परिचय
• महान के समुद्री शक्ति संकल्पना की आलोचना के जवाब में मैंकिंडर ने अपने हृदय स्थल सिद्धांत का प्रतिपादन किया।उनके अनुसार यूरोप का इतिहास स्थल एवं समुद्री शक्तियों के बीच संघर्ष का प्रतिफल है।
• उन्होंने समुद्री शक्ति की तुलना में स्थल शक्ति को अधिक महत्वपूर्ण माना।
• इनका यह सिद्धांत ऐतिहासिक भू- स्थानिक मॉडल पर आधारित है।
• उन्होंने 1904 में royal geographical society के समक्ष geographical pivot of history नाम से एक पत्र प्रस्तुत किया जो 1919 में democratic ideal and reality नाम से प्रस्तुत रिपोर्ट का पूर्ववर्ती है।
• उल्लेखनीय है कि मैंकिंडर का यह भू- राजनीतिक सिद्धांत 1919 की रिपोर्ट में ही हार्टलैंड सिद्धांत के नाम से जाना गया।
आलोचना
1- दुर्गम प्राकृतिक प्रवेश द्वार ही इसके आर्थिक उन्नति का मुख्य बाधक बनकर उभरा।प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों ने इस क्षेत्र की संभाव्य आर्थिक उन्नति की मैकिंडर की भविष्यवाणी को गलत साबित कर दिया।
2- रसिया का 1991 में बिखर जाना भी इस सिद्धांत की प्रासंगिकता को कम करने वाला साबित हुआ। अत्याधुनिक लड़ाकू विमान तथा अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) की खोज एवं विकास ने हृदय स्थल की अपारगम्यता को खत्म कर दिया ।चुंकि इन्होंने अपना विश्व मानचित्र मर्केटर प्रक्षेप पर बनाया था जिसकी वजह से हृदय स्थल अपनी वास्तविक स्थिति से काफी बड़ा दिखाई पड़ता है। वैश्विक व्यवस्था में आज कई क्षेत्रीय महा शक्तियों का उभार हो रहा है।स्पाइकमैन का रिमलैण्ड सिद्धांत मैंकिंडर के सिद्धांत की आलोचना पर ही आधारित है।
मुख्य भाग-
1904 में प्रस्तुत रिपोर्ट में उन्होंने संसार को 3 वर्गों में वर्गीकृत किया।
1-धुरी क्षेत्र
2-आंतरिक अर्धचंद्राकार क्षेत्र
3-बाह्य अर्धचंद्राकार क्षेत्र
धुरी क्षेत्र अथवा धुराग्र क्षेत्र–
इसका संबंध रूस के केंद्रीय भाग से है।
आंतरिक अर्धचंद्राकार क्षेत्र-
यह क्षेत्र धुरी क्षेत्र के पश्चिम,दक्षिण तथा पूरब स्थित है और नदियों द्वारा समुद्र से जुड़ा है।
बाह्यअर्धचंद्राकार क्षेत्र-
यह क्षेत्र आंतरिक अर्धचंद्राकार क्षेत्रों से समुद्रो अथवा सागरों के माध्यम से जुड़ा हुआ है।
धुरी क्षेत्र अनेक कारणों से मैंकिंडर के अनुसार भविष्य में एक निर्णायक शक्ति के रूप में उभरे।
दुर्गम प्राकृतिक प्रवेश द्वारों तथा आर्थिक संसाधनों की उपस्थिति इस क्षेत्र के वैश्विक नियंत्रण शक्ति बनने के पीछे मुख्य कारण है।
16वीं शताब्दी तक यह क्षेत्र यूरेशिया महाद्वीप के अधिकांश भाग का भाग्य तय करता रहा। ब्रिटेन के नेतृत्व में 17वीं शताब्दी के बाद विकसित नौसैनिक शक्ति ने इस स्थलीय शक्ति के समक्ष कड़ी चुनौति पेश की।
मैंकिंडर के अनुसार स्थलीय शक्ति के पक्ष में बताए गए उपरोक्त कारणों से स्थलीय शक्ति ही अंत में निर्णायक साबित हुई। ट्रांस साइबेरियन रेलवे लाइन के विकास ने मैंकिंडर के मत को बल प्रदान किया।
प्रथम विश्वयुद्ध में बाल्टिक सागर तथा काला सागर के माध्यम से ब्रिटेन द्वारा इस क्षेत्र में प्रवेश करने का असफल प्रयास तथा जर्मनी की निर्णायक हार एवं रूस का एक निर्णायक शक्ति के रूप में उभरना मैकिंडर के लिए अत्यंत निर्णायक साबित हुआ।
1919 में अपने शोध प्रपत्र democratic ideal and reality में उन्होंने अपने हृदय स्थल सिद्धांत को व्यवस्थित रूप प्रदान किया तथा अपने धुरी क्षेत्रों में कुछ क्षेत्रों को शामिल करते हुए उसे हृदय स्थल के नाम से संबोधित किया।
हृदय स्थल की वैश्विक रणनीतिक प्रासंगिकता के संदर्भ में उसका प्रसिद्ध कथन अग्रलिखित है-
जो पूर्वी यूरोप को नियंत्रित करेगा वही हृदय स्थल को नियंत्रित करेगा।
हृदय स्थल की निर्णायक शक्ति ही विश्वदीप का स्वामी होगा।
जो बिश्वदीप को नियंत्रित करेगा उसी का सिक्का संसार में चलेगा।
द्वितीय विश्व युद्ध में घटित घटनाओं का विश्लेषण करते हुए उन्होंने 1943 में पुनः around the world and winning peace में अपने सिद्धांत में थोड़ा सा परिवर्तन किया।
द्वितीय विश्व युद्ध में पश्चिमी यूरोप तथा अमेरिका के निर्णायक शक्ति के रूप उभरने के कारण उन्होंने शक्ति के दूसरे केंद्र के रूप में मिडलैंड बेसिन की संकल्पना का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार विश्व का दूसरा पावर सेंटर यही है। हृदय स्थल में से लीना नदी के पूर्व क्षेत्र को उन्होंने अलग कर दिया तथा उसे लीना लैंड के नाम से संबोधित किया।
प्रासंगिकता–
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक भू-राजनीतिक स्थितियों का विश्लेषण करने से यह एकदम स्पष्ट दिखाई देता है नाटो के रूप में उपस्थित मिडलैंड शक्ति ने हृदय स्थल को चुनौती दिया। 1990 के पूर्व का शीत युद्ध मैंकिंडर की भविष्यवाणी को सही साबित करता है तथा अमेरिका तथा पश्चिमी यूरोप के देशों को अपने सिद्धांत के माध्यम से उनके द्वारा दिया गया संदेश इस क्षेत्र के देशों की विदेश नीति का सफल आधार बना।
निष्कर्ष–
निष्कर्षत: वर्तमान में मैकिंडर का हृदय स्थल सिद्धांत प्रासंगिक नहीं रह गया है किंतु भू राजनीति के क्षेत्र में यह पहला सिद्धांत था। जिसने भू राजनीतिक विचारकों को सैन्य सिद्धांतों तथा विदेशी एवं रक्षा नीति से संबंधित संकल्पनाओं के विकास हेतु प्रेरित किया।