शिक्षा मनोविज्ञान
शिक्षा + मनोविज्ञान
शिक्षा में व्यवहार का परिमार्जन किया जाता है।
मनोविज्ञान में व्यवहार का अध्ययन किया जाता है
अर्थात व्यवहार का परिमार्जन/मार्जन करने के लिए व्यवहार का अध्ययन करना शिक्षा मनोविज्ञान कहलाता है।
या
जब शिक्षा में मनोविज्ञान को शामिल कर लिया जाता है तो शिक्षा मनोविज्ञान का निर्माण होता है
भारत को शिक्षा का जनक कहा जाता है।
शिक्षा मनोविज्ञान का इतिहास
कॉल्सनिक के अनुसार :- ईशा से 5वी सदी पूर्व यूनानी दार्शनिकों के साथ/से शिक्षा मनोविज्ञान का प्रारंभ होता है।
बी.एफ. स्किनर के अनुसार :- शिक्षा मनोविज्ञान का आरंभ अरस्तु से होता है।
रूसो – प्रकृति वादी विचारधारा को शिक्षा मनोविज्ञान का जनक माना जाता है।
स्टेनले हॉल – बालकों का अध्ययन
बालकों के व्यवहार का अध्ययन करने के लिए प्रश्नावली का निर्माण करने वाला पहला मनोवैज्ञानिक थे
बाल मनोविज्ञान के जनक।
जॉन ड्यूवी – (अमेरिका)
- शैक्षिक व्यवहार
- शिक्षा मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला शिकागो (अमेरिका) 1890 में जान ड्यूवी के द्वारा की गई।
एडवर्ड ली थार्नडाइक – सीखने के नियम।
प्रथम शैक्षिक मनोवैज्ञानिक
मनोविज्ञान के शाखा के रूप में शिक्षा मनोविज्ञान की उत्पत्ति 1980 में हुई ।
लेकिन शिक्षा मनोविज्ञान ने अपना स्पष्ट एवं निश्चित रूप धारण 1920 ईस्वी में किया।
शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में सर्वाधिक योगदान अमेरिका के मनोवैज्ञानिकों ने दिया।
शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषाएं:-
बी.एफ. स्किनर- शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें सीखने एवं सिखाने की प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
कथन – सीखना विज्ञान है। सिखाना कला है।
2- शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में विद्यार्थी के व्यवहार का अध्ययन करती है। जिसका संबंध शिक्षण एवं अधिगम से हो।
स्टीफन – शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक विकास का क्रमबद्ध अध्ययन करती है।
ट्रो – शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में मनोवैज्ञानिक पक्षों का अध्ययन करने वाला विज्ञान है।
क्रो एंड क्रो – शिक्षा शिक्षा मनोविज्ञान जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक सीखने का वर्णन एवं व्याख्या शैक्षिक व्यवहार का अध्ययन करती है।
शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति
पील महोदय :- शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा का विज्ञान है।
बी.एफ. स्किनर :- शिक्षा मनोविज्ञान में सीखना विज्ञान है एवं सिखाना कला है।
- शिक्षा मनोविज्ञान व्यवहार का एक विधायक/शुद्ध/निश्चित विज्ञान है।
- मनोविज्ञान = नियामक+विधायक।
- शिक्षा मनोविज्ञान वस्तुनिष्ठ है।
- शैक्षिक व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।
बालक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व
- विद्यार्थी की विकासात्मक अवस्थाओं को समझने में सहायक।
- कक्षा शिक्षण स्वरूप को समझने में सहायक।
- विद्यार्थी की समस्या को समझने में सहायक।
- व्यक्तिगत विभिन्नता को समझने में सहायक।
- धनात्मक मनोवृति का निर्माण करने में सहायक।
- पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या के निर्माण में सहायक।
- प्रभावी शिक्षण विधियों के चयन में सहायक।
मूल प्रवृत्तियों एवं रुचियों का ज्ञान।
योग्यताओं और क्षमता का विकास।
मानसिक क्रियाओं का ज्ञान। जैसे- चिंतन, सोच, विचारधारा, संज्ञान।
आत्म मूल्यांकन।
स्वयं की तैयारी या तैयारी का ज्ञान।
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया
- शिक्षण से तात्पर्य एक ऐसी त्रिध्रुवीय प्रक्रिया से हैं। जिससे शिक्षण के स्रोत (मानवीय एवं भौतिक) विद्यार्थी और विद्यार्थी के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए सभी आवश्यक क्रियाओं के प्रारूप का नियोजन किया जाता है।
- त्रिध्रुवीय – पाठ्यक्रम, शिक्षक, विद्यार्थी।
शिक्षण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है।
1- औपचारिक शिक्षण –
- विद्यालय से प्राप्त।
- शिक्षक द्वारा।
- अनुशासन में रहकर।
- स्थान, समय, विधियां निश्चित होती है।
- पूर्व नियोजित शिक्षण
2- अनौपचारिक शिक्षण-
- परिवार/समाज से प्राप्त।
- मां द्वारा
- अनुशासन का कोई महत्व नहीं।
- समय, विधियां और स्थान निश्चित नहीं होता।
- पूर्व नियोजित नहीं होता।
शिक्षण की द्बि ध्रुवीय प्रक्रिया
1- शिक्षक
2- विद्यार्थी
शिक्षक शिक्षण द्वारा विद्यार्थियों के व्यवहार में परिवर्तन/विकासात्मक परिवर्तन लाने वाली प्रक्रिया है।
शिक्षण की त्रिध्रुवी प्रक्रिया
1- शिक्षक
2- पाठ्यक्रम
3- विद्यार्थी
शिक्षण की विशेषता
- विद्यार्थी के व्यवहार में परिवर्तन की प्रक्रिया।
- उद्देश्यपूर्ण एवं नियोजित होता है।
- शिक्षण के द्वारा विद्यार्थियों के व्यवहार में उत्पन्न समस्याओं का निदान करके उपचार किया जाता है।
निदान – कारणों का पता लगाना।
उपचार – समस्याओं को हल करना।
- शिक्षण का मापन किया जाता है।
- शिक्षण एवं अधिगम दोनों साथ-साथ में चलने वाली प्रक्रिया है।
- शिक्षण आमने सामने होने वाली प्रक्रिया है।
- शिक्षण द्वारा पूर्ण कौशल का विकास किया जाता है।
शिक्षण के चर
विषय वस्तु को प्रभावित करने वाली/होने वाले घटक चर कहलाते हैं।
1– स्वतंत्र चर – शिक्षक
2- आश्रित चर- विद्यार्थी
3- मध्यस्थ चर- पाठ्यक्रम
महत्त्व
- उद्देश्य-शिक्षण-मूल्यांकन
- पाठ्य सहगामी क्रियाओं।