अव्ययीभाव समास
परिभाषा
इस समास में पहला या पूर्वपद अव्यय होता है और उसका अर्थ प्रधान होता है। अव्यय के संयोग से समस्तपद भी अव्यय बन जाता है। इसमें पूर्वपद प्रधान होता है।
अव्यय क्या होते है?
जिन शब्दों पर लिंग, कारक, काल आदि से भी कोई प्रभाव न पड़े अर्थात जो अपरिवर्तित रहें, वे शब्द अव्यय कहलाते हैं।
- अव्ययीभाव समास के पहले पद में अनु, आ, प्रति, यथा, भर, हर आदि आते है।
अव्ययीभाव समास के उदाहरण
- आजन्म: जन्म से लेकर
- यथामति : मति के अनुसार
- प्रतिदिन : दिन-दिन
- यथाशक्ति : शक्ति के अनुसार
- अनजाने : बिना जाने
- घर-घर : प्रत्येक घर
- निस्संदेह : संदेह रहित
- प्रत्यक्ष : आँखों के सामने
- बेखटके : बिना खटके
- यथासमय : समय के अनुसार
- यथारुचि : रूचि के अनुसार
- प्रतिवर्ष : प्रत्येक वर्ष
- प्रतिसप्ताह : प्रत्येक सप्ताह
- यथाक्रम : क्रम के अनुसार
- यथानाम : नाम के अनुसार
- प्रतिपल : पल-पल
- प्रत्येक : हर एक
- आजीवन : जीवन भर
- आमरण : मृत्यु तक
- निडर : बिना डर के
- हरघडी : घडी-घडी
- प्रतिमास : प्रत्येक मास
- हाथों हाथ : एक हाथ से दुसरे हाथ
- सहसा : एक दम से
- अकारण : बिना कारण के
- धड़ाधड़ : जल्दी से
- बेरहम : बिना रहम के
- बकायदा : कायदे के साथ
- बेकाम : बिना काम का
- अध्यात्म : आत्मा से सम्बंधित
- निस्संदेह : बिना संदेह के
- बेशक : बिना शक के
- बेनाम : बिना नाम के
- बेकाम : बिना काम के
- बेलगाम : लगाम के बिना
- भरपेट : पेट भर कर
- भरपूर : पूरा भर के
- रातभर : पूरी रात
- दिनभर : पूरे दिन
- रातोंरात : रात ही रात में
- हाथोंहाथ : एक हाथ से दुसरे हाथ में
- घडी-घडी :हर घडी
- साफ़-साफ़ : बिलकुल स्पष्ट
तत्पुरुष समास
परिभाषा
जिसका उत्तरपद प्रधान होता है, अर्थात प्रथम पद गौण होता है एवं उत्तर पद की प्रधानता होती है व समास करते वक़्त बीच की विभक्ति का लोप हो जाता है।
- इस समास में आने वाले कारक चिन्हों को, से, के लिए, से, का/के/की, में, पर आदि का लोप होता है।
- मूर्ति को बनाने वाला — मूर्तिकार
- काल को जीतने वाला — कालजयी
- राजा को धोखा देने वाला — राजद्रोही
- खुद को मारने वाला — आत्मघाती
- मांस को खाने वाला — मांसाहारी
- शाक को खाने वाला — शाकाहारी
तत्पुरुष समास के भेद
कारक चिन्हों के अनुसार इस समास के छः भेद हो जाते है।
- कर्म तत्पुरुष समास
- करण तत्पुरुष समास
- सम्प्रदान तत्पुरुष समास
- अपादान तत्पुरुष समास
- सम्बन्ध तत्पुरुष समास
- अधिकरण तत्पुरुष समास
1. कर्म तत्पुरुष समास :
यह समास ‘को’ चिन्ह के लोप से बनता है।
- ग्रामगत : ग्राम को गया हुआ।
- यशप्राप्त : यश को प्राप्त।
- स्वर्गगत : स्वर्ग को गया हुआ।
- ग्रंथकार : ग्रन्थ को लिखने वाला।
- माखनचोर : माखन को चुराने वाला।
- सम्मानप्राप्त : सम्मान को प्राप्त
- परलोकगमन : परलोक को गमन।
- शरणागत : शरण को आया हुआ।
- आशातीत : आशा को लाँघकर गया हुआ।
- सिरतोड़ : सिर को तोड़ने वाला।
- गगनचुम्बी : गगन को चूमने वाला।
- रथचालक : रथ को चलाने वाला।
- जेबकतरा : जेब को कतरने वाला।
2. करण तत्पुरुष समास :
यह समास दो कारक चिन्हों ‘से’ और ‘के द्वारा’ के लोप से बनता है। जैसे:
- करुणापूर्ण : करुणा से पूर्ण
- शोकाकुल : शौक से आकुल
- वाल्मीकिरचित : वाल्मीकि द्वारा रचित
- शोकातुर : शोक से आतुर
- कष्टसाध्य : कष्ट से साध्य
- मनमाना : मन से माना हुआ
- शराहत : शर से आहत
- अकालपीड़ित : अकाल से पीड़ित
- भुखमरा : भूख से मरा
- सूररचित : सूर द्वारा रचित
- आचार्कुशल : आचार से कुशल
- रसभरा : रस से भरा
- मनचाहा : मन से चाहा
3. सम्प्रदान तत्पुरुष समास :
इस समास में कारक चिन्ह ‘के लिए’ का लोप हो जाता है। जैसे:
- प्रयोगशाला : प्रयोग के लिए शाला
- डाकगाड़ी : डाक के लिए गाडी
- रसोईघर : रसोई के लिए घर
- यज्ञशाला : यज्ञ के लिए शाला
- देशार्पण : देश के लिए अर्पण
- गौशाला : गौओं के लिए शाला
- सत्याग्रह : सत्य के लिए आग्रह
- पाठशाला : पाठ के लिए शाला
- देशभक्ति : देश के लिए भक्ति
- विद्यालय : विद्या के लिए आलय
- हथकड़ी : हाथ के लिए कड़ी
- सभाभवन : सभा के लिए भवन
- लोकहितकारी : लोक के लिए हितकारी
- देवालय : देव के लिए आलय
- राहखर्च : राह के लिए खर्च
4. अपादान तत्पुरुष समास :
इस समास में अपादान कारक के चिन्ह ‘से’ का लोप हो जाता है।
- ऋणमुक्त : ऋण से मुक्त
- धनहीन : धन से हीन
- गुणहीन : गुण से हीन
- विद्यारहित : विद्या से रहित
- पथभ्रष्ट : पथ से भ्रष्ट
- जीवनमुक्त : जीवन से मुक्त
- रोगमुक्त : रोग से मुक्त
- बंधनमुक्त : बंधन से मुक्त
- दूरागत : दूर से आगत
- जन्मांध : जन्म से अँधा
- नेत्रहीन : नेत्र से हीन
- पापमुक्त : पाप से मुक्त
- जलहीन : जल से हीन
5. सम्बन्ध तत्पुरुष समास
- सम्बन्ध कारक के चिन्ह ‘का’, ‘के’ व ‘की’ का लोप होता है वहां सम्बन्ध तत्पुरुष समास होता है।
- भूदान : भू का दान
- राष्ट्रगौरव : राष्ट्र का गौरव
- राजसभा : राजा की सभा
- जलधारा : जल की धारा
- भारतरत्न : भारत का रत्न
- पुष्पवर्षा : पुष्पों की वर्षा
- उद्योगपति : उद्योग का पति
- पराधीन : दूसरों के आधीन
- सेनापति : सेना का पति
- राजदरबार : राजा का दरबार
- देशरक्षा : देश की रक्षा
- गृहस्वामी : गृह का स्वामी
6. अधिकरण तत्पुरुष समास :
इस समास में कारक चिन्ह ‘में’ और ‘पर’ का लोप होता है। जैसे:
- गृहप्रवेश : गृह में प्रवेश
- पर्वतारोहण : पर्वत पर आरोहण
- ग्रामवास : ग्राम में वास
- आपबीती : आप पर बीती
- जलसमाधि : जल में समाधि
- जलज : जल में जन्मा
- नीतिकुशल : नीति में कुशल
- नरोत्तम : नारों में उत्तम
- गृहप्रवेश : गृह में प्रवेश
कर्मधारय समास
परिभाषा
वह समास जिसका पहला पद विशेषण एवं दूसरा पद विशेष्य होता है अथवा पूर्वपद एवं उत्तरपद में उपमान – उपमेय का सम्बन्ध माना जाता है कर्मधारय समास कहलाता है।
इस समास का उत्तरपद प्रधान होता है
- चरणकमल = कमल के समान चरण
- नीलगगन =नीला है जो गगन
- चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख
- अधपका – आधा है जो पका
- महाराज – महान है जो राजा
- पीतांबर – पीत है जो अंबर
- महावीर – महान है जो वीर
- महापुरुष – महान है जो पुरुष
- प्रधानाध्यापक – प्रधान है जो अध्यापक
- कापुरुष – कायर है जो पुरुष
- पीताम्बर =पीत है जो अम्बर
- महात्मा =महान है जो आत्मा
- लालमणि = लाल है जो मणि
- महादेव = महान है जो देव
- देहलता = देह रूपी लता
- नवयुवक = नव है जो युवक
- कमलनयन = कमल के समान नयन
- नीलकमल = नीला है जो कमल
- आदिप्रवर्तक : पहला प्रवर्तक
- पुरुषरत्न : रत्न है जो पुरुष
- विरहसागर : विरह रुपी सागर
- पर्णकुटी : पत्तों से बनी कुटी
- चलसम्पति : गतिशील संपत्ति
- भवजल : भव(संसार) रुपी जल
- कीर्तिलता : कीर्ति रुपी लता
- भक्तिसुधा : भक्ति रुपी सुधा
- मुखारविंद : अरविन्द के सामान मुख
- पुत्ररत्न : रत्न के सामान पुत्र
- कृष्णसर्प = कृष्ण है जो सर्प
- सज्जन = सत है जो जन
- नीलगाय = नीली है जो गाय
- शुभागमन = शुभ है जो आगमन
- कनकलता = कनक के समान लता
- प्राणप्रिय = प्राणों के सामान प्रिय
- भुजदंड = दंड के समान भुजा
- मृगलोचन = मृग के सामान लोचन
- कनकलता – कनक के समान लता
- घनश्याम – घन के समान श्याम (काला)
- विद्याधन – विद्या रूपी धन
- भवजल – भव रूपी जल
- आशालता आशा की लता
- नरसिंह नर रूपी सिंह
- प्राणप्रिय – प्राणों के समान प्रिय
- स्त्रीरत्न – स्त्री रूपी रत्न
बहुव्रीहि समास
परिभाषा
- बहुव्रीहि समास ऐसा समास होता है जिसके समस्त्पदों में से कोई भी पद प्रधान नहीं होता एवं दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की और संकेत करते हैं वह समास बहुव्रीहि समास कहलाता है।
- गजानन : गज से आनन वाला (गणेश )
- चतुर्भुज : चार हैं भुजाएं जिसकी (विष्णु)
- त्रिलोचन : तीन आँखों वाला (शिव)
- दशानन : दस हैं आनन जिसके (रावण)
- मुरलीधर : मुरली धारण करने वाला
- निशाचर : निशा अर्थात रात में विचरण करने वाला (राक्षस)
- चतुर्मुख : चार हैं मुख जिसके (ब्रह्म)
- लम्बोदर : लंबा है उदर जिसका
- कलहप्रिय : कलह है प्रिय जिसे
- उदार है मन जिसका वह = उदारमनस्
- अन्य में है मन जिसका वह = अन्यमनस्क
- साथ है पत्नी जिसके वह = सपत्नीक
द्वंद्व समास
परिभाषा
जिस समास में समस्तपद के दोनों पद प्रधान हों या दोनों पद सामान हों एवं दोंनों पदों को मिलाते समय ‘और’, ‘अथवा’, ‘या’, ‘एवं’ आदि योजक लुप्त हो जाएँ, वह समास द्वंद्व समास कहलाता है।
- अन्न-जल : अन्न और जल
- अपना-पराया : अपना और पराया
- राजा-रंक : राजा और रंक
- देश-विदेश : देश और विदेश
- रात-दिन : रात और दिन
- भला-बुरा : भला और बुरा
- छोटा-बड़ा : छोटा और बड़ा
- आटा-दाल : आटा और दाल
- पाप-पुण्य : पाप और पुण्य
- देश-विदेश : देश और विदेश
- लोटा-डोरी : लोटा और डोरी
- सीता-राम : सीता और राम
- ऊंच-नीच : ऊँच और नीच
- खरा-खोटा : खरा और खोटा
- रुपया-पैसा : रुपया और पैसा
- मार-पीट : मार और पीट
- माता-पिता : माता और पिता
- दूध-दही : दूध और दही
- भूल-चूक : भूल या चूक
- सुख-दुख : सुख या दुःख
- गौरीशंकर : गौरी और शंकर
- राधा-कृष्ण : राधा और कृष्ण
- राजा-प्रजा : राजा और प्रजा
- गुण-दोष : गुण और दोष
- नर-नारी : नर और नारी
- एड़ी-चोटी : एड़ी और चोटी
- लेन-देन : लेन और देन
- भला-बुरा : भला और बुरा
- जन्म-मरण : जन्म और मरण
- पाप-पुण्य : पाप और पुण्य
- तिल-चावल : तिल और चावल
- भाई-बहन : भाई और बेहेन
- नून-तेल : नून और तेल
- ठण्डा-गरम – ठण्डा या गरम
- नर-नारी – नर और नारी
- खरा-खोटा – खरा या खोटा
- राधा-कृष्ण – राधा और कृष्ण
- राजा-प्रजा – राजा एवं प्रजा
- भाई-बहन – भाई और बहन
- गुण-दोष – गुण और दोष
- सीता-राम – सीता और राम
द्विगु समास
परिभाषा
वह समास जिसका पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है तथा समस्तपद किसी समूह या फिर किसी समाहार का बोध करता है तो वह द्विगु समास कहलाता है। जैसे:
- दोपहर : दो पहरों का समाहार
- शताब्दी : सौ सालों का समूह
- पंचतंत्र : पांच तंत्रों का समाहार
- सप्ताह : सात दिनों का समूह
- चौराहा : चार राहों का समूह
- त्रिकोण : तीन कोणों का समूह
- तिरंगा : तीन रंगों का समूह
- त्रिफला : तीन फलों का समूह
- चारपाई : चार पैरों का समूह
- चतुर्मुख : चार मुखों का समाहार
- नवरत्न : नव रत्नों का समाहार
- सतसई : सात सौ दोहों का समाहार
- त्रिभुवन : तीन भुवनों का समाहार
- दोराहा : दो राहों का समाहार
- अठकोना : आठ कोनो का समाहार
- छमाही : छह माहों का समाहार
- अष्टधातु : आठ धातुओं का समाहार
- त्रिवेणी : तीन वेणियों का समाहार
- तिमाही : तीन माहों का समाहार
- चौमासा : चार मासों का समाहार
- त्रिलोक : तीन लोकों का समाहार
- नवरात्र : नौ रात्रियों का समूह
- अठन्नी : आठ आनों का समूह
- दुसुती : डो सुतो का समूह
- पंचतत्व : पांच तत्वों का समूह
- पंचवटी : पांच वृक्षों का समूह
- सप्तसिंधु : सात सिन्धुओं का समूह
- चौमासा : चार मासों का समूह
- चातुर्वर्ण : चार वर्णों का समाहार