परिचय
अंतर्जात बल के द्वारा एक तल के सहारे चट्टानों के स्थानांतरण को भूपटल विभंग या भ्रशन्न कहते हैं।
भूपटल विभंग तनाव व मूलक तथा सम्पीडनात्मक संचलनो पर आधारित होता है । हालांकि विभंग के लिए तनाव मूलक अत्यधिक उत्तरदायित्व होता है। सम्पीडनात्मक बल के अत्यधिक होने की स्थिति में ही भ्रशन की क्रिया हो सकती है।
तनाव शक्ति के सामान्य होने की स्थिति में भूपटल वर्ग के बल पर चटकने पड़ती हैं।
तनाव मूलक बल के कुछ तीव्र होने पर होने वाले चट्टानों के स्थानांतरण प्रक्रिया को भ्रंशन आदि चट्टानों का स्थानांतरण सामूहिक स्तर पर बड़े पैमाने पर भ्रंश तल के सहारे होता है।तो उसे भ्रंश कहते हैं।
भ्रंश से संबंधित कुछ प्रमुख शब्दावलीया:-
भ्रंशनति:-
भ्रंश तथा क्षैतिज के बीच के कोणों को विभग तल की नति कहते हैं।
उत्क्षेपित खंड:-
भ्रंश तल के दूसरी ओर के खंड के अपेक्षा उचे – उठे भाग को उत्क्षेपित खंड बोलते हैं।
अध:क्षेपित खंड:-
ऊपर उठे खंड की अपेक्षा निचले खंड को अध: क्षेपित खंड कहते हैं।
शिर्ष भित्ति: – भ्रंश की ऊपरी दीवाल को भ्रंश भित्ति ऊपरी भित्ति कहते हैं।
पाद भित्ति– भ्रंश तल के निचली दीवार को पाद भित्ति कहते हैं।
भ्रंश कगार– भ्रंश के कारण स्थलीय सतह पर खण्ड निर्मित खड़े ढाल वाले किनारे को भ्रंश कगार कहते हैं।
भ्रंश के प्रकार-
1- सामान्य भ्रंश
2- व्युत्क्रम भ्रंश
3- पाश्विक या नतिलम्बिय भ्रंश
4- सोपानी भ्रंश
सामान्य भ्रंश- भ्रंशन प्रक्रिया द्वारा चट्टानों के दोनों खंडों के विपरीत दिशा में खिसकने से सामान्य भ्रंश का निर्माण होता है। इसका भ्रंश तल लंबवत या खड़े ढाल वाला होता है।
व्युत्क्रम भ्रंश- चट्टानों के दोनों खंडों के आमने सामने खिसकने पर व्युत्क्रम भ्रंश का निर्माण होता है। चुकी इस तरह के संचलन में सम्पीडन बल का योगदान होता है इसलिए इसे संपीडनात्मक भू – संतुलन भी कहते हैं।
इस भ्रंश में चट्टान का एक खंड दूसरे खंड पर चढ़ जाता है इसलिए इसे उत्क्रम अथवा क्षेपित भ्रंश भी कहते हैं।
पार्श्विक अथवा नतिलम्बिय भ्रंश – इस तरह के भ्रंश में चट्टानों के खंड भ्रंश तल के सहारे क्षैतिज दिशा में गति करते हैं। इनमें कगारो की रचना नगण्य मात्रा में होती है जब शैल खंड का संचलन भ्रंश की बायी ओर होता है तो उसे बाम पार्श्ववर्ती या सिनिस्ट्रल कहते हैं। दायी ओर स्थानांतरण की स्थिति में उसे डेक्स्ट्रल भ्रंश कहते हैं।
सोपानी भ्रंश– जब किसी क्षेत्र में भ्रंशन की क्रिया इस प्रकार होती है कि सभी भ्रंश तल के ढ़ाल एक दिशा में हो जाते हैं तो इस प्रकार के ढ़ाल को सोपानी या सीढ़ीदार ढ़ाल भ्रंश करते हैं।
भ्रंश घाटी की उत्पत्ति से संबंधित संकल्पनाएं-
1- तनाव मूलक संकल्पना
2- संपीडनात्मक संकल्पना
वार्ड, बेलैण्ड, बेलीविलिज, स्मिथ आदि विद्वान संपीडनात्मक संकल्पना के समर्थक हैं।
भ्रंश क्रिया से उत्पन्न स्थलाकृति–
• भ्रंश घाटी
• रैम्प घाटी
• ब्लॉक पर्वत
• हाॅस्ट पर्वत
दो भ्रंश रेखाओं के बीच चट्टानी स्तंभ के नीचे की ओर धंसने से भ्रंश घाटी का निर्माण होता है। जबकि इसके विपरीत दो भ्रंश रेखाओं के बीच के स्तंभ के यथावत रहने तथा संपीडनात्मक बल के कारण दोनों किनारों के ऊपर होने से बनी घाटी को रैम्प घाटी कहते हैं। विश्व की सबसे लंबी घाटी जोकि जॉर्डन से प्रारंभ होकर जाम्बेजी नदी तक विस्तृत है भ्रंश घाटी का उदाहरण है।
जबकि असम की ब्रह्मपुत्र घाटी रैम्प घाटी का उदाहरण है।
दो भ्रंश रेखाओं के बीच के स्तंभ को यथावत रहने तथा किनारों के स्तंभों के नीचे धंसने से ब्लाक पर्वत का निर्माण होता है जर्मनी का ब्लैक फॉरेस्ट तथा भारत का सतपुड़ा पर्वत ब्लाक पर्वत के रूप हैं। भ्रंश के दोनों किनारों के स्तंभों के यथावत रहने तथा बीच के स्तंभों के ऊपर उठने से निर्मित पर्वत हाॅस्ट पर्वत का उदाहरण।