वान थ्यूनेन का कृषि स्थानीकरण मॉडल अथवा वान थ्यूनेन का भूमि उपयोग उपयोग मॉडल

वान थ्यूनेन का कृषि स्थानीकरण मॉडल अथवा वान थ्यूनेन का भूमि उपयोग उपयोग मॉडल

  • परिचय
  • उद्देश्य
  • मान्यताएं
  • सिद्धांत का मूल आधार
  • सिद्धांत के प्रकार – (i) फसल सिद्धांत (ii) गहनता सिद्धांत
  • भूमि उपयोग प्रतिरूप मॉडल
  • आलोचनाएं
  • प्रासंगिकता

परिचय – कृषि के स्थानीयकरण से तात्पर्य किसी विस्तृत क्षेत्र में कृषि के प्रकार तथा स्थान विशेष पर संभव पशुओं में कौन सी फसल उगाई जाए के संदर्भ में निर्णय लेने से है। इस दिशा में सर्वप्रथम वंश वान थ्यूनेन ने एक मॉडल प्रस्तुत किया जिसे कृषि का स्थानीयकरण मॉडल कहा जाता है।

उद्देश्य – वान थ्यूनेन के अध्ययन करने का मुख्य उद्देश्य बाजार से बढ़ती दूरी के साथ कृषि भूमि उपयोग प्रतिरूप में परिवर्तन तथा फसल की गहनता का विश्लेषण करना था।

आधार – उन्होंने रिकॉर्डर द्वारा प्रतिकारित आर्थिक लगान की संकल्पना को आधार बनाते हुए कृषि के स्थानीयकरण संबंध से सिद्धांत का विश्लेषण किया जिसे बाद के वैज्ञानिकों ने स्थानीय करण लगान कहा।

सूत्र
स्थानीयकरण लगान (LR) = y ( m-c ) – yt + d
y = उत्पादन ( प्रति हेक्टेयर)
m = बाजार कीमत
c = उत्पादन लागत
yt = परिवहन व्यय
d = दूरी

मान्यताएं –

  1. उन्होंने एक ऐसे विलग प्रदेश की कल्पना की। जिसमें एक ही नगर स्थित हो। तथा उनके चारों ओर विस्तृत कृषि क्षेत्र हो।
  2. ग्रामीण आबादी फसलों के उत्पादन के लिए स्वतंत्र होगी किंतु बाजार शक्तियां उनके निर्णय को प्रभावित करेंगी।
  3. कृषक आर्थिक मानव होते हैं तथा यह अधिक से अधिक लाभ के उद्देश्य से फसलों का चयन करते हैं।
  4. संपूर्ण मांग का केंद्र नगर होंगे तथा संपूर्ण पूर्ति ग्रामीण क्षेत्रों से की जाएगी। अर्थात ना बाहर से आयात किया जाएगा और ना ही निर्यात किया जाएगा।
  5. संपूर्ण प्रदेश की भौगोलिक दशाओ एक समान होंगी तथा हुए फसलों के अनुकूल होंगी।
  6. परिवहन का एक ही साधन ( घोड़ागाड़ी) कथा परिवहन व्यय दूरी एवं भार के अनुपात में बढ़ता है।

इनके अनुसार उपर्युक्त मान्यताएं जब किसी भौगोलिक क्षेत्र में आई जाएंगे तो वहां के कृषि प्रतिरूप पर वंश यूनियन के द्वारा प्रतिपादित कृषि स्थानी करण मॉडल लागू होगा।
उन्होंने अपनी कृषि स्थानी करण मॉडल में स्थानीयकरण लागन फसल सिद्धांत तथा गहनता सिद्धांत को प्रमुख आधार बनाया।

कृषि स्थानीयकरण मॉडल के आधार

  • स्थानिकरण लगान ( land rent-L.R)
  • फसल प्रतिरूप सिद्धांत
  • फसल गहनता सिद्धांत

स्थानीकरण लागत – यह वह लाभ है जो कृषकों को प्रति हेक्टेयर भूमि से फसलों के विपणन के फल स्वरुप प्राप्त होता है। वंश यूनियन का यह मानना था कि कृषि के द्वारा अपनाई जाने वाली फसलों की कीमत और प्रति हेक्टेयर उत्पादन के साथ उत्पादन लागत समान हो तब ऐसी स्थिति में परिवहन लागत स्थानीयकरण लागत को निर्धारित करेंगा।

चुकि बाजार में वृद्धि होने के साथ परिवहन लागत में वृद्धि होती हैं। इसलिए दूर अवस्थित क्षेत्र में स्थानीय लगान में कमी होती हैं।
इस तरह थ्यूनेन ने स्थानीकरण लगान की संकल्पना के आधार पर कृषि क्षेत्र की वह सीमा का निर्धारण किया है।

फसल सिद्धांत – वान थ्यूनेन ने स्थानीकरण ( LR ) लगान के संकल्पना के आधार पर फसल सिद्धांत द्वारा भूमि उपयोग प्रतिरूप को स्पष्ट करने का प्रयास किया।
इनके फसल सिद्धांत के अनुसार यदि कृषकों को एक से अधिक फसलों में से एक फसल को उसका चुनाव करना हो तब ऐसी स्थिति में वह लाभ को महत्व देगा।

कुल मिलाकर वे परिवहन लागत में बचत को काफी महत्व देते हैं।

गहनता सिद्धांत


वान थ्यूनेन का कृषि स्थानीकरण मॉडल अथवा वान थ्यूनेन का भूमि उपयोग उपयोग मॉडल के गहनता सिद्धांत के अनुसार परिवहन लागत को कम करने के उद्देश्य से कृषक बाजार से दूर स्थित क्षेत्रों में अधिक उत्पादन करने का निर्णय नहीं लेंगा।
दूसरे शब्दों में बाजार के नजदीक गहन कृषि तथा बाजार से दूर विस्तृत किसी की जाएगी।

वान थ्यूनेन ने फसल तथा गहनता सिद्धांत से भूमि उपयोग प्रतिरूप को स्पष्ट करते हुए यह विचार व्यक्त किया कि जहां बाजार से दूर जाने पर फसलों के प्रकार में परिवर्तन होता है वहीं फसलों के गहनता में भी कमी आती है।
इसी को आधार बनाते हुए इन्होंने कृषि स्थानीय मॉडल विकसित किया है।

स्थानिककरण मॉडल

  1. फल, सब्जी, दुग्ध उत्पादन पेटी।
  2. ईंधन ( लकड़ी)
  3. गहन कृषि पेटी
  4. उन्नत विधियों द्वारा कृषि पेटी
  5. ऐसी विस्तृत कृषि पेटी जहां ( 1/3 फसल , 1/3 पशुपालन, 1/3 परती भूमि )
  6. पशुपालन एवं चारागाह

वान थ्यूनेन का कृषि स्थानीकरण मॉडल अथवा वान थ्यूनेन का भूमि उपयोग उपयोग मॉडल के अनुसार बाजार से संलग्न कृषि योग्य भूमि का उपयोग संकेंद्रीय वलय के रूप में होता है।

बाजार के समीप शीघ्र नष्ट होने वाली फसलों में सब्जी और फलों का उत्पादन होगा। साथ में दुग्ध उत्पादन भी किया जाएगा।
बाजार से संलग्न दूसरी पेटी में इंधन हेतु वृक्ष का उत्पादन किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि जब इन्होंने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया था तब के समय लकड़ी इंधन का मुख्य स्रोत था। तीसरी पट्टी में गहन कृषि की जाएगी। चौथी पट्टी में उन्नत विधियों द्वारा विस्तृत कृषि की जाएगी।
पांचवी पट्टी में भूमि का उपयोग विस्तृत कृषि (1/3) पशुपालन (1/3) के लिए किया जाएगा।
शेष (1/3) भूमि परती छोड़ दी जाएगी। छठी पेटी में भूमि का उपयोग पशुपालन तथा चारागाह के लिए किया जाएगा।
वांट यूनियन के अनुसार या बेटी संकेंद्रीय पेटी रूप में उपस्थित कृषि क्षेत्र की वह सीमा पर उपस्थित है। इसके बाद के क्षेत्रों में कोई भी कृषि गतिविधि संपन्न नहीं होगी।

वान थ्यूनेन की स्थानीयकरण मॉडल आलोचना

  1. यह सिद्धांत कृषि के क्षेत्र से जुड़ा पहला व्यवस्थित सिद्धांत है। किंतु इसकी आलोचना अनेक आधारों पर की जाती है। इसके द्वारा मानी गई मान्यताएं ही इसकी आलोचना की प्रमुख केंद्र बिंदु है।

जब वान थ्यूनेन के इस मॉडल की आलोचना होने लगी तो उन्होंने अपने मॉडल को प्रसांगिक बनाने के लिए अग्रलिखित संशोधन किया।

  1. ईंधन पेटी को एकदम वाह्य सीमा पर स्थानांतरित कर दिया।
  2. परिवहन के लिए नदी जलमार्ग को भी अपने मॉडल में महत्व दिया।
  3. मुख्य नगर के अलावा अन्य लघु नगरों की भी कल्पना की।

आलोचना

  1. समरूप भौगोलिक प्रदेश की कल्पना करना हास्य पद है।
  2. आज की दुनिया आपस में जुड़ी हुई है। आयात और निर्यात वैश्वीकरण की एक यथार्थ सच है।
  3. परिवहन के साधन के विषय में इस मॉडल का प्रासंगिकता ना के बराबर है।
  4. बढ़ती दूरी के साथ दूरी व भार का अनुपात कम होता जाता है।
  5. किसान सदैव आर्थिक मानव जैसा व्यवहार नहीं करता है बहुत और निर्णय वह विवेकी मानव की तरह लेता है।
  6. वर्तमान में विपलन वह भंडारण की आर्थिक सुविधाओं ने परिवहन लागत की महत्व को कम कर दिया।
  7. वान थ्यूनेन ने अपने मॉडल में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय नीतियों की चर्चा नहीं की जबकि वर्तमान में सरकार की नीतियां अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं व ट्रेड ब्लॉक्स की नीतियों का कृषि पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

विश्व कृषि प्रदेश

विश्व के कृषि प्रदेश भू तल पर स्थित एक विस्तृत क्षेत्र होता है जिसमें कृषि दशाओं तथा कृषि संबंधी विशेषताओं में समरूपता मिलती है। एक कृषि प्रदेश अन्य कृषि प्रदेश से कृषि गत समरूपता तथा भूमि उपयोग प्रतिरूप के दृष्टिकोण से भिन्न होता है।

फसल के प्रकार, उत्पादन विधि, कृषि में प्रयुक्त उपकरण एवं तकनीक, कृषकों की जीवन पद्धति एवं जीवन स्तर, किसी कृषि प्रदेश की विशेषताओं के विषय में बताते हैं। यह विशेषताएं ही एक कृषि प्रदेश को अन्य कृषि प्रदेश से पृथक करती हैं।

विश्व के कृषि प्रदेशों की पहचान एवं सीमांकन का प्रयास कई भूगोलवेन्ताओ हंटिंगटन, जॉनसन, हिवटलीसी आदि ने किया।
अमेरिकन भूगोलवेत्ता डॉक्टर हिवटलीसी ने विश्व को 13 कृषि प्रदेशों में वर्गीकृत किया। उन्होंने कृषि प्रदेशों के सीमांकन हेतु निम्नांकित 5 मापदंडों का प्रयोग किया।

  1. फसल एवं पशुपालन का संयोजन।
  2. कृषि के उत्पादन की विधि।
  3. कृषि भूमि में श्रम पूजा आदि के विनियोग की मात्रा।
  4. कृषि उत्पादों के उपयोग का ढंग।
  5. कृषि में सहायक यंत्र व उपकरण तथा आवासीय दशाएं।

उन्होंने उपरोक्त मापदंडों का प्रयोग करते हुए विश्व को 13 प्रमुख कृषि प्रदेशों में वर्गीकृत किया।

  1. चलवासी पशुचारण कृषि प्रदेश
  2. स्थानांतरण शील कृषि प्रदेश
  3. व्यापारिक स्थाई कृषि प्रदेश
  4. व्यापारिक अन्य कृषि प्रदेश
  5. व्यापारिक दुग्ध कृषि प्रदेश
  6. व्यापारिक पशुपालन एवं अन्य उत्पादक कृषि प्रदेश
  7. व्यापारिक बागानी कृषि प्रदेश
  8. चावल प्रधान गहन कृषि प्रदेश
  9. चावल विहीन निर्वहन कृषि प्रदेश
  10. भूमध्यसागरीय कृषि प्रदेश
  11. विशिष्ट बागानी कृषि प्रदेश
  12. निर्वहन फसल एवं अन्य उत्पादक कृषि प्रदेश
  13. व्यापारिक पशुपालन कृषि प्रदेश

Leave a Reply