधान में संशोधन करती है और चुनाव आयोग को सूचित करती है कि वह अब भारतीय संविधान का पालन नहीं कर सकती है।
टीम रूद्रा
मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs )
डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या
अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर)
योगराज पटेल (VDO)-
अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )
प्रशांत यादव – प्रतियोगी –
कृष्ण कुमार (kvs -t )
अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)
मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)
अश्वनी सिंह – प्रतियोगी
सुरजीत गुप्ता – प्रतियोगी
प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।