महान की समुद्री शक्ति संकल्पना-
ए०टी० महान 19वीं सदी के एक महान इतिहासकार थे जिन्हें जान कीगन द्वारा 19वीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण अमेरिकी रणनीति कार की उपाधि दी गई।
इन की पुस्तक का नाम-
1-the infuence of sea power on history,1660-1783(1890)
2-the infuence of the the sea power up to the French revolution and Empire,1793-1812(1892)
दूसरी पुस्तक लिखने के बाद इन्हें वैश्विक स्तर पर काफी ख्याति मिली।
इनके विचारों को डच गणराज्य, इंग्लैंड, फ्रांस और स्पेन के बीच 17 वी सदी के संघर्षों एवं फ्रांस ग्रेट ब्रिटेन के बीच 19वीं सदी के नौसैनिक युद्धों द्वारा आकार दिया गया था।
ब्रिटिश नौसेना की श्रेष्ठता ने अंततः फ्रांस को हराया लगातार आक्रमण एवं प्रभावी नाकेबंदी को रोका। उन्होंने जोर देकर कहा कि नौसेना संचालन नाकेबंदी बंदी और निर्णायक लड़ाई दोनों में मुख्य भूमिका में हो सकता है।
इनके अनुसार ब्रिटेन की महाशक्ति बनने की फीस है सबसे बड़ा कारण उसकी समुद्र शक्ति थी। इन्होंने कूटनीति एवं भूमि आधारित हथियारों की उपेक्षा की।
इनके अनुसार किसी राष्ट्र की महानता उसके समुद्र के नियंत्रक से आती है। समुद्र पर शांत के समय व्यापार द्वारा तथा युद्ध के समय नियंत्रण के द्वारा कोई देश शक्तिशाली बन पाता है। इनका सिद्धांत भूमि आधारित साम्राज्यो यथा बिस्मार्क का जर्मनी साम्राज्य अथवा रूसी साम्राज्य के उदय की व्याख्या नहीं करता है।
समुद्री शक्ति के तत्व-
इनके अनुसार समुद्री शक्ति का विकास करके विश्व व्यापार को नियंत्रित किया जा सकता है तथा व्यापार को नियंत्रित करके विश्व पर प्रभुत्व स्थापित किया जा सकता है।
युद्ध के समय आक्रमण रक्षा की सर्वोत्तम पद्धति है। के सिद्धांत को 9 सैनिक शक्ति के माध्यम से अक्षरस: लागू किया जा सकता है।
समुद्री शक्ति के माध्यम से नाकाबंदी के द्वारा भयादोहन करके भी राष्ट्रीय हितों की पूर्ति की जा सकती है समुद्री शक्ति के उपरोक्त रणनीतिक महत्व को देखते हुए शक्ति के तत्व को समझना जरूरी है जो कि अग्रलिखित है-
अवस्थिति– द्विपीय, प्रायद्वीपीय, तटीय
सरकार– रुचि
बनावट-तटगहरा, कटा फटा
जनसंख्या-समुद्री शक्ति में अपना भविष्य तलासते हो।
विस्तार– क्षेत्र के अनुरूप लंबी तटीय सीमा (अमेरिका), क्षेत्र की तुलना में लंबी तटीय रेखा, रक्षा व्यय बढ़ जाएगा
राष्ट्रीय चरित्र– साहसीक यात्राओं में विश्वास तथा साम्राज्यवादी प्रवृत्ति
किसी देश के द्विपीय, प्रायद्वीपीय अथवा तटीय स्थिति समुद्री शक्ति का एक नौसर्गिक तत्व के सहारे सहज रूप से विश्व की प्रमुख नौसैनिक शक्तियां हैं।
बनावट कटे-फटे एवं गहरे तट बंदरगाहों के विकास के लिए अत्यंत अनुकूल होते हैं तथा तटीय विस्तार यदि किसी देश के क्षेत्रफल एवं संसाधनों के अनुरूप है दो नौसेना का विकास सहज रूप में संभव है जैसे अमेरिका।
चिली के पास लंबी तट रेखा के साथ संसाधनों की कम उपलब्धता एवं क्षेत्रीय विस्तार की सिमितता के कारण जहां समुद्री शक्ति का प्रभाव प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ वही उसका रक्षा व्यय भी बढ़ गया। जिस देश की जनसंख्या समुद्र को प्रमुख व्यवसाय के रूप में स्वीकार करती है। उस देश में समुद्री शक्ति का विस्तार सहज संभव है जैसे अमेरिका और ब्रिटेन।
फ्रांस और जर्मनी के पास उपजाऊ जमीन अधिक होने के कारण वही समुद्री शक्ति का यथोचित विकास नहीं हो पाया।
राष्ट्रीय चरित्र भी इस संदर्भ में काफी मायने रखता है।
समुद्री उद्यमिता, निर्डरता, सामुद्रिक शाहसिक यात्राएं तथा दूसरे पर प्रभुत्व स्थापित करने की भावना यदि किसी देश के राष्ट्रीय चरित्र में है तथा सरकार भी उसमें रुचि रखती है और संसाधनों एवं नीतियों के माध्यम से नौसेना तथा समुद्री व्यापार को प्रोत्साहित करती है तो यह स्वभाविक है कि वह देश विश्व की प्रमुख सामुद्रिक शक्तियों में शुमार होगा।
नौसैनिक स्ट्रेटजी का सिद्धांत-
महान के अनुसार प्रौद्योगिकी विकास के साथ-साथ सांम्रिकी तो बदल जाती है लेकिन स्ट्रेटजी के सिद्धांतों अपरिवर्तित रहते हैं।
इनके अनुसार नौसैनिक स्ट्रेटजी का सिद्धांत अग्रलिखित है-
1-अवस्थिति
2-नौसैनिक शक्ति
3-संकेंद्रण
4-संचार रेखाएं
अवस्थिति–
केंद्रीय अथवा संकेंद्रण भाग पर स्थित नौसैनिक कमान नौ सेना के लिए एक वरदान की तरह है।
जैसे हिंद महासागर में स्थित डियोगोगार्सिया, अमेरिका नौसेना को indo-pacific क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठता प्रदान करता है। क्योंकि अमेरिका यहां से एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका से संलग्न देशों के व्यापार को नियंत्रित करता ही है और उस क्षेत्र के साथ रणनीतिक साम्रिकी बढ़त भी बनाए रखने में कामयाब होंगे।
नौसैनिक शक्ति-
आक्रमणात्मक तथा सुरक्षात्मक दोनों से लैस नौ सैनिक क्षमता वाले देश निश्चित और निडर होकर दुश्मन देश पर सम केंद्रित आक्रमण कर सकते हैं।
महान का यह मानना था कि नौसैनिक पोतों के साथ बड़े छोटे और भी पोत होने चाहिए। उनके अनुसार बीच-बीच में समर्थ देश को अपनी नौसैनिक क्षमता का और प्रदर्शन भी करना चाहिए।
संसाधन–
प्राकृतिक संसाधन जैसे गहरे बंदरगाह शक्तिशाली पड़ोसी मित्र भी नौसेना शक्ति के विकास में प्रमुख भूमिका अदा करते हैं। इसी तरह जल उद्योग, निर्माण उद्योग, मत्स्य उद्योग आदि के लिए भी आधारभूत ढांचे का विकास करके समुद्री अर्थव्यवस्था पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए।
संचार रेखाएं-
संचार रेखाएं आपूर्ति के वह मार्ग हैं, जो अन्य अड्डों को मुख्य नौसैनिक कमांड से जोड़ते हैं।
यदि हम अपनी संचार रेखाओं को सुरक्षित बनाए रखते हुए दुश्मन देश की संचार रेखा को नष्ट कर दे तो हम दुश्मन देश की अपेक्षा अधिक लाभ की स्थिति में होंगे।
संकेंद्रण–
दुश्मन देश के सापेक्ष अपनी नौसेना का संकेन्द्रण करते रहना चाहिए।
यदि कभी दो मोर्चों पर लड़ाई लड़ना पड़े तो पहले मोर्चे को जीत लिया जाए उसके बाद दूसरे मोर्चे पर लड़ा जाए।
आंग्लडच युद्ध में अंग्रेजो द्वारा हारने का सबसे बड़ा कारण दोनों मोर्चों पर एक साथ लड़ा जाने वाला युद्ध था।
क्योंकि उसे एक तरफ फ्रांस जलाना था तथा दूसरी तरफ डचों से, इससे काफी उनकी नौ सैनिक शक्ति बिखर गई और वह संगठित और संकेंद्रित आक्रमण न कर सकें।
महान का यह भी मानना था कि यदि किसी कारण बस दो मोर्चों पर लड़ाई लड़नी पड़े तो कमांड की एकता हर हाल में बनाए रखनी चाहिए।
आलोचना–
1-लड़ाकू हवाई विमानो तथा समुंद्री बारूदी सुरंगों के द्वारा समुद्री बेड़े को नष्ट भी किया जा सकता है जैसे द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी ने बाल्टिक सागर में ब्रिटेन की 9 सैनिक शक्ति को नष्ट किया था जापान ने अमेरिका पर्ल हार्बर नौसैनिक अड्डों को लड़ाकू विमान द्वारा आक्रमण करके डुबो दिया गया था।
2- भारत जैसे देश को “TWO FRONT WAR”जैसी स्थिति से गुजरना पड़ रहा है ऐसी स्थिति में महान की एक मूर्ति पर फतह कर दूसरे मोर्चे पर लड़ने वाली बात उतनी प्रासंगिक दिखाई नहीं पड़ रही है।
3- वर्तमान में युद्ध का स्वरूप काफी बदल गया है साइबर युद्ध, अंतरिक्ष युद्ध, युद्ध के नए आयाम के रूप में उभरे हैं वायु सेना ने युद्ध के स्वरूप को पूर्णतया परिवर्तित कर दिया है।
4-युद्ध के इस नए आयामों के संदर्भ महान मौन महान अपनी इस संकल्पना की माध्यम से साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद को प्रोत्साहित करते हैं जो कि युद्ध के मूल्यों के खिलाफ है।
प्रासंगिकता–
उपरोक्त आलोचनाओं के बावजूद महान की समुद्री शक्ति संकल्पना न केवल और भूत और वर्तमान में प्रासंगिक है बल्कि भविष्य में इसकी प्रासंगिकता बनी रहेगी ब्रिटेन और ऊपर राज्य करता है तथा हिंद महासागर को ब्रिटेन का झील कहा गया उक्त दोनों को समुद्री शक्ति अमेरिका जैसी महाशक्ति के द्वारा विश्व स्तर पर विश्व के प्रमुख सागरीय क्षेत्रों के नौसैन कमांडो की स्थापना महान की समुद्री शक्ति की संकल्पना की प्रासंगिकता को बताता है।
महान के द्वारा की गई यह भविष्यवाणी 21वीं सदी के भविष्य का फैसला हिंद महासागर की लहरों पर होगा जो अत्यंत प्रासंगिक है।
आज विश्व की विभिन्न महा शक्तियां हिंद महासागर पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास करती हैं अमेरिका द्वारा डिएगो गार्सिया द्वीप पर नौसैन बेस की स्थापना चीनी द्वारा पूर्वी अफ्रीका के तटवर्ती क्षेत्रों में सैनिक बेश बनाया जाना तथा भारत द्वारा अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर नौसैन कमांड की स्थापना के साथ साथ में जिबूती, ओमान में सैन्य बेसो की स्थापना हिंद महासागर के भू राजनीतिक महत्व को बताता है।
निष्कर्ष–
निष्कर्षत: महान की समुद्री शक्ति संकल्पना साम्राज्यवादी तथा उपनिवेशवादी दृष्टिकोण के साथ सैन्य उद्देश्यों से प्रेरित थे। इसका मुख्य उद्देश्य समुद्री शक्ति के तत्वो और सिद्धांतों का उपयोग करते हुए किसी देश विशेष को समुद्री शक्ति बनने हेतु प्रेरित करना था।
आज भी इनके मार्गदर्शक सिद्धांत विश्व की महा शक्तियों की समुद्रनीति एवं रक्षा नीति का आधार बने हुए हैं।