महासागरीय संसाधन – संपूर्ण पृथ्वी के दो तिहाई भाग पर महासागर की स्थित है और ये महासागर मुख्य स्थलीय भाग की अपेक्षा जैव विविधता से धनी होने के साथ संसाधनों के मामले में भी धनी ह। इन संसाधनों एवं समुद्री परिवहन को लेकर विश्व समुदाय में शांति बनी रहे , संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना (1945) के समय अंतर्राष्ट्रीय संस्थाान के रूप में अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग की स्थापना की गई। इसे इस तरह अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानूनों को संहिताबद्ध करने की जिम्मेदारी सौपी गई जो सभी देशों को मान्य हो।
अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग ने जेनेवा ( 1958 ) के प्रथम अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून सम्मेलन में एक रिपोर्ट पेश कि जो प्रथम संयुक्त राष्ट्र कानून का आधार बना। इस सम्मेलन में चार अभिसमय लाए गए जो सामान्य रूप से स्वीकृत नियमों के मुख्य भाग बनाए गए।
ये चार अभिसमय थे
• गहरे समुद्र संबंधी अभिसमय
• महाद्वीपीय मग्नतट भूमि संबंधी अभिसमय
• गहरे समुंद्र में मत्स्यन संबंधी अभिसमय
• सजीव संसाधनों से संबंधित अभिसमय
प्रथम सम्मेलन के प्रमुख समस्या प्रादेशिक सीमाओं के निर्धारण के संदर्भ में आयी । तत्कालीन शक्तिशाली तटवर्ती देशों द्वारा एक तरफा कार्यवाही के द्वारा सीमाओं को बढ़ाने एवं गहरे समुद्र में मत्स्यन करने वाले राष्ट्रों के हित का मामला उठा। इन मामलों के विर्णयन हेतु द्वितीय सम्मेलन (1960) का आयोजन किया गया लेकिन अंत में एक मत से स्वीकृत समझौता पूर्ण फार्मूला बनने से रह गए।
इसी कारण समुंद्री कानूनी संबंधी एक व्यापक अभी समय लाने हेतु 1970 में तीसरे सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार की सीमाओं के स्पष्ट निर्धारण के साथ उससे परे स्थित गहरा समुंद्र तल क्षेत्र विश्व समुदाय की साझा विरासत हो , पर विचार किया जाना था। लगभग एक दशक के विचार विमर्श के पश्चात 1982 में जमैका के तीसरे सम्मेलन के प्रतिवेदन पर सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किए लेकिन तीसरे संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन की व्यवस्था को लगभग एक दशक तक लागू नहीं किया जा सका जिसके अग्रलिखित कारण थे ।
• कई औद्योगिकृत राष्ट्रो विशेषकर अमेरिका इंग्लैंड जर्मनी जैसे देशों द्वारा अंतरराष्ट्रीय समुद्री तल क्षेत्र में खनन उपवन्धों का विरोध किया जाना।
• वाणिज्यिक उत्पादन की कमजोर संभावना
• आर्थिक जरूरत नहीं होना था।
1982 में गठित उप क्रियात्मक आयोग के अथक प्रयासों की वजह से 1994 से इसके पक्षकार देशों पर संयुक्त राष्ट्र संबंधी अभिसमय लागू हो गया । इन समुद्री कानूनों में नव पृथक समुंद्री जोन बनाए गये तथा एक आधार रेखा निर्धारित करने की भी बात की गयी । यह आधार रेखा मुख्य भूमि के निकले हुए स्थानीय टुकड़ों को मिलाते हुए प्रत्येक देश द्वारा बनायी जानी थी। इस अभिसमय में द्वीपीय देशों एवं चारों तरफ से स्थलीय भूभाग से घिरे देशों के लिए कुछ विशेष प्रावधान किए गए जिससे उनको भी लाभ मिल सके।
नौ (9) जोनो में विभाजित समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत आधार रेखा एवं मुख्य भूमि के बीच स्थित समुद्री जल को आंतरिक जलीय क्षेत्र कहा गया।
(1) आधार रेखा से 12 समुद्री मील की दूरी तक के क्षेत्र को क्षेत्रीय सागर कहा गया।
(2) आधार रेखा से 24 समुद्री मील तक अविच्छिन्न मंडल तथा (3) आधार रेखा से 200 समुद्री मील तक अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के रूप में चिन्हित किया गया।
(4)महाद्वीपीय सीमा से बाहर तक विस्तारित महाद्वीपीय मग्नतट भूमि जिससे बाहरी सीमाएं विनिदृष्ट है।
(5) अनन्य आर्थिक क्षेत्र के आगे स्थित गहरे समुद्री क्षेत्र।
(6) मग्नतट के आगे अंतरराष्ट्रीय समुद्री तल क्षेत्र।
(7)अंतरराष्ट्रीय नौ परिवहन के लिए प्रयुक्त सागरीय क्षेत्र।
(8) महाद्वीपीय सागर समतल क्षेत्र।
(9) जलडमरूमध्य क्षेत्र।
प्रत्येक तटवर्ती देश को इनके कुछ जोनों पर विशेषाधिकार प्रदान किया गया। आंतरिक समुद्री क्षेत्र पर संबंधित तटवर्ती राष्ट्र की संप्रभुता, प्रादेशिक समुद्री क्षेत्र पर आसमान से जाने वाले विदेशी जहाजों के निर्दोष आवाजाही के साथ संप्रभु। अधिकार इस सीमा के अंदर संप्रभु देश बनाये गये सीमा शुल्क आर्वजन , राजस्व, घुसपैठ , सामरिक सुरक्षा , स्वास्थ्य सफाई आदि संबंधी पूर्ण अधिकार होता है और उल्लंघन करने बने वह दंडित कर सकता है।
विशिष्ट आर्थिक मंडलीय क्षेत्र के अंतर्गत तली में निक्षेपित पदार्थों मैं स्थित खनिज संपदा सागरीय जल शक्ति सागरीय जिवो के सर्वेक्षण विदोहन संरक्षण तथा प्रबंधन के लिए तटवर्ती देश का पूर्ण अधिकार होता है। कोई दूसरा देश संबंधित देश के अनुमति के बिना इस क्षेत्र में कोई आर्थिक कार्य नहीं कर सकता है परंतु केबिल बिछाने , जल यान के आने जाने का अधिकार सभी देशों का प्राप्त होता है। क
तल छटीय समुद्री संसाधनों सहित महाद्वीपीय मग्नतट भूमि के संसाधनों पर संप्रभु अधिकार प्राप्त होता है इसके अतिरिक्त सभी उप वर्गों को विश्व समाज की सांझी संपत्ति घोषित की गई।
द्वीप समूहों देशों को अभी अपने द्वीप समूही क्षेत्रों पर संप्रभु अधिकार प्राप्त होगा। इसी तरह भू वशिष्ठ क्षेत्रों को लाभकारी स्थिति में लाने के लिए कुछ विशिष्ट सुविधाऐ प्रदान की गई। जैसे पारगमन की स्वतंत्रता पड़ोसी तटवर्ती देश के अनन्य आर्थिक क्षेत्र के अधिक मत्स्यन सुविधा के साथ वैज्ञानिक अनुसंधान की भी सुविधा भी प्रदान की गई।
समुद्री कानून के सभी प्रावधान सही ढंग से काम करें के लिए दो संगठनों की स्थापना की गई। समुद्री विवादो का निपटारा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण की स्थापना जर्मनी के हेम्वर्ग मे की गई। इस तरह अंतरराष्ट्रीय समुद्र तत्व प्राधिकरण की स्थापना 1994 जमैका मे की गई जिसका मुख्य उद्देश्य समुद्री कानूनों के उप वधो को प्रभावी बनाने के लिए उपाय करना था। अभिसमय के पूर्ति (1995) करने के बाद से ही भारत प्राधिकरण के परिषद 36 सदस्य में स्थान पाने के लिए प्रयास रत हैं।
विशेष नोट्स – समुद्री पर्यावरण , समुद्री वैज्ञानिक , अनुसंधान , समुंद्री प्रौद्योगिकी करण विकास एवं अंतरण विवादों का निपटारा संबंधी विस्तृत उपबंध एवं सुरक्षोपाय अभिसमय के मुख्य भाग है।
पारंपरिक रूप में एक विशिष्ट समुद्री देश होने के नाते भारत ने अपने मत्स्यन तेल एवं गैस समुद्र तल पर पवन विद्युत का उत्पादन जहाज रानी समुद्री पर्यावरण सुरक्षा एवं राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी हितों को देखते हुए भारत में केवल समुद्री कानून संबंधित तीनों ( 1959 , 1960 , 1970 ) में शामिल हुआ बल्कि 1995 में उसने संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभी समय की पूष्टि कर दे। इसके लिए उसने अपने संविधान में संशोधन किया तथा अग्रलिखित अधिनियम बनाए
• समुद्री क्षेत्र अधिनियम 1976
• तटरक्षक अधिनियम 1981
• विदेशी पोतो द्वारा मछली पकड़ने को विनियमित करने हेतु अधिनियम
• 1986 का पर्यावरण संरक्षण अधिनियम
• इसके साथ भारत ने अपने सभी समुद्री जोनो आंतरिक समुद्री क्षेत्र (12) प्रादेशिक समुद्री क्षेत्र (24) आदि का स्पष्ट निर्धारण किया ताकि विवाद से बचा जा सके।
भारत ने बहुतात्विक छड़ों ( मैग्नीज छड़ो ) की खोज एवं निष्कर्ष के साथ अपने सामरिक हितों को —- बनाए रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्री तल क्षेत्र में विकास एवं दोहन कार्यों को संपादित करने के लिए प्राधिकरण के सामने बात रखी। प्राधिकरण ने इसकी बात स्वीकार करते हुए इसे लगभग ,,,,,,, वर्ग किया का आवंटित क्षेत्र पाने वाला पहला देश बन गया या उपलब्धि भारत को हमारे वैज्ञानिकों एवं राजनीतिक संस्थानों के सराहनीय प्रयास के कारण प्राप्त हुई। भारत ने छड़ संसाधनों को दोहन करने हेतु अंतरराष्ट्रीय समुद्री तल प्राधिकरण के लिए हिंद महासागर में उसी आकार के दूसरे क्षेत्र की पहचान कि ताकी मानव जाति की समस्या विरासत के सिद्धांत का सामना किया जा सके तथा उसे पूरा किया जा सके।
इस प्रकार भारत सहित देशों के सराहनीय प्रयास से समुंद्री कानून अस्तित्व में आया। इस व्यवस्था से न केवल राष्ट्रों के सुखद भविष्य के लिए महासागरों के संबंधित उपयोग को बढ़ावा मिलेगा बल्कि प्रकृति के रहस्य को भी समझने में आसानी होगी यह सभी राष्ट्र की जरूरत है कि मानव जाति के सद्भाव पूर्ण जीवन एवं प्राकृतिक संसाधनों के शांतिपूर्ण उपयोग से संबंधित समस्या का समाधान करने हेतु समन्वित प्रयास करें एवं संयुक्त राष्ट्र प्रणाली पर भरोसा रखें।