संघ की कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित मंत्री परिषद एवं महान्यायवादी आते हैं। इस प्रकार राष्ट्रपति एक ऐसा पद है जो कार्यपालिका एवं संसद में शामिल होता है। भारत में संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गई है जहां कार्यपालिका वास्तविक और नाममात्र या संवैधानिक कार्यपालिका में विभाजित होती है। राष्ट्रपति नाम मात्र की कार्यपालिका का संवैधानिक प्रधान होता है। राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक एवं देश एकता, अखंडता एवं सुदृढ़ता का प्रतीक होता है।
राष्ट्रपति का पद – अनुच्छेद 52 के अनुसार भारत में 1 राष्ट्रपति होगा तथा अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी जिसका प्रयोग संविधान के अनुसार वह स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा करेगा।
राष्ट्रपति का निर्वाचन – भारत में राष्ट्रपति का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा नहीं बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से उन प्रतिनिधियों द्वारा होता है जिन का चुनाव जनता प्रत्यक्ष रूप से करती है राष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान भी गुप्त होता है ताकि निर्वाचन में पारदर्शिता बनी रहे। एवं पक्षपात की स्थिति ना बने। अनुच्छेद 54 के अनुसार राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक मंडल द्वारा होता है जो संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य, राज्य विधान सभा के निर्वाचित सदस्य एवं दिल्ली तथा पांडिचेरी विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों से मिलकर बनती है। दिल्ली एवं पांडिचेरी विधानसभा के सदस्यों को 70वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 द्वारा जोड़ा गया।
राष्ट्रपति के निर्वाचन में अनुच्छेद 55 के अनुसार आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत पद्धति को अपनाया जाता है। इसमें जीत के लिए न्यूनतम मत प्राप्त करना अनिवार्य होता है इसमें जीत के लिए कुल पड़े वैध मतों के आधे से एक और अधिक प्राप्त करना होता है इसीलिए मतदाताओं द्वारा मतदान में सभी प्रत्याशियों को वरीयता क्रम में मत दिया जाता है।
जैसे –
मतगणना में प्रथम वरीयता के मतों की गणना की जाती है यदि किसी उम्मीदवार को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो जाता है तो उसे विजई घोषित कर दिया जाता है यदि किसी भी उम्मीदवार को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो उस सबसे कम वोट प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों को असफल मानकर उसके द्वितीय वरीयता के वोटों की गिनती की जाती है कि उसको प्रथम वरीयता पर जितने मतदाताओं ने मत दिया था। उनकी दूसरे पसंद के उम्मीदवार कौन-कौन हैं और उन्हें कितने कितने वोट प्राप्त हैं और इन मतों को पहले वाले मतों में योग करके देखते हैं। कि किसी उम्मीदवार को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ कि नहीं इस प्रकार प्रत्येक चक्र में मतगणना के बाद सबसे कम मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों को और सफल मानकर उसके द्वितीय वरीयता को मतों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक किसी उम्मीदवार को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हो जाता।
उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि 100 वोटों के आधार पर स्पष्ट बहुमत 50 + 1 = 51 मत होगा जो किसी को प्राप्त नहीं है।
अब एक का सबसे कम मत है इसे और सफल मानकर इसकी द्वितीय वरीयता के मतों की उम्मीदवार के अनुसार अलग गिनती करके स्थानांतरित कर दी जाएगी अब उम्मीदवार B का कुल मत 40 + 7= 47 एवं उम्मीदवार C को प्राप्त मत 35+18=53 इस प्रकार उम्मीदवार C को विजय घोषित कर दिया जाएगा। राष्ट्रपति के निर्वाचन में राज्य सभा का महासचिव एवं उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में लोक सभा का महासचिव निर्वाचन अधिकारी के रूप में काम करते हैं। मतदान दिल्ली एवं प्रत्येक राज्यों की राजधानी में होता है। सांसद दिल्ली एवं विधानसभा के सदस्य अपनी राजधानी में मतदान करते हैं हालांकि 10 दिन की पूर्व सूचना पर उन्हें उनके पसंद पर अन्य स्थानों पर मताधिकार की अनुमति दी जा सकती है ध्यातव्य है कि राष्ट्रपति के निर्वाचन को अनुच्छेद 71 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और वही व्यक्ति चुनौती दे सकता है जो या तो उम्मीदवार है या निर्वाचक मंडल में है।
1969 ईस्वी में वी वी गिरि की राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन हुआ है वीवी गिरी ऐसे राष्ट्रपति थे जो निर्दलीय राष्ट्रपति माने जाते हैं पहलेे गैर कांग्रेश राष्ट्रपति थे एवं एकमात्र द्वितीय वरीयता के आधार पर बने राष्ट्रपति थे 1977 ईस्वी में नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध चुने गए राष्ट्रपति थे अब्दुल कलाम ऐसे राष्ट्रपति थे जो किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े थे कोई व्यक्ति कितनी बार राष्ट्रपति बनेगा इसका उल्लेख संविधान में नहीं किया गया है।
योग्यता और शर्तें – अनुच्छेद 58 एवं 59 में क्रमशः राष्ट्रपति पद के लिए योग्यता एवं पद की शर्तों का उल्लेख किया गया है राष्ट्रपति पद की योग्यता है कि वह भारत का नागरिक हूं उसकी आयु 35 वर्ष हो चुकी हो वह लोकसभा का उम्मीदवार बनने की योग्यता रखता हो। वह किसी राज्य, केंद्रीय स्थानीय सरकार के अधीन किसी पद पर ना हो।
राष्ट्रपति पद के लिए यह शर्त है कि वह संसद या राज्य विधान मंडल के किसी सदन की सदस्य ना हो यदि है तो राष्ट्रपति निर्वाचित होने की तिथि से सीट रिक्त माना जाएगा किसी लाभ के पद पर कार्यरत ना हो बिना भुगतान के उसे आवास एवं अन्य सुविधाएं मिलेगी कार्यकाल के दौरान उसकी उपलब्धियां कम नहीं होंगी।
राष्ट्रपति पर महाभियोग
राष्ट्रपति का कार्यकाल पद धारण करने की तिथि से 5 वर्ष तक होता है 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद तब तक वह राष्ट्रपति पद पर बना रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले। 5 वर्ष के पूर्व व उपराष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है और पद अवधि के दौरान महाभियोग चलाकर उसे पद से हटाया जा सकता है।
अनुच्छेद 61 में उल्लेख किया गया है कि संविधान के उल्लंघन के आधार पर संसद के किसी भी सदन में राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा सकता है प्रस्ताव पर संबंधित सदन के 1 बटा 4 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए तथा राष्ट्रपति को इसकी सूचना 14 दिन पूर्व देनी चाहिए प्रस्ताव पर सदन के कुल सदस्य संख्या के दो तिहाई बहुमत से पास होना चाहिए पुनः दूसरे सदन के पास जाएगा दूसरा सदन भी यदि कुल सदस्य संख्या के 2 बटा 3 बहुमत से यदि प्रस्ताव को पास कर देता है तो प्रस्ताव पास होने के दिन से राष्ट्रपति को हटना होगा उक्त प्रक्रिया के दौरान राष्ट्रपति स्वयं या अपने प्रतिनिधि को उपस्थित रहने के लिए भेज देगा। महाभियोग एक अर्धन्यायिक एक प्रक्रिया है जिसमें दो बातें महत्वपूर्ण है कि इसमें संसद के दोनों सदनों के नामांकित सदस्य भी भाग लेंगे जो निर्वाचन में भाग नहीं लिए थे दूसरा इसके प्रक्रिया में विधान सभा के सदस्य भाग नहीं लेंगे।
यदि राष्ट्रपति का पद त्याग पत्र मृत्यु या पद निष्कासन के कारण रिक्त हुआ है तो उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा और राष्ट्रपति का चुनाव छह माह में कराना अनिवार्य होगा। यदि इसी समय उपराष्ट्रपति का भी पद रिक्त हो तो भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं उसका पद भी रिक्त होने पर वरिष्ठ न्यायाधीश राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश एम. हिदायतुल्ला राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर चुके हैं।
नोट – भारत में महाभियोग द्वारा केवल राष्ट्रपति को हटाया जाता है। उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक तथा निर्वाचन आयुक्त को साबित कदाचार एवं अक्षमता के आधार पर हटाया जाता है भारत में अभी तक किसी भी राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा नहीं हटाया गया है ध्यातव्य है कि अमेरिका में महाभियोग की प्रक्रिया निम्न सदन से ही प्रारंभ किया जा सकता है।
राष्ट्रपति के शक्ति एवं दायित्व
सामान्य शक्तियां
• कार्यपालिका शक्ति
• विधायी शक्ति
• न्यायिक शक्ति
• वित्तीय शक्ति
• अन्य शक्तियां
आपातकालीन शक्तियां
राष्ट्रपति के शक्ति एवं दायित्व को मुख्यतः सामान्य एवं आपातकालीन शक्तियों में बांटा गया है। सामान्य शक्तियों का प्रयोग संविधान एवं राजव्यवस्था में दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को संचालित करने के लिए किया जाता है जबकि आपातकालीन शक्ति का प्रयोग युद्ध वाह्य आक्रमण सशस्त्र विद्रोह या संवैधानिक विफलता एवं विशिष्ट आर्थिक स्थिति में किया जाता है।
कार्यकारी शक्तियां – इसके अंतर्गत राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करते हैं एवं उनकी सलाह पर अनुच्छेद 75 के अंतर्गत अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करते हैं राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं राष्ट्रपति नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक मुख्य एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त महान्यायवादी एवं राज्यपाल की नियुक्ति करते हैं राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपना पद धारण करते हैं।
कार्यकारी शक्तियों का दूसरा भाग आयोगों के अध्यक्ष एवं सदस्यों के नियुक्ति से संबंधित है इसके अंतर्गत संघ लोक सेवा आयोग वित्त आयोग निर्वाचन आयोग राजभाषा आयोग पिछड़ा वर्ग आयोग अनुसूचित जाति आयोग अनुसूचित जनजाति आयोग अल्पसंख्यक आयोग राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति करते हैं।
राष्ट्रपति लोकसभा में दो एंग्लो इंडियन समुदाय के सदस्यों की तथा राज्यसभा में साहित्य कला विज्ञान और समाज सेवा के क्षेत्र में 12 सदस्यों को मनोनीत कहते हैं।
राष्ट्रपति केंद्रीय विश्वविद्यालयों के उपकुलपतियों की नियुक्ति करते हैं एवं स्वयं केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति होते हैं वह केंद्र शासित प्रदेशों के लिए प्रशासकों की नियुक्ति करते हैं एवं उसके माध्यम से केंद्र शासित प्रदेशों का शासन संचालित करते हैं जो कि भारत सरकार के सभी कार्य राष्ट्रपति के माध्यम से संचालित होते हैं इसलिए राष्ट्रपति इसे बना सकते हैं जिससे केंद्र सरकार के कार्य सहज ढंग से संचालित हो सके।
विधायी शक्तियां
विधाई शक्तियों के अंतर्गत ऐसे कार्य एवं दायित्व आते हैं जिसका संबंध प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से विधि निर्माण से है इसके अंतर्गत राष्ट्रपति प्रत्येक आम चुनाव एवं नए वर्ष के प्रथम अधिवेशन में संसद को संबोधित करता है राष्ट्रपति संसद को आहूत एवं सत्रावसान एवं विघटन करते हैं यद्यपि सत्र के दौरान कुछ समय के लिए सदन का स्थगन सभापति द्वारा किया जाता है संसद में लंबित विधेयक या अन्य संबंध में राष्ट्रपति संसद को संदेश भेज सकते हैं । यदि किसी विधेयक के संबंध में दोनों सदनों में और सहमति होती है तो दोनों सदनों की अनुच्छेद 108 के अंतर्गत संयुक्त अधिवेशन को बुलाते हैं यद्यपि इसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है कुछ विधायकों को राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से ही सदन में पेश किया जा सकता है जैसे संचित निधि से खर्च संबंधी विधेयक तथा राज्यों के नाम सीमा क्षेत्र में परिवर्तन करने वाले विधेयक।
संसद द्वारा पारित विधेयक जब राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए जाता है तो वह या तो उस पर हस्ताक्षर कर देता है या अपने पास सुरक्षित कर लेता है इसे ही पॉकेट वीटो कहा जाता है या तो उसे सदन को वापस लौटा देते हैं किंतु दूसरी बार जब सदन से संशोधन सहित या संशोधन रहित दोनों में से किसी भी स्थिति में जाता है तो उस पर राष्ट्रपति को अपनी सहमति देनी पड़ती है राष्ट्रपति राज्यपाल के माध्यम से राज्य विधानमंडल में पारित कुछ विधायकों पर सहमति देते हैं किंतु यदि राष्ट्रपति इसे राज्यपाल के माध्यम से पुनः विधानमंडल को वापस भेज दे तो दूसरी बार विधेयक आने पर राष्ट्रपति अपनी सहमति दे भी सकता या नहीं भी दे सकता है राष्ट्रपति उस पर सहमति देने के लिए बाध्य नहीं है ।
राष्ट्रपति संघ लोक सेवा आयोग वित्त आयोग एवं कैग के साथ अन्य संवैधानिक आयोग की रिपोर्ट को संसद में रखवाते हैं इसके माध्यम से रिपोर्ट से संबंधित अधिकारियों पर नियंत्रण स्थापित होता है।
राष्ट्रपति लोकसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का पद रिक्त होने पर लोकसभा के एवं राज्यसभा के सभापति एवं उप सभापति का पद रिक्त होने पर राज्यसभा के किसी सदस्य को अध्यक्षता सौंप सकते हैं राष्ट्रपति लाभ के पद के संदर्भ में चुनाव आयोग के परामर्श पर संसद सदस्यों के निरर्हता के प्रश्न पर निर्णय लेते हैं।
राष्ट्रपति संसद सत्र ना चलने के दौरान आवश्यक विधायी कानून के लिए अध्यादेश जारी कर सकते हैं यह अध्यादेश पुनः संसद की बैठक के बाद 6 सप्ताह में संसद द्वारा अनुमोदित होना चाहिए या इससे पहले राष्ट्रपति अध्यादेश को वापस भी ले सकते हैं संविधान के अनुच्छेद 123 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी किया जाता परंतु इसकी कुछ सीमाएं हैं।
1- अध्यादेश तभी जारी किया जा सकता है जब कम से कम एक सदन का सत्र ना चल रहा हो।
2- अध्यादेश के लिए ऐसी परिस्थिति का होना आवश्यक है जब तत्काल कार्यवाही करना आवश्यक है किंतु राष्ट्रपति की संतुष्टि एवं परिस्थितियों की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।
3- अध्यादेश संसद के पुनः बैठक के बाद 6 सप्ताह बाद समाप्त हो जाता है जब तक कि दोनों सदन से इसे अनुमोदित ना कर देते हैं।
4- राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति संसद के कानून बनाने की शक्ति के समविस्तीर्ण है।
5- राष्ट्रपति संविधान संशोधन के लिए अध्यादेश जारी नहीं कर सकता।
नोट- भारत अध्यादेश जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति भारतीय संविधान की एक अनोखी व्यवस्था है अन्य लोकतांत्रिक देशों अमेरिका में ब्रिटेन में इसका कोई प्रावधान नहीं है।
न्यायिक शक्तियां
अनुच्छेद 72 के अंतर्गत राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्ति प्रदान की गई है राष्ट्रपति उन सभी मामलों में दोषी को क्षमादान प्रदान कर सकता है जहां दंड केंद्रीय विधियों के अपराध के लिए दी गई है जहां अपराधी को मृत्युदंड दिया गया है जहां दंड सैन्य न्यायालय द्वारा दिया गया है राष्ट्रपति अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को कई प्रकार की क्षमा प्रदान कर सकता है।
- क्षमा – राष्ट्रपति दोषी व्यक्ति को सभी दडो या दंड दोषों से पूर्णता मुक्त कर सकता है इसमें दंड एवं बंदी दोनों शामिल है।
- लघु करण – इसमें दंड के स्वरूप में परिवर्तन करके दंड को कम किया जाता है जैसे मृत्युदंड को कठोर कारावास या साधारण कारावास में बदलना।
- परिहार – इसमें स्वरूप में परिवर्तन किए बगैर दंड को कम किए जाते हैं जैसे 2 वर्ष के कठोर कारावास को 1 वर्ष के कठोर कारावास में बदलना।
- विराम – इसमें विशेष परिस्थिति के कारण दंड को कम कर दिया जाता है जैसे विकलांग या गर्भवती महिला की दंड को कम करना।
- प्रतिलम्बन – मृत्यु दंड का अस्थाई रोक ही प्रति लंबन कहलाता है इसका उद्देश्य दोषों को क्षमा याचना या दंड स्वरूप में परिवर्तन के लिए क्षमा हेतु समय देना है।
वित्तीय शक्तियां
अनुच्छेद 110 के अनुसार धन विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति से ही संसद में पेश किया जा सकता है। अनुदान की कोई भी मांग उसकी सिफारिश के बगैर नहीं रखी जाती है। अनुच्छेद 112 के अंतर्गत किसी भी वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के समस्त व्यय एवं प्राप्तियों से संबंधित वार्षिक वित्तीय विवरण सदन में रखवा ते हैं। राष्ट्रपति केंद्र एवं राज्य के बीच करों से प्राप्त आय के बंटवारे के लिए प्रत्येक 5 वर्ष में अनुच्छेद 280 के अंतर्गत वित्त आयोग का गठन करते हैं।
अन्य शक्तियां – इसमें मुख्य रूप से कूटनीतिक एवं सैन्य शक्तियों को शामिल किया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय संधि एवं समझौता राष्ट्रपति के नाम से की जाती है यद्यपि इसमें संसद की भी अनुमति लिया जाता है। राष्ट्रपति भारत की तरफ से राजदूत एवं उच्च को भेजते हैं एवं उनका अपने देश में स्वागत करते हैं राष्ट्रपति देश का प्रतिनिधित्व करते हैं एवं विदेशी यात्रा द्वारा विभिन्न देशों के साथ संबंधों को अच्छा बनाते हैं।
सैन्य शक्तियों के संदर्भ में राष्ट्रपति सैन्य बलों का सर्वोच्च सेनापति होता है। इस आधार पर वह जल थल एवं वायु सेना के प्रमुख की नियुक्ति करता है युद्ध के प्रारंभ एवं समाप्ति की घोषणा करता है यद्यपि इसका अनुमोदन संसद द्वारा किया जाता है।
राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां
संविधान के भाग -18 में अनुच्छेद 352 से 360 में आपातकालीन उपबंध किया गया है। आपातकाल से तात्पर्य देश के समक्ष उत्पन्न होने वाले ऐसे असामान्य एवं संकट की स्थिति से है जिससे निपटने के लिए संविधान में आपातकालीन उपबंध किया गया है। इसे मंत्रिमंडल के सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा प्रयोग किया जाता है। भारत में तीन प्रकार के आपातकालीन शक्तियां निर्दिष्ट किया गया है।
1- युद्ध, बाहरी आक्रमण एवं सशस्त्र विद्रोह के कारण आपात काल इसे राष्ट्रीय आपात काल कहा जाता है।
2- राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के कारण आपात काल इसे अनुच्छेद 356 में राष्ट्रपति शासन के नाम या संवैधानिक आपातकाल के नाम से जाना जाता है।
3- वित्तीय अस्थिरता के समय अनुच्छेद 360 के अंतर्गत वित्तीय आपातकाल की घोषणा की जाती है।
राष्ट्रीय आपातकाल
जब युद्ध, बाहरी आक्रमण एवं सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत या उसके किसी क्षेत्र की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया है या खतरा की आशंका उत्पन्न हो गई हो तो राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश पर भारत या उसके किसी क्षेत्र के लिए आपातकाल की घोषणा कर देता है ध्यातव्य है कि यदि युद्ध या वाह्य आक्रमण के कारण आपातकाल की घोषणा होती है तो इसे बाह्य आपातकाल एवं जब सशस्त्र विद्रोह के कारण आपातकाल की घोषणा होती है तो इसे आंतरिक आपातकाल कहा जाता है।
आपातकाल की घोषणा के बाद इसे जारी रखने के लिए 1 माह के अंदर संसद के दोनों सदनों से अनुमोदन होना चाहिए अनुमोदन होने के बाद या 6 माह तक जारी रह सकता है तथा आगे इसे बढ़ाने के लिए प्रत्येक शमा पर सदन के दोनों सदनों में अनुमोदन के बाद अनंत काल तक बढ़ाया जा सकता है यदि लोकसभा का विघटन हो गया हो तो पुनर्गठन होने पर 30 दिन के अंदर लोकसभा से अनुमोदन होना चाहिए जब इस दौरान राज्य से अनुमोदन हो रहा हो।
आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति किसी भी समय दूसरी उद्घोषणा से इसे समाप्त भी कर सकते हैं और इसके लिए संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है दूसरी तरफ लोकसभा इसे जारी रखने के प्रस्ताव को निरस्त करके भी समाप्त कर सकती है या लोकसभा के 1 बटा 10 सदस्यों द्वारा लिखित नोटिस से 14 दिन के अंदर अपराध घोषणा पर विचार-विमर्श के लिए बैठक बुला सकती है। इस संदर्भ में विशेष बात यह है कि संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत की आवश्यकता आपातकाल के अनुमोदन के लिए होता है जब आपातकाल को समाप्त करने के लिए केवल लोकसभा के साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है अतः आपातकाल को जारी करने की प्रक्रिया कठिन जबकि समाप्त करने की प्रक्रिया अपेक्षाकृत आसान बनाई गई है।
आपातकाल का प्रभाव
आपातकाल के प्रभाव को केंद्र राज्य संबंध, सांसद एवं विधानसभा के कार्यकाल एवं मौलिक अधिकारों पर प्रभाव के संबंध के संदर्भ में समझा जा सकता है।
केंद्र राज्य संबंध – राष्ट्रीय आपातकाल में केंद्र को कार्यकारी शक्तियां राज्य को उनके कार्यकारी शक्तियों के प्रयोग के तरीके के संबंध में निर्देश देने तक विस्तृत हो जाती है इस समय राज्य सरकारें केंद्र के नियंत्रण में आ जाती हैं यद्यपि निलंबित नहीं होती है।
केंद्र की विधाई शक्ति का विस्तार हो जाता है और संसद राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने के लिए सक्षम हो जाती है यद्यपि विधाई शक्तियों को निलंबित नहीं किया जाता और संसद द्वारा बनाया गया कानून आपात समाप्ति के 6 माह तक प्रभावी रहता है 42 वें संविधान संशोधन 1976 में उपर्युक्त विदाई एवं कार्यकारी शक्तियों को केवल आपातकाल लागू होने राज्यों तक ही नहीं बल्कि अन्य राज्य तक विस्तृत कर दिया गया है।
आपातकाल में राष्ट्रपति केंद्र एवं राज्यों के बीच संवैधानिक वितरण के प्रावधानों को संशोधित कर सकता है।
लोकसभा एवं राज्य विधान सभा का कार्यकाल
आपातकाल में लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष से आगे बढ़ाया जा सकता है यह एक बार में 1 वर्ष तक और इसी प्रकार से कितने भी वर्षों के लिए बढ़ाया जा सकता है पांचवी लोकसभा का कार्यकाल 2 वर्षों 76 से 77 तथा 1977 से 1978 तक दो बार बढ़ाया गया था इसी प्रकार राज्य विधानसभा का भी कार्यकाल 5 वर्ष के बाद एक-एक वर्ष करके कितनी भी बार बढ़ाया जा सकता है यद्यपि आपात काल समाप्ति के बाद छह माह के अंदर चुनाव कराना आवश्यक होगा।
मूल अधिकार पर प्रभाव
आपातकाल में मूल अधिकार दो प्रकार से प्रथम अनुच्छेद 358 के अंतर्गत एवं दूसरा अनुच्छेद 359 के अंतर्गत मूल अधिकार प्रभावित होते हैं।
अनुच्छेद 358 के अंतर्गत राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा होने पर अनुच्छेद 19 के 6 प्रकार के मूल अधिकार निलंबित हो जाते हैं इन्हें निलंबित करने के लिए अलग से आदेश जारी नहीं करने पड़ते हैं अनुच्छेद 358 के अंतर्गत 6 प्रकार के मूल अधिकार केवल वाह्य आपातकाल (युद्ध एवं बाहरी आक्रमण) मैं निलंबित होते हैं। सशस्त्र विद्रोह के आधार पर नहीं। अनुच्छेद 358 के अंतर्गत मूल अधिकार पूरे देश में संपूर्ण अवधि के लिए अनुच्छेद 19 को पूर्ण रूप से निलंबित कर देता है।
अनुच्छेद 359 के अंतर्गत आपातकाल में अनुच्छेद 19 के अलावा एवं अनुच्छेद 20 एवं 21 के अतिरिक्त अन्य मूल अधिकारों के लागू करने के अधिकार को निलंबित कर देता है यहां मूल अधिकार नहीं बल्कि उनका लागू होना निलंबित होता है। इसके लिए राष्ट्रपति को आदेश जारी करना पड़ता है। अनुच्छेद आंतरिक एवं बाह्य दोनों ही आपात काल में लागू किया जा सकता है अनुच्छेद 359 को पूरे भारत या भाग में तथा संपूर्ण आपात अवधि के लिए या अल्प अवधि के लिए लागू किया जा सकता है।
• 38 में संशोधन द्वारा राष्ट्रपति को आपातकाल के दौरान विभिन्न वह उदघोषणाएं जारी करने का अधिकार प्रदान करता है।
42 वें संशोधन 1976 द्वारा आपातकाल देश के किसी विशिष्ट भाग तक घोषित किया जा सकता है इसी संशोधन द्वारा केंद्र की विधि एवं कार्यकारी शक्ति आपातकाल के दौरान उन राज्यों तक विस्तृत करने का प्रावधान कर दिया गया जिस राज्य में आपातकाल का विस्तार ना हो।
44 वें संशोधन 1978 द्वारा आंतरिक गड़बड़ी के स्थान पर सशस्त्र विद्रोह शब्द को जोड़ा गया इसी में घोषणा के लिए केवल मंत्रिमंडल के लिखित सिफारिश को अनिवार्य किया गया तथा यह भी प्रावधान किया गया कि यदि आपातकाल विवेक शून्यता या हठधर्मिता के आधार पर घोषित किया गया है तो इसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
राष्ट्रपति शासन
राज्यों की प्रशासन व्यवस्था संविधान के अनुसार चलने के लिए अनुच्छेद 355 में केंद्र का दायित्व निर्धारित किया गया है। इसी आधार पर केंद्र द्वारा समय-समय पर राज्यों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए जाते रहते हैं।
अनुच्छेद 356 के अंतर्गत यदि राष्ट्रपति किसी भी समय और स्वस्थ हो जाए कि राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था संविधान में की गई प्रावधानों के अनुसार संचालित नहीं हो पा रही है तो वह राज्यपाल की रिपोर्ट या बिना रिपोर्ट के अन्य ढंग से भी राष्ट्रपति शासन जिसमें वैधानिक आपात या राज्य आपात कहते हैं की घोषणा कर सकते हैं।
राज्यों में दूसरे आधार पर भी राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है अनुच्छेद 365 के आधार पर भी यदि राज्यों द्वारा केंद्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देश के लागू नहीं किया जाता है तो इसी आधार पर भी राज्य में वैधानिक तंत्र की विफलता मान ली जाती है।