परिचय–
प्रति हजार ग्राम महासागर जल में घुले हुए पदार्थों की मात्रा का संबंध महासागरीय लवणता से है जो वास्तव में घुले हुए पदार्थों की मात्रा एवं महासागरीय जल की मात्रा के अनुपात को प्रदर्शित करता है। इसे %० द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
महासागरीय लवणता- चैलेंजर अन्वेषण के समय डिरमार ने महासागरों में 27 प्रकार के लवणो का पता लगाया। जिसमें 7 प्रकार के लवण सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।जैसे-1- सोडियम क्लोराइड- 77.8%2- मैग्नीशियम क्लोराइड- 10.9%3- मैग्नीशियम सल्फेट- 4.7%4- कैलशियम सल्फेट- 3.6%5- पोटेशियम सल्फेट- 2.5%6- कैल्शियम कार्बोनेट- 0.3%7- मैग्निशियम ब्रोमाइड- 0.2%उल्लेखनीय है कि महासागरों में क्लोराइड की मात्रा सर्वाधिक पायी जाती है। अधिक लवणता युक्त सागर देर में जमते हैं तथा उनका घनत्व अधिक होने के साथ उनका वाष्पीकरण निम्न होता है।इस तरह अधिक लवणता युक्त सागर का क्वथनांक सामान्य जल से अधिक होता है। सागरीय लवणता को मानचित्र पर सम लवण रेखा के सहारे दिखाया जाता है।
महासागरीय जल की औसत लवणता 35.2% है जिसका तात्पर्य प्रति हजार ग्राम जल में 35.2 ग्राम घुले हुए पदार्थों की मात्रा से है।
महासागरीय जल की लवणता औसत से कम, अधिक व बराबर हो सकती है किंतु उसमें घुले हुए पदार्थों की मात्रा का अनुपात हमेशा समान रहता है। तापमान, क्वथनांक एवं घनत्व का जल की लवणता से समानुपातिक ढंग से तथा गलनांक व्युत्क्रमानुपाती ढंग से संबंधित होता है।
महासागरीय जल की लवणता में परिवर्तन के कारण उसकी भौतिक व रासायनिक विशेषताओं में परिवर्तन होता है।जैविक घटकों के द्वारा इसमें घुले हुए पदार्थों का उपयोग करने के कारण संसाधन की दृष्टि से भी इसका महत्व होता है। लवणता के वितरण में क्षैतिज व लंबवत तथा बंद अंशत: बंद तथा खुले महासागरों में अंतर पाया जाता है।
महासागरीय जल की लवणता के नियंत्रक-
महासागरीय लवणता के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक के प्रभाव का अध्ययन करते समय जल में घुले हुए पदार्थ की मात्रा को स्थिर मान लिया जाता है।
1- वाष्पीकरण की दर एवं वर्षण की मात्रा
2- नदियों द्वारा स्वच्छ जल की आपूर्ति
3- प्रचलित पवन एवं महासागरीय गतिया
4- महासागरीय लवणता का ऊर्ध्वाधर वितरण
1- वाष्पीकरण की दर एवं वर्षण की मात्रा-
महासागरीय जल के तापमान का लवणता से समानुपातिक संबंध होता है। ऐसी स्थिति में विषुवत रेखा से ध्रुवो की ओर जाने पर औसत वार्षिक तापमान में कमी के साथ औसत लवणता में भी कमी आनी चाहिए जबकि विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर पहले लवणता में वृद्धि फिर कमी आती है।
वस्तुत: किसी स्थान विशेष की लवणता, वाष्पीकरण की मात्रा एवं जलापूर्ति की पारस्परिक संबंधों पर निर्भर करती है। जैसे विषुुवत रेखीय क्षेत्रों में वर्षण की मात्रा के वाष्पीकरण दर से अधिक होने के कारण औसत लवणता कम हो जाती है तथा उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्रों में वाष्पीकरण की दर तापमान के अधिक होने के कारण तीव्र होती है जबकि प्रति चक्रवातीय दशा के कारण वर्षण की मात्रा अत्यंत कम होती है। फलत: यह क्षेत्र उच्च लवणता वाला क्षेत्र हो जाता है।
मध्य अक्षांशीय क्षेत्र में वाताग्री वर्षा के कारण जल की आपूर्ति अधिक तथा तापमान में कमी के कारण वाष्पीकरण की दर कम होने के कारण औसत लवणता कम हो जाती है।
उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में तापमान के कम होने कारण वाष्पीकरण नहीं के बराबर तथा हिमगलन के दर जल की आपूर्ति होने के कारण लवणता अत्यंत कम हो जाती है।
2- नदियों द्वारा स्वच्छ जल की आपूर्ति-
नदियां भी लवणता के वितरण को प्रभावित करती हैं। उत्तरी गोलार्ध की औसत लवणता के दक्षिणी गोलार्ध से कम होने के एक प्रमुख कारण नदियों द्वारा स्वच्छ जल की आपूर्ति होती है। (बंगाल की खाड़ी और अरब सागर)
समान अक्षांशीय प्रदेश में अवस्थित खुलें अंशत: बंद व बंद जलीय भागो की लवणता नदियों द्वारा स्वच्छ जल की आपूर्ति व वाष्पीकरण की दर के मध्य विद्यमान संबंधों पर निर्भर करता है। जैसे काला सागर में नदियों की निकासी होने के कारण लवणता (18%) कम हो जाती है। जबकि रूम सागर में नदियों में कम गिरने के साथ वाष्पीकरण की दर अधिक होने के कारण लवणता लगभग 40% होती है।
3- प्रचलित पवन एवं महासागरीय गतिया-
प्रचलित पवन के प्रभाव के कारण सामान अक्षांशीय प्रदेश में महासागरीय पूर्वी एवं पश्चिमी भाग की औसत लवणता में अंतर आ जाता है अपतट पवन से प्रभावित महासागर में Upwelling के कारण लवणता में कमी तथा अनुतट पवन से महासागरीय भागों में Downwelling के कारण लवणता में वृद्धि हो जाती है जैसे एक हीं अक्षांशीय प्रदेश में अवस्थित मैक्सिको की खाड़ी (30-39%) तथा कैलिफोर्निया की खाड़ी (18%)
की लवणता में अंतर का प्रमुख कारण है।
महासागरीय गतियां भी लवणता के वितरण पर प्रभाव डालती है। जैसे लैब्रोडोर एवं क्युराईल की धाराएं अपने से निम्न प्रदेशों में पहुंच कर वहां की लवणता को कम कर देती है। वेंगुला व पीरु की धारा भी यही करती हैं जबकि गल्फ स्ट्रीम को उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों की लवणता को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका अदा करती है।
महासागरीय लवणता का ऊर्ध्वाधर वितरण-
जलीय सतह पर औसत लवणता औसत से कम, बराबर व अधिक हो सकती है किंतु ऐसा माना जाता है कि सभी अक्षांशीय प्रदेशों में महासागरीय नितल की लवणता बराबर होती है। ऐसी स्थिति में औसत लवणता वाले क्षेत्रों में गहराई में जाने पर कमी की दर नगण्य, औसत से अधिक लवणता वाले क्षेत्रों में कमी की दर तीव्र व औसत से कम लवणता वाले क्षेत्रों में कमी की जगह पहले वृद्धि फिर नगण्य दर से कमी आती है। किंतु सभी अक्षांशीय प्रदेशों के ऊपर के परतों में लवणता में वृद्धि तथा नितल के समीप में नगण्य दर से लवणता में कमी आती है। यही कारण है कि विषुवत रेखीय क्षेत्र में कमी की दर नगण्य, उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्र में अधिक तथा उच्च अक्षांश क्षेत्र में कमी की जगह लवणता में वृद्धि होती है।अतः स्पष्ट है कि लवणता के वैश्विक वितरण में स्थानिक व कालिक भिन्नता पाई जाती है। तथा यह विभिन्नता किसी एक कारण नहीं बल्कि अनेक कारणों के मध्य विद्यमान संबंधों का प्रतिफल है।
महासागरीय लवणता के लंबवत वितरण के अंतर्गत यह मान लिया गया है कि सागरीय नितल पर सभी अक्षांशों पर लवणता का वितरण समान रहता है। इससे स्पष्ट है कि औसत से अधिक लवणता वाले निम्न अक्षांशीय प्रदेशों में लवणता के ह्रास की दर अधिक होगी तथा औसत से कम व अत्यधिक कम लवणता वाले क्षेत्रों में ह्रास के बजाय वृद्धि होती है। साथ में यह भी माना जाता है कि सभी अक्षांशों पर जलीय भाग की ऊपरी परतों में लवणता में वृद्धि तथा नितल के समीपवर्ती भागों में नगण्य दर से कमी आती है।
इन महत्वपूर्ण तथ्यों को आधार बनाते हुए महासागर को लवणता के आधार पर लंबवत रूप में तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
1- ऊपरी परत
2- हैलोक्लाइन परत
3- निचली परत
मध्यवर्ती परत (300 मीटर-1000 मीटर) का संबंध हैलोक्लाइन मंडल से है। यहां लवणता में तीव्र गति से परिवर्तन होता है। 1000 मीटर के नीचे अर्थात निचली परत में नगण्य अथवा स्थिर दर से लवणता में परिवर्तन होता है।
उदाहरण स्वरूप औसत लवणता वाले विषुवत रेखीय क्षेत्र में लवणता में नगण्य दर से, औसत से अधिक लवणता वाले उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में लवणता में ह्रास की दर अधिक तथा शीत कटिबंधीय क्षेत्रों में लवणता में कमी के बजाय वृद्धि होती है।