वाणिज्यिक जहाज़ों को बढ़ावा देने हेतु सब्सिडी योजना
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरकारी कार्गो के आयात के लिये मंत्रालयों और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) द्वारा जारी वैश्विक निविदाओं में भारतीय पोत परिवहन (Shipping) कंपनियों को सब्सिडी सहायता प्रदान करने की एक योजना को मंज़ूरी दी है।
यह योजना पाँच वर्षों के दौरान 1624 करोड़ रुपए की सब्सिडी प्रदान करेगी।
योजना की मुख्य विशेषताएँ:
- यह योजना फ्लैगिंग (ध्वजांकन) में वृद्धि की परिकल्पना करती है तथा भारतीय जहाज़रानी क्षेत्र में निवेश के लिये भारतीय कार्गो तक पहुँच प्रदान करेगी।
- फ्लैगिंग का तात्पर्य राष्ट्रीय पंजीकरण द्वारा एक पोत को शामिल करने की प्रक्रिया से है तथा “फ्लैगिंग आउट” राष्ट्रीय पंजीकरण के माध्यम से एक पोत को हटाने/अलग करने की प्रक्रिया है।
- सब्सिडी समर्थन एक विदेशी शिपिंग कंपनी द्वारा न्यूनतम बोली के 5% से 15% तक भिन्न होता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि जहाज़ को 1 फरवरी, 2021 के बाद या उससे पहले ध्वजांकित/फ्लैगिंग किया गया था।
- हालाँकि पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के अनुसार, 20 वर्ष से अधिक पुराने जहाज़ इस योजना के तहत पात्र नहीं होंगे।
योजना का औचित्य:
- भारतीय नौवहन उद्योग का लघु आकार: 7,500 किलोमीटर लंबा समुद्र तट, महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय आयात-निर्यात (EXIM) व्यापार जो सालाना आधार पर लगातार बढ़ रहा है, वर्ष 1997 के बाद से पोत परिवहन में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की नीति के बावजूद भारतीय पोत परिवहन उद्योग और भारत का राष्ट्रीय बेड़ा अपने वैश्विक समकक्षों की तुलना में काफी छोटा है।
- वर्तमान में भारतीय बेड़े की क्षमता के लिहाज से वैश्विक बेड़े में इसकी हिस्सेदारी मात्र 1.2% है।
- भारत के ‘आयत-निर्यात (एक्जिम) व्यापार’ की ढुलाई में भारतीय जहाज़ों की हिस्सेदारी 1987-88 के 40. 7% से घटकर 2018-19 में लगभग 7.8% रह गई है।
उच्च परिचालन लागतों की भरपाई
- वर्तमान में भारतीय शिपिंग उद्योग अपेक्षाकृत अधिक परिचालन लागत वहन करता है, इसके प्रमुख कारकों में ऋण निधि की उच्च लागत, भारतीय नाविकों के वेतन पर कराधान, जहाज़ों के आयात पर IGST, जीएसटी में निर्बाध इनपुट टैक्स क्रेडिट तंत्र आदि शामिल हैं।
- इस संदर्भ में इन उच्च परिचालन लागतों का सब्सिडी सहायता के माध्यम से समर्थन किया जाएगा तथा यह भारत में वाणिज्यिक जहाज़ों को ध्वजांकित करने के लिये अधिक आकर्षित करेगा।
विदेशी मुद्रा व्यय में वृद्धि: उच्च परिचालन लागत के कारण एक भारतीय चार्टरर (अथवा मालवाहक) के माध्यम से शिपिंग सेवाओं का आयात किसी स्थानीय शिपिंग कंपनी की सेवाओं को अनुबंधित करने की तुलना में सस्ता होता है।
परिणामस्वरूप विदेशी पोत परिवहन कंपनियों को किये जाने वाले ‘माल ढुलाई बिल भुगतान’ के मद में विदेशी मुद्रा व्यय में वृद्धि हुई है।
योजना का महत्त्व:
- रोज़गार सृजन की क्षमता: भारतीय बेड़े में वृद्धि से भारतीय नाविकों को प्रत्यक्ष रोज़गार मिलेगा क्योंकि भारतीय जहाज़ों को केवल भारतीय नाविकों को नियुक्त करना आवश्यक होता है।
- इसके अतिरिक्त नाविक बनने के इच्छुक कैडेट्स को जहाज़ों पर ऑन-बोर्ड प्रशिक्षण प्राप्त करना आवश्यक होता है। भारतीय जहाज़, युवा भारतीय कैडेट लड़कों और लड़कियों को प्रशिक्षण के लिये स्लॉट उपलब्ध कराएंगे।
- सामरिक लाभ: भारतीय शिपिंग उद्योग के विकास को बढ़ावा देने के लिये एक नीति भी आवश्यक है क्योंकि एक व्यापक राष्ट्रीय बेड़ा होने से भारत को आर्थिक वाणिज्यिक और सामरिक लाभ मिलेगा।
- आर्थिक लाभ: एक मज़बूत और विविध स्वदेशी शिपिंग बेड़े से न केवल विदेशी शिपिंग कंपनियों को किये जाने वाले माल ढुलाई बिल भुगतान में विदेशी मुद्रा की बचत होगी, बल्कि महत्त्वपूर्ण कार्गो के परिवहन हेतु विदेशी जहाज़ों पर भारत की अत्यधिक निर्भरता भी कम होगी।
- इस प्रकार यह आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्य को प्राप्त करने के साथ ही भारतीय जीडीपी में योगदान करने में मदद करेगा।
नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन
चर्चा में क्यों
हाल ही में अमेरिका ने ‘जर्मनी-रूस नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन’ (NS2P) परियोजना को मंज़ूरी दी है, जिससे रूस पर यूरोप की ऊर्जा निर्भरता काफी बढ़ जाएगी।
- अमेरिका ने इससे पूर्व रूस और जर्मनी के बीच इस गैस पाइपलाइन को पूरा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- यह 1,200 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन है, जो रूस में उस्त-लुगा से जर्मनी में ग्रीफ्सवाल्ड तक बाल्टिक सागर के रास्ते होकर गुज़रती है। इसमें प्रतिवर्ष 55 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस ले जाने की क्षमता होगी।
- इस पाइपलाइन को बनाने का निर्णय वर्ष 2015 में लिया गया था।
- ‘नॉर्ड स्ट्रीम 1 सिस्टम’ को पहले ही पूरा किया जा चुका है और ‘नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन’ के साथ मिलकर यह जर्मनी को प्रतिवर्ष 110 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस की आपूर्ति करेगा।
प्रभाव
रूस पर यूरोपीय संघ की निर्भरता-
यह प्राकृतिक गैस के लिये रूस पर यूरोप की निर्भरता को और अधिक बढ़ाएगा, जबकि वर्तमान में यूरोपीय संघ के देश पहले से ही अपनी 40% गैस संबंधी आवश्यकताओं के लिये रूस पर निर्भर हैं।
यूक्रेन पर नकारात्मक प्रभाव–
रूस और यूरोप के बीच एक मौजूदा पाइपलाइन है, जो कि यूक्रेन से होकर गुज़रती है, किंतु ‘नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन’ परियोजना पूरी हो जाने के बाद यह यूक्रेन को बायपास कर देगी और इसके कारण यूक्रेन को प्रति वर्ष लगभग 3 बिलियन डॉलर के महत्त्वपूर्ण पारगमन शुल्क का नुकसान होगा।
रूस के लिये भू-राजनीतिक जीत-
यह रूस के लिये एक भू-राजनीतिक जीत और संयुक्त राज्य अमेरिका तथा उसके सहयोगियों के लिये परेशानी का सबब हो सकती है।
उच्च न्यायालयों में न्यायिक नियुक्ति
चर्चा में क्यों
हाल ही में कानून और न्यायमंत्री ने राज्यसभा को विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में जानकारी दी।
प्रमुख बिंदु
- संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश, राज्य के राज्यपाल के परामर्श की जाएगी।
- संविधान के अनुच्छेद 224a के अंतर्गत सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रावधान है। हाल में उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय में लंबित मामलों से निपटने हेतु सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति पर जोर दिया है।
कॉलेजियम व्यवस्था
- यह न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रणाली है जो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
- वर्ष 1988 के अनुसार राष्ट्रपति को दिया गया परामर्श बहुसंख्यक न्यायाधीशों का परामर्श माना जाएगा इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा चार अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश होते हैं।
शामिल मुद्दे
- बोझिल प्रक्रिया
- पारदर्शिता का अभाव
- अनुचित प्रतिनिधित्व
- उच्च न्यायालय में रिक्तियां
- लंबित मामले
सुधार के प्रयास
- 99वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम 2014 के माध्यम से कालेजियम को वर्ष 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग द्वारा प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया परंतु उच्च न्यायालय इसे मूल ढांचे के खिलाफ बताया।
भारत में निगरानी कानून और गोपनीयता
चर्चा में क्यों
हाल ही में पेशासस नामक स्पाइवेयर के प्रयोग द्वारा भारत में लगभग 300 व्यक्तियों की निगरानी की संभावित सूचना चर्चा में रही।
भारत में संचार निगरानी मुख्य रूप से 2 कानूनों के तहत होती है।
- टेलीग्राफ अधिनियम 1950
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000
- टेलीग्राफ अधिनियम, राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए कॉल की इंटरसेप्ट कर सकती हैं, वही IT act-200 सभी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक संचार से निपटने के लिए अधिनियमित किया गया जिसका एकमात्र शर्त अपराध की जांच करना है।
निगरानी से संबंधित मुद्दे
- कानून में खामियां centre for internet and society के अनुसार विधिक अंतराल निगरानी को अनुमति देता है तथा गोपनीयता को प्रभावित करता है।
- मौलिक अधिकारों का हनन अनुच्छेद 19 तथा 21
- अधिनायक वादी शासन
- लोकतांत्रिक शासन के विरुद्ध
- प्रेस की स्वतंत्रता की खतरा।
आगे की राह
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पब्लिक यूनियन फॉर सिविल सर्विसेज बनाम भारत संघ 1996 के निर्णय को पूर्णता लागू बनाना।
- निगरानी व्यवस्था को मजबूत कर नैतिकता को शामिल करना।
- व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक पर समग्र बहस की आवश्यकता है।
आवश्यक सेवा रक्षा विधेयक 2021
- यह विधेयक आवश्यक सेवा रक्षाओ में शामिल कर्मियों के हड़ताल करने किसी भी प्रकार के विरुद्ध प्रदर्शन पर रोक लगाता है।
- उल्लेखनीय है कि हड़ताल का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) के अंतर्गत संरक्षित है। हालांकि 1958 में सर्वोच्च न्यायालय में कामेश्वर प्रसाद बनाम बिहार राज्य मामले में हड़ताल के मौलिक अधिकार के दर्जे को समाप्त कर दिया।
- हम जानते हैं कि सरकारी कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने की कोई कानूनी एवं नैतिक अधिकार नहीं है।
- हालांकि औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के अंतर्गत हड़ताल को एक वैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त की गई है।
टीम रूद्रा
मुख्य मेंटर – वीरेेस वर्मा (T.O-2016 pcs )
अभिनव आनंद (डायट प्रवक्ता)
डॉ० संत लाल (अस्सिटेंट प्रोफेसर-भूगोल विभाग साकेत पीजी कॉलेज अयोघ्या
अनिल वर्मा (अस्सिटेंट प्रोफेसर)
योगराज पटेल (VDO)-
अभिषेक कुमार वर्मा ( FSO , PCS- 2019 )
प्रशांत यादव – प्रतियोगी –
कृष्ण कुमार (kvs -t )
अमर पाल वर्मा (kvs-t ,रिसर्च स्कॉलर)
मेंस विजन – आनंद यादव (प्रतियोगी ,रिसर्च स्कॉलर)
अश्वनी सिंह – प्रतियोगी
प्रिलिम्स फैक्ट विशेष सहयोग- एम .ए भूगोल विभाग (मर्यादा पुरुषोत्तम डिग्री कॉलेज मऊ) ।