26 June 2021 Current affairs

पीटर पैन सिंड्रोम (PPS)
(Peter Pan Syndrome)

चर्चा में क्यों?

● हाल ही में, एक नाबालिग बालिका का यौन शोषण करने के आरोपी व्यक्ति ने, मुंबई की एक विशेष अदालत में, खुद को ‘पीटर पैन सिंड्रोम’ से पीड़ित बताया और अदालत ने अंततः विभिन्न आधारों को देखते हुए आरोपी को जमानत दे दी।

पीटर पैन सिंड्रोम’ क्या है?

  • इस सिंड्रोम का नाम 19 सदी में रचित ‘पीटर पैन’ नामक एक काल्पनिक चरित्र के नाम पर रखा गया है। ‘पीटर पैन’ एक बेफिक्र एवं लापरवाह युवा लड़का है, जो कभी बड़ा नहीं होता है। यह चरित्र, एक स्कॉटिश उपन्यासकार ‘जेम्स मैथ्यू बैरी’ द्वारा रचा गया था।
  • जिन व्यक्तियों में इसी तरह की प्रवृत्तियाँ- जैसेकि लापरवाही भरा जीवन जीना, वयस्कता में चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारियों को ढूंढना, और मुख्यतः “कभी बड़े नहीं होना” – विकसित होने लगती हैं उन्हें ‘पीटर पैन सिंड्रोम’ से पीड़ित माना जाता हैं।
  • इस सिंड्रोम को WHO द्वारा ‘स्वास्थ्य विकार’ के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। .

संबंधित चिंताएं:

  • इसे “सामाजिक-मनोवैज्ञानिक दृग्विषय” (social-psychological phenomenon) के रूप में देखा जाता है।
  • यह किसी की दैनिक दिनचर्या, रिश्तों, कार्य-नैतिकता को प्रभावित कर सकता है और इसके परिणामस्वरूप अभिवृत्तिक परिवर्तन (attitudinal changes) हो सकते हैं।

इस सिंड्रोम का प्रभाव:

  • यह सिंड्रोम,उन लोगों को प्रभावित करता है जो बड़ा नहीं होना चाहते या बड़ा महसूस नहीं करते हैं, या जिनका शरीर वयस्क हो जाता है, लेकिन दिमाग एक बच्चे का ही रहता है।
  • इस सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति, यह नहीं समझ पाते या समझना ही नहीं चाहते हैं कि किस तरह से बड़ा बना जाए, और माता-पिता की भूमिका निभाई जाए। • यह सिंड्रोम, लैंगिक, प्रजाति, या संस्कृति की परवाह किए बगैर किसी को भी प्रभावित कर सकता है। हालाँकि, यह आमतौर पर पुरुषों में अधिक प्रतीत होता है।

कोविड-19 डेल्टा प्लस वेरिएंट

चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Union Ministry of Health and Family Welfare- MoHFW) ने लोगों को नए कोविड -19 स्ट्रेन ‘डेल्टा प्लस’ (Delta Plus- DP) को लेकर चेतावनी दी है।

ऐसी आशंका है कि यह नया वेरिएंट कोविड-19 की तीसरी लहर को भड़का सकता है।

परिचय:

  • डेल्टा प्लस (B.1.617.2.1/(AY.1), SARS-CoV-2 कोरोनावायरस का एक नया वेरिएंट है, जो वायरस के डेल्टा स्ट्रेन (B.1.617.2 वेरिएंट) में उत्परिवर्तन के कारण बना है। तकनीकी रूप में वास्तव में सार्स-सीओवी-2 (SARS-COV-2) की अगली पीढ़ी है।
  • डेल्टा के इस म्यूटेंट का पहली बार यूरोप में मार्च 2021 में पता चला था।
  • डेल्टा वेरिएंट पहली बार भारत में सर्वप्रथम फरवरी 2021 में पाया गया था जो अंततः पूरी दुनिया के लिये एक बड़ी समस्या बन गया। हालाँकि वर्तमान में डेल्टा प्लस वेरिएंट देश के छोटे क्षेत्रों तक सीमित है।
  • यह मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल (Monoclonal Antibodies Cocktail) के लिये प्रतिरोधी है। चूँकि यह एक नया वेरिएंट है इसलिये इसकी गंभीरता अभी भी अज्ञात है।
  • इसके लक्षण के रूप में लोगों में सिरदर्द, गले में खराश, नाक बहना और बुखार जैसी समस्याएँ देखी जा रही है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन इस वेरिएंट को अतिरिक्त उत्परिवर्तन के साथ गंभीरता से लेते हुये डेल्टा वेरिएंट के हिस्से के रूप में ट्रैक कर रहा है।

संक्रामिकता:

  • इस वेरिएंट ने K417N नामक स्पाइक प्रोटीन उत्परिवर्तन का अधिग्रहण किया है जो कि इसके पहले दक्षिण अफ्रीका में पहचाने गए बीटा वेरिएंट में भी पाया गया था।
  • स्पाइक प्रोटीन का उपयोग SARS-CoV-2 द्वारा किया जाता है, जो कोविड -19 वायरस का कारण बनता है तथा मेजबान कोशिकाओं में प्रवेश करता है।
  • कुछ वैज्ञानिकों को डर है कि डेल्टा वेरिएंट की अन्य मौजूदा विशेषताओं के साथ संयुक्त उत्परिवर्तन इसे और अधिक पारगम्य बना सकता है।

प्रमुख चिताएँ:

  • डेल्टा प्लस कोविड-19 उत्परिवर्तन के खिलाफ टीकों की प्रभावशीलता का परीक्षण करने के लिये भारत और विश्व स्तर पर कई अध्ययन चल रहे हैं।
  • भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि जिन क्षेत्रों में यह पाया गया है, उन्हें “निगरानी, ​​उन्नत परीक्षण, त्वरित संपर्क-अनुरेखण और प्राथमिकता टीकाकरण पर ध्यान केंद्रित करके अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया को बढ़ाने की आवश्यकता हो सकती है।”
  • हाल ही में मामलों में दुनिया के सबसे खराब उछाल से उभरने के बाद डेल्टा प्लस भारत पर संक्रमण की एक और लहर लाएगा ऐसी चिताएँ विद्यमान है।
  • अब तक केवल 4% से अधिक भारतीयों का संपूर्ण टीकाकरण किया गया है और लगभग 18% लोगों ने अब तक एक खुराक प्राप्त की है।

वायरस वेरिएंट (Virus Variant)

  • वायरस के वेरिएंट में एक या अधिक म्यूटेशन (mutations) होते हैं जो इसे अन्य वेरिएंट से प्रचलन में रहते हुये अलग करते हैं। अधिकांश उत्परिवर्तन वायरस के लिये हानिकारक होते हैं जबकि कुछ वायरस के लिये जीवित रहना आसान बनाते हैं।
  • SARS-CoV-2 (कोरोना) वायरस तेजी से विकसित हो रहा है क्योंकि इसने बड़े पैमाने पर दुनिया भर में लोगों को संक्रमित किया है। इसके परिसंचरण के उच्च स्तर का मतलब है कि वायरस में बदलाव आसान है क्योंकि यह तेजी से उत्परिवर्तन हेतु सक्षम है।
  • मूल महामारी वायरस (प्राथमिक संस्करण) Wu.Hu.1 (वुहान वायरस) था। इसके कुछ ही महीनों में वेरिएंट D614G उभरा और विश्व स्तर पर प्रभावी हो गया।
  • जीनोमिक्स पर भारतीय SARS-CoV-2 कंसोर्टियम (Indian SARS-CoV-2 Consortium on Genomics- INSACOG), SARS-CoV-2 में जीनोमिक विविधताओं की निगरानी के लिये एक बहु-प्रयोगशाला, बहु-एजेंसी एवं अखिल भारतीय नेटवर्क है।
  • इन्फ्लुएंजा से संबंधित सभी डेटा साझा करने पर वैश्विक पहल (Global Initiative on Sharing All Influenza Data- GISAID) विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) द्वारा वर्ष 2008 में देशों के जीनोम अनुक्रम साझा करने के लिये शुरू किया गया एक सार्वजनिक मंच है।
  • GISAID सभी प्रकार के इन्फ्लूएंजा वायरस अनुक्रमों, मानव वायरस से संबंधित नैदानिक ​​​​और महामारी विज्ञान डेटा और भौगोलिक तथा साथ ही एवियन एवं अन्य पशु वायरस से जुड़े प्रजातियों-विशिष्ट डेटा के अंतर्राष्ट्रीय साझाकरण को बढ़ावा देती है।

2020 में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन लागत : IRENA

प्रमुख बिंदु

  • दुनिया में मौजूदा कोयले से चलने वाले संयंत्रों की कुल वैश्विक ऊर्जा क्षमता 38% है। इनकी लागत फोटोवोल्टिक और तटवर्ती पवन ऊर्जा की तुलना में अधिक है।
  • G-20 देशों में जीवाश्म ईंधन से बिजली उत्पादन की लागत सीमा 0.0550148 अमेरिकी डॉलर प्रति किलो वाट घंटा ( KWH) के बीच का अनुमान है।
  • कोयले को स्थानांतरित करने से ऑपरेटरों को प्रतिवर्ष 32 बिलियन डालर की बचत होगी और वार्षिक कार्बन डाइऑक्साइड में लगभग 3 बिलियन टन की कमी आएगी।
  • वर्ष 2019 में उभरते और विकासशील देशों द्वारा अपनाई गई नवीकरणीय क्षमताओं से पारंपरिक स्रोत की तुलना में प्रति वर्ष 6 बिलियन अमेरिकी डालर की बचत होगी।

वर्ष 2020 में नवीकरण ऊर्जा में वृद्धि

  • कोविड-19 महामारी के बावजूद वर्ष 2020 में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना के लिए 261GW क्षमता स्थापित होने का रिकॉर्ड रहा है। यह वृद्धि वर्ष 2019 की तुलना में लगभग 50% अधिक थी और इसने वैश्विक नवीन ऊर्जा क्षमता के 82% का प्रतिनिधित्व किया।
  • वर्ष 2020 में संकलित किए गए स्रोतों से ऊर्जा की आपूर्ति का क्रम।
  • जियोथर्मल ऊर्जा > फोटोवोल्टिक ऊर्जा > पवन ऊर्जा > जल विद्युत ऊर्जा > बायो ऊर्जा > सौर ऊर्जा को केंद्रित करना।

वृद्धि के कारण

  • वर्ष 2000-2020 के बीच नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 3 गुना से अधिक बढ़ी है तथा यह 754 GW से बढ़कर 2799 GW हो गई है।
  • लगभग 10 वर्षों ( 2010 -2020) में वाणिज्यिक सौर पीवी से उत्पादित बिजली की लागत में 85% सीएसपी में 68%, तटवर्ती पवन में 68% और अपतटीय पवन में 48% तक की कमी आई है।

अंतरराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी ( IRENA)

  • सदस्य देश – 164, भारत 77वां संस्थापक देश
  • मुख्यालय – अबू धाबी ( UAE)
  • यह एक स्थाई उर्जा भविष्य के लिए अपने सदस्य देशों को उनके ट्रांजिशन में मदद करता है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए प्रमुख मंच नवीकरणीय ऊर्जा पर नीति प्रौद्योगिकी, संसाधन तथा द्वितीय ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करता है।
  • यह सतत विकास, उर्जा पहुंच, ऊर्जा सुरक्षा और निम्न कार्बन आर्थिक विकास एवं समृद्धि सुनिश्चित करने हेतु जैव ऊर्जा, भूतापीय, जल विद्युत सागर शहर एवं पवन ऊर्जा सहित नवीकरणीय ऊर्जा के सभी रूप को अपनाने और सतत उपयोग को बढ़ावा देने का भी कार्य करता है।

टॉयकथान -2021

चर्चा में क्यों
हाल ही में प्रधानमंत्री ने टॉयकथान 2021 में ” vacal for local toys” को बढ़ावा देने के लिए प्रतिभागियों से बातचीत की।

प्रमुख बिंदु
• इसे 5 जनवरी 2021 को लांच किया गया।

उद्देश्य

  • भारतीय मूल्य प्रणाली के आधार पर नए खिलौनों की अवधारणा का विकास।
  • बच्चों में मूल्य व सकारात्मक व्यवहार को बढ़ावा देना।
  • MSME क्षेत्र को मजबूती प्रदान करना।
  • आत्मनिर्भर खिलौना विनिर्माण क्षेत्र।
  • भारतीय संस्कृति तथा स्थानीय लोक कलाओं को बढ़ावा देना।

थीम – इसमें फिटनेस, खेल, पारंपरिक भारतीय खिलौनों के प्रदर्शन सहित नौ थीम हैं।

लाभ

  • एक भारत श्रेष्ठ भारत की अवधारणा को बढ़ावा।
  • रोजगार को बढ़ावा।
  • व्यक्तिगत आय में बढ़ोतरी।
  • विदेशी मुद्रा कोष को बढ़ाना ( क्योंकि भारत 80% आयात विदेशों से करता है)

आगे की राह

  • खिलौना आधारित उद्योग परिस्थितिक तंत्र को बढ़ावा।
  • नये स्टार्ट-अप को ऋण/पुजी उपलब्ध कराना।
  • छोटे-छोटे skill development केंद्र को खोलना।
  • खिलौना उत्पादों की बाजार पहुंच आसान बनाना।

चंद्रयान -2

चर्चा में क्यों
चंद्रमा के ऊपर चक्कर काट रहे chandrayaan-2 को सूर्य की अत्यधिक गर्म सबसे वाह्य परतं ‘कोरोना’ के विषय में नई जानकारी का पता चला है।

प्रमुख बिंदु

  • सौर कोरोना में मैग्नीशियम, एलुमिनियम और सिलिकॉन की प्रचुर मात्रा।
  • लगभग 100 सूक्ष्म सौर लपटों का परीक्षण किया गया, जिससे कोरोना द्रव्यमान के गर्म होने के बारे में नई अंतर्दृष्टि मिलती है।
  • कोरोना से पराबैंगनी किरणों तथा एक्स-रे का उत्सर्जन होता था और यह 2 मिलियन डिग्री फारेनहाइट से अधिक तापमान पर आयनित गैसों से निर्मित हुआ है।
  • chandrayaan-2, वर्ष 2019 में चंद्रमा के अंधेरे भाग पर हार्ड लैंडिंग करने के बाद से chandrayaan-2 मिशन से संपर्क टूट गया था परंतु इसका आर्बिटर सक्रिय है।
  • इस मिशन का उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सॉफ्टलैंड करने और सतह पर रोबोटिक रोवर को संचालित करने की क्षमता का प्रदर्शन करना था।

अंटार्कटिक संधि

• शीत युद्ध के दौरान, अंटार्कटिक में अपना हित रखने वाले 12 देशों द्वारा इस संधि को हस्ताक्षरित की गई थी।

प्रासंगिकता

  • हालांकि, 1950 के दशक की तुलना में 2020 के दशक में परिस्थितियां मौलिक रूप से भिन्न है, फिर भी अंटार्कटिक संधि कई चुनौतियों का सफलतापूर्वक जवाब देने में सक्षम है।
  • कुछ वैज्ञानिक संसाधन विशेषकर तेल, काफी दुर्लभ होते जा रहे हैं।
  • परिणाम स्वरूप, भविष्य में किसी समय अंटार्कटिक में खनन की संभावनाओं पर अधिक ध्यान दिया जाएगा।

अंटार्कटिक संधि के बारे में

  • अंटार्कटिक महाद्वीप केवल वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए संरक्षित करने एवं अधिकृत क्षेत्र बनाए रखने हेतु दिसंबर 1959 को वाशिंगटन में 12 देशों ने संधि पर हस्ताक्षर किए थे।
  • यह देश अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, चिल्ली, फ्रांस, जापान, न्यू जीलैंड, नार्वे, दक्षिण अफ्रीका सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ ,ब्रिटेन और यूएसए शामिल है।
  • यह संधि 1961 में लागू हुई और वर्तमान में इस में 54 देश शामिल है। भारत, वर्ष 1983 में संधि का सदस्य बना था।
  • मुख्यालय – ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना

संधि के प्रमुख प्रावधान

  1. अंटार्कटिका का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए किया जाएगा ( अनुच्छेद -I)
  2. अंटार्कटिका में वैज्ञानिक शोध की स्वतंत्रता और इस दिशा में सहयोग जारी रहेगा ( अनुच्छेद – II)
  3. अंटार्कटिक से वैज्ञानिक प्रक्षेपण और परिणामों का आदान प्रदान किया जाएगा और उन्हें स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराया जाएगा ( अनुच्छेद-III)
  4. अनुच्छेद -IV के द्वारा, क्षेत्रीय संप्रभुता को निष्प्रभावी रहेगी अर्थात किसी देश द्वारा इस पर कोई नया दावा करने या मौजूदा दावे का विस्तार नहीं किया जाएगा।
  5. इस संधि के द्वारा किसी भी देश द्वारा इस महाद्वीप के दावे पर रोक लगा दी गई है।

अंटार्कटिक संधि प्रणाली

  • अंटार्कटिक महाद्वीप को लेकर वर्षों से विवाद उत्पन्न होते रहते हैं, लेकिन विभिन्न समझौते और संधि के फ्रेमवर्क में विस्तार के माध्यम से अधिकांश विवादों को हल किया गया है।

 टीम रूद्रा

मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs ) 

अभिनव आनंद (डायट प्रवक्ता) 

डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या 

अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर) 

योगराज पटेल (VDO)- 

अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )

प्रशांत यादव – प्रतियोगी – 

कृष्ण कुमार (kvs -t ) 

अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)

 मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)

अश्वनी सिंह – प्रतियोगी

प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।

Leave a Reply